Thursday, December 28, 2017

बोलिये माता कैकई की जय !!!

आश्चर्य हुआ होगा आपको कि मैं माता कैकई की जय क्युँ बोल रहा हूँ ? जबकि उनके कारण श्री राम को वनवाश हुआ. आइये कारण*
बोलिये माता कैकई की जय !!!

आश्चर्य हुआ होगा आपको कि मैं माता कैकई की जय क्युँ लिख रहा हूँ ? जबकि उनके कारण श्री राम को वनवाश हुआ. आइये कारण  जानिये !!
भगवान श्री राम वनवाश से अयोध्या लौटे तीनों माताएं प्रतीक्षा में खडी थी और श्री राम ने सबसे पहले माता कैकई के चरण स्पर्श किये और माँ कैकई ने उन्हें अपने सीने से लगाया और चौदह वर्ष के बाद  उनको देखा था. श्री राम स्वयँ नारायण थे जब उन्होंने माता कैकई को पहले प्रणाम किया तो मुझे भी लगा कि मुझे भी माता कैकई की जय लिखना चाहिये !!
अपनी माता तो अपनी प्रथम गुरु है फिर श्री राम ने अपनी माता कौशल्या के चरण पहले स्पर्श नहीं किये क्युँ ?????
आइये आपको बतलाने कि एक छोटी सी कोशिस करता हूँ .
मेरी आज की ही पहली पोस्ट से आगे का क्रम है. जैसा मैंने पहले बतलाया कि अयोध्या, जनकपुर, कैकय, कोशल, किष्किंधा  जैसे शक्तिशाली राज्य के होते हुये भी सम्पूर्ण पृथ्वी पर राक्ससों का आतंक छाया थ. परन्तु इन राज्यों के राजा धर्मात्मा होते हुये भी यह सोच कर कि हमारे राज्य सुरक्षित हैं हमें क्या ? इस सोच से अपने अपने सुख में अपाने बल मे मस्त थे. हमें क्या फरक पडता है वाली निती पर थे. राक्षस अपनी सीमा बढाये जा रहे थे . पहले वो विनयपूर्वक आये फिर उन्होने सीमा पर अपने अड्डे बनाये पहले और चोरी छुप के आतंक बढाने लगे. जो अयोध्या की सीमा मे थे वो दुसरे राज्यों में वो कभी जनकपुरी तो कभी किसी और राजा की सीमा में घुसते और संतों, गायों की हत्या करते थे. और ये लोग चुपचाप सीमा पार सीमा पार कि बात जैसे आज होती है वैसे ही हो हल्ला करके चुप हो जाते. राक्षसों ने रावण के संरक्षण में अपनी शक्ति बहुत  बढा ली थी और बाद में अयोध्या, जनकपुरी जैसे शक्तिशाली राज्यों की कभी हिम्मत तक नही पडी कि एक जूट होके इन आतंकियों का मुकाबला कर लें. अत्याचार और अधर्म अपने पीक पर चला गया. देवताओं और पृथ्वी के करुन क्रंदन पर प्रभु दशरथ जी के यहां अवतरित हुए मानव रुप में इसलिये मर्यादा मे रहना आवश्यक था. माता कौशल्या ने भी कहा कि प्रभु मुझे तो आपका साधारण मानव रुप देखना है और प्रभु ने वही किया और वो साधारण हो गये. फिर क्या था राक्ससों का जोर चल रहा था जगह जगह पर. तब अवतार का क्या फायदा ?? दशरथ जी मस्त  है बुढापे में बालकों को पाके !  उन्हें भी पता नही कि मेरे घर कौन है.
एक बार 360 के आस पास अन्य राजा अयोध्या आये, महाराजा दशरथ से विनती की और कहा महराज आप शक्तिशाली है आपने युद्ध मे देवराजइंद्र तक की सहायता की है. आज दुष्ट आतंकियों ने परेशान किया है आप हमारी सहायता किजिए. इस मीटींग में महारानी कैकई भी थी जो महराज की सचिव भी हुआ करती थी. दशरथ जी ने कहा “देखिये आप लोग धैर्य  रखिये हम जरुर सोचेंगे कि आप की क्या सहायता कर सकते हैं”  कोरा आश्वासन दे ले लौटा दिया. क्युंकि हिम्मत उनकी भी नही पढ रही थी और अपना स्वाभिमान भी होता है कि क्युंभलामें अन्य राजओ को कहूँ और बोलू कि एक होके राक्ससों का सफाया करते हैं.  महारानी कैकई को समझ आ रहा था और  दशरथ जी के ढुलमुल रवैये से संतुष्ट नही थी अत: महारानी ने गुप्त सपथ ली कि वो अवश्य कुछ करेगी.
संत विश्वामित्र को राष्ट्र कि चिंता होती है आचार्य वशिष्ठ से पुरानी शत्रुता है कभी इसलिये वो अयोध्या नहीं गये थे. परन्तु वो संत थे उन्हे पता था राम कौन है इनके माता पिता तो ध्यान नही दे रहे इसलिये दुष्टों का संहार करने के लिये मुझे अयोध्या जाना होगा. और वो वाशिष्ठ जी का वैर भूलाकर अयोध्या चले गये. राजमहल में आश्चर्य हो गया कि मुनि विस्वामित्र पधारे है जो जिंदगी मे कभी नही आये वो आज कैसे ? दशरथ जी से मिले कहा राम को मुझे दे दो कुछ समय के लिये लेकिन दशरथ जी ने मना कर दिया कहा, मेरी पुरी सेना आप ले जाइये परंतु राम को नही दे सकता .पुत्र मोह हो गया था लेकिन आचार्य वशिष्ठ जान गये, कि विश्वामित्र का उद्देश्य पवित्र है इसलिये उन्होने बीच मे ही राजा को आदेश दे दिया कि राजन मुनि विश्वामित्र आपकी सेना से कई गुना शक्तिशाली स्वयँ है इसलिये आप राम और लक्ष्मण दोनों को उनके साथ भेजिये. गुरु आदेश का पालन किया मरे मन से दशरथ जी. विश्वामित्र ने श्रीराम को कई आयुध दिये कहा श्रीराम राक्षसों का विनाश किजिए. श्रीराम ने ताडका, सुबाहू आदि को मारा. समाचार फैला अयोध्या तक पहुंचा.  इसके बाद अहिल्या का उद्धार किया, धनुष तोडा देवि सीता जी से विवाह हुआ. उनका यश और किर्ती फैल गई परंतु स्वयँ उनके पिता दशरथ, ससुर जनक और अन्य राजाओं ने कोई संज्ञान नहीं लिया. इसके बाद रामराज्य  कैसे स्थापित होगा कोइ नहीं सोचा ?
लेकिन महारानी कैकई ने गुप्त सपथ ली थी और उन्होंने अपना दिमाग लगाया कि राम ने इतने प्राक्रमी कार्य इस छोटी सी आयु में किया है इसका अर्थ अवश्य ही वो असाधारण है और अगर राम राज्य स्थापित करना है तो इसके लिये राम को तो वन जाना ही होगा अर्थात पहले दुश्टों और आतंकियों का सफाया करना ही होगा. और इसी कडी मे आगे सयोंग  बनता है और श्री राम के वन गमन  का कारण कैकई  बनती है.
राम इस बात को जान गये कि जो कर्तव्य सौतेली माता कैकई ने राष्ट्र हित में उठाया है वो अमूल्य है और वो करत्व्य तो अपनी माँ कौशल्या और पिता तक नहीं निभा पाये. माता कैकई के कारण ही वो सभी दुश्टों का सफाया कर सके ! वर्ना पिता की तरह वो भी अयोध्या मे ही बैठ के हाथ पे हाथ रखकर जीवन व्यतीत कर रहे होते. अवतार लिया उसका कारण था परंतु आगे का कर्म करने के लीये भी कारण होना चाहिये, इसके लिये माता  कैकई के ऋणी हो गये.
यही कारण  था,  श्री राम ने माता कैकई के चरण सर्वप्रथम स्पर्श किये ! यहाँ तक कि रावण विजय के बाद दशरथ पितर वेश मे आये और श्री राम को वर मांगने को कहा तब  उन्होने कहा कि माता कैकई को अपने श्राप से मुक्तकर दिजिये. परम्ब्रह्म ने श्री राम रुप मे दशरथ जी के यहाँ अवतार लिया परंतु पूर्ण रुप से कर्तव्य  पालन न कर सकने के कारण अपनी ही पिता दशरथ जी को मोक्ष नहीं दिया. 
इसलिये माता कैकई की जय

!!! जय श्री राम !!!
प्रस्तुति सजंय गुप्ता

।।जय जय श्री राधे।।
https://www.mymandir.com/p/weJZkc

Wednesday, December 27, 2017

रेलवे स्टेशनों के नाम के अन्त में क्यों लिखा होता है जंक्शन, टर्मिनल और सेन्ट्रल...!


क्या आप जानते हैं...?

क्या आपने कभी सोचा है
कि रेलवे स्टेशनों के नाम के अन्त में जंक्शन, टर्मिनल, सेन्ट्रल क्यों लिखा होता है...?

अगर नहीं सोचा
या जानना चाहते हैं तो आपको इसका जवाब देने से पहले आपको भारतीय रेलवे की कुछ खूबियाँ बता देते हैं.

भारतीय रेलवे के नेटवर्क को विश्व का चौथे सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क का दर्जा प्राप्त है.

भारतीय रेलवे ट्रैक की 92,081 किलोमीटर लम्बाई में फैला हुआ है, जो देश के एक कोने से दूसरे कोने को जोड़ता है.

आकड़ों के अनुसार
भारतीय रेल एक दिन में लगभग 66,687 किलोमीटर की दूरी तय करती हैं, लेकिन आज हम इन सब पर नहीं बल्कि रेलवे स्टेशनों के नाम के अन्त में जंक्शन, टर्मिनल, सेन्ट्रल क्यों लिखा होता है, इस बारे में बताएंगे.

सबसे पहले तो आपको
बता दें कि अगर किसी रेलवे स्टेशन के नाम के अन्त में टर्मिनल लिखा होने का मतलब यह है कि आगे रेलवे ट्रैक नही है, यानि ट्रेन जिस दिशा से आई है वापस उसी दिशा में वापस जाएगी.

टर्मिनस को टर्मिनल भी कहा जाता है, इसका मतलब यह ऐसे स्टेशन से है जहाँ से ट्रेन आगे नहीं जाती बल्कि वापस उसी दिशा में लौट जाती है जिधर से वह वापस आई है.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि देश में फिलहाल 27 ऐसे रेलवे स्टेशन पर टर्मिनल लिखा हुआ है.

छत्रपति शिवाजी टर्मिनल और लोकमान्य तिलक टर्मिनल देश के सबसे बड़े टर्मिनल स्टेशन हैं.

चलिए अब आपको बता देते हैं कि रेलवे स्टेशन के अन्त में सेन्ट्रल क्यों लिखा होता है.

आपको बता दें कि
रेलवे स्टेशन के अन्त में सेन्ट्रल लिखे होने का मतलब है कि उस शहर में एक से अधिक रेलवे स्टेशन हैं, जिस रेलवे स्टेशन के अन्त में सेन्ट्रल लिखा हो वह उस शहर का सबसे पुराना रेलवे स्टेशन होता है, रेलवे स्टेशन के अन्त में सेन्ट्रल लिखे होने का दूसरा मतलब ये भी है कि यह उस शहर का सबसे अधिक व्यस्त रहने वाला रेलवे स्टेशन है, जानकारी के लिए बता दें कि फिलहाल भारत में मुंबई सेन्ट्रल , चेन्नई सेन्ट्रल त्रिवेंद्रम सेन्ट्रल , मंगलोर सेन्ट्रल , कानपुर सेन्ट्रल प्रमुख सेन्ट्रल स्टेशन हैं.

चलिए अब आपको बता देते हैं कि रेलवे स्टेशन के अन्त में जंक्शन क्यों लिखा होता है.

किसी स्टेशन के नाम के अन्त में जंक्शन लिखे होने का मतलब कि उस स्टेशन पर ट्रेन के आने जाने के लिए 3 से अधिक रास्ते हैं, यानि एक रास्ते से ट्रेन आ सकती है और दो अन्य रास्तों से ट्रेन स्टेशन से जा सकती है, इसलिए ऐसे स्टेशन के नाम के अन्त में जंक्शन लिखा होता है.

भारत में फिलहाल मथुरा जंक्शन (7 रूट्स ), (सालेम जंक्शन (6 रूट्स ), विजयवाड़ा जंक्शन (5 रूट्स ), बरेली जंक्शन (5 रूट्स ) बड़े जंक्शन स्टेशन हैं.

Tuesday, December 26, 2017

आने वाले 10/15 साल में एक पीढी,* संसार छोड़ कर जाने वाली है, *कटु लेकिन सत्य है।


इस पीढ़ी के लोग बिलकुल अलग ही हैं...
रात को जल्दी सोने वाले, सुबह जल्दी जागने वाले,भोर में घूमने निकलने वाले।

आंगन और पौधों को पानी देने वाले, देवपूजा के लिए फूल तोड़ने वाले, पूजा अर्चना करने वाले, प्रतिदिन मंदिर जाने वाले।

रास्ते में मिलने वालों से बात करने वाले, उनका सुख दु:ख पूछने वाले, दोनो हाथ जोड कर प्रणाम करने वाले, पूजा होये बगैर अन्नग्रहण न करने वाले।

उनका अजीब सा संसार......
तीज त्यौहार, मेहमान शिष्टाचार, अन्न, धान्य, सब्जी, भाजी की चिंता तीर्थयात्रा, रीति रिवाज, सनातन धर्म के इर्द गिर्द घूमने वाले।*

पुराने फोन पे ही मोहित, फोन नंबर की डायरियां मेंटेन करने वाले, रॉन्ग नम्बर से भी बात कर लेने वाले, समाचार पत्र को दिन भर में  दो-तीन बार पढ़ने वाले।

हमेशा एकादशी याद रखने वाले, अमावस्या और पुरमासी याद रखने वाले लोग, भगवान पर प्रचंड विश्वास रखनेवाले, समाज का डर पालने वाले, पुरानी चप्पल, बनियान, चश्मे वाले।*

गर्मियों में अचार पापड़ बनाने वाले, घर का कुटा हुआ मसाला इस्तेमाल करने वाले और हमेशा देशी टमाटर, बैंगन, मेथी, साग भाजी ढूंढने वाले।

नज़र उतारने वाले, सब्जी वाले से 1-2 रूपये के लिए, झिक झिक करने वाले लोग।

क्या आप जानते हैं.....
ये सभी लोग धीरे धीरे, हमारा साथ छोड़ के जा रहे हैं।

क्या आपके घर में भी ऐसा कोई है?  यदि हाँ, तो उनका बेहद ख्याल रखें।

अन्यथा एक महत्वपूर्ण सीख, उनके साथ ही चली जायेगी.....वो है, संतोषी जीवन, सादगीपूर्ण जीवन, प्रेरणा देने वाला जीवन, मिलावट और बनावट रहित जीवन, धर्म सम्मत मार्ग पर चलने वाला जीवन और सबकी फिक्र करने वाला आत्मीय जीवन।

*JAP

सूरजमल से नजीबुद्दौला युद्ध में हार कर संधी कर धोखे से कैसे हूई हत्या ? *

"दिल्ली के बादशाह नवाब नजीबुद्दौला के दरबार में एक सुखपाल नाम का ब्राह्मण काम करता था । एक दिन उसकी लड़की अपने पिता को खाना देने महल में चली गयी , मुग़ल बादशाह उसके रूप पर मोहित हो गया । और ब्राह्मण से अपनी लड़की कि शादी उससे करने को कहा और बदले में उसको जागीरदार बनाने का लालच दिया ।  ब्राह्मण मान गया और अपनी बेटी की शादी मुग़ल बादशाह से करने को तैयार हो गया । जब लड़की ने यह बात सुनी तो उसने शादी से इंकार कर दिया इससे क्रोधित होकर बादशाह ने लड़की को जिन्दा जलाने का आदेश दिया । मौलवियो ने बादशाह से कहा ऐसा तो यह मर जायेगी । आप इस को जेल में डालकर कष्ट दो और इस पर हरम में आने का दबाव डालो । बादशाह बात  मान गया और लड़की को जेल में डाल दिया ।
लड़की ने जेल कि जमादारनी से कहा कि  क्या इस देश में कोई ऐसा राजा नहीं है जो हिन्दू लड़की कि लाज बचा सके । जमादारनी ने कहा ऐसा वीर तो सिर्फ  एक ही है लोहागढ़ नरेश महाराजा सूरजमल जाट । बेटी तू एक पत्र लिख वो पत्र मैं तेरी माँ को दे दूंगी । लड़की के दुखो को देख वहाँ काम करने वाली जमादारनी ने लड़की कि मदद कि और लड़की ने  महाराजा सूरजमल के नाम एक पत्र लिखा और उसकी माँ वो पत्र लेकर महाराजा सूरजमल से पास गयी ।
उसकी कहानी सुन सूरजमल ने ब्रहामण की लड़की छुड़ाने के लिए अपने दूत वीरपाल गुर्जर को दिल्ली भेजा । वहाँ दिल्ली दरबार में जब गूर्जर ने महाराजा सूरजमल जाट का पक्ष रखते हुए लड़की को छोड़ने की बात कही तो बादशाह ने कहा कि "सूरजमल जाट हमसे क्या ब्रहामणी छुडवाएगा , सूरजमल जाट को जाकर कहना कि अपनी जाटनी महारानी को भी हमारे पास लेकर आए ।"

अपनी जाटनी महारानी के अपमान में यह शब्द सूनकर गुर्जर मुसलमानों के भरे दरबार में क्रोध से टूट पड़ा । तब बादशाह ने  गुर्जर कि हत्या का दी और मरते मरते गूर्जर दूत ने कहा कि "वो पूत जाटनी का है , तेरी नानी याद दिला देगा"

अपने दूत गूर्जर की हत्या की सूचना और महारानी के अपमान की बात जब भरतपुर में महाराजा सूरजमल ने सुनी तो गुर्रा के खेड़े हुए और बोले :- *"चालो र जाट - हिला दो दिल्ली के पाट"*

और दिल्ली पर जाटों ने चढाई कर दी ।
*गोर गोर जाट चले*
*अपनी लाड़ली सुसराल चले*
*हाथो में तलवार लेकर*
*मुगलो के बनने जमाई*

सूरजमल जाट अपने साथ अपनी जाट नी महारानी को भी युद्ध में ले गये । जाटों ने दिल्ली घेर ली और बादशाह के पास संदेश भिजवाया कि मैं अपनी जाटनी महारनी को साथ लेकर आया हूँ और अब देखता हूँ कि तू मुझ से जाटनी लेकर जाता है या नाक रगड़कर ब्रहामण की हिन्दू कन्या सम्मान सहित लौटाकर जाता है ।

*25 दिसंबर 1763 को दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ और महाराजा सूरजमल युद्ध जीत गए । बादशाह नजीबुद्दौला ने महाराजा सूरजमल के पैर पकड़ लिये और बोला मैं तो आप कि गाय हूँ मुझे छोड़ दो महाराजा । बादशाह ने सम्मान सहित ब्रहामण की लड़की को सूरजमल को लौटा दिया । बादशाह ने पैरों में पड़कर महाराजा सूरजमल से संधि की भीख मांगी और उन्हें उनके साथ दिल्ली चलने का न्योता दिया । युद्ध जीतकर महाराजा सूरजमल ने अपनी सेना को लौटा दिया और खुद जीत की खुशी मे मगन होकर मुस्लिम बादशाह पर ताबेदारी दिखाने के लिए कुछ सैनिकों को लेकर उनके साथ चल दिए । रास्ते में हिडन नदी के तट पर उन्हें धोखा देकर उनकी हत्या कर दी ।*

यह हिन्दू धर्म की जातिय एकता का अनुठा उदाहरण है कि एक पंडित की बेटी की लाज बचाने के लिए पंडिताईन जाटों से गुहार लगाती है । जाट अपने विश्वासपात्र गूर्जर को भेजते है । जाटनी के अपमान में गूर्जर वीरगति को प्राप्त होता है । गूर्जर की मौत से जाट दिल्ली पर चढ़ाई कर देते हैं ।

ऐसे  वीर सूरजमल को शत शत नमन ।
#जय सूरजमल !

।। नमो लोए सव्वसाहूणं ।। का अर्थ।

।। नमो लोए सव्वसाहूणं ।।
मतलब जघन्य 2 हज़ार करोड़ उत्कृष्ट 9 हज़ार करोड़ पंच महाव्रत धरी साधु संतों को नमस्कार
नमो लोए सव्वसाहूणं की महिमा/कब बोले?
जब आपको गर्मी/ सर्दी विचलित करे तब अपने साधु संतों को याद कर लेना की वह कैसे सर्दी /गर्मी सहते हुए जीवन जीते हे ,आपको जरूर सहन शक्ति मिलेगी,तो कहना
।। नमो लोए सव्वसाहूणं ।।
जब आप भोजन करने बेठो तो ठंडा,रुख,स्वादहीन, भोजन देखकर गुस्सा हो जाते हो तब अपने पंच महाव्रत धरी साधु संतों को याद कर लेना की वह कितनी दूर दूर से गोचरी लाते हे,सिमित पात्रों में भोजन एक दूसरे में मिक्स हो जाता है और स्थानक पहुंचते पहुंचते ठंडा हो जाता है,आप भविष्य में कभी भी भोजन पर गुस्सा नही करोगे। तो कहना
।। नमो लोए सव्वसाहूणं ।।
जब हम सामायिक में 1-2 घंटे में परेशान हो जाते हे तब अपने त्यागी साधु संतों को देखना जिन्होंने जीवन भर की सामायिक ले ली है । आप को बहुत बल मिलेगा ,तो कहना
।। नमो लोए सव्वसाहूणं ।।
जब आपको थोड़ी दूर पेदल चलने के लिए या साधु साध्वी के विहार के लिए कहा जाता है तो आप कई बहाने लगाते हो लेकिन उस पल उन महापुरषो को याद कर लेना जिन्होंने जीवन भर पैदल विहार का नियम लिया है और सर्दी/गर्मी सहन करते हुए निरन्तर विहार कर रहे हे ,आपको शक्ति एवं ऊर्जा मिलेगी,तो कहना
।। नमो लोए सव्वसाहूणं ।।
कहने का मतलब यही है कि जब भी आपको कोई भी सांसारिक तनाव,परेशानी सताये तो एक बार अपने पंच महाव्रत धारी साधु साध्वी की दिनचर्या देख लेना आपको सारी परेशानी,तनाव एवं चुनोतियो को सहन करने एवं उन्हें जितने का बल जरूर मिलेगा।
।। नमो लोए सव्वसाहूणं ।।

Monday, December 11, 2017

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Saturday, December 2, 2017

पंडित अवश्य पढे


वर्त्तमान में मुरारी बापू जी द्वारा गुजरात में एक कपल के फेरे चिता से करवाए उस पर विस्तृत लेख -
कुछ भागवताचार्य शास्त्र विरुद्ध कार्य कर अपने को स्वयंभू मानते है जो कि गलत है कुछ का कहना है कि संत शास्त्र के पीछे नहीं चलते है १८ पुराण वेदव्यास जी द्वारा लिखे गए है | उनने सारे निर्णय दिए है | तो क्या ये वर्त्तमान के कुछ तथा कथित भागवताचार्य जो कि शास्त्र विरुद्ध कार्य कर स्वयं को धर्म के निर्णय कर्ता मानते है ये उन से भी अधिक ज्ञानी है ?
वर्त्तमान में एक भागवताचार्य जी ने श्मशान में फेरे करवाए है अब देखिये -
१- विवाह में योजक नाम की अग्नि (बलद) आती है जबकि चिता में अग्नि क्रव्याद नाम की होती है |
२- योजक अग्नि जोड़ने का कार्य करती है क्रव्याद अग्नि समाप्त करने का कार्य करती है |
३- श्मशान में निगेटिव ऊर्जा रहती है |
४- श्मशान में रुदन किया जाता है उस भूमि में सभी दुखी होकर जाते है इस से वहा के वातावरण में भी दुःख की स्थिति उपलब्ध रहती है |
५- श्मशान में शिव जी की स्थापना करते है तो माता पार्वती को साथ में नहीं बिठाते है क्योकि श्मशान में पत्नी साथ में नहीं रहती है |
६- शास्त्र में २७ प्रकार की अग्नि का वर्णन है प्रत्येक कार्य के लिए अलग - अलग प्रकार की अग्नि का आह्वान किया जाता है |
७- केवल लोमभ्य स्वाहा , त्वचे स्वाहा आदि मन्त्रों को छोड़कर वेद मन्त्रों का पाठ भी श्मशान में वर्जित है |
८- श्मशान में मंगलगान नहीं होता है |
९- श्मशान में विवाह तो ठीक परन्तु वहा की राख को भी अपवित्र माना जाता है |
१०- गरुड़ पुराण में लिखा है कि अग्नि प्रत्येक स्थान की पवित्र होती है उस को बार बार उपयोग में लाया जा सकता है परन्तु चिता की अग्नि अपवित्र होती है तो क्या जिन ने चिता की अग्नि से विवाह कराया क्या उचित किया ?
११- अगर गरुड़ पुराण में वेद व्यास जी ने गलत लिखा तो हम मान लेते है परन्तु फिर तो एसे विद्वानों को भागवत के प्रवचन भी नहीं करना चाहिए | क्योकि भागवत भी वेदव्यास जी ने ही लिखी है |
१२- यज्ञ में हड्डी का गिरना अशुभ माना जाता है चिता की अग्नि में मानव की हड्डी रहती ही है तो फिर उस अग्नि से फेरे कैसे हो सकते है ?
१३- विवाह में सभी मांगलिक वस्तुओं का होना आवश्यक है जबकि श्मशान में कोई भी वास्तु मांगलिक नहीं होती है |
१४- गुजरात में जिस कपल ने चिता के फेरे लिए और जिन आचार्य ने फेरे करवाए उन ने यह नहीं सोचा कि यह स्थान समाप्ति का सूचक है जबकि विवाह से तो जीवन का प्रारम्भ माना जाता है |
१५- अगर श्मशान इतना पवित्र है तो उस को पूर्वकाल से ही नगर से दूर क्यों बनाया जाता रहा है |
१६- श्मशान अगर पवित्र है तो फिर दाह संस्कार नगर से बाहर क्यों किया जाता है घर पर ही दाह संस्कार किया जा सकता है |
१७- श्मशान पवित्र है तो फिर मुर्दे को जलाकर स्नान क्यों किया जाता है ?
१८- श्मशान पवित्र है तो दाह संस्कार कर वही भोजन या पार्टी आदि क्यों नहीं रखी जाती है ?
१९- शवदाह के बाद तीसरे दिन अस्थि संचय करने के बाद भी स्नान क्यों किया जाता है क्योकि वहा अपवित्र हो जाते है |
२०- अगर श्मशान पवित्र है तो हमारे शास्त्रों में किसी भी शुभ कार्य को श्मशान में करने का वर्णन क्यों नहीं आया ?
उज्जैन में महाकाल मंदिर के पीछे महामृत्युंजय मठ में ज्योतिष की कक्षा की समाप्ति के बाद महामंडलेश्वर आदरणीय व्यासाचार्य जी पधारे जब मेरे द्वारा बताया गया की आदरणीय मुरारी बापू जी द्वारा गुजरात में एक कपल के फेरे चिता से करवाए तो उनने इस कृत्य की घोर निंदा की और बताया की ये धर्माचार्य हिन्दू धर्म को कहा ले जाना चाहते है |
उक्त विषय में बता दे की श्मशान भूमि को किसी भी धर्म में पवित्र नहीं माना गया है तो जो वैदिक धर्म तथा संसकारित धर्म है उस में भागवताचार्य जी जैसे उच्च आसन पर बैठे हुवे व्यक्ति श्मशान में फेरे करवाते है तो यह कितना निंदा का विषय है और वर्त्तमान के शिक्षित वर्ग से विचार करे तो यह कार्य वन मानुष जैसी हरकत को बताता है
अगर हम इस कार्य को सही मानते है तो वेदव्यास जी स्वर्ग में बैठे हुवे भारी पश्चाताप करेंगे की मेने किन मूर्खो के लिए ये १८ पुराण लिख डाले ?