Wednesday, June 19, 2024

भारत में कम्युनिस्ट आतंकवाद (माओवाद)


परिचय

माओवादी आंदोलन, जिसे नक्सलवाद के नाम से भी जाना जाता है, भारत के आंतरिक सुरक्षा के लिए एक प्रमुख चुनौती बना हुआ है। यह आंदोलन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) द्वारा संचालित होता है और मुख्य रूप से देश के आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय है। माओवादी विचारधारा का मुख्य उद्देश्य समाजवाद की स्थापना के लिए सशस्त्र क्रांति के माध्यम से राज्य सत्ता पर कब्जा करना है। इस आंदोलन की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव से हुई, जिससे इसे नक्सलवाद का नाम मिला।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

नक्सलबाड़ी आंदोलन की शुरुआत 1967 में चारु मजूमदार, कानू सान्याल और जंगाल संथाल जैसे नेताओं ने की थी। यह आंदोलन भूमि सुधार, आदिवासी अधिकार और किसानों की दुर्दशा के खिलाफ था। शुरुआती वर्षों में ही यह आंदोलन व्यापक समर्थन हासिल करने में सफल रहा और पश्चिम बंगाल के अलावा आंध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भी फैल गया। समय के साथ, यह आंदोलन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के रूप में संगठित हुआ और इसे चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से-तुंग की विचारधारा से प्रेरणा मिली।

वर्तमान स्थिति

वर्तमान में, माओवादी आंदोलन देश के 90 जिलों में फैला हुआ है, जिसमें से 30 जिले अत्यधिक प्रभावित माने जाते हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्य इस आंदोलन के प्रमुख केंद्र हैं। इन क्षेत्रों में माओवादी संगठनों ने "लाल गलियारा" (Red Corridor) बना रखा है, जो इनके प्रभाव का क्षेत्र माना जाता है।

माओवादी रणनीति और कार्यप्रणाली

माओवादी संगठन गुरिल्ला युद्ध तकनीक अपनाते हैं और ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाते हैं। वे स्थानीय जनता के असंतोष को भुनाते हैं और सरकार की नीतियों के खिलाफ उन्हें संगठित करते हैं। इनके प्रमुख रणनीतियों में शामिल हैं:

1. **सशस्त्र संघर्ष**: माओवादी संगठन स्थानीय सुरक्षा बलों पर हमले करते हैं और हथियार एवं गोला-बारूद लूटते हैं।
2. **विकास परियोजनाओं का विरोध**: माओवादी अक्सर विकास परियोजनाओं, जैसे सड़क निर्माण, खनन और बांध परियोजनाओं का विरोध करते हैं, क्योंकि इनसे स्थानीय आदिवासी और ग्रामीणों के विस्थापन का खतरा होता है।
3. **प्रचार**: वे अपने विचारधारा को फैलाने के लिए प्रचार सामग्री का उपयोग करते हैं और स्थानीय जनता को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते हैं।
4. **छद्म नाम और पहचान**: माओवादी अक्सर छद्म नामों का उपयोग करते हैं और गुप्त ठिकानों से अपनी गतिविधियों को संचालित करते हैं।

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

माओवादी आंदोलन का स्थानीय जनजीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को बाधित करता है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी सेवाओं पर भी नकारात्मक असर डालता है। इसके कारण कई लोग अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर होते हैं और विस्थापन की समस्या उत्पन्न होती है। माओवादी क्षेत्रों में निवेशकों और विकास परियोजनाओं के प्रति डर का माहौल बना रहता है, जिससे इन क्षेत्रों का विकास प्रभावित होता है।
 सरकारी प्रतिक्रिया

भारत सरकार माओवादी आंदोलन को एक प्रमुख आंतरिक सुरक्षा चुनौती मानती है और इसे नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए हैं:

1. **सुरक्षा बलों की तैनाती**: माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में केंद्रीय और राज्य पुलिस बलों की विशेष तैनाती की जाती है। केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और अन्य अर्धसैनिक बलों की मदद से माओवादी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाती है।
2. **विकास योजनाएं**: सरकार ने माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में विकास योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें सड़कों का निर्माण, बिजली और पानी की सुविधाओं का विस्तार और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार शामिल है। इसका उद्देश्य स्थानीय जनता को माओवादियों के प्रभाव से दूर करना है।
3. **समर्पण और पुनर्वास नीति**: माओवादियों के लिए समर्पण और पुनर्वास योजनाएं चलाई जाती हैं, जिनके तहत आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को आर्थिक सहायता, नौकरी और पुनर्वास की सुविधाएं दी जाती हैं।
4. **सामाजिक जागरूकता**: सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाते हैं, ताकि स्थानीय जनता को माओवादियों की हिंसक गतिविधियों से दूर रखा जा सके।

चुनौतियां और भविष्य

हालांकि सरकार ने माओवादी आंदोलन पर काबू पाने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से समाप्त करना अभी भी एक चुनौती बनी हुई है। माओवादी आंदोलन का जड़ें गहरी हैं और इसका समाधान केवल सैन्य कार्रवाई से संभव नहीं है। इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें विकास, सामाजिक न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का समावेश हो।

भविष्य में, अगर सरकार स्थानीय जनता के विश्वास को जीतने में सफल होती है और विकास परियोजनाओं को तेजी से अमल में लाती है, तो माओवादी आंदोलन को नियंत्रित करना संभव हो सकता है। इसके अलावा, माओवादी नेतृत्व और कैडर के बीच संवाद की प्रक्रिया को बढ़ावा देना भी आवश्यक है, ताकि उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा सके।

निष्कर्ष

भारत में माओवादी आंदोलन एक गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौती है, जिसका समाधान कई पहलुओं से निपटना आवश्यक है। सरकार के प्रयासों और स्थानीय जनता की सहभागिता से ही इस समस्या का स्थायी समाधान संभव है। इसके लिए एक समग्र और संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सुरक्षा उपायों के साथ-साथ विकास और सामाजिक न्याय का भी ध्यान रखा जाए।

Tuesday, June 14, 2022

एक साथ 52 क्रांतिकारियों को इमली के पेड़ पर लटका दिया था

#उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले में स्थित बावनी इमली एक प्रसिद्ध इमली का पेड़ है, जो भारत में एक शहीद स्मारक भी है। इसी इमली के पेड़ पर 28 अप्रैल 1858 को गौतम क्षत्रिय, जोधा सिंह अटैया और उनके इक्यावन साथी फांसी पर झूले थे। यह स्मारक उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिन्दकी उपखण्ड में खजुआ कस्बे के निकट बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम में मुगल रोड पर स्थित है।

यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगों का विश्वास है कि उस नरसंहार के बाद उस पेड़ का विकास बन्द हो गया है।

10 मई, 1857 को जब बैरकपुर छावनी में आजादी का शंखनाद किया गया, तो 10 जून,1857 को फतेहपुर में क्रान्तिवीरों ने भी इस दिशा में कदम बढ़ा दिया जिनका नेतृत्व कर रहे थे जोधासिंह अटैया। फतेहपुर के डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खाँ भी इनके सहयोगी थे। इन वीरों ने सबसे पहले फतेहपुर कचहरी एवं कोषागार को अपने कब्जे में ले लिया। जोधासिंह अटैया के मन में स्वतन्त्रता की आग बहुत समय से लगी थी। उनका सम्बन्ध तात्या टोपे से बना हुआ था। मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए इन दोनों ने मिलकर अंग्रेजों से पांडु नदी के तट पर टक्कर ली। आमने-सामने के संग्राम के बाद अंग्रेजी सेना मैदान छोड़कर भाग गयी ! इन वीरों ने कानपुर में अपना झंडा गाड़ दिया।

जोधासिंह के मन की ज्वाला इतने पर भी शान्त नहीं हुई। उन्होंने 27 अक्तूबर, 1857 को महमूदपुर गाँव में एक अंग्रेज दरोगा और सिपाही को उस समय जलाकर मार दिया, जब वे एक घर में ठहरे हुए थे। सात दिसम्बर, 1857 को इन्होंने गंगापार रानीपुर पुलिस चैकी पर हमला कर अंग्रेजों के एक पिट्ठू का वध कर दिया। जोधासिंह ने अवध एवं बुन्देलखंड के क्रान्तिकारियों को संगठित कर फतेहपुर पर भी कब्जा कर लिया।

आवागमन की सुविधा को देखते हुए क्रान्तिकारियों ने खजुहा को अपना केन्द्र बनाया। किसी देशद्रोही मुखबिर की सूचना पर प्रयाग से कानपुर जा रहे कर्नल पावेल ने इस स्थान पर एकत्रित क्रान्ति सेना पर हमला कर दिया। कर्नल पावेल उनके इस गढ़ को तोड़ना चाहता था, परन्तु जोधासिंह की योजना अचूक थी। उन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का सहारा लिया, जिससे कर्नल पावेल मारा गया। अब अंग्रेजों ने कर्नल नील के नेतृत्व में सेना की नयी खेप भेज दी। इससे क्रान्तिकारियों को भारी हानि उठानी पड़ी। लेकिन इसके बाद भी जोधासिंह का मनोबल कम नहीं हुआ। उन्होंने नये सिरे से सेना के संगठन, शस्त्र संग्रह और धन एकत्रीकरण की योजना बनायी। इसके लिए उन्होंने छद्म वेष में प्रवास प्रारम्भ कर दिया, पर देश का यह दुर्भाग्य रहा कि वीरों के साथ-साथ यहाँ देशद्रोही भी पनपते रहे हैं। जब जोधासिंह अटैया अरगल नरेश से संघर्ष हेतु विचार-विमर्श कर खजुहा लौट रहे थे, तो किसी मुखबिर की सूचना पर ग्राम घोरहा के पास अंग्रेजों की घुड़सवार सेना ने उन्हें घेर लिया। थोड़ी देर के संघर्ष के बाद ही जोधासिंह अपने 51 क्रान्तिकारी साथियों के साथ बन्दी बना लिये गये।

28 अप्रैल, 1858 को मुगल रोड पर स्थित इमली के पेड़ पर उन्हें अपने 51 साथियों के साथ फाँसी दे दी गयी। लेकिन अंग्रेजो की बर्बरता यहीं नहीं रुकी । अंग्रेजों ने सभी जगह मुनादी करा दिया कि जो कोई भी शव को पेड़ से उतारेगा उसे भी उस पेड़ से लटका दिया जाएगा । जिसके बाद कितने दिनों तक शव पेड़ों से लटकते रहे और चील गिद्ध खाते रहे । अंततः महाराजा भवानी सिंह अपने साथियों के साथ 4 जून को जाकर शवों को पेड़ से नीचे उतारा और अंतिम संस्कार किया गया । बिन्दकी और खजुहा के बीच स्थित वह इमली का पेड़ (बावनी इमली) आज शहीद स्मारक के रूप में स्मरण किया जाता है।

Thursday, May 26, 2022

संत कनप्पा कि भक्ति

संत कनप्पा उन 63 नयनार संतों में गिने जाते हैं, जो शिव के उपासक थे, व तीसरी से आठवीं शताब्दी के बीच हुए थे। जबकि अलवार संत विष्णु के उपासक थे। कनप्पा पेशे से शिकारी थे, जो बाद में संत बन गए। उनके भक्त मानते हैं कि वो पिछले जन्म में पांडवों में से एक अर्जुन थे। कनप्पा नयनार के कई नाम चलन में हैं, जैसे थिनप्पन, थिन्नन, धीरा, कन्यन, कन्नन आदि। माता पिता ने उनका नाम थिन्ना रखा था। आंध्र प्रदेश के राजमपेट इलाके में उनका जन्म हुआ था।
उनके पिता बड़े शिकारी थे और शिवभक्त थे, शिव के पुत्र कार्तिकेय को पूजते थे। कनप्पा श्रीकलहस्तीश्वरा मंदिर में वायु लिंग की पूजा करते थे, शिकार के दौरान उन्हें ये मंदिर मिला था। पांचवी सदी में बना इस मंदिर का बाहरी हिस्सा 11वीं सदी में राजेन्द्र चोल ने बनवाया था, बाद में विजय नगर साम्राज्य के राजाओं ने उसका जीर्णोद्धार करवाया।
लेकिन थिन्ना को पता नहीं था कि शिव भक्ति और पूजा के विधि विधान क्या है। किन नियमों का पालन करना है, लेकिन उनकी श्रद्धा अगाध थी। कहा ये तक जाता है कि वह पास की स्वर्णमुखी नदी से मुंह में पानी भरकर लाते थे और उससे शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे, चूंकि शिकारी थे, सो जो भी उन्हें मिलता था, एक हिस्सा शिव को अर्पित कर देते थे, यहां तक कि एक बार सुअर का मांस भी।
लेकिन शिव अपने इस भक्त की आस्था को देखकर खुश थे, उनको पता था कि इसे पूजा करनी नहीं आती है, ना मंत्र पता हैं ना किसी तरह के विधि विधान। सैकड़ों सालों से ये कथा कनप्पा के भक्तों में प्रचलित है कि एक दिन महादेव ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी और उन्होंने उस मंदिर में उस वक्त भूकंप के झटके दिए, जब मंदिर में बाकी साथियों, भक्तों और पुजारियों के साथ कनप्पा भी मौजूद थे।
जैसे ही भूकंप के झटके आए, लगा कि मानो मंदिर की छत गिरने वाली है, तो डर के मारे सभी भाग गए, भागे नहीं तो बस कनप्पा। उन्होंने ये किया कि अपने शरीर से शिव लिंग को पूरी तरह से ढक लिया ताकि कोई पत्थर अगर गिरे तो शिवलिंग के ऊपर ना गिरे बल्कि उनके ऊपर गिरे। इससे वह पूरी तरह सुरक्षित रहा।
शिवलिंग पर तीन आंखें बनी हुई थीं। जैसे ही भूकम्प के झटके थोड़ा थमे, कनप्पा ने देखा कि शिवलिंग पर बनी एक आंख से रक्त और आंसू एक साथ निकल रहे थे। उनकी समझ में आ गया कि किसी पत्थर से शिवजी की एक आंख घायल हो गई है। आव देखा ना ताव, कनप्पा ने फौरन अपनी एक आंख अपने एक वाण से निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी और उसे निकालकर शिवलिंग की आंख पर लगा दिया, जिससे उसमें से खून निकलना बंद हो गया। लेकिन थोड़ी देर बाद ही शिवलिंग की दूसरी आंख से रक्त और आंसुओं का निकलना शुरू हो गया।
तब कनप्पा ने जैसे ही दूसरी आंख निकालने की प्रक्रिया शुरू की, उनके दिमाग में आया कि जब मैं अपनी दूसरी आंख भी निकाल लूंगा तो बिलकुल अंधा हो जा जाऊंगा, ऐसे में मुझे कैसे दिखेगा कि उस आंख को शिवलिंग में कैसे लगाना है।
ऐसे में उन्हें एक उपाय सूझा, उन्होंने फौरन अपना एक पैर उठाया और पैर का अंगूठा ठीक उस आंख के पास लगा दिया, ताकि अंधा होने के बावजूद वो शिवजी की दूसरी आंख की जगह अपनी आंख लगा सके। उसी वक्त भगवान शिव प्रकट हुए और उससे खुश होकर उसकी आंखें एकदम ठीक कर दीं। यही वो घटना थी, जिसके चलते थिन्ना को नया नाम कनप्पा मिला था।
इसी मौके की वो तस्वीर या मूर्तियां हैं, कि कैसे वह एक हाथ में वाण से आंख निकालेंगे, दूसरे हाथ से उसे पकड़ेंगे तो जहां से आंख निकालनी है, उस जगह को कैसे चिन्हित करेंगे, तो पैर का अंगूठा उस मासूम भक्त ने शिवलिंग पर रखा, इस काम के लिए था। लेकिन जितने भी लोग शेयर करे रहे हैं, चाहे वो देवदत्त पटनायक ही क्यों ना हो, किसी को ये नहीं बता रहे कि शिव भगवान ने उनकी भक्ति की परीक्षा ली थी और ये बस एक पल का वाकया था, ना कि रोज कनप्पा ऐसा किया करते थे. लेकिन इससे सच्चाई बाहर आ जाती और उनमें से बहुत से लोग ये चाहते भी नहीं।
- विष्णु शर्मा

Thursday, April 14, 2022

भारत एक झूठ पे जी रहा है की, India एक आज़ाद देश है!🤣

मेरी हिन्दी बहुत खराब है! क्योंकि में अवधी हु! और अनपड़ भी!
मे अपने विचार साझा करना चाहता हु! 

भारत 2022
भारत की अच्छाई व बुराई दोनों केहना चाहता हु!

अच्छाई
# भारत कि आबादी (विकाश व ताकतवर) बनने में सछम।
# भारत का खनिज
# भारत की विविधता (जिसमे ज्ञान व अज्ञान, नास्तिकता व आस्तिकता)

बुराई

Sunday, April 3, 2022

चंदा 2022



जय  हो माई
जय  हो माई


*।।जय चउरा माता।।🚩*
*【तीसरा दौर अप्रैल 2022】*
(बघेड़ी) update: 03 April 2022

श्री धीरज मिश्र   >> *2200+2100₹..+2100₹...=6400₹*
श्री शरदा प्रसाद मिश्र >> *500₹+ 6001₹..+2100₹...= 8601₹*
श्री माता प्रसाद मिश्र >> *500₹+ 3200₹..+2100₹...=5800₹*
श्री राम प्रसाद मिश्र >> *100₹*
श्री संजय मिश्र >>  *600₹*
श्री लोलारखनाथ यादव >> *501₹+ 1002₹..= 1503*
श्री सुभम सिंह >> *500₹+501₹= 1001₹*
राजकुमार यादव >> *21₹*
श्री संतोष कुमार मिश्र >> *501₹ + 501₹..=1002₹*
श्री सर्वेश मिश्र >> *501₹*
श्री शैलेश मिश्र >> *501₹+ 1011₹..+1000₹...=2512₹*
श्री पवन कुमार मिश्र >> *1002₹+2100₹...=3102₹*
श्री काशीनाथ यादव >> *501₹+1100₹..= 1601₹*
श्री कमलेश मिश्र >> *551₹*
श्री बाल जी मिश्र >> *501₹+1100₹..= 1601₹*
श्री लोकमनी सिंह >> *511₹+2551₹=3062₹*
श्री रमेश सिंह >> *501₹*
श्री गंगा प्रसाद मिश्र >> *500₹*
श्री धनराज यादव >> *1001₹ + 500₹*
श्री शेर बहादुर सिंग >> *101₹+501₹..=602₹*
श्री सुजीत मोरया (मड़वा) >> *50₹*
श्री हरिकेश मिश्र >> *511₹*
श्री महेंद्र प्रताप सिंग >> *501₹*
श्री दिनेश मिश्र (मास्टर) >> *2100₹+3100₹..5200₹*
श्री अभयराज यादव >> *300₹*
श्री गोपाल मिश्र >> *200₹+1001₹..+501₹...= 1702₹*
श्री राज बाहदुर यादव >> *2151₹ + 3111₹..=5263₹*
श्री राममोहन मिश्र >> *2111₹*
श्री प्रिंस मिश्र >> *501₹ + 501₹..=1002*
श्री दिनेश मिश्र >> *1100₹+501₹..=1601₹*
श्री प्रीतम सिंग >> *501₹..*
श्री शिलाजीत मिश्र >>*501₹..*
अंशू मिश्र >> *101₹..*
श्री कृष्णा मिश्र >> *2100₹..*
श्री भगवानदीन यादव >> *501₹*
श्री संतोसी यादव >> *101₹*
श्री अजय मिश्र >> *501₹..*
श्री महेश मिश्र >> *501₹...*
श्री राजेश मिश्र >> *1100₹...*
श्री राजेश मिश्र (लाल)>> *1500₹...*
श्री गौरीशंकर >> *500₹...*
श्री भानुप्रताप सिंग >> *11000₹...*
@77709₹


+
जन्मास्टमी का चंदा +950₹

अभी तक की जमा राशी = 78660₹ (3 April)


2021- की खर्च राशी = 16567₹

_____________________

6 Sept 2021

# 6 इंच का पाइप 24फुट = 2350₹ + 50₹ रिक्शा चार्ज= 2400₹
# आधी टाली मीडियम बालू = 1750₹
# अल्ट्राटेक सीमेंट (३ बोरी) =1095₹ 
# 6 पीस सरिया 44kg = 2332₹
# लेबर 100₹ टेम्पो 250₹ =350₹
# आधी टाली मोटी बालू = 3400₹ (मोरया मड़वा)
# मजदूरों का खर्च अभी तक (1150₹)
*25 तरीक से काम सुरु*
# 3 बोरी सीमेंट 980₹
# 2 दीन की मजदूरी 1800₹
# 4 फिट पाइप ४" और L पाइप ४" 270₹
# 3 टाली मिट्टी @180₹ × 3 = 540₹
# पेंट + w सीमेंट 150₹, plastic त्रिपाल 150₹ आदि.. = लगभग 500₹

Total = 16567₹
कुल समान व मजदूर की लागत!

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3 अप्रैल 2022

✅150₹ 12 hook
✅1500₹ दिनु और मज़दूर 2 दिन का
✅7050₹  तार, 50kg sariya, 10 बोरी cement।
✅600₹ लाइटिंग पाइप एंड other
✅1400₹ लिंटर के दिन का खर्च 
✅ 5780₹ 14kg सरिया और बालू
✅300 स्टील तार , 2 कन्नी , मटकी आदि
✅ 700₹ खर्चा मजदूरी(500 नान्हू)
✅ 2300₹ (24 feb से 14 मार्च तक 40 balli और 350 पट्टी)
✅*11000₹ (मार्बल@36₹ ग्रेनाइट@125₹ 10750 + Addtional charge)
✅*200 (बसूली और टाइल्स कटर)
✅मार्बल फ्रॉम बदशपुर to बहेड़ी (800₹)
✅1550₹ 4 bori cement
✅**** एक्स्ट्रा खर्च
✅ *1500₹ मज़दूरी
✅ 2551₹ 500 ईंट
@*टोटल:* *लगभग 37521₹ (37500₹)20 मार्च तक

470₹ 15kg white cement (पोताई व टाइल्स के लिए)
365₹ ```180 gram``` Aerolite
14500₹ रेलिंग (भाड़ा आदि)
6000₹ टाइल्स ( भाड़ा व टूल सहित )
600₹ मजदूरी (2 दिन छोटे)
*1400₹ (4 टाइल्स rubbing व 3 cutting किट)
1500₹ (4 बोरी सीमेंट *370₹)
1500₹ (पेंट व stikers व ब्रश)
*1400₹ (700 मुकोठा व 700 घंटी व चैन)
@27735₹

16567+36380+27735+210
=80892₹ (81000₹)

*जय चउरा माई🚩*

🪔🪔🪔🪔

Saturday, February 26, 2022

मैं सांड़ हूं

जरा मेरी भी सुनो
मैं सांड़ हूं , लोग कहते हैं कि मैं तुम्हारी फसल उजाड़ रहा हूँ , सड़कों पर कब्जा कर रहा हूँ ,मैं तुम मनुष्यों से पूंछता हूँ कि कितने कम समय में मैं इतना अराजक हो गया,मे तो हजारो वर्षो से तुम्हारे पूर्वजों की सेवा करता आया हू ! मैं मनुष्यों का दुश्मन कैसे बन गया ।
अभी कुछ सालों पहले तो लोग मुझे पालते थे ,चारा देते थे , लेकिन मनुष्य ज्यादा सभ्य हो गया ट्रैक्टर ले आया ,पम्पिंग सेट से पानी निकालने लगा और मुझे खुला छोड़ दिया , मैं कहाँ जाता ? कहाँ चरता ? मनुष्य ने चरागाहों पर कब्जा कर लिया , अब पापी पेट का सवाल है  अपने पेट के लिए अपने मित्र मनुष्य से संघर्ष शुरू हो गया। मैं तो दुनिया में आना भी नहीं चाहता किंतु तुम मनुष्यों के लिए दूध की आवश्यकता है, तुम्हारे बच्चों के पोषण के लिए मेरा आना निहायत जरूरी है।
यहां तक कि कुछ लोगों ने अपना पेट भरने के लिए मुझे काटना भी शुरू कर दिया ,मैं फिर भी चुप रहा ,चलो किसी काम तो आया तुम्हारे।मेरी माँ ने मेरे हिस्से का दूध देकर तुम्हे और तुम्हारे बच्चों को पाला लेकिन अब तो तुमने उसे भी खुला छोड़ दिया ।
इधर पिछले सालों से कई मनुष्य मित्रों ने मुझे कटने से बचाने के लिए अभियान चलाया , लेकिन जब मैं अपना पेट भरने खातिर उनकी फसल खा गया तो वही मित्र मुझे बर्बादी का कारण बताने लगे , शायद अब यही चाहते हैं कि मैं काट ही दिया जाता ।
मित्रों बस इतना कहना चाहता हूं कि मैं तुम्हारी जीवन भर सेवा करूंगा तुम्हारे घर के सामने बंधा रहूँगा।‌ थोड़े से चारे के बदले तुम्हारे खेत जोत दूंगा । रहट से पानी निकाल दूंगा , गाड़ी से सामान ढो दूंगा। बस मुझे अपना लो 
लेकिन क्या मेरे इस निवेदन का तुम पर कोई असर होगा ?
अरे तुम लोग तो अपने लाचार मां बाप को भी घर से बाहर निकाल देते हो , फिर मेरी क्या औकात..??

जय गौ वंश।

Tuesday, February 22, 2022

हम अपनी स्वतंत्रता का मूल्य अपने रक्त से चुकाएंगे

यह #घटना उस समय की है जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विदेश जाकर देश को आजाद कराने के लिए आजाद हिंद फौज के गठन का कार्य प्रारंभ किया।
उसी दौरान उन्होंने रेडियो प्रसारण पर एक आह्वान किया था कि "हम अपनी स्वतंत्रता का मूल्य अपने रक्त से चुकाएंगे"
उस समय वे बर्मा मे थे।

आजाद हिंद फौज के गठन व युवाओं को भरती करने के लिए उन्होंने अपना एक कमांडर भारत में नियुक्त किया.. कैप्टन ढिल्लों।
कैप्टन को विशेष निर्देश दिए कि ऐसे युवक को फौज में भर्ती न किया जाए जो अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र हो। उपयुक्त नियम का सख्ती से पालन करना है...

उस दिन कैप्टन ढिल्लों भर्ती होने के लिए सैकड़ों युवक जो पंक्ति मे खड़े थे उनका शारीरिक नापजोख करते थे और उनसे अंत में एक प्रश्न पूछते थे कि क्या आप अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र हो?
उपयुक्त उत्तर मिलने पर भर्ती कर लिया जाता था उस दिन उन्होंने अन्य युवकों की भांति एक युवक की छाती को मापकर तोल लेने वाली मशीन पर उसका वजन लिया, सब कुछ ठीक-ठाक पाया,  वह युवक फौज में ले लिए जाने की आशा से मुस्कुरा रहा था अंत में कैप्टन ढिल्लो ने उससे पूछा..

तुम्हारे ओर कितने भाई हैं?

उस नौजवान ने कहा " मैं तो अकेला हूं, मेरे पिता भी इस समय जीवित नहीं है घर में सिर्फ मेरी मां है"

"क्या करते हो तुम" कैप्टन ढिल्लों ने पूछा..
"मैं गाय भैंस पालता हूं खेती भी करता हूं"
"हिंदुस्तान में कहां के रहने वाले हो" ?
"पंजाब(आज का हरियाणा) से हूँ"

तुम्हारा नाम?
"अर्जुन सिंह"
कैप्टन ढिल्लो ने कुछ उदास होकर कहा..
अर्जुन सिंह मुझे अफसोस है कि तुम्हें फौज में नहीं लिया जा सकता मुझे तुम्हारी देशभक्ति पर कोई संदेह नहीं है लेकिन तुम अपनी मां के अकेले बेटे हो, जाओ अपना खेत और अपने पशुओं को संभालो मां की सेवा करो अर्जुन की खुशी उदासी में बदल गई...
वह घर लौटा तो मां ने पूछा क्यों अर्जुन तुम तो आजाद हिंद सेना  में गए थे भर्ती होने इतनी जल्दी आ गए क्या?
अर्जुन सिंह ने अपनी बूढ़ी मां को सब कुछ बता दिया..
सुनकर मां शांत होकर बोली घबराओ मत बेटे एक-दो दिन बाद फौज में तुम जरूर जाना तुम ले लिए जाओगे तुम देश के सच्चे सपूत बनकर दिखाओ, दिल को छोटा मत करो।

तीसरे दिन पुनः अर्जुन सिंह फौज में भर्ती होने वाले युवकों की पंक्ति में खड़ा था... सामने से आते ही कैप्टन ढिल्लों ने उसे पहचान लिया और बोला कि तुम फिर आ गए तुम्हें याद नहीं है... मैंने तुम्हें क्या कहा था,,
अर्जुन सिंह ने  भरे हुए गले से कहा..
"कैप्टन साहब मुझे आपकी बात खूब याद है किंतु मेरी बूढ़ी मां ने कुएं में कूदकर अपनी जान ही दे दी, कुएं में कूदने के पहली रात को उसने मुझसे कहा था कि यह मेरे लिए बड़ी लज्जा की बात है कि मेरे कारण से तुम आजाद हिंद सेना में नहीं लिए जा सके नेताजी का सहयोगी बनकर देश के काम नहीं आ सके"...
इतना सुनते ही कैप्टन ढिल्लो की आंखों में आंसू भर गए उन्होंने उसी समय अर्जुन को भर्ती कर लिया और 2 दिन बाद जब सुभाष बाबू निरीक्षण के लिए आए तो कैप्टन ने अर्जुन को नेताजी से मिलवाया।
अर्जुन सिंह को देखकर नेता जी ने कहा की अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए हमें यह जीवन अंतिम सांस तक दुश्मन से लड़ते हुए मोर्चे पर बिताना है इसमें यदि हमारी मृत्यु भी होती है तो भी पीछे नहीं हटना है...
अर्जुन सिंह ने नेताजी को वचन दिया और अपना वादा निभाया मोर्चे पर वह तब तक लड़ता रहा जब तक कि उसकी राइफल में एक भी गोली बाकी थी..
अर्जुन सिंह के शहीद होने का समाचार  नेताजी सुभाष को जब मिला तो वे स्वयं गये जहां अर्जुन सिंह की मे स्मृति में एक छोटा सा स्मारक उन्होंने बनवाया और उस पर उन्होंने लिखा था "मृत्यु से खेलने वाले इन मां और पुत्र दोनों को मेरा प्रणाम"....

ऐसे ऐसे महान रत्नों को खोकर मिली आजादी का श्रेय कुछ  स्वार्थी लोगो ने  गांधी की झूठी अहिंसा को दे दिया...
जिन नेताजी ने गांधी का सम्मान करते हुए उन्हें "राष्ट्रपिता" कह दिया था उस गांधी ने ही हस्ताक्षर कर नेहरू व जिन्ना दोनों की मनोकामना पूरी कर भारत को टुकड़े टुकड़े कर दिया।