Thursday, December 26, 2019

Ambernath Temple (अम्बरनाथ मंदिर)

शिव को हि कहा जाता है अम्बरनाथ जिसका अर्थ अम्बर(आकाश) नाथ(राजा)
आकाश के राजा है भोले नाथ।

यह मंंदीर मुम्बई से काफी करीब है। मुम्बई आ कर भी इनके दर्शन नही किये हो तो अब कर लेेना।

कल्याण से 2 स्टेशन बाद (कर्जत की और) आता है। अम्बरनाथ स्टेशन
स्टेशन से आप 
पैदल(लगभग 2 से 2.5km) भी जा सकते है|
वैसे तमाम Auto Rikshaw मील जाएंगे आप को!

उल्हस नदी के करीब

दर्शन के लिये वीडियो लिंक पे click करें
https://youtu.be/MTc68HjhwyQ

Wednesday, December 25, 2019

खंडग्रास (कंकण आकृति) सूर्यग्रहण 26 दिसंबर 2019


क्या होता है सूर्य ग्रहण ?

पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमने के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर भी चक्कर लगाती है। दूसरी ओर, चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगता है, इसलिए, जब भी चंद्रमा चक्कर काटते-काटते सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है, तब पृथ्वी पर सूर्य आंशिक या पूर्ण रूप से दिखना बंद हो जाता है। इसी घटना को सूर्यग्रहण कहा जाता है। इस
खगोलीय स्थिति में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी तीनों एक ही सीधी रेखा में आ जाते हैं। सूर्यग्रहण अमावस्या के दिन होता है,जबकि चंद्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा के दिन पड़ता
है।  पृथ्वी से सूर्य ओर चन्द्र की दूरी व समीपता घटती-बढ़ती रहती है, जिससे हमें इनके बिम्ब छोटे-बड़े होते दिखते हैं। जब सूर्यग्रहण के समय चन्द्र-बिम्ब सूर्य-बिम्ब
के बराबर होता है, तब सूर्य का पूर्णग्रास ग्रहण, जब वह सूर्य-बिम्ब से कुछ बड़ा होता है, तब सूर्यखग्रास ग्रहण और जब वह सूर्य-बिम्ब से कुछ छोटा होता है, तब सूर्यग्रहण कंकणाकृति होता है। उस समय चन्द्र-बिम्ब सूर्य-बिम्ब को इस प्रकार ढकता है कि-सूर्य-बिम्ब के लगभग मध्य में चन्द्र बिम्ब समाविष्ट होता है, जिससे उस समय सूर्य-बिम्ब का अनाच्छादित बाहरी भाग चांदी, के चमकते कंकण (कंगन) की तरह दिखाई देने लगता है, इसीलिए इस ग्रहण को कंकणाकृति ग्रहण कहा जाता है। 

शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के सूतक समय को अशुभ मुहूर्त माना जाता है. इस दौरान कोई शुभ या नए काम की शुरुआत नहीं करनी चाहिए. इसके साथ ही भगवान की पूजा भी नहीं करना चाहिए और ना हि देव दर्शन करना चाहिए. धार्मिक नियमें के अनुसार सूर्यग्रहण के 12 घंटे से पहले ही सूतक लग जाता है और यह ग्रहणकाल के समाप्त होने के मोक्ष काल के बाद स्नान, धर्म स्थलों को फिर से पवित्र करने के बाद ही समाप्त होता है।

भारत में सूर्यग्रहण तारीख और समय
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सूर्यग्रहण 26 दिसंबर को पड़ रहा है. भारतीय समय अनुसार ग्रहण का स्पर्श 26
दिसंबर के दिन प्रातः 8 बजकर 10 मिनट से आरंभ होगा इसका मध्य (ग्रहण मध्य) प्रातः 9 बजकर 31 मिनट पर रहेगा तथा ग्रहण मोक्ष (ग्रहण खत्म) प्रातः 10 बजकर 51 मिनट पर होगा ग्रहण का पर्वकाल (स्नान, दान आदि) का समय दोपहर 2 बजकर 41 मिनट तक मान्य होगा। ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले 25 दिसंबर की रात 8 बजकर 10 मिनट से आरंभ हो जाएगा।  

इस विषयक संहिता प्रतिफल यह कि यह ग्रहण मूल नक्षत्र एवं धनु राशि मण्डल पर मान्य है। अत: इस नक्षत्र राशि वालों को ग्रहण दर्शन नहीं करना चाहिए। अपितु अपने इष्टदेव की आराधना गुरूमंत्र जप एवं धार्मिक ग्रन्थ का पठन-मनन करना चाहिए।

यह ग्रहण भारत में दक्षिण का कुछ क्षेत्र छोड़कर (क्योंकि दक्षिणी भारत
में कंकणा कृति सूर्य ग्रहण होगा।) पूर्वी सउदी अरेबिया, ओमान, यमन, पूर्वी इथियोपिया, सोमालिया, पूर्वी व मध्य केन्या, भारत का "दक्षिणी-पश्चिमी समुद्री क्षेत्र, रूस  का दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र,
उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, इरान, दुबई,
अफगानिस्तान, पाकिस्तान,
ताजिकिस्तान, 'मंगोलिया, कोरिया, चीन, नेपाल, भूटान, म्यामार, बांग्लादेश, मलेशिया, ब्रूनेई, फिलीपीन्स, इंडोनेशिया,
श्रीलंका, उत्तरी पूर्वी पश्चिमी आस्ट्रेलिया, जापान आदि में , खण्डग्रास रूप में दृश्य होगा तथा भारत में पेराम्बुर, मंगलुरू,
पुत्तुर, कन्नूर, कोझिकोडे, बांदपुर, टाईगर रिजर्व, पलक्कड़, तिरूपुर, इरोडे, डिंडीगुल, मदुराई, तिरुचिरापल्ली तथा भारत के अतिरिक्त उत्तरी श्रीलंका, मध्य इंडोनेशिया, मलेशिया, सउदी अरेबिया का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र आदि में यह ग्रहण कंकणा
कृति रूप में दृश्य होगा।

ग्रहणकाल के दौरान क्या करें
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ग्रहण का सूतक शुरू होने से पहले खाने की बनी हुई चीजों में कुशा अथवा तुलसी के पत्ते डालकर रखें. दूध में भी तुलसी या कुशा डालना ना भूलें। माना जाता है कि  कुशा और तुलसी के पत्ते ग्रहण के समय निकलने वाली हानिकारक तरंगों से भोजन
को दूषित होने से बचा लेता है। ग्रहण काल के बाद स्नान करना चाहिए और घरों आदि की सफाई धुलाई अवश्य करें। ग्रहण काल के समाप्त होने के बाद पूरे घर में झाडू
लगाकर गंगाजल का छिड़काव करके उसे शुध्द करें। मंदिर या मंदिर घर को गंगाजल छिड़ककर शुध्द करें और धूप-दीप कर उन्हें भोग लगाएं। ग्रहण खत्म होने के
बाद गरीब और जरूरतमंद को अनाज, कपड़े और पैसे आदि का दान करें। 

ग्रहणकाल के दौरान क्या न करें
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ग्रहण एवं ग्रहण के सूतक के दौरान किसी भी नए कार्य को करना शुभ नहीं माना जाता है। इस दौरान किसी भी नए काम को शुरू नहीं करना चाहिए। ग्रहणकाल के दौरान भोजन करना, खाना पकाना, नहाना, शौच के लिए जाना और सोना
नहीं चाहिए। ग्रहण के दौरान तुलसी अथवा अन्य देववृक्षो को नहीं छूना चाहिए और ग्रहण खत्म होने के बाद तुलसी के पौधे को
गंगाजल छिड़ककर शुध्द करना चाहिए। ग्रहण के दौरान मंदिर या मंदिर घर में पूजा न करें। भगवान की मूर्ति को स्पर्श नहीं करना चाहिए। भगवान की प्रतिमा को कपड़े से ढककर रखना चाहिये। ग्रहण के दौरान घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए और ग्रहण दर्शन तो भूलकर भी
नहीं करना चाहिए। हिन्दू धर्म में सूर्य ग्रहण का एक अलग महत्व है। वहीं विज्ञान के नजरिये से इसकी अलग ही परिभाषा है,
विज्ञान केवल इसे खगोलिय घटना मानता है। सूर्य ग्रहण के नाम से कई लोग ऐसे भी हैं जो सूर्य ग्रहण देखने के लिए इच्छा जताते हैं। लेकिन बता दें सूर्य ग्रहण को
देखने के लिए कई सावधानियां बरतनी होती है। सूर्य ग्रहण देखने से कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है
आम तौर पर लोग सूर्य ग्रहण को पानी में सूर्य की छवि को देखते हैं। जो कि ऐसा करना बिल्कुल गलत है इससे आंखों को काफी नुकसान पहुच सकता है। इसके अलावा कई लोग पानी में हल्दी या कोई पदार्थ डाल कर देखते हैं लेकिन ये भी काफी घातक हो सकता है। इसलिए सूर्य ग्रहण को देखने के लिए ऐसे प्रक्रिया
का इस्तेमाल ना करें और अपनी आखों को नुकसान पहुंचाने से बचाएं।

ग्रहण का राशिफल
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इस ग्रहण का स्पर्श-मोक्ष मूल नक्षत्र एवं धन राशि में ही हो रहा है। अत: धनु राशिस्थ-चन्द्र एवं मूल नक्षत्र में घटित
होने से मूल नक्षत्र एवं धनु राशि में जन्म लेने वाले किंवा धनु नामराशि वाले व्यक्तियों के लिए यह ग्रहण विशेष कष्टप्रद है। जन्म किंवा नाम राशि के आधार पर विभिन्न राशि वाले व्यक्तियों के लिए इस सूर्यग्रहण' का फल नीचे दिया गया है।

धनु-राशिगत सूर्यग्रहण का 12 राशियों पर फल
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राशि जन्म/नाम          फल 
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मेष                        अपमान
वृषभ                     महाकष्ट
मिथुन                    स्त्री/पति कष्ट
कर्क                      सुख
सिंह                       चिन्ता
कन्या                     कष्ट
तुला                      धनलाभ
वृश्चिक                   हानि
धनु                       घात
मकर                     हानि
कुम्भ                     लाभ
मीन                      सुख प्राप्ति।

ग्रहण दर्शन के राशि अनुसार फल
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मेष, मिथुन, सिंह, वृश्चिक राशि हेतु सामान्य मध्यम फल, 

वृषभ, कन्या, धनु, मकर राशि हेतु नेष्ट अशुभ दर्शन करना योग्य नहीं। 

कर्क, तुला, कुंभ, मीन राशि हेतु दर्शन शुभ सुखद फल। 

पौष मास में ग्रहण का फल
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"पौषे द्विज-क्षत्र-जनोपरोध: 
ससैन्धवारब्या: कुकुरा विदेहाः।
ध्वंसं ब्रजन्त्यत्र च मन्दवृष्टिं 
भयं च विन्द्यादसुभिक्ष-युक्तम्।।"

क्योंकि यह सूर्यग्रहण पौषी अमावस (पौष
मास) में हो रहा हैं, अतः बुद्धिजीवि वर्ग एवं शस्त्रधारी किंवा यद्धति वर्ग में परस्पर उपद्रव की सम्भावना रहेगी। सिंध प्रदेश, कुकुर प्रदेश, विदेह (मिथिला-प्रदेश) भारी कष्टप्रद परिस्थिति में रहें।

इस वर्ष कुछ प्रान्तों में वर्षा से हानि, कहीं दुर्भिक्ष से परेशानी का सामना करना पड़े।

(ग्रहणवेध-अवधि के लगभग तक) गुरु, सूर्य, चन्द्र, बुध, शनि एवं केतु-ये षड्ग्रह सूर्यग्रहण कालीन राशि (धनु) में रहेंगे। उल्लिखित ग्रहस्थिति भारतीय राजनीति में प्रतिष्ठित व्यक्तियों, व्यापारियो, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों एवं सैन्य अधिकारियों के लिए भयावह है यह स्थिति पाक, अमरीका. इजराइल, उ.कोरिया एवं भारत आदि की
शासन-व्यवस्था में उलटफेर का संकेत देती है। भारत एवं भारतेतर कुछ मुस्लिम राष्ट्रों एवं चीन, जापान आदि मे भी भयंकर प्राकृतिक आपदा (भूकम्प, विस्फोट आदि) से भारी जनधनहानि के योग बनते हैं। प्रतिष्ठित व्यक्ति का पद रिक्त होने का भी संकेत मिलता है।

विशेष👉 उपरोक्त ग्रहण विवरण ऋषिकेश के भारतीय स्थानीय समयानुसार है। अपने ग्राम/नगर का सूर्यग्रहण जानने के लिये स्थानीय पञ्चाङ्ग का अनुसरण करें।

भारत के कुछ प्रमुख नगरों के ग्रहण-समय

स्थान   ग्रहण-प्रारम्भ समय  ग्रहण-समाप्ति 
अहमदाबाद      8-06 से      10-53 तक
दिल्ली              8-17 से      10-58 तक
मुंबई व सूरत     8-04 से      10-56 तक
श्रीनगर            8-22 से      10-48 तक
जोधपुर            8-09 से      10-51 तक
लखनऊ           8-19 से      11-07 तक
भोपाल            8-10 से      11-03 तक
रायपुर (छ.ग.)  8-14 से       11-16 तक
देहरादून           8-10 से       10-51 तक
चंडीगढ़           8-19 से        10-55 तक
रांची व पटना    8-22 से        11-23 तक
कोलकाता        8-27 से        11-33 तक
भुवनेश्वर          8-19 से        11-29 तक
चेन्नई               8-08 से        11-20 तक
बेंगलुरु,हैदराबाद 8-06 से      11-12 तक

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Thursday, December 12, 2019

पूरी दुनिया को मुसलमान बनाने के लिए कितने संगठन कार्य कर रहे हैं ! आओ जाने!


 1) अल -शबाब (अफ्रीका ), 
2) अल मुराबितुंन (अफ्रीका ), 
3) अल -कायदा (अफगानिस्तान ), 
4) अल -क़ाएदा (इस्लामिक मघरेब ), 
5) अल -क़ाएदा (इंडियन सबकॉन्टिनेंट ), 
6) अल -क़ाएदा (अरेबियन पेनिनसुला ),
7) हमास (पलेस्टाइन ), 
8) पलिस्तीनियन इस्लामिक जिहाद (पलेस्टाइन ), 
9) पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ (पलेस्टाइन ), 
10) हेज़बोल्ला (लेबनान ), 
11) अंसार अल -शरीया -बेनग़ाज़ी (लेबनान ), 
12) असबात अल -अंसार (लेबनान ), 
13) ISIS (इराक ), 
14) ISIS (सीरिया ),
15) ISIS (कवकस )
16) ISIS (लीबिया )
17) ISIS (यमन )
18) ISIS (अल्जीरिया ), 
19) ISIS (फिलीपींस )
20) जुन्द अल -शाम (अफगानिस्तान ), 
21) मौराबितौं (लेबनान ), 
22) अलअब्दुल्लाह अज़्ज़म ब्रिगेड्स (लेबनान ), 
23) अल -इतिहाद अल -इस्लामिया (सोमालिया ), 
24) अल -हरमैन फाउंडेशन (सऊदी अरबिया ), 
25) अंसार -अल -शरीया (मोरोक्को ),
26) मोरोक्को मुदजादिने (मोरक्को ), 
27) सलफीआ जिहदिआ (मोरक्को ), 
28) बोको हराम (अफ्रीका ), 
29) इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ (उज़्बेकिस्तान ), 
30) इस्लामिक जिहाद यूनियन (उज़्बेकिस्तान ), 
31) इस्लामिक जिहाद यूनियन (जर्मनी ), 
32) DRW True -रिलिजन (जर्मनी )
33) फजर नुसंतरा मूवमेंट (जर्मनी )
34) DIK हिल्देशियम (जर्मनी )
35) जैश -ए -मुहम्मद (कश्मीर ), 
36) जैश अल -मुहाजिरीन वल -अंसार (सीरिया ), 
37) पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ पलेस्टाइन (सीरिया ), 
38) जमात अल दावा अल क़ुरान (अफगानिस्तान ), 
39) जुंदल्लाह (ईरान )
40) क़ुद्स फाॅर्स (ईरान )
41) Kata'ib हेज़बोल्लाह (इराक ), 
42) अल -इतिहाद अल -इस्लामिया (सोमालिया ), 
43) Egyptian इस्लामिक जिहाद (Egypt ), 
44) जुन्द अल -शाम (जॉर्डन )
45) फजर नुसंतरा मूवमेंट (ऑस्ट्रेला )
46) सोसाइटी ऑफ़ द रिवाइवल ऑफ़ इस्लामिक हेरिटेज (टेरर फंडिंग , वर्ल्डवाइड ऑफिसेस )
47) तालिबान (अफगानिस्तान ), 
48) तालिबान (पाकिस्तान ), 
49) तहरीक -i-तालिबान (पाकिस्तान ), 
50) आर्मी ऑफ़ इस्लाम (सीरिया ), 
51) इस्लामिक मूवमेंट (इजराइल )
52) अंसार अल शरीया (तुनिशिया ), 
53) मुजाहिदीन शूरा कौंसिल इन द एनवीरोंस ऑफ़ (जेरूसलम ), 
54) लिबयान इस्लामिक फाइटिंग ग्रुप (लीबिया ), 
55) मूवमेंट फॉर वेनेस्स एंड जिहाद इन (वेस्ट अफ्रीका ), 
56) पलिस्तीनियन इस्लामिक जिहाद (पलेस्टाइन )
57) तेव्हीद-सेलम (अल -क़ुद्स आर्मी )
58) मोरक्कन इस्लामिक कोंबटेंट ग्रुप (मोररोको ), 
59) काकेशस अमीरात (रूस ), 
60) दुख्तरान -ए -मिल्लत फेमिनिस्ट इस्लामिस्ट्स (इंडिया ),
61) इंडियन मुजाहिदीन (इंडिया ), 
62) जमात -उल -मुजाहिदीन (इंडिया )
63) अंसार अल -इस्लाम (इंडिया )
64) स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ (इंडिया ), 
65) हरकत मुजाहिदीन (इंडिया ), 
66) हिज़्बुल मुझेडीन (इंडिया )
67) लश्कर ए इस्लाम (इंडिया )
68) जुन्द अल -खिलाफह (अल्जीरिया ), 
69) तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी ,
70) Egyptian इस्लामिक जिहाद (Egypt),
71) ग्रेट ईस्टर्न इस्लामिक रेडर्स' फ्रंट (तुर्की),
72) हरकत -उल -जिहाद अल -इस्लामी (पाकिस्तान ),
73) तहरीक -ए -नफ़ज़ -ए -शरीअत -ए -मोहम्मदी (पाकिस्तान ), 
74) लश्कर ए तोइबा (पाकिस्तान )
75) लश्कर ए झांगवी (पाकिस्तान )
76) अहले सुन्नत वल जमात (पाकिस्तान ),
77) जमात उल -एहरार (पाकिस्तान ), 
78) हरकत -उल -मुजाहिदीन (पाकिस्तान ), 
79) जमात उल -फुरकान (पाकिस्तान ), 
80) हरकत -उल -मुजाहिदीन (सीरिया ), 
81) अंसार अल -दिन फ्रंट (सीरिया ), 
82) जब्हत फ़तेह अल -शाम (सीरिया ), 
83) जमाह अन्शोरूट दौलाह (सीरिया ), 
84) नौर अल -दिन अल -ज़ेन्कि मूवमेंट (सीरिया ),
85) लिवा अल -हक़्क़ (सीरिया ), 
86) अल -तौहीद ब्रिगेड (सीरिया ), 
87) जुन्द अल -अक़्सा (सीरिया ), 
88) अल -तौहीद ब्रिगेड (सीरिया ), 
89) यरमूक मार्टियर्स ब्रिगेड (सीरिया ), 
90) खालिद इब्न अल -वालिद आर्मी (सीरिया ), 
91) हिज़्ब -ए इस्लामी गुलबुद्दीन (अफगानिस्तान ), 
92) जमात -उल -एहरार (अफगानिस्तान ) 
93) हिज़्ब उत -तहरीर (वर्ल्डवाइड कलिफाते ), 
94) हिज़्बुल मुजाहिदीन ( इंडिया), 
95) अंसार अल्लाह (यमन ), 
96) हौली लैंड फाउंडेशन फॉर रिलीफ एंड डेवलपमेंट (USA), 
97) जमात मुजाहिदीन (इंडिया ), 
98) जमाह अंशरूत तौहीद (इंडोनेशिया ), 
99) हिज़्बुत तहरीर (इंडोनेशिया ), 
100) फजर नुसंतरा मूवमेंट (इंडोनेशिया ), 
101) जेमाह इस्लामियाह (इंडोनेशिया ), 
102) जेमाह इस्लामियाह (फिलीपींस ), 
103) जेमाह इस्लामियाह (सिंगापुर ), 
104) जेमाह इस्लामियाह (थाईलैंड ), 
105) जेमाह इस्लामियाह (मलेशिया ), 
106) अंसार दीने (अफ्रीका ), 
107) ओस्बत अल -अंसार (पलेस्टाइन ), 
108) हिज़्ब उल -तहरीर (ग्रुप कनेक्टिंग इस्लामिक केलिफेट्स अक्रॉस द वर्ल्ड इनटू वन वर्ल्ड इस्लामिक केलिफेट्स )
109) आर्मी ऑफ़ द मेन ऑफ़ द नक्शबंदी आर्डर (इराक )
110) अल नुसरा फ्रंट (सीरिया ), 
111) अल -बदर (पाकिस्तान ), 
112) इस्लाम 4UK (UK), 
113) अल घुरबा (UK), 
114) कॉल टू सबमिशन (UK), 
115) इस्लामिक पथ (UK), 
116) लंदन स्कूल ऑफ़ शरीया (UK), 
117) मुस्लिम्स अगेंस्ट क्रुसडेस (UK), 
118) नीड 4Khilafah (UK), 
119) द शरिया प्रोजेक्ट (UK), 
120) द इस्लामिक दवाह एसोसिएशन (UK), 
121) द सवियर सेक्ट (UK), 
122) जमात उल -फुरकान (UK), 
123) मिनबर अंसार दीन (UK), 
124) अल -मुहाजिरों (UK) (Lee Rigby, लंदन 2017 मेंबर्स ), 
125) इस्लामिक कौंसिल ऑफ़ ब्रिटैन (UK) (नॉट टू बी कन्फ्यूज्ड विद ओफ़फिशिअल मुस्लिम कौंसिल ऑफ़ ब्रिटैन ), 
126) अहलुस सुन्नाह वल जमाह (UK), 
128) अल -गामा'अ (Egypt ), 
129) अल -इस्लामियया (Egypt), 
130) आर्म्ड इस्लामिक मेन ऑफ़ (अल्जीरिया ), 
131) सलाफिस्ट ग्रुप फॉर कॉल एंड कॉम्बैट (अल्जीरिया ), 
132) अन्सारु (अल्जीरिया ), 
133) अंसार -अल -शरीया (लीबिया ), 
134) अल इत्तिहाद अल इस्लामिआ (सोमालिया ), 
135) अंसार अल -शरीया (तुनिशिया ), 
136) शबब (अफ्रीका ), 
137) अल -अक़्सा फाउंडेशन (जर्मनी )
138) अल -अक़्सा मार्टियर्स' ब्रिगेड्स (पलेस्टाइन ), 
139) अबू सय्याफ (फिलीपींस ), 
140) अदेन-अबयान इस्लामिक आर्मी (यमन ), 
141) अजनाद मिस्र (Egypt), 
142) अबू निदाल आर्गेनाइजेशन (पलेस्टाइन ), 
143) जमाह अंशरूत तौहीद (इंडोनेशिया )

कई लोग गलत तरीके से इस्लाम को बदनाम करते हैं ! ये ऊपर लिखे सारे इस्लामिक संगठन तो शांति की स्थापना में लगे हुए है ! *बस केवल आरएसएस ही ऐसा संगठन है जो पूरे विश्व में आतंकवाद फैलाता ह*ै, मतलब हद हैं मानसिक विकलांगता की।

Saturday, November 30, 2019

डाक्टर प्रियंका रेड्डी

डाक्टर प्रियंका रेड्डी ने कल रात अपने घर फोन करके बताया कि उनकी स्कूटी शमसाबाद, हैदराबाद में पंक्चर हो गई है... यह क्षेत्र अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र है...  वह घबराई हुईं थीं.... उन्होंने अपनी बहन को बताया कि कुछ लोग मदद करने के नाम पर उसकी स्कूटी ले कर.. पंचर ठीक कराने के बहाने उसे कहीं ले जाना चाह रहे हैं... आस पास काफी संदिग्ध लोग इकट्ठे हो रहे हैं... बहन ने डाक्टर प्रियंका से कहा कि वह निकट स्थित टोल बूथ पर जाकर खुद को बचाये... और वह कुछ संबंधियों को लेकर घटना स्थल की ओर दौड़ीं, परंतु....

जब संबंधी उक्त स्थान पर पहुँचे तो वहां से डाक्टर प्रियंका रेड्डी गायब थीं और उनका फोन स्वीच ऑफ आ रहा था ...
            अगले दिन प्रातः उसी क्षेत्र के सुनसान इलाके शादनगर में डाक्टर प्रियंका रेड्डी का जला हुआ शव मिला... पोस्टमार्टम से पता चला कि ज़िंदा जलाकर मारने से पूर्व डाक्टर प्रियंका रेड्डी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था ! सिर्फ बलात्कार ही काफी नहीं... हत्या !... जीवित अवस्था मे पेट्रोल छिड़क कर... ! कितनी दर्दनाक मौत दी गई...डाक्टर प्रियंका को...!!
               शेष कहने और समझने के लिए कुछ नहीं रह जाता है... जैसी की उम्मीद थी... अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है...

मदद करने के बजाये ये स्थिति की गई दिवंगत की 

टारगेट आपकी बहन बेटियां ही  है ।

वह तो चली गई लेकिन आप कब चेतेंगे ?

भारत की मीडिया से वास्तविकता बताने की कोई उम्मीद नही है ....

Wednesday, November 20, 2019

JNU बनेगा सौचालय।

कब तक वतन  के पैसे से  खर्चे चलायेगा,
और उसमें भी हर बात पे नखरे दिखायेगा!

माँ सोचती थी छाले का मरहम  बनेगा तू
क्या जानती थी धुएँ के छल्ले बनायेगा तू!

सैनिक की शहादत पर  मनायेगा जश्न  तू,
वर्ना कभी तू अफ़जल की बरसी मनायेगा!

बचपन गुज़र गया  जवानी  गुज़र गयी,
पढ़ते हुए क्या अपना बुढ़ापा बितायेगा!

हॉस्टल का एक रूम था पढ़ने  के वास्ते, 
हमको खबर थी नहीं तू दुनियां बसायेगा!

अय्याशियों से पैसे बचेंगे तभी  तो वो,
थोड़ी सी बड़ी फीस के पैसे चुकायेगा!

हम चाहते थे देश की आवाज़  बनों  तुम, 
पर तू भी सियासत के ही पाले में जायेगा!

#मयंक शर्मा
🧐🧐🧐😷😷😷😎😎😎😇

Tuesday, November 19, 2019

सनातन धर्म को खत्म करने की कोशिश हमनें खुद की है!


सात लाख रूपये दीजिये तो राधे माँ ( जसबिंदर कौर) आपको गोद में बैठाकर आशीर्वाद देंगी और पन्द्रह लाख रूपये दीजिये तो आप धूर्त ठग राधे माँ को किसी फाइव स्टार होटल में डिनर के साथ आशीर्वाद ले सकते हैं ! 
तब भी वो देवी है मूर्ख हिंदुओं की।

निर्मल बाबा है जो लाल चटनी और हरी चटनी में भगवान की कृपा दे रहा है ! रात दिन पूजा जा रहा है।

रामपाल भक्त हैं जो कबीर को पूर्ण परब्रह्म परमात्मा मानते हैं ! ओर अपने नहाए हुए पानी को अपने भक्तों को पिला कर कृतार्थ करता है।

ब्रह्मकुमारी मत वाले हैं जो दादा लेखराज के वचनों को सच्ची गीता बताते हैं और परमात्मा को बिन्दुरुप बताते हैं ! इन्होंने श्री कृष्ण जी की भगवद गीता भी फेल कर दी।

राधास्वामी वाले अपने गुरु को ही मालिक परमेश्वर भगवान ईश्वर मानते हैं । उनके अनुसार वो साक्षात ईश्वर का अवतार है, और वेद गलत है..???

*ओशो * के भक्तों के लिए समाधी का रास्ता सम्भोग से होकर जाता हैं। उनके लिए सदाचार और व्यभिचार में कोई अंतर नहीं हैं।

*रामरहीम वालों के लिए उनके गुरु भगवान से भी बढ़कर हैं। चाहे वह गुफ़ा में साध्वियों का योन शोषण करे, चाहे साधुओं को हिजड़ा बनाये, चाहे डिस्को गाने गाये, चाहे अजीबोगरीब कपड़े पहन कर फिल्में बनाये। उसे भगवान् ही मानेगे।

बहुतेरे चाँद मियाँ ऊर्फ साई बाबा को भगवान बनाने पर तुले हैं...!!!

बाकि मजार-मरघट-पीर-फकीर मर्दे कलंदर न जाने कहाँ कहाँ धक्के खा रहे हैं।

आसाराम के भक्त तो और भी महान है सब पोल खुल जाने पर भी सड़को पर भक्त बनकर आसाराम को ईश्वर मान रात दिन उसके गुण गाते है।

हिन्दुस्तान में रहने वाले जैन, बौद्ध, कबीरपंथी, अम्बेडकरवादि, मांसाहारी, शाकाहारी, साकारी,निरंकारी सब हिन्दू हैं।

लेकिन हिंदु सच में है कौन

खुद हिन्दुओं को नहीं पता...

हिंदुओं ने स्वयं ही वैदिक सनातन धर्म की सबसे ज्यादा हानि की है।

कोई विदेशी इसका जिम्मेदार नहीं है!                                                      हिन्दुओं को जिसने जैसा बेवकूफ बनाया वैसे बन गए। जिसने अपनी दुकान ज्यादा सजायी वो ही उतना बड़ा भगवान बन गया। सच में हिन्दुत्व का ऐसा विकृत रूप बेहद दुःखदायी है और विचारणीय भी!!!                                                            "सनातन वैदिक धर्म"                                                          पुनः विश्व में "सनातन वैदिक धर्म " का परचम लहरायें भारत को फिर विश्व गुरू बनायें।                                                      जागृति बनें, धार्मिक बनें, तार्किक बनें,                                                                                               ना कि अंधे अंधविश्वासी!!!

Monday, November 18, 2019

भारत मे आज भी है सती प्रथा।(महान भारत)

पतिव्रता पत्नियां पति के देह त्यागते ही स्वयं भी देह त्याग देती है। आजकल कम देखने सुनने को मिलता है पर पृथ्वी अभी सतियों से रिक्त नहीं हुई है। सती का अर्थ जैसा कि हम सोचते और सुनते हैं वैसा नहीं है।(william Bentick और Rammohan rai के संदर्भ से) , सती का अर्थ है जो पति के साथ ही स्वयं देह त्याग दे और देहों का एक साथ दहन हो।
विवाह के समय जो अग्नि साक्षी होती है ,वह अग्नि सदैव घर में निरंतर प्रजवलित रहती है और वही विवाह काल की अग्नि दोनी के देह को ग्रहण कर लेती है। विवाह contract नहीं पवित्र संबंध है जिसमे अग्नि सदैव विद्यमान रहती है इसलिए पत्नी को योषग्नि भी कहते है। आज फिर एक पवित्र उत्सर्ग हुआ , पोरसा,मध्य प्रदेश, के पण्डित जी का निधन कल शाम को हो गया था, आज सुबह जब उनको अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जारहा था तो उनकी धर्म पत्नी ने भी पति बियोग मैं प्राण त्याग दिये।। ऐसी सती सावित्री माता दिव्यात्मा को कोटि कोटि नमन।

Saturday, November 16, 2019

एक और पाठ #शिक्षक

 

"प्रणाम..सर! मुझे.. पहचाना??"

"कौन?" ..भाई, बता दो..शरीर साथ नहीं देता मेरा।

"सर, मैं आपका स्टूडेंट..45 साल पहले का..आपका विद्यार्थी।"

"ओह! अच्छा, आजकल ठीक से दिखता नही बेटा और याददाश्त भी कमज़ोर हो गयी है..इसलिए नही पहचान पाया..खैर..आओ, बैठो..क्या करते हो आजकल?" उन्होंने उसे प्यार से बैठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा..

"सर, मैं भी आपकी ही तरह शिक्षक बन गया हूँ।"

"वाह" यह तो अच्छी बात है लेकिन शिक्षक की पगार तो बहुत कम होती है फिर तुम क्यूं शिक्षक बने...???"

"सर, जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में था तब हमारी कक्षा में एक घटना घटी थी..उसमें से आपने मुझे बचाया था..मैंने तभी शिक्षक बनने का निर्णय ले लिया था..वो घटना मैं आपको याद दिलाता हूँ..आपको मैं भी याद आ जाऊँगा।"

"अच्छा, क्या हुआ था तब?"

"सर, सातवीं में हमारी कक्षा में एक बहुत अमीर लड़का पढ़ता था..जबकि हम बाकी सब बहुत गरीब थे..एक दिन वह बहुत महंगी घड़ी पहनकर आया था और उसकी घड़ी चोरी हो गयी थी..कुछ याद आया सर?"

"सातवीं कक्षा???"

"हाँ सर..उस दिन मेरा मन उस घड़ी पर आ गया था और खेल के पिरेड में जब उसने वह घड़ी अपने पेंसिल बॉक्स में रखी तो मैंने मौका देखकर वह घड़ी चुरा ली थी..उसके बाद आपका पिरेड था..उस लड़के ने आपके पास घड़ी चोरी होने की शिकायत की..आपने कहा कि जिसने भी वह घड़ी चुराई है उसे वापस कर दो..मैं उसे सजा नही दूँगा..लेकिन डर के मारे मेरी हिम्मत ही न हुई घड़ी वापस करने की।"

"फिर आपने कमरे का दरवाजा बंद किया और हम सबको एक लाइन से आँखें बंद कर खड़े होने को कहा, और यह भी कहा कि आप सबकी जेब देखेंगे लेकिन जब तक घड़ी मिल नही जाती तब तक कोई भी अपनी आँखें नही खोलेगा वरना उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा।"

"हम सब आँखें बन्द कर खड़े हो गए..आप एक-एक कर सबकी जेब देख रहे थे..जब आप मेरे पास आये तो मेरी धड़कन तेज होने लगी..मेरी चोरी पकड़ी जानी थी..अब जिंदगी भर के लिए मेरे ऊपर चोर का ठप्पा लगने वाला था..मैं ग्लानि से भर उठा था..उसी समय जान देने का निश्चय कर लिया था लेकिन....लेकिन मेरे जेब में घड़ी मिलने के बाद भी आप लाइन के अंत तक सबकी जेब देखते रहे..और घड़ी उस लड़के को वापस देते हुए कहा, "अब ऐसी घड़ी पहनकर स्कूल नही आना और जिसने भी यह चोरी की थी वह दोबारा ऐसा काम न करे..इतना कहकर आप फिर हमेशा की तरह पढाने लगे थे.."कहते कहते उसकी आँख भर आई।

वह रुंधे गले से बोला, "आपने मुझे सबके सामने शर्मिंदा होने से बचा लिया..आगे भी कभी किसी पर भी आपने मेरा चोर होना जाहिर न होने दिया..आपने कभी मेरे साथ भेदभाव नही किया..उसी दिन मैंने तय कर लिया था कि मैं आपके जैसा शिक्षक ही बनूँगा।"

"हाँ हाँ...मुझे याद आया।" उनकी आँखों मे चमक आ गयी..फिर चकित हो बोले, "लेकिन बेटा... मैं आजतक नही जानता था कि वह चोरी किसने की थी क्योंकि...जब मैं तुम सबकी जेब देख कर रहा था तब मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली थीं।"

"उफ्फ्फ"..आज जिंदगी का एक और पाठ आपसे सीख कर जा रहा हूं ...सर।"

(एक इंग्लिश कहानी का हिंदी रूपांतरण)

Tuesday, November 12, 2019

भारत के ग़द्दारों की लिस्ट

सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरफ़ से पेश 15 इतिहासकारों में से 12 #हिन्दू थे। इनका कहना था कि #अयोध्या में राममंदिर कभी था ही नहीं।
गवाह नं 63 आर एस शर्मा
गवाह नं 64 सूरज भान 
गवाह नं 65 डी एन झा 
गवाह नं 66 रोमिला थापर
गवाह नं 72 बी एन पाण्डेय 
गवाह नं 74 आर एल शुक्ला
गवाह नं 82 सुशील श्रीवास्तव 
गवाह नं 95 के एम श्री माली 
गवाह नं 96 सुधीर जायसवाल 
गवाह नं 99 सतीश चंद्रा 
गवाह नं 101 सुमित सरकार 
गवाह नं 102 ज्ञानेन्द्र पांडेय 
हलांकि #आर्केओलोजिकल_सर्वे_ऑफ़ इंडिया के रिपोर्ट के समय ही झूठ का #पोल खुल गया था और इन्होने इलाहबाद हाईकोर्ट में #स्वीकार किया था कि ये अपने #एसी रूम में बैठकर रामजन्मभूमि का इतिहास अपनी कल्पना से लिखा था न कि तथ्यों पर, फिर भी अब सच पूरी तरह सामने आ चुका है। 
मजेदार बात यह है कि इन्ही सरकारी इतिहासकारों को पढ़कर कर और रटकर मानकर हमारे यहाँ लोग #आईएएस बने। अंदाजा लगाइए #संस्कृति विरोधी इतिहास से प्राप्त ज्ञान से वे समाज को क्या परोसते रहे हैं। मास्टर कक्षा में भारत भविष्य को क्या बात रहे होंगे। भारतीय मूल्य को संकट अपने देश के भारतद्रोही, हिंदूद्रोही गुलाम बौद्धिकों ने पहुंचाई है।


वामपंथी और राक्षस में कोई अंतर नहीं


श्रीराम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ जाने के बावजूद भी इस पूरे विवाद में उन नीच वामपंथी इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के गलीज, घिनौने, बदबूदार और बेईमानी भरे षड्यंत्रों को मत भूलियेगा जो इन्होंने पिछले तीस सालों से पूरी दुष्टता, कमीनगी और निर्लज्जता के साथ सेकुलर मीडिया की मदद से रचे और अंजाम दिए और जिनका भंडाफोड़ इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायिक सुनवाई में ही हो गया था। पुनः ध्यान दीजिए एक बार -
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने विवादित स्थल पर मंदिर होने के शोधपूर्ण वैज्ञानिक निष्कर्षों की पुष्टि तो की ही थी, साथ ही साथ मस्जिद-कमिटी की ओर से गवाह के तौर पर वामपंथी इतिहासकार इरफ़ान हबीब की अगुवाई में पेश हुए देश के तमाम वामपंथी इतिहासकारों के फरेब को भी न्यायालय ने उजागर किया था l न्यायालय को ये टिप्पणी करनी पडी थी कि इन इतिहासकारों ने अपने रवैये से उलझाव, विवाद, और सम्प्रदायों में तनाव पैदा करने की कोशिश की और इनका विषय-ज्ञान भी छिछला है l

केस की सुनवाई के दौरान हुए 'क्रॉस एग्जामिनेशन' में पकड़े गए इनके फरेबों के दृष्टांत आपको हैरत में डाल देंगे :- 

(1) वामपंथी इतिहासकार प्रोफ़ेसर मंडल ने ये स्वीकारा कि खुदाई का वर्णन करती उनकी पुस्तक दरअसल उन्होंने बिना अयोध्या गए ही लिख दी थी l 

(2) वामपंथी इतिहासकार सुशील श्रीवास्तव ने ये स्वीकार किया कि प्रमाण के तौर पर पेश की गयी उनकी पुस्तक में संदर्भ के तौर पर दिए पुस्तकों का उल्लेख उन्होंने बिना पढ़े ही कर दिया है l

(3) जेएनयू की इतिहास-प्रोफ़ेसर सुप्रिया वर्मा ने ये स्वीकार किया कि उन्होंने खुदाई से संदर्भित ‘राडार सर्वे’ की रिपोर्ट को पढ़े बगैर ही रिपोर्ट के विरोध में गवाही दे दी थी l 

(4) अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर जया मेनन ने ये स्वीकारा कि वे तो खुदाई स्थल पर गयी ही नहीं थी लेकिन ये  गवाही दे दी थी कि मंदिर के खंभे बाद में वहां रखे गए थे l 

(5) ‘एक्सपर्ट’ के तौर पर उपस्थित वामपंथी सुविरा जायसवाल जब 'क्रोस एग्जामिनेशन' में पकड़ी गयीं तब उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें मुद्दे पर कोई ‘एक्सपर्ट’ ज्ञान नहीं है; जो भी है वो सिर्फ ‘अखबारी खबरों’ के आधार पर ही है l  

(6) पुरात्व्वेत्ता वामपंथी शीरीन रत्नाकर ने सवाल-जवाब में ये स्वीकारा कि दरअसल उन्हें कोई 'फील्ड-नॉलेज' है ही नहीं l   

(7) 'एक्सपर्ट' प्रोफ़ेसर मंडल ने ये भी स्वीकारा था, “मुझे बाबर के विषय में इसके अलावा - कि वो सोलहवीं सदी का एक शासक था - और कुछ ज्ञान नहीं है l न्यायधीश ने ये सुन कर कहा था कि इनके ये बयान विषय सम्बंधित इनके छिछले ज्ञान को प्रदर्शित करते है l 

(8) वामपंथी सूरजभान मध्यकालीन इतिहासकार के तौर पर गवाही दे रहे थे पर 'क्रॉस एग्जामिनेशन' में ये तथ्य सामने आया कि वे तो इतिहासकार थे ही नहीं, मात्र पुरातत्ववेत्ता थे l 

(9) सूरजभान ने ये भी स्वीकारा कि डी एन झा और आर एस शर्मा के साथ लिखी उनकी पुस्तिका “हिस्टोरियंस रिपोर्ट टू द नेशन” दरअसलद खुदाई की रपट पढ़े बगैर ही  दबाव में  केवल छै हफ्ते में ही लिख दी गयी थी l 

(10) वामपंथी शिरीन मौसवी ने क्रॉस एग्जामिनेशन में ये स्वीकार किया कि उनका पहले का ये कहना सही नहीं है कि राम-जन्मस्थली का ज़िक्र मध्यकालीन इतिहास में नहीं है l 

दृष्टान्तों की सूची और लम्बी है l पर विडंबना तो ये है कि लाज हया को ताक पर रख कर वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर ने इन्हीं फरेबी वामपंथी इतिहासकारों व अन्य वामपंथियों का नेतृत्व करते हुए न्यायालय के इसी फैसले के खिलाफ लम्बे लम्बे पर्चे भी लिख डाले थे l पर शर्म इन्हें आती भी है क्या ? 

(सन्दर्भ  : Allahabad High court verdict dated 30 Sep 2010)

#Ayodhya

Monday, November 11, 2019

भक्त और भगवान का संबंध


एक बार की बात है एक संत जग्गनाथ पूरी से मथुरा की ओर आ रहे थे उनके पास बड़े सुंदर ठाकुर जी थे । वे संत उन ठाकुर जी को हमेशा साथ ही लिए रहते थे और बड़े प्रेम से उनकी पूजा अर्चना कर लाड लड़ाया करते थे ।

ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने ठाकुर जी को अपनें बगल की सीट पर रख दिया और अन्य संतो के साथ हरी चर्चा में मग्न हो गए ।

जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे तब वे सत्संग में इतनें मग्न हो चुके थे कि झोला गाङी में ही रह गया उसमें रखे ठाकुर जी भी वहीं गाडी में रह गए । संत सत्संग की मस्ती में भावौं मैं ऐसा बहे कि ठाकुर जी को साथ लेकर आना ही भूल गए ।

बहुत देर बाद जब उस संत के आश्रम पर सब संत पहुंछे और भोजन प्रसाद पाने का समय आया तो उन प्रेमी संत ने अपने ठाकुर जी को खोजा और देखा की हाय हमारे ठाकुर जी तो हैं ही नहीं ।

संत बहुत व्याकुल हो गए , बहुत रोने लगे परंतु ठाकुर जी मिले नहीं । उन्होंने ठाकुर जी के वियोग अन्न जल लेना स्वीकार नहीं किया ।संत बहुत व्याकुल होकर विरह में अपने ठाकुर जी को पुकारकर रोने लगे ।

तब उनके एक पहचान के संत ने कहा - महाराज मै आपको बहुत सुंदर चिन्हों से अंकित नये ठाकुर जी दे देता हूँ परंतु उन संत ने कहा की हमें अपने वही ठाकुर चाहिए जिनको हम अब तक लाड लड़ते आये है ।

तभी एक दूसरे संत ने पूछा - आपने उन्हें कहा रखा था ? मुझे तो लगता है गाडी में ही छुट गए होंगे। 

एक संत बोले - अब कई घंटे बीत गए है । गाडी से किसीने निकाल लिए होंगे और फिर गाडी भी बहुत आगे निकल चुकी होगी ।

इस पर वह संत बोले- मै स्टेशन मास्टर से बात करना चाहता हूँ वहाँ जाकर ।सब संत उन महात्मा को लेकर स्टेशन पहुंचे । स्टेशन मास्टर से मिले और ठाकुर जी के गुम होने की शिकायत करने लगे । उन्होंने पूछा की कौनसी गाडी में आप बैठ कर आये थे ।

संतो ने गाडी का नाम स्टेशन मास्टर को बताया तो वह कहने लगा - महाराज ! कई घंटे हो गए ,यही वाली गाडी ही तो यहां खड़ी हो गई है , और किसी प्रकार भी आगे नहीं बढ़ रही है । न कोई खराबी है न अन्य कोई दिक्कत कई सारे इंजीनियर सब कुछ चेक कर चुके है परंतु कोई खराबी दिखती है नही । महात्मा जी बोले। - अभी आगे बढ़ेगी ,मेरे बिना मेरे प्यारे कही अन्यत्र कैसे चले जायेंगे ?

वे महात्मा अंदर ट्रेन के डिब्बे के अंदर गए और ठाकुर जी वही रखे हुए थे जहां महात्मा ने उन्हें पधराया था । अपने ठाकुर जी को महात्मा ने गले लगाया और जैसे ही महात्मा जी उतरे गाडी आगे बढ़ने लग गयी । ट्रेन का चालाक , स्टेशन मास्टर तथा सभी इंजीनियर सभी आश्चर्य में पड गए और बाद में उन्होंने जब यह पूरी लीला सुनी तो वे गद्गद् हो गए । उसके बाद वे सभी जो वहां उपस्थित उन सभी ने अपना जीवन संत और भगवन्त की सेवा में लगा दिया

भक्तो भगवान जी भी खुद कहते है ना

भक्त जहाँ मम पग धरे,, तहाँ धरूँ में हाथ,
सदा संग लाग्यो फिरूँ,, कबहू न छोडू साथ,

मत तोला कर इबादत को अपने हिसाब से,
ठाकुर जी की रहमतें देखकर अक्सर तराज़ू टूट जाते हैं !!

अगर गुरू तेगबहादुर जी अपना बलिदान नहीं देते तो?


तारीख :- नवंबर 11, 1675.दोपहर ..

स्थान :-दिल्ली का चांदनी चौंक:लाल किले के सामने ..

मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हो चुके थे, लेकिन वो बिल्कुल शांत 
बैठे थे , प्रभु परमात्मा में लीन,लोगो का जमघट, सब की सांसे अटकी हुई, शर्त के
मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुरजी इस्लाम कबूल कर लेते है तो फिर सब हिन्दुओं 
को मुस्लिम बनना होगा बिना किसी जोर जबरदस्ती के...
गुरु जी का होंसला तोड़ने के लिए उन्हें बहुत कष्ट दिए गए। तीन महीने से वो कष्टकारी क़ैद में थे।
उनके सामने ही उनके सेवादारों भाई दयाला जी, भाई मति दास और उनके ही अनुज भाई सती दासको बहुत कष्ट देकर शहीद किया जा चुका था। लेकिन फिर भी गुरु जी इस्लाम अपनाने के लिए नही माने...
औरंगजेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था,
....समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडोल बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था। एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगाथा, हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था।
खुद चलके आया था औरगजेब लालकिले से नि कल कर सुनहरी मस्जिद केकाजी के पास,,,उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देनेका फतवा निकलता था.. वो मस्जिद आज भी है..गुरुद्वारा शीस गंज, चांदनी चौक दिल्ली के पास । आखिरकार जालिम जब उनको झुकाने में कामयाब नही हुए तो जल्लाद की तलवार चल चुकी थी, और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो चुका था। ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था जिसने पुरे हिंदुस्तान का भविष्य बदल के  रख दिय, हर दिल में रोष था, कुछ समय बाद गोबिंद सिंह जी ने जालिम को उसी के  अंदाज़ में जवाब देने के लिए खालसा पंथ का सृजन की। समाज की बुराइओं से लड़ाई, जोकि गुरु नानक देवजी ने शुरू की थी अब गुरु गोबिंद सिंह जी ने उस लड़ाई को आखिरी रूप दे दिया था, दबा कुचला हुआ निर्बल समाज अब मानसिक रूप से तो परिपक्व हो  चूका था लेकिन तलवार उठाना अभी बाकी था।                                                         खालसा की स्थापना तो गुरू नानक देव जी ने पहले चरण के रूप में 15वी शताब्दी में ही कर दी थी लेकिन आखिरी पड़ाव गुरू गोविन्द सिंह जी ने पूरा किया। जब उन्होंने निर्बल लोगों में आत्मविश्वास जगाया, उनको खालसा बनाया और इज्जत से जीना सिखाया। निर्बल और असहाय की मदद् का जो कार्य उन्होंने जो शुरू किया था वो निर्विघ्नं आज भी जारी है। गुरू तेगबहादुर जी जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की, उनका एहसास भारतवर्ष कभी नहीं भूल सकता।  सुधी जन जरा एकांत में बैठकर सोचें अगर गुरू तेगबहादुर जी अपना बलिदान नहीं देते तो......?                                            

Saturday, November 9, 2019

अयोध्या केस जितने पे एक सुंदर प्रसंग।


हुई  प्रतीक्षा  पूर्ण  आज , शबरी माता के बेरों की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, केवट मल्लाह की टेरो की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज , सरयू की पावन लहरों की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, हर ग्राम और हर शहरों की

हुई प्रतीक्षा  पूर्ण  आज  है ,  फटे हुए तिरपाल की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, श्री राम चन्द्र कृपाल की 

हुई प्रतीक्षा  पूर्ण आज ,  शत्रुधन जैसे भाई की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, कैकेयी सुमित्रा माई की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण  आज , सिंहासन रखे खडाऊँ की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज , स्वर्गवासी गिद्ध जटायू की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, ऋषि वशिष्ठ पाराशर की
हुई प्रतीक्षा  पूर्ण  आज  है , विश्वामित्र  गुरुवर  की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, जनकनंदिनी सीता की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, रामचन्द्र परिणीता की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण  आज  है, वीर बली बजरंगी की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, वानर दल साथी संगी की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, सेवक सुमंत्र सारथी की
हुई  प्रतीक्षा  पूर्ण आज , जामवंत महारथी की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, सदियों के वनवास की
हुई  प्रतीक्षा पूर्ण आज है, भक्तों के विश्वास की

हुई प्रतीक्षा  पूर्ण  आज  है , रामचरित रामायण की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज , जन मानस धर्म परायण की 

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, लक्ष्मण की वधु उर्मिला की
हुई प्रतीक्षा  पूर्ण  आज , पावन मात अहिल्या की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, भ्राता भरत मिलाप की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, माँ कैकेयी के संताप की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, बेटे लव कुश के बाणों की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, दशरथ के त्यागे प्राणों की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण राम, कौशल्या के पयपान की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, सारे ही हिन्दुस्तान की

जग जननी जय जय आरती।


      

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि भर्ता हरि हर संहारकारी॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
राम, कृष्ण, तू सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाँछा कल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
दश विद्या, नव दुर्गा, नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू परधाम निवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही शमशान विहारिणि, ताण्डव लासिनि तू॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी धारा॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
मूलाधार निवासिनि, इहपर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वर दे॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले वेदत्रयी॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
हम अति दीन दुखी माँ, विपट जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
निज स्वभाववश जननी, दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥

Friday, November 8, 2019

देव उठानी प्रबोधिनी एकादशी


  
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी और देव उठानी एकादशी के नाम से जाना जाता है। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देव शयनी के दिन भगवान विष्णु सो जाते हैं। 

इसके बाद देव प्रबोधिनी यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को चार महीने बाद भगवान जगते हैं। 

भगवान के जगने से सृष्टि में तमाम सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है।

शास्त्र व पंचांग के अनुसार इस वर्ष 8 नवंबर 2019 दिन शुक्रवार को देव उठनी एकादशी का व्रत रखना तथा तुलसी जी का भगवान शालिग्राम जी के साथ विवाह शास्त्र सम्मत् होगा। 

कारण यह है कि 8 नवंबर को एकादशी तिथि में सूर्योदय होगा और 12 बजकर 55 मिनट तक एकादशी तिथि रहेगी इसके बाद द्वादशी आरंभ हो जाएगी।

इस एकादशी व्रत का पारण शनिवार 9 नवंबर को सूर्योदय के बाद से ही किया जा सकता है। 

द्वादशी तिथि 2 बजकर 40 मिनट तक रहेगी। 

एकादशी व्रत करने वाले को द्वादशी के दिन भी व्रत के कुछ नियमों का पालन करना होता है जिनमें एक नियम यह है व्रती को द्वादशी के रोज दिन में नहीं सोना चाहिए। 

अगर नींद आ ही जाए तो सिरहाने में एक तुलसी का पत्ता जरूर रख लेना चाहिए।

इस वर्ष एकादशी पर बड़ा ही शुभ संयोग बना है। 

एकादशी शुक्रवार के दिन है। 

इस दिन की स्वामिनी विष्णु प्रिया देवी लक्ष्मी हैं। 

इस दिन व्रत करने से एक साथ लक्ष्मी और नारायण के पूजन का फल प्राप्त होगा। 

इस संयोग के साथ देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन यानी 8 नवंबर को जब तक एकादशी तिथि रहेगी तब तक रवि नामक शुभ योग भी उपस्थित होगा। इस शुभ संयोग में कोई भी शुभ काम का आरंभ किया जा सकता है।

💐जय श्री सीताराम💐
💐सत्य सनातन धर्म की जय💐
💐श्रीमन नारायण भगवान की जय💐

Sunday, November 3, 2019

समाज के व्यवस्था को हजारों वर्ष पूर्व वर्ण नियमो से चलाया जाता था।

वर्ण व्यवस्था हजारों वर्ष पूर्व बनाई गई सनातनी समाज की धुरी है, तथा धर्म की रक्षा के लिए सभी वर्णों ने कहा हैं।

लेकिन मुगलों, अंग्रेजों, राजनीतिज्ञों ने वर्णों को जातियों में विभक्त कर लोगों को एक दुसरे से लड़वाने का काम किया जिससे उनको राज करने में सफलता हासिल हो। इसके लिए जनता के उपर वो अत्याचार करते रहें ताकि उनके खिलाफ बगावत का स्वर बुलंद ना हो!

ब्राह्मण ने जिस सनातनी समाज को बचाने के लिए ज्ञान रक्षा का प्रण लिया तथा घर-घर भिक्षा माँगकर भोजन किया हो, कौन जानता है  जब भिक्षा देने वाले ने उसे ठोकर मारकर भगा दिया हो। इससे बढ़कर अपमानजनक क्यां होगा।

क्षत्रियों ने सनातनी राज्य की रक्षा के लिए प्रतिज्ञा की और जीवन भर सीमाओं की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा हो, कौन जानें युद्ध के मैदानों में पड़े हुए उनके शरीरों को चील कौवे नोच नोच कर खाएं हो, इससे बड़ी दुर्गति और क्यां हो सकती है।

जिन वैश्यों ने सनातनी राज्य की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए व्यापार हेतु पूरे विश्व में दर-दर भटका हो, कौन मानेगा कि आततायियों ने उनकी गर्दने काट-काट कर उनसे उनका धन छिन लिया, कौन जानें उनकी नाँव तूफान में फँसकर समुद्र में समाधि ले ली, और उनकी चिता को अग्नि भी नसीब नहीं हुई हो। इससे बड़ा दुःख और क्यां हो सकता है।

पूरे राष्ट्र की उदर पूर्ति के लिए जिसने अपने खून पसीने से धरती माँ को सींचा हो उसे शुद्र कहलाने वाला, कौन जानता है कब उसकी फसल प्रकृति आपदा ने बरबाद कर दिया हो, और उसको दो वक्त की रोटी के लिए घर-घर जाकर काम करना पड़ा हो. इससे बड़ा कष्ट और क्यां होगा।

लेकिन सभी वर्णों ने कई प्रकार की परेशानियों का सामना करते हुए सनातनी समाज की रक्षा की, क्योंकि यही वो समाज था जहाँ घरों में ताले नहीं लगाने पड़ते थे, क्योंकि यही वो समाज था जहाँ महिलाओं के साथ बलात्कार नहीं होते थे, यही वो समाज था जहाँ किसी कि अकाल मृत्यु नहीं होती थी, यही वो समाज था जहाँ वेश्याओं को मनोरंजन के नाम पर कोई नग्न नहीं नचाया जाता था, यही वो समाज था जहाँ ज्ञान के नाम पर कोई मोल नहीं लिया जाता था।                                                     बातें तो बहुत सारी है लेकिन यही समाप्त करते हैं। अब यहाँ छद्म और अल्पबुद्धि वाले सनातनियों को समाज की परिभाषा सिखा रहें हैं; तथा भारत में सनातनी समाज को भेदभाव के लिए दोषी ठहरा रहें हैं।                                                                      जात पात भारत पे एक क्लांख है इसे जड़ से खत्म करना होगा।

रविश कुमार की भक्ति।

सब राजनीति है भाई, जिसमे मीडिया एक विशेष हिस्सा है।
हर इंसान अपने पेट के लिये सब करता है, बाकी शरीर और आत्मा तो भगवान के अधीन ही है।
सब कलयुग है।

Thursday, October 31, 2019

शराब की घातकता


"एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...
"हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये.., ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है..ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !

जानिये एक अनकही ऐतिहासिक घटना..
."एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...."कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??

जानिये और फिर सुधार कीजिये !!

मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे । उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की "है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में है ?"

सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !

तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहता" कोई है हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??

सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की ओर गया ! वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ थे ! रिड़मल जी राठौड़ ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है..., सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में ! मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया! 

कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से तो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से...। बादशाह का मुँह देखने लायक था ,ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।

"बातें मत करो राव...उदाहरण दो वीरता का।
"रिड़मल राठौड़ ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??"

बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही, रिड़मल राठौड़ बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की... 

"बादशाह हंसा और दरबार में बैठे कवियों की ओर देखकर बोला "इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है । मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।

"राव रिड़मल राठौड़ निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए। रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।

रात  रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी। ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,

घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले" जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ। हुकम आप अंदर पधारो...मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता। राव रिड़मल राठौड़ ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी !

अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?

रोहणी जागीदार बोले ," बस इतनी सी बात..मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे..

"राव रिड़मल राठौड़ को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को। सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!

उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए !!

मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में। "राव रिड़मल राठौड़ ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है कैसे मानेगा ! अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।

ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा" आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को ,दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ? आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !

ठकुरानी जी ने कहा"बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो 

"दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे। बड़े लड़के को मैदान में लाया गया औरमुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ?

राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ? बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो...२० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा" ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर...तलवार से ये नही मरेगा...कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करीऔर मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा। बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा था ये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली। उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।

बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था। हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था। बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।

राजा के दरबार का एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो। राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो। दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए ।

मौलवी ने बादशाह को कहा " हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है। यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ। यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे। उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट करते गए। और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूर रहिये।

हिन्दू भाइयों ये सच्ची घटना है और हमे हिन्दू समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा। तब ही हम पुनः खोया हुआ वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।तथ्य एवं श्रुति पर आधारित। नमन ऐसी वीर परंपरा को नमन..
आग्रह शराब से दूर रहे सभी..! 
हुक्म आप सभी से निवेदन है  पोस्ट ज्यादा से ज्यादा शेयर जरूर करें।
    जय श्री राम,🚩
 जय मां भवानी🚩
 जय राजपूताना🚩

Wednesday, October 30, 2019

भारत! मूर्खो का देश।

बुद्धि हिन कहे कि, सीधा! हिंदुस्तान वालो को!, हिन्द के लोगो ने अपने इसी हरकत से 800 साल से जादा की गुलामी सही!
कभी ये शिव और विष्णु के नाम पे लड़ते थे। तो कभी शिव और शक्ति, फिर मूर्ति और निरंकार पे, कभी भाषाओं पे लड़े थे!... जिसका फायदा मुगलों ने और फिर अंग्रेजो ने लिया!
मंद तो है ही हिन्दुस्तानी लोग सत ही सत धन वैभव से संपन है! चलो थोड़ा दिमाग लगते है! मुगलों(भूखे सूखे लोग) ने पहले दुतो को भेज माहौल पढ़ा फिर जाना की इनकी एकता तो अहंकार के कारण बहुत कमजोर है! फिर क्या कमजोरी पे आक्रमण किया अपने भूखे नंघे भीड़(50 से 60 हजार भूखे लोग) जिसका परिणाम वहीं हुआ जो होना था! उनकी भूख भारत के अहंकारी संप्पन लोगो से जीत गई। और फिर क्या वो समझ गए थे भारतीयों का चरित्र! फिर सदा के लिऐ राज करना था तो बस कुछ लालचियों को पकड़ा और गुरुकुल की पड़ाही पे हमला कर दिया! बीज बो दिया नफरत का गरीबों को छोटी जात घोषित कर दिया और अमीरों को बड़ी, फिर क्या होना था अहंकार में बने बड़ी जातियों ने अपने ही भाई बंधुवो को नीचा दिखाना शुरू कर दिया! लालची पंडित केहेलाए और शोषित दलित! यहां तक इन लालचियों ने वेद जैसे पवित्र प्राकृतिक ग्रंथ को भी नहीं छोड़ा, उसमे के समाज वेवस्था वर्ण को जात(cast) बना दिया अंग्रेजो ने इसका बहुत समर्थन किया, वेदों को तोड मड़ोड के पुर्तगाली, फ्रेंच, Dutch,   अंग्रेजी व अन्य यूरोपीय भाषा में प्रकाशित भी किया! वो जानते थे कैसे समाज को तोड़ा जाता है, जिसे हम "Divide and Rule policy" कहेते है।.......और आज भी वो चालू है बस उल्टा हो गया है।
Ha Ha Ha
 पूरी किताब बन रही है "भारत एक बेवकूफ देश" पर इंतेज़ार करों।
समजने वालो के लिऐ इतना article बहुत है, और जो समजना ही नहीं चाहता या तो वो मानसिक रोगी है या तो फिर वो कुछ फायदे में है इस जात पात के topic  से...

बाकी कलयुग की मर्जी जहां नचाए मंदो को!
*मेरी हिन्दी मत देखना बेवकूफों ये भाव रश है! कोई कविता या शायरी नहीं।

"ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी | सकल ताड़ना के अधिकारी ||" अर्थ

"ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी |
  सकल ताड़ना के अधिकारी ||"

मानस की इस चौपाई की सदियों से मीमांसा होती रही है और अद्यतन जारी हैं। तुलसीदास जी स्वयं भी नहीं जानते होंगे कि मेरी लिखी किसी चौपाई पर इतना विवाद एवं समीक्षा होगी।

सारा विवाद "ताड़ना" शब्द का है। जिसका सही अर्थ तो शब्दकोश में उपलब्ध हैं। किन्तु हम इसे समझना ही नहीं चाहते अथवा दुसरे शब्दों में कहें तो "ताड़ना" शब्द को लेकर भारतीय जनमानस में इस प्रकार से दुष्प्रचार कर अंग्रेजों की नीति के तहत विधर्मियों द्वारा फुट डालो और राज करो की रणनीति की तरह इसका भरपूर इस्तेमाल किया गया जो आज भी बदस्तूर जारी है। जो भारतीय समाज एवं जनमानस को विभक्त किये हुए हैं।

मीमांसा के समीक्षकों को चौपाई के शेष शब्दों में कोई रूचि नहीं है, केवल "नारी" शब्द पर ही समस्त बुद्धिजीवियों की ज्ञानाग्नि प्रज्वलित होती है।  

नारी स्वभाव से लज्जावान एवं संकोची स्वभाव की होती है एवं अपनी भावाभिव्यक्ति हेतु शब्दों की अपेक्षा नयनों की भाषा की उपयोग करती है।
नारी के मनोभावों को ज्ञात करने हेतु "ताड़ना" होता है ना कि मारना-पिटना।

चूंकि काव्य में छंद, दोहे, चौपाई में अनुशासित शब्द विन्यास होता है, अतः काव्यमय भावाभिव्यक्ति में बहुअर्थी शब्दों का प्रयोग बाध्यकारी बन जाता है।
यही बात इस चौपाई पर लागू होती है।

जय जय सियाराम                                   🙏🙏🙏

Tuesday, October 29, 2019

#justiceforvijay

#justiceforvijay

आप लोग का ध्यान मुंबई पुलिस की एक बहोत शर्मनाक करतुत की तरफ खीच रहा हूं

दीवाली की रात 27th oct  को रात 11 बजे Vijay Singh ( working as MR in Pharma Company ) जो सायन कोलीवाड़ा का रहने वाला है ,अपने 2 cousins के साथ खाने के बाद टहलने के लिए और अपनी होने वाली बीवी से बात करने के लिए घर से कुछ दूर (वडाला ट्रक टर्मिनल ) आया.
जब उसने अपनी बाइक खड़ी की तो सामने एक couple जो वहा का लोकल था बैठा हुआ था और उनके ऊपर इसकी बाइक की लाइट चली गयी । लाइट चहरे पे जाने के बाद couple में से लड़के ने विजय सिंह को गाली दी और थोड़ी बहस चालू हो गयी । उसने अपने 2 दोस्तों को बुला लिया और बात आगे बढ़ गयी यहाँ तक कि हाथापाई पे आ गयी।

जब वहा पुलिस पहोंची तो लड़की ने बस ये बोल दिया कि ये तीनो लड़के( विजय और उसके cousin ) मुझे छेड़ रहे थे और पुलिस ने बिना किसी डिटेल्ड इन्क्वायरी के विजय ओर उसके दोस्तों को मारा । यहाँ तक कि उस वक्त भी लड़की और उसके साथ के लड़के ने इन तीनो पे हाथ उठाया ।

पुलिस मारते मारते विजय सिंह और उसके साथ वालो को पुलिस चौकी ले गयी और ले जा के तीनों को बिना किसी इन्क्वायरी के अलग अलग लॉकअप में डाल दिया । विजय सिंह को हाथ पैर से सीने पे भी मारा जब कि oppsite वालो को अच्छा खासा VIP treatment दिया गया । उनमे से एक लड़के ने पुलिस चौकी में ये तक कहा कि तुम लोग को इधर ही खत्म कर दूंगा लेकिन इसपे भी पुलिस की कोई प्रतिक्रिया नही दी।

2.30 बजे विजय सिंह ने पुलिस स्टाफ से कहा कि मुजे सीने में दर्द हो रहा है और पानी दे दो पीने के लिए लेकिन स्टाफ ने पानी नही दिया बल्कि जब विजय की माँ ने पानी देने की कोशिस की तो उसे भी डाटा। विजय का एक छोटा cousin (12 age) जब पानी देने गया तो उससे भी बहोत बुरा व्यवहार किया । घरवालो से भी बहोत गाली गलौच की  ।
विजय ने पुलिस स्टाफ से कहा कि अपने बेटे जैसा समझ के पानी पिला दो लेकिन इंसानियत मर चुकी थी इन लोगो में शायद।
विजय ने ये भी कहा कि मुजे घुटन सी हो रही है , पंखा चला सकते है क्या लेकिन फिर वही गली गलौज वाली भाषा 

जब वो बेहोश हो गया तो उसे lockup से बाहर निकाला गया और लिटाया गया ।
जब उसे घरवालो को सौपा गया तो विजय दम तोड़ चुका था

शायद आपको ये जान के और धक्का लगे कांस्टेबल ने ये कहा कि गाड़ी नही है हमारे पास , ola मार के जाओ 
विजय के पापा ने एक ola वाले को रिक्वेस्ट कर के जब गाड़ी रुकवायी तब उस ड्राइवर ने उसकी साँसे चेक कर के कहा कि यर मार चुका है ।आप शायद ही उसके बाप की  हालत समझ पाए

सवाल ये है की क्या सिर्फ उस लड़की का ही बयान मायने रखता है
बिना जुर्म साबित हुए पुलिस ने विजय ओर उसके भाइयो को क्यों मारा
पानी पिलाना जुर्म हो गया है क्या ।
एक बाप को उसके बेटे की लाश दे के ये कहना जरूरी है क्या की ola मार के जाओ ।

लोगो को टैग कर औरइसे share करे
 विजय को इंसाफ दिलाने की कोशिस करे।

इससे पहले भी wadala truck terminal police station का नाम कई कामो में बदनाम हो चुका है

Wednesday, October 23, 2019

जाने धुले सिक्के व नये नोट ही क्यों दान धर्म के कार्य में चड़ाया जाता है।

अक्सर पूजा या धर्म कार्यों में विद्वान पंडित लोग दक्षिण में, धुले सिक्के व नये नोट ही क्यों चड़ावे के लिऐ केहेते है!
जानते है क्यों?🤔

जवाब है!
नोट गिनते समय ज़्यादातर लोग थूक🤤 का इस्तेमाल करते हैं, ये किसे पता कि किन-किन लोगों का *थूक नोटों* पर लगा हुआ है??
नोट *शराब से लेकर माँस की दुकान* 🥵👺 तक से होकर गुज़रते हैं, इसलिए नोटों को किसी भी धार्मिक कार्यक्रम मे, धर्म के पूजास्थल पर न चढ़ाएँ, ना ही किसी भी पंडे पुजारियों को दे, अन्यथा पाप लगेगा। और अगर देना ही है तो!
पूजास्थलों पर सिर्फ धुले सिक्के, अनाज, फल या कुछ ना होने पर सिर्फ इज्जत सम्मान का पुष्प🌺 भी चढ़ा सकते है।
 

       
*मंदिर व धर्मस्थल के सुद्धी के लिऐ कृपया पुराने नोट या सिक्के ना चढ़ाये।*

मंदिर भारत का हृदय है, उसके मान, मर्यादा व सुद्धता का जिम्मा हमें स्वाम लेना चाहिए।  ज्ञान का लाभ उठाइये और पाप कर्म से दूर रहे ||

बाकी सब राम की माया!🙏🏻

Sunday, October 20, 2019

Vinayak Damodar Savarkar's Batch of Andaman Jail

50 वर्षो कैद का जेल बिल्ला और सेलुलर जेल की यातनाएं, इस देश की आज़ादी के लिए जिसने भोगी उसको गुमनामी में धकेल कर कांग्रेस ने अपने लोगो को भारत रत्न बनाया। 
कटु सत्य था, है, और रहेगा।
आजादी का श्रेय लेने वालों में से किसी के पास है ऐसा कोई बैज, बिल्ला या यादगार?

Saturday, October 19, 2019

Money..Honesty.. Happiness



1 Graduate person working for a company with heart & honestly....
with out excepting a huge increment or any extra bonus ....
He become Permanent one day After 6 years working for that same company
his salary increased little bit .. He is Happy with that ...
increment ... increment .... increment 
every year !
Do u believe that ! now his Payment should be what ?....
Just a 10 note of 1000 rs (10,000 rs)
every Mumbaikar(family runner) know that what is a value of 10 thousand rupees now a days ..
"2 cheapest Smart Phone" forget this ..
Insted of this all, He have no complaint for that company in heart , he is working with happyy mood..
But A shoking Day of Life
As regular .. He came to office ..
One call came to him
" Hello, Please don't come to Office you are fired . . ."

Can you Feel that Pain..... 12 years of precious Life times ... just ended by a Phone Call

Wait .... Presently his working Experience is of 12 years in same company

He is not alone in This Situation ... Many More are there
What to do For them? How to help them?
This is my way to Help By Posting Meassage and sharing it...
Please Dont Kill Honesty it is costly Than Money..

Sorry for my Bad English, Just Feel The Pain!!
 
............
After 4 years  I am Writing again with My Poor English.

 That Man is Working There Only... With increment of 2 thousand only He is Still A Happy Guy!

He Was Taken After A Short Tension Period with Involving of Political Party in ( Thanks to MNS ).

भामाशाह


जन्म 29 अप्रैल 1547 या
*28 जून 1547 चित्तौडग़ढ़

मृत्यु 16 जनवरी 1600

भामाशाह के पिता का नाम भारमल था। कावडिय़ा ओसवाल जैन समुदाय से सम्बद्ध थे। माता कर्पूर देवी ने बाल्यकाल से ही भामाशाह का त्याग, तपस्या व बलिदान सांचे में ढालकर राष्ट्रधर्म हेतु समर्पित कर दिया।

बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रतापके मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगाने में आप सदैव अग्रणी रहे। आपको मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था और दानवीरता के लिए आपका नाम इतिहास में अमर है।

जीवनी

दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल 1547 को हुआ। कुछ विद्वानों के हिसाब से भामाशाह का जन्म 28 जून 1547 में मेवाड़ की राजधानी चित्तौडग़ढ़ में हुआ था !

मुगलों के साथ निरन्तर युद्ध करते रहने से महाराणा प्रताप का सारा धन समाप्त हो गया था। सेना छिन्न-भिन्न हो गई थी। महाराणा प्रताप सोच में पड़ गए। सोचने लगे धनाभाव में मेवाड़ की रक्षा कैसे कर सकेंगे ? महाराणा प्रताप के सामने विकट समस्या थी। कठिनाइयों से घिरे महाराणा प्रताप को मन:स्थिति देख भामाशाह के दिल में स्वामिभक्ति का भाव जागा। वे अपना सारा धन छकड़ों में भरकर महाराणा प्रताप के पास पहुंचे।

महाराणा प्रताप नामक पुस्तसक में लेखक लिखते हैं भामाशाह जितना धन दे रहे थे उस धन से बीस हजार सैनिक को 14 वर्ष तक का वेतन दिया जा सकता था।

भामाशाह की त्याग भावना एवं धन को देखकर उपस्थित सामंत दंग रह गए।भामाशाह के त्याग व स्वाभिमान को देखकर महाराणा प्रताप स्तब्ध रह गए।

महाराणा प्रताप ने कहा भामाशाह तुम्हारी देशभक्ति, स्वामिभक्ति और त्याग भावना को देखकर में अभिभूत हूं परन्तु एक शासक होते हुए मेरे द्वारा वेतन के रूप में दिए गए धन को पुन: में कैसे ले सकता हूं ? मेरा स्वाभिमान मुझे स्वीकृति नहीं देता।

भामाशाह ने निवेदन किया स्वामी यह धन मैं आपको नहीं दे रहा हूं। आप पर संकट आया हुआ है। मातृभूमि की रक्षार्थ मेवाड़ की प्रजा को दे रहा हूं। लडऩे वाले सैनिकों को दे रहा हूं। आप पर संकट आया हुआ है मातृभूमि पर संकट आया हुआ है। धन के अभाव में आप जंगलों में इधर-उधर घूम रहे हैं। कष्ट भोग रहे हैं और मैं आराम से घर बैठ कर इस धन का उपयोग करूं, यह कैसे संभव है ? मातृभूमि पराधीन हो जाएगी। मुगलों का शासन हो जाएगा तब यह धन किस काम आएगा ? अत: आपसे आग्रह है कि आप इस धन से अस्त्र-शस्त्रों एवं सेना का गठन कर मुगलों से संघर्ष जारी रखें।

अन्य सामन्तों एवं सहयोगियों ने भामाशाह की बात का समर्थन किया। सभी ने एक मत से आग्रह किया कि संकट के समय प्रजा से धन लेना गलत नहीं है। सामन्तों के आग्रह पर महाराणा प्रताप ने भामाशाह के धन से सैन्य संगठन प्रारम्भ किया। मेवाड़वासियों, वीरों में एक नई चेतना, नई स्फूर्ति जागी। अकबर को चुनौती का सामना करने के लिए मातृभूमि की रक्षार्थ मैदान में उतर आए रण भैरवी बज उठी।शंख ध्वंनि पुन: गूंजने लगी। दिवेर के युद्धमें महाराणा प्रताप ने विजय पाई। अकबर की सेना भाग खड़ी हुई। मालपुरा और कुंभलमेर पर भी महाराणा प्रताप ने अधिकार कर लिया। भामाशाह कर्मवीर योद्धा का 16 जनवरी 1600 को देवलोकगमन हुआ।

भामाशाह की छतरी महासतिया आहाड़ उदयपुर में गंगोदभव कुंड केठीक पूर्व में स्मृतियों के झरोखों के रूप में स्थित हैं।

सर्वस्व दृष्टि से भामाशाह मेवाड़ उद्धारक के रूप में स्मरण योद्धा है।

आपका निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्मायक साबित हुआ। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी। आपने यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। आपने मेवाड़ के अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी ठुकरा दिया।

महाराणा प्रताप को दी गई आपकी हरसम्भव सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी।

भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहां संघर्ष की दिशा दी, वहीं मेवाड़ को भी आत्मसम्मान दिया। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी। तब भामाशाह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे , महाराणा प्रताप के लिए उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे २५००० सैनिकों का बारह वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। प्राप्त सहयोग से महाराणा प्रताप में नया उत्साह उत्पन्न हुआ और उसने पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित कर फिर से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया।

आप बेमिसाल दानवीर एवं त्यागी पुरुष थे। आत्म सम्मान और त्याग की यही भावना आपको स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले देश-भक्त के रुप में शिखर पर स्थापित कर देती है। धन अर्पित करने वाले किसी भी दान दाता को दानवीर भामाशाह कहकर उसका स्मरण-वंदन किया जाता है। आपकी दानशीलता के चर्चे उस दौर में आसपास बड़े उत्साह, प्रेरणा के संग सुने-सुनाए जाते थे। आपके लिए पंक्तियां कही गई है !

वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामा सा लाल पला !

उस दानवीर की यश गाथा को, मेट सका क्या काल भला !!

लोकहित और आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व दान कर देने वाली उदारता के गौरव-पुरुष की इस प्रेरणा को चिरस्थायी रखने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में दानशीलता, सौहार्द्र एवं अनुकरणीय सहायता के क्षेत्र में दानवीर भामाशाह सम्मान स्थापित किया है।

भामाशाह का जीवनकाल ५२ वर्ष रहा

उदयपुर, राजस्थान में राजाओं की समाधि स्थल के मध्य भामाशाह की समाधि बनी है। जैनमहाविभूति भामाशाह के सम्मानमें ३१ दिसम्बर २००० को ३ रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।

शत शत नमन ऐसे महान दानवीर को।

अभियंता दिवस विशेष

#अभियंता_दिवस_विशेष..

ब्रिटेन में एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था।

डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया। तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था। कोई तो इतने गुस्से में था, की ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ? इसे डिब्बे से उतारो।

किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा। वह शांत गम्भीर बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो।

ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था। किन्तु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया "ट्रेन रोको"। कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी। ट्रेन रुक गईं।

अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा। सब उसको गालियां दे रहे थे। गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे। किंतु वह शख्स गम्भीर मुद्रा में शांत खड़ा था। मानो उसपर किसी की बात का कोई असर न पड़ रहा हो। उसकी चुप्पी अंग्रेजों का गुस्सा और बढा रही थी।

ट्रेन का गार्ड दौड़ा-दौड़ा आया। कड़क आवाज में पूछा:- क"किसने ट्रेन रोकी"..
कोई अंग्रेज बोलता उसके पहले ही, वह शख्स बोल उठा:- "मैंने रोकी श्रीमान"..
पागल हो क्या ? पहली बार ट्रेन में बैठे हो ? तुम्हें पता है, बिना कारण ट्रेन रोकना अपराध हैं:- "गार्ड गुस्से में बोला"
हाँ श्रीमान ज्ञात है किंतु मैं ट्रेन न रोकता तो सैकड़ो लोगो की जान चली जाती।

उस शख्स की बात सुनकर सब जोर-जोर से हंसने लगे। किँतु उसने बिना विचलित हुये, पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा:- करीब एक फरलाँग(220 गज)  की दूरी पर पटरी टूटी हुई हैं। आप चाहे तो चलकर देख सकते है।

गार्ड के साथ वह शख्स और कुछ अंग्रेज सवारी भी साथ चल दी। रास्ते भर भी अंग्रेज उस पर फब्तियां कसने मे कोई कोर-कसर नही रख रहे थे।
किँतु सबकी आँखें उस वक्त फ़टी की फटी रह गई जब वाक़ई , बताई गई दूरी के आस-पास पटरी टूटी हुई थी। नट-बोल्ट खुले हुए थे। अब गार्ड सहित वे सभी चेहरे जो उस भारतीय को गंवार, जाहिल, पागल कह रहे थे। वे सभी उसकी और कौतूहलवश देखने लगे। मानो पूछ रहे हो आपको ये सब इतनी दूरी से कैसे पता चला ??..

गार्ड ने पूछा:- तुम्हें कैसे पता चला , पटरी टूटी हुई हैं ??.
उसने कहा:- जब सभी लोग ट्रेन में अपने-अपने कार्यो मे व्यस्त थे। उस वक्त मेरा ध्यान ट्रेन की गति पर केंद्रित था। ट्रेन स्वाभाविक गति से चल रही थी। किन्तु अचानक पटरी की कम्पन से उसकी गति में परिवर्तन महसूस हुआ। ऐसा तब होता हैं, जब कुछ दूरी पर पटरी टूटी हुई हो। अतः मैंने बिना क्षण गंवाए, ट्रेन रोकने हेतु जंजीर खींच दी।

गार्ड औऱ वहाँ खड़े अंग्रेज दंग रह गये। गार्ड ने पूछा, इतना बारीक तकनीकी ज्ञान, आप कोई साधारण व्यक्ति नही लगते। अपना परिचय दीजिये।

शख्स ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया:- मैं इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ...

जी हाँ वह असाधारण शक्श कोई और नही डॉ विश्वेश्वरैया थे। जो देश के "प्रथम इंजीनियर" थे। आज उनका जन्मदिवस हैं। उनके जन्मदिवस को अभियंता दिवस(इंजीनियर डे) के रूप मे मनाया जाता हैं। देशभर के इंजीनियर इसे धूमधाम से मनाते हैं।

अभियंता दिवस की शुभकामनाएं...

Friday, October 18, 2019

आखिर कौन था सेंट फ्रांसिस जेवियर...!?

सम्पूर्ण भारतवर्ष में आपने Saint Xavier के नाम से तमाम यूनिवर्सिटी एवं स्कूल देखें होंगें और कुछ ने तो यँहा से बाकायदा शिक्षा-दीक्षा भी ली होगी।

क्या आप समझते हैं कि क्या वाकई भारतवासियों को अंग्रेजी शिक्षा देने की वजह से ये शैक्षणिक संस्थान खोले गये थे, तो आप सरासर गलत हैं।

16वी शताब्दी से भारत को ईसाइयत का गुलाम बनाने के निहित उद्देश्यों के चलते इन मिशनरी स्कूलों की स्थापना की गई थी।

आइये आज कुछ चर्चा इसी महान पुरुष संत ज़ेवियर के ऊपर करते है।

1542 में पुर्तगाल के राजा और पोप की मदद से फ्रांसिस जेवियर भारत पहुंचा था।

उस समय गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार हो चुका था और मिशन अपने मतान्तरण के कार्य में लगा था।

हिन्दुओं से उसकी घृणा का आलम यह था कि जेवियर कहता है...

“हिन्दू एक अपवित्र जाति है,  
इन काले लोगों के भगवान भी काले हैं इसलिए ये उनकी काली मूर्तियाँ बनाते हैं।  
ये अपनी मूर्तियों पर तेल मलते हैं,  
जिससे दुर्गन्ध आती है और इनकी गंदी मूर्तियाँ बदसूरत और डरावनी होती हैं"

मूर्तियों, कर्मकांडों, और जाति के कारण हिन्दुओं का मतान्तरण कठिन था।

इसलिए जेवियर ने गोवा की पुर्तगाल सरकार के वायसराय अंटोनी के साथ मिलकर हिन्दू मन्दिरों को गिराने का आदेश दे दिया।

तलवार की नोंक पर धर्मांतरण करवाये गये।

मन्दिर गिराने के बावजूद हिन्दू मूर्तियों पर आश्रित थे और घरों में मूर्तिपूजन करते थे।

इससे मूर्तिपूजा पर उसने रोक लगवा दी।  
फ्रांसिस जेविअर की नजर में ब्राह्मण उसके सबसे बड़े शत्रु थे।

क्यूंकि वे धर्मांतरण करने में सबसे बड़ी रुकावट थे।

इसलिए सारस्वत वेदपाठी ब्राह्मणों को उसने जिन्दा जलवाया।

जो विश्वास न लाया उसे बीच में से कटवा दिया।

बप्तिस्मा न पढने वाले की जीभ कटवा दी।

15 वर्ष तक के सभी हिन्दुओं के लिए ईसाई शिक्षा लेना अनिवार्य कर दिया।  
वेदपाठ पर पाबंदी लगा दी।

द्विजों के जनेऊ तोड़ दिए। पुर्तगालियों ने हिन्दू स्त्रियों के बलात्कार किए।  
अरब यूरोप की वासना शांत करने स्त्रियों को जहाजों पर लाद दिया जाता था।

कितनी ही स्त्रियों ने समुद्र के जलचरों का कूदकर वरण किया था।  
हिन्दू विवाह और कर्मकांडों पर रोक लगा दी।

जो सार्वजनिक अनुष्ठान करता पाया जाता उसकी खाल उधेडी जाती।

बार्देज़ के 300 हिन्दू मन्दिर ध्वस्त किये, दो ही दशकों में अस्लोना और कंकोलिम मन्दिर विहीन हो गये।

सारे देवी देवता नष्ट हो गये, केवल श्रीमंगेश और शांता भवानी अपने स्थान पर स्थिर थे।

हिन्दुओं को ईसाई बनाते समय उनके पूजा स्थलों को, उनकी मूर्तियों को तोड़ने में जेवियर को कितनी अत्यंत प्रसन्नता होती थी यह उसके ही कथन से देखिये...

“जब सभी का धर्म-परिवर्तन हो जाता है तब मैं उन्हें यह आदेश देता हूँ कि झूठे भगवान् के मंदिर गिरा दिये जायें और मूर्तियाँ तोड़ दी जायें।

जो कल तक उनकी पूजा करते थे, उन्हीं लोगों द्वारा मंदिर गिराए जाने तथा मूर्तियों को चकनाचूर किये जाने के दृश्य को देखकर मुझे जो प्रसन्नता होती है उसको मैं शब्दों में बयान नही कर सकता"

हजारों हिन्दुओं को डरा धमका कर, मार कर, संपत्ति जब्त कर, राज्य से निष्कासित कर, जेलों में प्रताड़ित कर ईसा मसीह के भेड़ों की संख्या बढ़ाने के बदले फ्रांसिस जेविअर को ईसाई समाज ने संत की उपाधि से नवाजा था।  
उसी जेवियर को चर्च ने चुना ताकि हिन्दूओं को अपमानित कर सकें, नीचा दिखा सकें।

सेंट जेवियर के इतने अत्याचारो के बावजूद वांछित आत्माओं की फसल न काटी जा सकी।

तब मिशनरियों ने रॉबर्ट डी नोविली के नेतृत्व में रणनीति में परिवर्तन किया।  
और नोविली ने स्वयं को ब्राह्मण घोषित कर धोखे से मतान्तरण करने को सोचा।  
इसमें त्वचा का रंग बाधा पहुंचा रहा था।

जिसके लिए लोशन भी तलाशने का प्रयास किया गया ताकि हिंदुस्तानी का वेश धारण कर फ्रॉड करके मतान्तरण किया जा सके।

परंतु इस प्रकार का काला लोशन नहीं मिला तो यह रणनीति बनाई गई कि स्थानीय मिशनरी तैयार किया जाय।

ये वही रॉबर्ट डी नोबिलि था जिसने हिन्दू ब्राम्हण का छदम चोला ओढ़कर एक अन्य पांचवा फ़र्ज़ी वेद "इज़ूर वेदम" की रचना की थी।

जिसे बाकायदा बोडेन पीठ ने 1778 में प्रकाशित भी किया था।

इसने अपने कार्य (ईसाई धर्मांतरण) हेतु हिन्दुओं के महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्रों के पास मिशन कार्यालय खोला। इसमें प्रमुख रूप से श्रीरंगम, तंजौर, मदुरा, कांची, चिदंबरम, पांडिचेरी तथा तिरूपति प्रमुख थे।

Saturday, October 12, 2019

गोपाल पाठा खटीक Gopal Patha

#Unsung_Heroes

ये वो महानायक हैं जिनका नाम इतिहास में लिखा नहीं गया। क्यों?

क्योंकि यह वह व्यक्तित्व हैं जिन्होंने बंगाल के #नोआखाली में हिन्दू मुस्लिम दंगे में मुस्लिमो द्वारा मारे जाने से क्रुद्ध होकर अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर मुस्लिम जेहादियों को इस कदर खत्म किया कि हिन्दुओं के मारने पर चुप बैठे "मादरनीय" गांधी मुस्लिमो के मारे जाने पर इतने दुखी हुए की अनशन पर बैठ गए।

इस वीर पुरुष का नाम है "गोपाल पाठा खटीक" और इनका कार्य मांस बेचना और काटना था।

16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में ‘डायरेक्ट एक्शन ‘ के रूप में जाना जाता है। इस दिन अविभाजित बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी के इशारे पर मुसलमानों ने कोलकाता की गलियों में भयानक नरसंहार आरम्भ कर दिया था। कोलकाता की गलियां शमशान सी दिखने लगी थी। चारों और केवल हिंदुओं लाशें और उन पर मंडराते गिद्ध ही दीखते थे।

जब राज्य का मुख्यमंत्री ही इस दंगें के पीछे हो तो फिर राज्य की पुलिस से सहायता की उम्मीद करना भी बेईमानी थी। यह सब कुछ जिन्ना के ईशारे पर हुआ था। वह गाँधी और नेहरू पर विभाजन का दवाब बनाना चाहता था।

हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को देखकर ‘गोपाल पाठा’ (1913 – 2005) नामक एक बंगाली युवक का खून खोल उठा। उसका परिवार कसाई का काम करता था। उसने अपने साथी एकत्र किये, हथियार और बम इकट्ठे किये और दंगाइयों को सबक सिखाने निकल पड़ा।

वह "शठे शाठयम समाचरेत" अर्थात जैसे को तैसा की नीति के पक्षधर थे। उन्होंने भारतीय जातीय वाहिनी के नाम से संगठन बनाया। गोपाल के कारण मुस्लिम दंगाइयों में दहशत फैल गई और जब हिन्दुओ का पलड़ा भारी होने लगा तो सुहरावर्दी ने सेना बुला ली... तब जाकर दंगे रुके। लेकिन गोपाल ने कोलकाता को बर्बाद होने से बचा लिया।

गोपाल के इस "कारनामे" के बाद गाँधी ने कोलकाता आकर अनशन प्रारम्भ कर दिया (क्योंकि उनके प्यारे मुसलमान ठुकने लगे थे)। उन्होंने खुद गोपाल को दो बार बुलाया, लेकिन गोपाल ने स्पष्ट मना कर दिया । तीसरी बार जब एक कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने गोपाल से प्रार्थना कि "कम से कम खुछ हथियार तो गाँधी जी के सामने डाल दो".......तब गोपल ने कहा कि "जब हिन्दुओं की हत्या हो रही थी, तब तुम्हारे गाँधी जी कहाँ थे ? मैंने इन हथियारों से अपने इलाके के हिन्दू महिलाओं की रक्षा की हैं, मैं हथियार नहीं डालूंगा ।"  मेरे विचार से यदि किसी दिन हमारे देश में हिन्दू रक्षकों का स्मृति मंदिर बनाया जायेगा (जैसे वीर सावरकर ने देश का सबसे पहला पतित पावन मंदिर बनाया था)....     तो इस मंदिर में महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी राजे, सम्भाजी और बंदा बैरागी सरीखों के साथ गोपाल पाठा का चित्र भी उसमें आवश्य लगेगा।                         #साभार- लवी भारद्वाज                             👳👳👳✍✍✍🙇🙇🙇

Friday, October 11, 2019

ऋषि मुनियो का अनुसंधान

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

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