Tuesday, March 14, 2017

भविष्य में खून के आंसू रोयेगा भारत

नेहरू के फैसले पर बोल पड़े थे पटेल, “भविष्य में खून के आंसू रोयेगा भारत"

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने एक बार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के लिए जो बातें कही थी आज वह अक्षरसः सत्य साबित हो रही है लेकिन यहाँ पछताने और रोने के लिए जवाहरलाल नेहरु और उनके परिवार के लोग नहीं बल्कि हिन्दुस्तान की सवा सौ करोंड आबादी और कश्मीरी पंडित बचे हुए है।

दरअसल आपको बता दें कि यह मामला जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित है। बात उस समय कि है जब देश आजाद हुआ था और भारत को दो भागों में बांटकर एक को भारत तो दूसरे को पाकिस्तान नाम दिया गया था। पाकिस्तान के बनते ही पाकिस्तान के कायदे आज़म के इशारों पर कबाइलियों ने कश्मीर पर हमला बोल दिया था जिसके बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारतीय सेना को कश्मीर में पहली जंग लड़ने की इज़ाज़त दे थी और भारतीय सेना ने एक के बाद एक कई बड़ी विजयों को हासिल करते हुए लगातार कश्मीर में पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों की टुकड़ियों को पीछे धकेलते हुए आगे बढती जा रही थी।

लेकिन तभी जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने किया था उसने न केवल सरदार वल्लभभाई पटेल को स्तब्ध कर दिया था बल्कि बाद में कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम का प्रमुख कारण बना और हिन्दुस्तान के लिए पिछले 69 सालों से भारत के लिए एक सर दर्द।

दरअसल आपको बता दें कि सरदार वल्लभभाई पटेल आज़ादी के बाद असम का दौरा करना चाहते थे असम के आस-पास के कई जिलों को पूर्वी पाकिस्तान आज के बांग्लादेश में मिला दिया गया था और असम के लोग ज्यादातर ईसाई धर्म को मानते थे और वे अपने आपको भारत की मुख्य धारा से जोड़कर देख रहे थे।

ऐसे में सरदार वल्लभभाई पटेल ने अपने सभी कार्यक्रमों को रद्द कर सबसे पहले अपना असम का दौरा तय किया और वे वहां पहुंचे। असम में सरदार लगातार 4 दिनों तक रहे और उन्होंने असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोपीनाथ बारदोली और प्रदेश के राज्यपाल अकबर हैदरी को आदेश दिया कि इन चार दिनों के भीतर जब तक वे असम में निवास करेंगे वहां की जनता से मिलने के उनके ज्यादा से ज्यादा कार्यक्रम रखे जाएँ। ऐसा ही हुआ सरदार ने उन चार दिनों में असम के ज्यादातर लोगों से मुलाकात की और उन्हें भारत की मुख्यधारा में जोड़ने का और उनके साथ घुलने मिलने का प्रयास भी किया।

सरदार 4 दिनों के लिए दिल्ली से बाहर असम गए हुए थे इस बात की जानकार केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों में सभी आवश्यक लोगों को थी खासकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को भी। इसी समय अच्छा अवसर जानकार प्रधानमंत्री नेहरु ने जम्मू-कश्मीर की समस्या को लेकर संयुक्तराष्ट्र संघ चले गए।

नेहरु को यह अच्छी तरह से पता था कि यदि सरदार को इस बात की भनक भी लग गयी थी वे कभी भी इसकी न ही इज़ाज़त देंगे और न ही इसका वे समर्थन ही करेंगे और उनके (सरदार वल्लभभाई पटेल) के समर्थन के बगैर नेहरु के लिए केंद्र सरकार में पत्ता भी हिला पाना असंभव था। अतः उन्होंने ने सरदार की अनुपस्थित का फायदा उठाते हुए जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर संयुक्तराष्ट्र संघ की अदालत पहुँच गए।

जब सरदार अपने 4 दिनों के असम के प्रवास को ख़त्म कर दिल्ली वापस आये और उन्हें यह पता चला कि कि जवाहरलाल नेहरु ने उनकी अनुपस्थित का लाभ उठाते हुए ऐसा किया है तो वे एकदम स्तब्ध रह गए मानों उनके पैरों के नीचे से किसी जमीन ही खींच ली हो।

पूरी दुनिया में लौहपुरुष के नाम से प्रसिद्द ब्यक्ति जिसने दुनिया दारी के हर तूफ़ान का डट कर सामना किया था अंग्रेजों और मुस्लिम लीग के हर नापाक इरादे को नाकाम किया था आज वह सरदार एक दम हताश हो चुके थे। हताशा से भरे हुए गमगीन और दुखी मुद्रा में सरदार ने कहा कि, ‘जिले स्तर का एक सामान्य वकील भी यह जानता है कि यदि फरियादी के रूप में आप अदालत में जाकर खड़े होते है तो समग्र मुकदमा सिद्ध करने की जिम्मेदारी आपकी ही हो जाती है, आरोपी को तो बस इसे केवल नकार देना होता है।

सरदार ने आगे कहा कि, ‘जवाहरलाल ने इतनी जबरदस्त गलती की है कि एक दिन वे बहुत पछतायेंगे और खून के आँशु रोयेगा।

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Sunday, March 12, 2017

2017 के हमारे प्रमुख त्यौहार


*जनवरी*

05 जनवरी   गुरुवार    गुरु गोविंद जयंती
09 जनवरी   सोमवार   पुत्रदा एकादशी
12 जनवरी   गुरुवार    पौष पूर्णिमा
14 जनवरी   शनिवार   मकर संक्रांति
15 जनवरी   रविवार    माघ चौथ व्रत
23 जनवरी   सोमवार   षटतिला एकादशी
27 जनवरी   शुक्रवार   मौनी अमावस्या
31 जनवरी   मंगलवार  गणेश जयंती

*फरवरी*

01 फरवरी   बुधवार     वसंत पंचमी
07 फरवरी   मंगलवार   जया एकादशी
10 फरवरी   शुक्रवार    माघी पूर्णिमा, चंद्र ग्रहण
14 फरवरी   मंगलवार   अंगारकी चतुर्थी
22 फरवरी   बुधवार     विजया एकादशी
24 फरवरी   शुक्रवार    महाशिवरात्रि
28 फरवरी   मंगलवार   फुलैरा दूज

*मार्च*

08 मार्च   बुधवार    आमलकी एकादशी
12 मार्च   रविवार    होलिका दहन
13 मार्च   सोमवार   होली
20 मार्च   सोमवार   शीतला अष्टमी, बासोड़ा
24 मार्च   शुक्रवार   पापमोचनी एकादशी
28 मार्च   मंगलवार  गुडी पाडवा, चैत्र नवरात्रि प्रारंभ
30 मार्च   गुरुवार    गणगौर

*अप्रैल*

02 अप्रैल   रविवार    चैती छठ
05 अप्रैल   बुधवार    श्री राम नवमी
07 अप्रैल   शुक्रवार   कामदा एकादशी
09 अप्रैल   रविवार    महावीर जयंती
11 अप्रैल   मंगलवार  श्री हनुमान जयंती
14 अप्रैल   शुक्रवार   बैशाख चौथ व्रत
23 अप्रैल   रविवार    बरुथिनी एकादशी
28 अप्रैल   शुक्रवार   अक्षय तृतीया

*मई*

04 मई   गुरुवार    सीता नवमी
06 मई   शनिवार   मोहिनी एकादशी
09 मई   मंगलवार  श्री नृसिंह जयंती
10 मई   बुधवार    बुद्ध-पूर्णिमा
22 मई   सोमवार   अपरा एकादशी
25 मई   गुरुवार    वट सावित्री व्रत

*जून*

03 जून   शनिवार   महेश नवमी
05 जून   सोमवार   निर्जला एकादशी
08 जून   गुरुवार     वट पूर्णिमा
13 जून   मंगलवार  अंगारकी चतुर्थी
20 जून   मंगलवार  योगिनी एकादशी
25 जून   रविवार    श्री जगन्नाथ रथयात्रा

*जुलाई*

04 जुलाई   मंगलवार  देवशयनी एकादशी
09 जुलाई   रविवार    गुरू पूर्णिमा
10 जुलाई   सोमवार   श्रावण मासारंभ
20 जुलाई   गुरुवार    कामदा एकादशी
26 जुलाई   बुधवार    हरियाली तीज

*अगस्त*

03 अगस्त   गुरुवार    पुत्रदा एकादशी
07 अगस्त   सोमवार   रक्षाबंधन, चंद्र ग्रहण
10 अगस्त   गुरुवार    कजरी तीज, सातूड़ी तीज
11 अगस्त   शुक्रवार   भादवा चौथ व्रत
15 अगस्त   मंगलवार  श्री कृष्ण जन्माष्टमी
18 अगस्त   शुक्रवार   अजा एकादशी
21 अगस्त   सोमवार   सोमवती अमावस्या
25 अगस्त   शुक्रवार   गणेश चतुर्थी
26 अगस्त   शनिवार   ऋषिपंचमी
29 अगस्त   मंगलवार  राधाष्टमी

*सितंबर*

02 सितंबर   शनिवार   परिवर्तनी एकादशी
05 सितंबर   मंगलवार  अनंत चतुर्दशी
06 सितंबर   बुधवार    भाद्र पूर्णिमा, प्रतिपदा श्राद्ध
16 सितंबर   शनिवार   इंदिरा एकादशी
19 सितंबर   मंगलवार  पितृविसर्जन
21 सितंबर   बुधवार    शारदीय नवरात्रि
28 सितंबर   गुरुवार    दुर्गा अष्टमी
29 सितंबर   शुक्रवार   महानवमी हवन
30 सितंबर   शनिवार   विजयादशमी

*अक्टूबर*

01 अक्टूबर   रविवार    पापांकुशा एकादशी
05 अक्टूबर   गुरुवार    शरद पूर्णिमा
08 अक्टूबर   रविवार    करवा चौथ
15 अक्टूबर   रविवार    रमा एकादशी
17 अक्टूबर   मंगलवार  धनत्रयोदशी
19 अक्टूबर   गुरुवार    दीपावली
20 अक्टूबर   शुक्रवार   गोवर्धन पूजा
21 अक्टूबर   शनिवार   भैया दूज
25 अक्टूबर   बुधवार    लाभ पंचमी
28 अक्टूबर   शनिवार   गोपाष्टमी
31 अक्टूबर   मंगलवार  देवोत्थान एकादशी

*नवंबर*

01 नवंबर   बुधवार    तुलसी विवाह
03 नवंबर   शुक्रवार   देव दीपावली
07 नवंबर   मंगलवार  अंगारकी चतुर्थी
14 नवंबर   मंगलवार  उत्पन्ना एकादशी
23 नवम्बर  गुरुवार    विवाह पंचमी
30 नवंबर   गुरुवार    मोक्षदा एकादशी, गीता जयंती

*दिसंबर*

03 दिसंबर   रविवार    दत्तात्रेय जयंती
13 दिसंबर   बुधवार    सफला एकादशी
29 दिसंबर   शुक्रवार   पुत्रदा एकादशी

हम न्यूटन को जानते हैं, स्वामी ज्येष्ठदेव को नहीं..!?


क्या आप न्यूटन को जानते हैं?? जरूर जानते होंगे, बचपन से पढ़ते आ रहे हैं... लेकिन क्या आप स्वामी माधवन या ज्येष्ठदेव को जानते हैं?? नहीं जानते होंगे... तो अब जान लीजिए.

अभी तक आपको यही पढ़ाया गया है कि न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिक ही कैलकुलस, खगोल विज्ञान अथवा गुरुत्वाकर्षण के नियमों के जनक हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सभी वैज्ञानिकों से कई वर्षों पूर्व पंद्रहवीं सदी में दक्षिण भारत के स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर गणित के ये तमाम सूत्र लिख रखे हैं. इनमें से कुछ सूत्र ऐसे भी हैं, जो उन्होंने अपने गुरुओं से सीखे थे, यानी गणित का यह ज्ञान उनसे भी पहले का है, परन्तु लिखित स्वरूप में नहीं था.
“मैथेमेटिक्स इन इण्डिया” पुस्तक के लेखक किम प्लोफ्कर लिखते हैं कि, “तथ्य यही हैं सन 1660 तक यूरोप में गणित या कैलकुलस कोई नहीं जानता था, जेम्स ग्रेगरी सबसे पहले गणितीय सूत्र लेकर आए थे. जबकि सुदूर दक्षिण भारत के छोटे से गाँव में स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर कैलकुलस, त्रिकोणमिति के ऐसे-ऐसे सूत्र और कठिनतम गणितीय व्याख्याएँ तथा संभावित हल लिखकर रखे थे, कि पढ़कर हैरानी होती है. इसी प्रकार चार्ल्स व्हिश नामक गणितज्ञ लिखते हैं कि “मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि शून्य और अनंत की गणितीय श्रृंखला का उदगम स्थल केरल का मालाबार क्षेत्र है”.

स्वामी ज्येष्ठदेव द्वारा लिखे गए इस ग्रन्थ का नाम है “युक्तिभाष्य”, जो जिसके पंद्रह अध्याय और सैकड़ों पृष्ठ हैं. यह पूरा ग्रन्थ वास्तव में चौदहवीं शताब्दी में भारत के गणितीय ज्ञान का एक संकलन है, जिसे संगमग्राम के तत्कालीन प्रसिद्ध गणितज्ञ स्वामी माधवन की टीम ने तैयार किया है. स्वामी माधवन का यह कार्य समय की धूल में दब ही जाता, यदि स्वामी ज्येष्ठदेव जैसे शिष्यों ने उसे ताड़पत्रों पर उस समय की द्रविड़ भाषा (जो अब मलयालम है) में न लिख लिया होता. इसके बाद लगभग 200 वर्षों तक गणित के ये सूत्र “श्रुति-स्मृति” के आधार पर शिष्यों की पीढी से एक-दुसरे को हस्तांतरित होते चले गए. भारत में श्रुति-स्मृति (गुरु के मुंह से सुनकर उसे स्मरण रखना) परंपरा बहुत प्राचीन है, इसलिए सम्पूर्ण लेखन करने (रिकॉर्ड रखने अथवा दस्तावेजीकरण) में प्राचीन लोग विश्वास नहीं रखते थे, जिसका नतीजा हमें आज भुगतना पड़ रहा है, कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में संस्कृत भाषा के छिपे हुए कई रहस्य आज हमें पश्चिम का आविष्कार कह कर परोसे जा रहे हैं.
जॉर्जटाउन विवि के प्रोफ़ेसर होमर व्हाईट लिखते हैं कि संभवतः पंद्रहवीं सदी का गणित का यह ज्ञान धीरे-धीरे इसलिए खो गया, क्योंकि कठिन गणितीय गणनाओं का अधिकाँश उपयोग खगोल विज्ञान एवं नक्षत्रों की गति इत्यादि के लिए होता था, सामान्य जनता के लिए यह अधिक उपयोगी नहीं था. इसके अलावा जब भारत के उन ऋषियों ने दशमलव के बाद ग्यारह अंकों तक की गणना एकदम सटीक निकाल ली थी, तो गणितज्ञों के करने के लिए कुछ बचा नहीं था. ज्येष्ठदेव लिखित इस ज्ञान के “लगभग” लुप्तप्राय होने के सौ वर्षों के बाद पश्चिमी विद्वानों ने इसका अभ्यास 1700 से 1830 के बीच किया. चार्ल्स व्हिश ने “युक्तिभाष्य” से सम्बंधित अपना एक पेपर “रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड” की पत्रिका में छपवाया. चार्ल्स व्हिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के मालाबार क्षेत्र में काम करते थे, जो आगे चलकर जज भी बने. लेकिन साथ ही समय मिलने पर चार्ल्स व्हिश ने भारतीय ग्रंथों का वाचन और मनन जारी रखा. व्हिश ने ही सबसे पहले यूरोप को सबूतों सहित “युक्तिभाष्य” के बारे में बताया था. वरना इससे पहले यूरोप के विद्वान भारत की किसी भी उपलब्धि अथवा ज्ञान को नकारते रहते थे और भारत को साँपों, उल्लुओं और घने जंगलों वाला खतरनाक देश मानते थे. ईस्ट इण्डिया कंपनी के एक और वरिष्ठ कर्मचारी जॉन वारेन ने एक जगह लिखा है कि “हिन्दुओं का ज्यामितीय और खगोलीय ज्ञान अदभुत था, यहाँ तक कि ठेठ ग्रामीण इलाकों के अनपढ़ व्यक्ति को मैंने कई कठिन गणनाएँ मुँहज़बानी करते देखा है”.

स्वाभाविक है कि यह पढ़कर आपको झटका तो लगा होगा, परन्तु आपका दिल सरलता से इस सत्य को स्वीकार करेगा नहीं, क्योंकि हमारी आदत हो गई है कि जो पुस्तकों में लिखा है, जो इतिहास में लिखा है अथवा जो पिछले सौ-दो सौ वर्ष में पढ़ाया-सुनाया गया है, केवल उसी पर विश्वास किया जाए. हमने कभी भी यह सवाल नहीं पूछा कि पिछले दो सौ या तीन सौ वर्षों में भारत पर किसका शासन था? किताबें किसने लिखीं? झूठा इतिहास किसने सुनाया? किसने हमसे हमारी संस्कृति छीन ली? किसने हमारे प्राचीन ज्ञान को हमसे छिपाकर रखा? लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि पश्चिमी देशों द्वारा अंगरेजी में लिखा हुआ भारत का इतिहास, संस्कृति हमेशा सच ही हो, यह जरूरी नहीं. आज भी ब्रिटिशों के पाले हुए पिठ्ठू, भारत के कई विश्वविद्यालयों में अपनी “गुलामी की सेवाएँ” अनवरत दे रहे हैं.

हम न्यूटन को जानते हैं, स्वामी ज्येष्ठदेव को नहीं..!?


क्या आप न्यूटन को जानते हैं?? जरूर जानते होंगे, बचपन से पढ़ते आ रहे हैं... लेकिन क्या आप स्वामी माधवन या ज्येष्ठदेव को जानते हैं?? नहीं जानते होंगे... तो अब जान लीजिए.

अभी तक आपको यही पढ़ाया गया है कि न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिक ही कैलकुलस, खगोल विज्ञान अथवा गुरुत्वाकर्षण के नियमों के जनक हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि इन सभी वैज्ञानिकों से कई वर्षों पूर्व पंद्रहवीं सदी में दक्षिण भारत के स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर गणित के ये तमाम सूत्र लिख रखे हैं. इनमें से कुछ सूत्र ऐसे भी हैं, जो उन्होंने अपने गुरुओं से सीखे थे, यानी गणित का यह ज्ञान उनसे भी पहले का है, परन्तु लिखित स्वरूप में नहीं था.
“मैथेमेटिक्स इन इण्डिया” पुस्तक के लेखक किम प्लोफ्कर लिखते हैं कि, “तथ्य यही हैं सन 1660 तक यूरोप में गणित या कैलकुलस कोई नहीं जानता था, जेम्स ग्रेगरी सबसे पहले गणितीय सूत्र लेकर आए थे. जबकि सुदूर दक्षिण भारत के छोटे से गाँव में स्वामी ज्येष्ठदेव ने ताड़पत्रों पर कैलकुलस, त्रिकोणमिति के ऐसे-ऐसे सूत्र और कठिनतम गणितीय व्याख्याएँ तथा संभावित हल लिखकर रखे थे, कि पढ़कर हैरानी होती है. इसी प्रकार चार्ल्स व्हिश नामक गणितज्ञ लिखते हैं कि “मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि शून्य और अनंत की गणितीय श्रृंखला का उदगम स्थल केरल का मालाबार क्षेत्र है”.

स्वामी ज्येष्ठदेव द्वारा लिखे गए इस ग्रन्थ का नाम है “युक्तिभाष्य”, जो जिसके पंद्रह अध्याय और सैकड़ों पृष्ठ हैं. यह पूरा ग्रन्थ वास्तव में चौदहवीं शताब्दी में भारत के गणितीय ज्ञान का एक संकलन है, जिसे संगमग्राम के तत्कालीन प्रसिद्ध गणितज्ञ स्वामी माधवन की टीम ने तैयार किया है. स्वामी माधवन का यह कार्य समय की धूल में दब ही जाता, यदि स्वामी ज्येष्ठदेव जैसे शिष्यों ने उसे ताड़पत्रों पर उस समय की द्रविड़ भाषा (जो अब मलयालम है) में न लिख लिया होता. इसके बाद लगभग 200 वर्षों तक गणित के ये सूत्र “श्रुति-स्मृति” के आधार पर शिष्यों की पीढी से एक-दुसरे को हस्तांतरित होते चले गए. भारत में श्रुति-स्मृति (गुरु के मुंह से सुनकर उसे स्मरण रखना) परंपरा बहुत प्राचीन है, इसलिए सम्पूर्ण लेखन करने (रिकॉर्ड रखने अथवा दस्तावेजीकरण) में प्राचीन लोग विश्वास नहीं रखते थे, जिसका नतीजा हमें आज भुगतना पड़ रहा है, कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में संस्कृत भाषा के छिपे हुए कई रहस्य आज हमें पश्चिम का आविष्कार कह कर परोसे जा रहे हैं.
जॉर्जटाउन विवि के प्रोफ़ेसर होमर व्हाईट लिखते हैं कि संभवतः पंद्रहवीं सदी का गणित का यह ज्ञान धीरे-धीरे इसलिए खो गया, क्योंकि कठिन गणितीय गणनाओं का अधिकाँश उपयोग खगोल विज्ञान एवं नक्षत्रों की गति इत्यादि के लिए होता था, सामान्य जनता के लिए यह अधिक उपयोगी नहीं था. इसके अलावा जब भारत के उन ऋषियों ने दशमलव के बाद ग्यारह अंकों तक की गणना एकदम सटीक निकाल ली थी, तो गणितज्ञों के करने के लिए कुछ बचा नहीं था. ज्येष्ठदेव लिखित इस ज्ञान के “लगभग” लुप्तप्राय होने के सौ वर्षों के बाद पश्चिमी विद्वानों ने इसका अभ्यास 1700 से 1830 के बीच किया. चार्ल्स व्हिश ने “युक्तिभाष्य” से सम्बंधित अपना एक पेपर “रॉयल एशियाटिक सोसायटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड” की पत्रिका में छपवाया. चार्ल्स व्हिश ईस्ट इण्डिया कंपनी के मालाबार क्षेत्र में काम करते थे, जो आगे चलकर जज भी बने. लेकिन साथ ही समय मिलने पर चार्ल्स व्हिश ने भारतीय ग्रंथों का वाचन और मनन जारी रखा. व्हिश ने ही सबसे पहले यूरोप को सबूतों सहित “युक्तिभाष्य” के बारे में बताया था. वरना इससे पहले यूरोप के विद्वान भारत की किसी भी उपलब्धि अथवा ज्ञान को नकारते रहते थे और भारत को साँपों, उल्लुओं और घने जंगलों वाला खतरनाक देश मानते थे. ईस्ट इण्डिया कंपनी के एक और वरिष्ठ कर्मचारी जॉन वारेन ने एक जगह लिखा है कि “हिन्दुओं का ज्यामितीय और खगोलीय ज्ञान अदभुत था, यहाँ तक कि ठेठ ग्रामीण इलाकों के अनपढ़ व्यक्ति को मैंने कई कठिन गणनाएँ मुँहज़बानी करते देखा है”.

स्वाभाविक है कि यह पढ़कर आपको झटका तो लगा होगा, परन्तु आपका दिल सरलता से इस सत्य को स्वीकार करेगा नहीं, क्योंकि हमारी आदत हो गई है कि जो पुस्तकों में लिखा है, जो इतिहास में लिखा है अथवा जो पिछले सौ-दो सौ वर्ष में पढ़ाया-सुनाया गया है, केवल उसी पर विश्वास किया जाए. हमने कभी भी यह सवाल नहीं पूछा कि पिछले दो सौ या तीन सौ वर्षों में भारत पर किसका शासन था? किताबें किसने लिखीं? झूठा इतिहास किसने सुनाया? किसने हमसे हमारी संस्कृति छीन ली? किसने हमारे प्राचीन ज्ञान को हमसे छिपाकर रखा? लेकिन एक बात ध्यान में रखें कि पश्चिमी देशों द्वारा अंगरेजी में लिखा हुआ भारत का इतिहास, संस्कृति हमेशा सच ही हो, यह जरूरी नहीं. आज भी ब्रिटिशों के पाले हुए पिठ्ठू, भारत के कई विश्वविद्यालयों में अपनी “गुलामी की सेवाएँ” अनवरत दे रहे हैं.