वर्ण व्यवस्था हजारों वर्ष पूर्व बनाई गई सनातनी समाज की धुरी है, तथा धर्म की रक्षा के लिए सभी वर्णों ने कहा हैं।
लेकिन मुगलों, अंग्रेजों, राजनीतिज्ञों ने वर्णों को जातियों में विभक्त कर लोगों को एक दुसरे से लड़वाने का काम किया जिससे उनको राज करने में सफलता हासिल हो। इसके लिए जनता के उपर वो अत्याचार करते रहें ताकि उनके खिलाफ बगावत का स्वर बुलंद ना हो!
ब्राह्मण ने जिस सनातनी समाज को बचाने के लिए ज्ञान रक्षा का प्रण लिया तथा घर-घर भिक्षा माँगकर भोजन किया हो, कौन जानता है जब भिक्षा देने वाले ने उसे ठोकर मारकर भगा दिया हो। इससे बढ़कर अपमानजनक क्यां होगा।
क्षत्रियों ने सनातनी राज्य की रक्षा के लिए प्रतिज्ञा की और जीवन भर सीमाओं की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा हो, कौन जानें युद्ध के मैदानों में पड़े हुए उनके शरीरों को चील कौवे नोच नोच कर खाएं हो, इससे बड़ी दुर्गति और क्यां हो सकती है।
जिन वैश्यों ने सनातनी राज्य की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए व्यापार हेतु पूरे विश्व में दर-दर भटका हो, कौन मानेगा कि आततायियों ने उनकी गर्दने काट-काट कर उनसे उनका धन छिन लिया, कौन जानें उनकी नाँव तूफान में फँसकर समुद्र में समाधि ले ली, और उनकी चिता को अग्नि भी नसीब नहीं हुई हो। इससे बड़ा दुःख और क्यां हो सकता है।
पूरे राष्ट्र की उदर पूर्ति के लिए जिसने अपने खून पसीने से धरती माँ को सींचा हो उसे शुद्र कहलाने वाला, कौन जानता है कब उसकी फसल प्रकृति आपदा ने बरबाद कर दिया हो, और उसको दो वक्त की रोटी के लिए घर-घर जाकर काम करना पड़ा हो. इससे बड़ा कष्ट और क्यां होगा।
लेकिन सभी वर्णों ने कई प्रकार की परेशानियों का सामना करते हुए सनातनी समाज की रक्षा की, क्योंकि यही वो समाज था जहाँ घरों में ताले नहीं लगाने पड़ते थे, क्योंकि यही वो समाज था जहाँ महिलाओं के साथ बलात्कार नहीं होते थे, यही वो समाज था जहाँ किसी कि अकाल मृत्यु नहीं होती थी, यही वो समाज था जहाँ वेश्याओं को मनोरंजन के नाम पर कोई नग्न नहीं नचाया जाता था, यही वो समाज था जहाँ ज्ञान के नाम पर कोई मोल नहीं लिया जाता था। बातें तो बहुत सारी है लेकिन यही समाप्त करते हैं। अब यहाँ छद्म और अल्पबुद्धि वाले सनातनियों को समाज की परिभाषा सिखा रहें हैं; तथा भारत में सनातनी समाज को भेदभाव के लिए दोषी ठहरा रहें हैं। जात पात भारत पे एक क्लांख है इसे जड़ से खत्म करना होगा।
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