Saturday, October 28, 2017

Why Pranayam + Meditation are necessary from the Medical Science's point of view ?

From the time of the  birth till death the heart works continuously. Everyday the heart pumps 7000 litres of blood, of which 70% blood is pumped to the *Brain* and the remaining 30%  to the *rest of body*.

How does the heart work so efficiently and effectively ?

Heart works effectively because it follows a discipline. In normal conditions the heart takes 0.3 secs to contract (systole) and 0.5 secs to relax (diastole).
So 0.3+0.5=0.8 secs are required by the heart to complete one beat (1 cardiac cycle).
That means in 1 min, the heart beats 72 times which is considered as normal heart beat.

During the relaxing phase of 0.5 secs the impure blood travels through the lungs and becomes 100 % pure.

In some stressful conditions , the body demands more blood in less time and in this situation the heart reduces the relaxing period of 0.5 secs to 0.4 secs...Thus in this case the heart beats 82 times in 1min and only 80% of blood gets purified.

On more and more demand the relaxing time is further reduced to 0.3 secs & then only 60% of blood is purified.
Imagine the consequences of the lesser Oxygenated blood circulating in our Arteries !

Deep Breathing ,  is the key to ensure better Oxygenation of the blood.

Factors responsible for the activity of the brain :

1.  25-30% is due to the Diet we consume.

2. 70-75% is due to the emotions, attitude, memories and other processes of the brain.

Thus, to calm the brain and reduce the demand on the heart to pump more and more blood , brain needs to be given a rest.

Meditation is the most useful tool to calm an agitated mind.

When we sit with eyes closed and meditate , the brain gets calmer,  heart gets rested,  thus insulating us from the Diseases of Heart & Brain.

PRANAYAM + MEDITATION IS THE KEY TO THE REAL HEALING...

Wednesday, October 11, 2017

Hindi Best Thoghts

एक बेहतरीन इंसान अपनी ज़ुबान से ही पहचाना जाता है,

वरना अच्छी बातें तो दीवारों पे भी लिखी होती है,

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जब मेहनत करने के बाद भी सपने पूरे नहीं होते;
तो रास्ते बदलिए , "सिंद्धात नहीं"....
क्योंकि पेड़ भी हमेशा पत्ते बदलता हैं जड़ नहीं.....!!

" गीता " मे  साफ  शब्दो मे लिखा है , निराश मत होना कमजोर तेरा वक्त है " तु " नही !
 
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उपकारोऽपि नीचानाम् अपकारो ही जायते |
पयः पानं भुजङ्गानाम् केवलं विषवर्धनम् ||

  भावार्थ-- दुष्ट व्यक्ति का भला करने पर भी स्वयं को ठीक उसी प्रकार क्षति ही पहुँचती है, जिस प्रकार सर्प को दूध पिलाने से केवल उसका विष बढ़ता है।

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आंखे कितनी भी छोटी क्यो ना हो !!
       ताकत तो उसमे सारा
            आसमान देखने
               की होती है 
        ज़िन्दगी एक हसीन
    ख़्वाब है ,, ,, जिसमें जीने
      की चाहत होनी चाहिये
          ग़म खुद ही ख़ुशी
           में बदल जायेंगे
                  सिर्फ
               मुस्कुराने
                   की
                  आदत
              होनी चाहिये!!

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घर में एक चलती बोलती लक्ष्मी पानी भरती है

अन्नपूर्णा बनके भोजन बनाती है

गृहलक्ष्मी बन कर कुटुम्ब सम्भालती है

सरस्वती बन कर बच्चों को शिक्षा देती है

दुर्गा बनकर संकटों का सामना करती है

कालिका, चण्डी बन कर घर का रक्षण करती है

उसकी पूजा ना सही परंतु स्त्री होने का सम्मान ज़रूरी है

देवी को मंदिर में ही नहीं अपने मन में भी बसाइए

मूर्ति के साथ जीवित स्त्री का भी आदर करें इसी में नवरात्रि उत्सव का सही सार है.

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इंसान की  अच्छाई  पर,
       सब खामोश  रहते हैं...

चर्चा अगर उसकी बुराई पर हो,
   तो गूँगे भी बोल पड़ते हैं..!!!

          जो आनंद अपनी
    छोटी पहचान बनाने मे है,
          वो किसी बड़े की
      परछाई बनने मे नही है.
      
    संघर्ष पिता से सीखे...!
संस्कार माँ से सीखे...!!

बाकी सब कुछ दुनिया सिखा देगी...!!!

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हवन का महत्व (IMPORTANCE OF HAVAN)

फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमे उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मारती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।
(२) टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।
(३) हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही. उन्होंने ग्रंथो. में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टेरिया का स्तर ९४ % कम हो गया। यही नही. उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है।
रिपोर्ट में लिखा गया की हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी):-👇
समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं। सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।
मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।

हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार :
प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।

होम द्रव्य :
होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।
(१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ी आदि
(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि
(३) मिष्ट - शक्कर, छूहारा, दाख आदि
(४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन जटामांसी आदि.

उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।

सामान्य हवन सामग्री :
तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी.
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कार्तिक (दामोदर) मास का इतना माहत्म्य क्यों?


क्योंकि इस मास में भगवान ने बहुत सारी लीलाएँ की हैं....जो इस प्रकार हैं...

1.शरद पूर्णिमा - इस दिन भगवान कृष्ण ने राधरानी ओर गोपियों के साथ रास किया था। शरद पूर्णिमा की रात्रि से ही कार्तिक  मास शुरू हुआ था।

2.बहुलाष्टमी - यह दिन राधाकुण्ड श्यामकुण्ड के आविर्भाव  का स्मरणोत्सव है।इसी दिन कृष्ण और राधारानी ने श्यामकुंड ,राधाकुंड का निर्माण किया था ।

3.रमा एकादशी

4.धनतेरस - इस दिन धन्वतंरी भगवान अमृत ओर आयुर्वेद की ओषधियों के साथ प्रकट हुए थे।

5.नरकाचतुर्दशी - इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था|

6.दामोदर लीला - इसी मास में दिवाली के दिन मैया यशोदा ने भगवान कृष्ण को उखल से बांधा था जिससे उनका नाम दामोदर पड़ा अर्थात जिनका उदर(पेट) दाम (रस्सी) से बंध गया  और इसिलिए कार्तिक मास का नाम दामोदर मास पड़ा ।

7.दिवाली- भगवान राम 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटे ।सभी अयोध्यावासियों ने दिए जलाये जिसे दिवाली के रूप में आज भी हम मानते हैं ।

8.गोवर्धन पूजा - दिवाली के पश्चात गोवर्धन पूजा की जाती है । भगवान कृष्ण ने अपनी बाएं हाथ की कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाया था| इस दिन भगवान को 56भोग लगाये जाते हैं ।

9.गोपष्टमी- भगवान कृष्ण ने गाय चराना शुरू किया ।

10.उत्थान एकादशी (देवउठनी एकादशी) -इस दिन 4 महीनो बाद भगवान उठते हैं।इसिलए इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं ।

11.तुलसी विवाह - भगवान कृष्ण और तुलसी महारानी का विवाह होता हैं ।
    

🔹 कार्तिक मास में भगवान कृष्ण के आगे संध्या समय दिया अर्पण करने का विशेष महत्व है |
# इस विषय में
पद्म पुराण में कहा गया है....
"कार्तिक मास में मात्र एक दीपक अर्पित करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं |भगवान कृष्ण ऐसे व्यक्ति का भी गुणगान करते हैं जो दीपक जलाकर अन्यों को अर्पित करने के लिए देते हैं ।" 🔹

🔺 स्कंदपुराण के अनुसार
मासानां कार्तिकः श्रेष्ठो देवानां मधुसूदनः।
तीर्थ नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।’

अर्थात्‌ भगवान विष्णु एवं विष्णुतीर्थ के सदृश ही कार्तिक मास को श्रेष्ठ और दुर्लभ कहा गया है।

  -  श्री मधुसूदन बापुजी

Monday, October 9, 2017

जय श्री कृष्ण कहने से तर जाओगे

एक वैष्णव आदमी ❄बर्फ बनाने वाली कम्पनी में काम करता था___
एक दिन कारखाना बन्द होने से पहले अकेला फ्रिज करने वाले कमरे का चक्कर लगाने गया तो गलती से दरवाजा बंद हो गया
और वह अंदर बर्फ वाले हिस्से में फंस गया छुट्टी का वक़्त था और सब काम करने वाले लोग घर जा रहे थे
किसी ने भी अधिक ध्यान नहीं दिया की कोई अंदर फंस गया है।
वह समझ गया की दो-तीन घंटे बाद उसका शरीर बर्फ बन जाएगा अब जब मौत सामने नजर आने लगी तो
भगवान को सच्चे मन से याद करने लगा।
अपने कर्मों की क्षमा मांगने लगा। प्रभु अगर मैंने जिंदगी में कोई एक काम भी मानवता व धर्म का किया है तो तूम मुझे यहाँ से बाहर निकालो।
मेरे बीवी बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। उनका पेट पालने वाला इस दुनिया में सिर्फ मैं ही हूँ।
मैं पुरे जीवन आपके इस उपकार को याद रखूंगा और इतना कहते कहते उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे।
एक घंटे ही गुजरे थे कि अचानक फ़्रीजर रूम में खट खट की आवाज हुई।
दरवाजा खुला चौकीदार भागता हुआ आया।
उस वैष्णव आदमी को उठाकर बाहर निकाला और  🔥 गर्म हीटर के पास ले गया।
उसकी हालत कुछ देर बाद ठीक हुई तो उसने चौकीदार से पूछा, आप अंदर कैसे आए?
चौकीदार बोला कि साहब मैं 20 साल से यहां काम कर रहा हूं। इस कारखाने में काम करते हुए हर रोज सैकड़ों मजदूर और ऑफिसर कारखाने में आते जाते हैं।
मैं देखता हूं लेकिन आप उन कुछ लोगों में से हो, जो जब भी कारखाने में आते हो तो मुझसे हंस कर *"जय श्री कृष्ण"* कहते हो
और हालचाल पूछते हो और निकलते हुए आपका *जय श्री कृष्ण काका* कहना मेरी सारे दिन की थकावट दूर कर देता है।
जबकि अक्सर लोग मेरे पास से यूं गुजर जाते हैं कि जैसे मैं हूं ही नहीं।
आज हर दिनों की तरह मैंने आपका आते हुए अभिवादन तो सुना लेकिन जय श्री कृष्ण काका सुनने के लिए इंतज़ार करता रहा।
जब ज्यादा देर हो गई तो मैं आपको तलाश करने चल पड़ा कि कहीं आप किसी मुश्किल में ना फंसे हो।
वह आदमी हैरान हो गया कि किसी को हंसकर *जय श्री कृष्ण* कहने जैसे छोटे काम की वजह से आज उसकी जान बच गई।
जय श्री कृष्ण कहने से तर जाओग
मीठे बोल बोलो, संवर जाओगे,
सब की अपनी जिंदगी है
यहाँ कोई किसी का नही खाता है।
जो दोगे औरों को,
वही वापस लौट कर आता है।
बोलो वल्लभ कुल गिरीराज धरण की जय।।

Sunday, October 8, 2017

मै न होता तो क्या होता?


एक बार हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद् हो गया !
ओह प्रभु!
आपने कैसी शिक्षा दी, यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो क्या होता ?
 
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मुझे भी लगता कि यदि मै न होता तो सीताजी को कौन बचाता ?
परन्तु आज आपने उन्हें बचाया ही नहीं बल्कि बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया।
तब मै समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं, किसी का कोई महत्व नहीं है !
आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो मै बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है तो मै क्या करुं ?
पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मै समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया !

आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली संत त्रिजटा की ही बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !
🙏🙏
इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है
वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि........मै न होता तो क्या होता?