सम्पूर्ण भारतवर्ष में आपने Saint Xavier के नाम से तमाम यूनिवर्सिटी एवं स्कूल देखें होंगें और कुछ ने तो यँहा से बाकायदा शिक्षा-दीक्षा भी ली होगी।
क्या आप समझते हैं कि क्या वाकई भारतवासियों को अंग्रेजी शिक्षा देने की वजह से ये शैक्षणिक संस्थान खोले गये थे, तो आप सरासर गलत हैं।
16वी शताब्दी से भारत को ईसाइयत का गुलाम बनाने के निहित उद्देश्यों के चलते इन मिशनरी स्कूलों की स्थापना की गई थी।
आइये आज कुछ चर्चा इसी महान पुरुष संत ज़ेवियर के ऊपर करते है।
1542 में पुर्तगाल के राजा और पोप की मदद से फ्रांसिस जेवियर भारत पहुंचा था।
उस समय गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार हो चुका था और मिशन अपने मतान्तरण के कार्य में लगा था।
हिन्दुओं से उसकी घृणा का आलम यह था कि जेवियर कहता है...
“हिन्दू एक अपवित्र जाति है,
इन काले लोगों के भगवान भी काले हैं इसलिए ये उनकी काली मूर्तियाँ बनाते हैं।
ये अपनी मूर्तियों पर तेल मलते हैं,
जिससे दुर्गन्ध आती है और इनकी गंदी मूर्तियाँ बदसूरत और डरावनी होती हैं"
मूर्तियों, कर्मकांडों, और जाति के कारण हिन्दुओं का मतान्तरण कठिन था।
इसलिए जेवियर ने गोवा की पुर्तगाल सरकार के वायसराय अंटोनी के साथ मिलकर हिन्दू मन्दिरों को गिराने का आदेश दे दिया।
तलवार की नोंक पर धर्मांतरण करवाये गये।
मन्दिर गिराने के बावजूद हिन्दू मूर्तियों पर आश्रित थे और घरों में मूर्तिपूजन करते थे।
इससे मूर्तिपूजा पर उसने रोक लगवा दी।
फ्रांसिस जेविअर की नजर में ब्राह्मण उसके सबसे बड़े शत्रु थे।
क्यूंकि वे धर्मांतरण करने में सबसे बड़ी रुकावट थे।
इसलिए सारस्वत वेदपाठी ब्राह्मणों को उसने जिन्दा जलवाया।
जो विश्वास न लाया उसे बीच में से कटवा दिया।
बप्तिस्मा न पढने वाले की जीभ कटवा दी।
15 वर्ष तक के सभी हिन्दुओं के लिए ईसाई शिक्षा लेना अनिवार्य कर दिया।
वेदपाठ पर पाबंदी लगा दी।
द्विजों के जनेऊ तोड़ दिए। पुर्तगालियों ने हिन्दू स्त्रियों के बलात्कार किए।
अरब यूरोप की वासना शांत करने स्त्रियों को जहाजों पर लाद दिया जाता था।
कितनी ही स्त्रियों ने समुद्र के जलचरों का कूदकर वरण किया था।
हिन्दू विवाह और कर्मकांडों पर रोक लगा दी।
जो सार्वजनिक अनुष्ठान करता पाया जाता उसकी खाल उधेडी जाती।
बार्देज़ के 300 हिन्दू मन्दिर ध्वस्त किये, दो ही दशकों में अस्लोना और कंकोलिम मन्दिर विहीन हो गये।
सारे देवी देवता नष्ट हो गये, केवल श्रीमंगेश और शांता भवानी अपने स्थान पर स्थिर थे।
हिन्दुओं को ईसाई बनाते समय उनके पूजा स्थलों को, उनकी मूर्तियों को तोड़ने में जेवियर को कितनी अत्यंत प्रसन्नता होती थी यह उसके ही कथन से देखिये...
“जब सभी का धर्म-परिवर्तन हो जाता है तब मैं उन्हें यह आदेश देता हूँ कि झूठे भगवान् के मंदिर गिरा दिये जायें और मूर्तियाँ तोड़ दी जायें।
जो कल तक उनकी पूजा करते थे, उन्हीं लोगों द्वारा मंदिर गिराए जाने तथा मूर्तियों को चकनाचूर किये जाने के दृश्य को देखकर मुझे जो प्रसन्नता होती है उसको मैं शब्दों में बयान नही कर सकता"
हजारों हिन्दुओं को डरा धमका कर, मार कर, संपत्ति जब्त कर, राज्य से निष्कासित कर, जेलों में प्रताड़ित कर ईसा मसीह के भेड़ों की संख्या बढ़ाने के बदले फ्रांसिस जेविअर को ईसाई समाज ने संत की उपाधि से नवाजा था।
उसी जेवियर को चर्च ने चुना ताकि हिन्दूओं को अपमानित कर सकें, नीचा दिखा सकें।
सेंट जेवियर के इतने अत्याचारो के बावजूद वांछित आत्माओं की फसल न काटी जा सकी।
तब मिशनरियों ने रॉबर्ट डी नोविली के नेतृत्व में रणनीति में परिवर्तन किया।
और नोविली ने स्वयं को ब्राह्मण घोषित कर धोखे से मतान्तरण करने को सोचा।
इसमें त्वचा का रंग बाधा पहुंचा रहा था।
जिसके लिए लोशन भी तलाशने का प्रयास किया गया ताकि हिंदुस्तानी का वेश धारण कर फ्रॉड करके मतान्तरण किया जा सके।
परंतु इस प्रकार का काला लोशन नहीं मिला तो यह रणनीति बनाई गई कि स्थानीय मिशनरी तैयार किया जाय।
ये वही रॉबर्ट डी नोबिलि था जिसने हिन्दू ब्राम्हण का छदम चोला ओढ़कर एक अन्य पांचवा फ़र्ज़ी वेद "इज़ूर वेदम" की रचना की थी।
जिसे बाकायदा बोडेन पीठ ने 1778 में प्रकाशित भी किया था।
इसने अपने कार्य (ईसाई धर्मांतरण) हेतु हिन्दुओं के महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्रों के पास मिशन कार्यालय खोला। इसमें प्रमुख रूप से श्रीरंगम, तंजौर, मदुरा, कांची, चिदंबरम, पांडिचेरी तथा तिरूपति प्रमुख थे।
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