"ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी |
सकल ताड़ना के अधिकारी ||"
मानस की इस चौपाई की सदियों से मीमांसा होती रही है और अद्यतन जारी हैं। तुलसीदास जी स्वयं भी नहीं जानते होंगे कि मेरी लिखी किसी चौपाई पर इतना विवाद एवं समीक्षा होगी।
सारा विवाद "ताड़ना" शब्द का है। जिसका सही अर्थ तो शब्दकोश में उपलब्ध हैं। किन्तु हम इसे समझना ही नहीं चाहते अथवा दुसरे शब्दों में कहें तो "ताड़ना" शब्द को लेकर भारतीय जनमानस में इस प्रकार से दुष्प्रचार कर अंग्रेजों की नीति के तहत विधर्मियों द्वारा फुट डालो और राज करो की रणनीति की तरह इसका भरपूर इस्तेमाल किया गया जो आज भी बदस्तूर जारी है। जो भारतीय समाज एवं जनमानस को विभक्त किये हुए हैं।
मीमांसा के समीक्षकों को चौपाई के शेष शब्दों में कोई रूचि नहीं है, केवल "नारी" शब्द पर ही समस्त बुद्धिजीवियों की ज्ञानाग्नि प्रज्वलित होती है।
नारी स्वभाव से लज्जावान एवं संकोची स्वभाव की होती है एवं अपनी भावाभिव्यक्ति हेतु शब्दों की अपेक्षा नयनों की भाषा की उपयोग करती है।
नारी के मनोभावों को ज्ञात करने हेतु "ताड़ना" होता है ना कि मारना-पिटना।
चूंकि काव्य में छंद, दोहे, चौपाई में अनुशासित शब्द विन्यास होता है, अतः काव्यमय भावाभिव्यक्ति में बहुअर्थी शब्दों का प्रयोग बाध्यकारी बन जाता है।
यही बात इस चौपाई पर लागू होती है।
जय जय सियाराम 🙏🙏🙏
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