Friday, May 28, 2021
श्री गंगू मेहतर बाल्मीकि
ये हैं श्री गंगू मेहतर बाल्मीकि, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ी और 200 के लगभग अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था तथा उन्हें 18- 9 -1857 को कानपुर में चौराहे पर फाँसी दी गई थी इन वीर क्रांतिकारी योद्धा को शत शत नमन । बताते हैं इनका नाम इतिहास में गुमनाम है और नाही कोई ऊनकी याद मे प्रतिमा। क्युकि आजादी तो चरखे से आई है और महान तो अकबर है। आइए इन महान राष्ट्रभक्त के नाम पर "भारत माता की जय" बोलते हैं।
Saturday, May 22, 2021
भारत का पहला कंप्यूटर Bharat first computer
भारत का पहला कंप्यूटर, टाटा इंस्टीट्यूट द्वारा 1951 में निर्मित किया गया था और उसे अंतरिक्ष अनुसंधान विभाग को सौंप दिया गया।
Sunday, May 16, 2021
द्वारका भारती एक मोची कम साहित्यकार।
12 वीं पास ये सज्जन करते हैं मोची का काम, देते हैं यूनिवर्सिटियों में लैक्चर और इनके साहित्य पर हो रही है रिसर्च
टांडा रोड के साथ लगते मुहल्ला सुभाष नगर के द्वारका भारती (75) 12 वें पास हैं। घर चलाने के लिए मोची का काम करते हैं। सुकून के लिए साहित्य रचते हैं। भले ही वे 12 वीं पास हैं, पर साहित्य की समझ के कारण उन्हें वर्दीवालों को लेक्चर देने में बुलाया जाता है। कई भाषाओं में साहित्यकार इनकी पुस्तकों का अनुवाद कर चुके हैं। इनकी स्वयं की लिखी कविता एकलव्य इग्नू में एमए के बच्चे पढ़ते हैं, वहीं पंजाब विश्वविद्यालय में 2 होस्टल इन उपन्यास मोची पर रिसर्च कर रहे हैं। वे कहते हैं कि जो व्यवसाय आपका भरण पोषण करे, वह इतना अधम हो ही नहीं सकता, जिसे करने में आपको शर्मिंदगी महसूस होगी।
द्वारका बोले- घर चलाने को गांठता हूँ जूते, सुकून के लिए रचता हूँ साहित्य
सुभाष नगर में प्रवेश करते ही अपनी किराए की छोटी सी दुकान पर आज भी द्वारका भारती हाथों से नए नए जूते तैयार करते हैं। अक्सर उनकी दुकान के बाहर बड़े गाड़ियों में सवार साहित्य प्रेमी अधिकारियों और साहित्यकारों की पहुंचना और साहित्य पर चर्चा करना दिन का हिस्सा हैं। चर्चा के दौरान भी वह अपने काम से जी नहीं चुराते और पूरे मनोयोग से जूते गांठते रहते हैं। फुरसत के पलों में भारती दर्शन और कार्ल मार्क्स के अलावा पश्चिमी व लैटिन अमेरिकी साहित्य का अध्ययन करते हैं।
डॉ.सुरेन्द्र की लेखनी से साहित्य की प्रेरणा मिली
द्वारका भारती ने बताया कि 12 वीं तक पढ़ाई करने के बाद 1983 में होशियारपुर लौटे, तो वह अपने पुश्तैनी पेशे जूते गांठने में जुट गए। साहित्य से लगाव बचपन से था। डॉ.सुरेन्द्र अज्ञात की क्रांतिकारी लेखनी से प्रभावित हो उपन्यास जूठन का पंजाबी भाषा में किया गया। उपन्यास को पहले ही साल बेस्ट सेलर उपन्यास का खिताब मिला। इसके बाद पंजाबी उपन्यास मशालची का अनुवाद किया गया। इस दौरान दलित दर्शन, हिंदुत्व के दुर्ग पुस्तक लेखन के साथ ही हंस, दिनमान, वागर्थ, शब्द के अलावा कविता, कहानी व निबंध भी लिखे।
द्वारका भारती ने बताया कि आज भी समाज में बर्तन धोने और जूते तैयार करने वाले मोची के काम को लोग हीनता की दृष्टि से देखते हैं, जो नकारात्मक सोच को दर्शाता है। आदमी को उसकी पेशा नहीं बल्कि उसका कर्म महान बनाता है। वह घर चलाने के लिए जूते तैयार करते हैं, वहीं मानसिक खुराक व सुकून के लिए साहित्य की रचना करते हैं। जूते गांठना हमारा पेशा है। इसी से मेरा घर व मेरा परिवार का भरण पोषण होता है।
ऐसे कर्मयोगी को हमारा नमन है।
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