Saturday, October 19, 2019

भामाशाह


जन्म 29 अप्रैल 1547 या
*28 जून 1547 चित्तौडग़ढ़

मृत्यु 16 जनवरी 1600

भामाशाह के पिता का नाम भारमल था। कावडिय़ा ओसवाल जैन समुदाय से सम्बद्ध थे। माता कर्पूर देवी ने बाल्यकाल से ही भामाशाह का त्याग, तपस्या व बलिदान सांचे में ढालकर राष्ट्रधर्म हेतु समर्पित कर दिया।

बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रतापके मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगाने में आप सदैव अग्रणी रहे। आपको मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था और दानवीरता के लिए आपका नाम इतिहास में अमर है।

जीवनी

दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल 1547 को हुआ। कुछ विद्वानों के हिसाब से भामाशाह का जन्म 28 जून 1547 में मेवाड़ की राजधानी चित्तौडग़ढ़ में हुआ था !

मुगलों के साथ निरन्तर युद्ध करते रहने से महाराणा प्रताप का सारा धन समाप्त हो गया था। सेना छिन्न-भिन्न हो गई थी। महाराणा प्रताप सोच में पड़ गए। सोचने लगे धनाभाव में मेवाड़ की रक्षा कैसे कर सकेंगे ? महाराणा प्रताप के सामने विकट समस्या थी। कठिनाइयों से घिरे महाराणा प्रताप को मन:स्थिति देख भामाशाह के दिल में स्वामिभक्ति का भाव जागा। वे अपना सारा धन छकड़ों में भरकर महाराणा प्रताप के पास पहुंचे।

महाराणा प्रताप नामक पुस्तसक में लेखक लिखते हैं भामाशाह जितना धन दे रहे थे उस धन से बीस हजार सैनिक को 14 वर्ष तक का वेतन दिया जा सकता था।

भामाशाह की त्याग भावना एवं धन को देखकर उपस्थित सामंत दंग रह गए।भामाशाह के त्याग व स्वाभिमान को देखकर महाराणा प्रताप स्तब्ध रह गए।

महाराणा प्रताप ने कहा भामाशाह तुम्हारी देशभक्ति, स्वामिभक्ति और त्याग भावना को देखकर में अभिभूत हूं परन्तु एक शासक होते हुए मेरे द्वारा वेतन के रूप में दिए गए धन को पुन: में कैसे ले सकता हूं ? मेरा स्वाभिमान मुझे स्वीकृति नहीं देता।

भामाशाह ने निवेदन किया स्वामी यह धन मैं आपको नहीं दे रहा हूं। आप पर संकट आया हुआ है। मातृभूमि की रक्षार्थ मेवाड़ की प्रजा को दे रहा हूं। लडऩे वाले सैनिकों को दे रहा हूं। आप पर संकट आया हुआ है मातृभूमि पर संकट आया हुआ है। धन के अभाव में आप जंगलों में इधर-उधर घूम रहे हैं। कष्ट भोग रहे हैं और मैं आराम से घर बैठ कर इस धन का उपयोग करूं, यह कैसे संभव है ? मातृभूमि पराधीन हो जाएगी। मुगलों का शासन हो जाएगा तब यह धन किस काम आएगा ? अत: आपसे आग्रह है कि आप इस धन से अस्त्र-शस्त्रों एवं सेना का गठन कर मुगलों से संघर्ष जारी रखें।

अन्य सामन्तों एवं सहयोगियों ने भामाशाह की बात का समर्थन किया। सभी ने एक मत से आग्रह किया कि संकट के समय प्रजा से धन लेना गलत नहीं है। सामन्तों के आग्रह पर महाराणा प्रताप ने भामाशाह के धन से सैन्य संगठन प्रारम्भ किया। मेवाड़वासियों, वीरों में एक नई चेतना, नई स्फूर्ति जागी। अकबर को चुनौती का सामना करने के लिए मातृभूमि की रक्षार्थ मैदान में उतर आए रण भैरवी बज उठी।शंख ध्वंनि पुन: गूंजने लगी। दिवेर के युद्धमें महाराणा प्रताप ने विजय पाई। अकबर की सेना भाग खड़ी हुई। मालपुरा और कुंभलमेर पर भी महाराणा प्रताप ने अधिकार कर लिया। भामाशाह कर्मवीर योद्धा का 16 जनवरी 1600 को देवलोकगमन हुआ।

भामाशाह की छतरी महासतिया आहाड़ उदयपुर में गंगोदभव कुंड केठीक पूर्व में स्मृतियों के झरोखों के रूप में स्थित हैं।

सर्वस्व दृष्टि से भामाशाह मेवाड़ उद्धारक के रूप में स्मरण योद्धा है।

आपका निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्मायक साबित हुआ। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी। आपने यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। आपने मेवाड़ के अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी ठुकरा दिया।

महाराणा प्रताप को दी गई आपकी हरसम्भव सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी।

भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहां संघर्ष की दिशा दी, वहीं मेवाड़ को भी आत्मसम्मान दिया। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी। तब भामाशाह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे , महाराणा प्रताप के लिए उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे २५००० सैनिकों का बारह वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। प्राप्त सहयोग से महाराणा प्रताप में नया उत्साह उत्पन्न हुआ और उसने पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित कर फिर से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया।

आप बेमिसाल दानवीर एवं त्यागी पुरुष थे। आत्म सम्मान और त्याग की यही भावना आपको स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले देश-भक्त के रुप में शिखर पर स्थापित कर देती है। धन अर्पित करने वाले किसी भी दान दाता को दानवीर भामाशाह कहकर उसका स्मरण-वंदन किया जाता है। आपकी दानशीलता के चर्चे उस दौर में आसपास बड़े उत्साह, प्रेरणा के संग सुने-सुनाए जाते थे। आपके लिए पंक्तियां कही गई है !

वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामा सा लाल पला !

उस दानवीर की यश गाथा को, मेट सका क्या काल भला !!

लोकहित और आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व दान कर देने वाली उदारता के गौरव-पुरुष की इस प्रेरणा को चिरस्थायी रखने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में दानशीलता, सौहार्द्र एवं अनुकरणीय सहायता के क्षेत्र में दानवीर भामाशाह सम्मान स्थापित किया है।

भामाशाह का जीवनकाल ५२ वर्ष रहा

उदयपुर, राजस्थान में राजाओं की समाधि स्थल के मध्य भामाशाह की समाधि बनी है। जैनमहाविभूति भामाशाह के सम्मानमें ३१ दिसम्बर २००० को ३ रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।

शत शत नमन ऐसे महान दानवीर को।

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