संत कनप्पा उन 63 नयनार संतों में गिने जाते हैं, जो शिव के उपासक थे, व तीसरी से आठवीं शताब्दी के बीच हुए थे। जबकि अलवार संत विष्णु के उपासक थे। कनप्पा पेशे से शिकारी थे, जो बाद में संत बन गए। उनके भक्त मानते हैं कि वो पिछले जन्म में पांडवों में से एक अर्जुन थे। कनप्पा नयनार के कई नाम चलन में हैं, जैसे थिनप्पन, थिन्नन, धीरा, कन्यन, कन्नन आदि। माता पिता ने उनका नाम थिन्ना रखा था। आंध्र प्रदेश के राजमपेट इलाके में उनका जन्म हुआ था।
उनके पिता बड़े शिकारी थे और शिवभक्त थे, शिव के पुत्र कार्तिकेय को पूजते थे। कनप्पा श्रीकलहस्तीश्वरा मंदिर में वायु लिंग की पूजा करते थे, शिकार के दौरान उन्हें ये मंदिर मिला था। पांचवी सदी में बना इस मंदिर का बाहरी हिस्सा 11वीं सदी में राजेन्द्र चोल ने बनवाया था, बाद में विजय नगर साम्राज्य के राजाओं ने उसका जीर्णोद्धार करवाया।
लेकिन थिन्ना को पता नहीं था कि शिव भक्ति और पूजा के विधि विधान क्या है। किन नियमों का पालन करना है, लेकिन उनकी श्रद्धा अगाध थी। कहा ये तक जाता है कि वह पास की स्वर्णमुखी नदी से मुंह में पानी भरकर लाते थे और उससे शिवलिंग का जलाभिषेक करते थे, चूंकि शिकारी थे, सो जो भी उन्हें मिलता था, एक हिस्सा शिव को अर्पित कर देते थे, यहां तक कि एक बार सुअर का मांस भी।
लेकिन शिव अपने इस भक्त की आस्था को देखकर खुश थे, उनको पता था कि इसे पूजा करनी नहीं आती है, ना मंत्र पता हैं ना किसी तरह के विधि विधान। सैकड़ों सालों से ये कथा कनप्पा के भक्तों में प्रचलित है कि एक दिन महादेव ने उनकी परीक्षा लेने की ठानी और उन्होंने उस मंदिर में उस वक्त भूकंप के झटके दिए, जब मंदिर में बाकी साथियों, भक्तों और पुजारियों के साथ कनप्पा भी मौजूद थे।
जैसे ही भूकंप के झटके आए, लगा कि मानो मंदिर की छत गिरने वाली है, तो डर के मारे सभी भाग गए, भागे नहीं तो बस कनप्पा। उन्होंने ये किया कि अपने शरीर से शिव लिंग को पूरी तरह से ढक लिया ताकि कोई पत्थर अगर गिरे तो शिवलिंग के ऊपर ना गिरे बल्कि उनके ऊपर गिरे। इससे वह पूरी तरह सुरक्षित रहा।
शिवलिंग पर तीन आंखें बनी हुई थीं। जैसे ही भूकम्प के झटके थोड़ा थमे, कनप्पा ने देखा कि शिवलिंग पर बनी एक आंख से रक्त और आंसू एक साथ निकल रहे थे। उनकी समझ में आ गया कि किसी पत्थर से शिवजी की एक आंख घायल हो गई है। आव देखा ना ताव, कनप्पा ने फौरन अपनी एक आंख अपने एक वाण से निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी और उसे निकालकर शिवलिंग की आंख पर लगा दिया, जिससे उसमें से खून निकलना बंद हो गया। लेकिन थोड़ी देर बाद ही शिवलिंग की दूसरी आंख से रक्त और आंसुओं का निकलना शुरू हो गया।
तब कनप्पा ने जैसे ही दूसरी आंख निकालने की प्रक्रिया शुरू की, उनके दिमाग में आया कि जब मैं अपनी दूसरी आंख भी निकाल लूंगा तो बिलकुल अंधा हो जा जाऊंगा, ऐसे में मुझे कैसे दिखेगा कि उस आंख को शिवलिंग में कैसे लगाना है।
ऐसे में उन्हें एक उपाय सूझा, उन्होंने फौरन अपना एक पैर उठाया और पैर का अंगूठा ठीक उस आंख के पास लगा दिया, ताकि अंधा होने के बावजूद वो शिवजी की दूसरी आंख की जगह अपनी आंख लगा सके। उसी वक्त भगवान शिव प्रकट हुए और उससे खुश होकर उसकी आंखें एकदम ठीक कर दीं। यही वो घटना थी, जिसके चलते थिन्ना को नया नाम कनप्पा मिला था।
इसी मौके की वो तस्वीर या मूर्तियां हैं, कि कैसे वह एक हाथ में वाण से आंख निकालेंगे, दूसरे हाथ से उसे पकड़ेंगे तो जहां से आंख निकालनी है, उस जगह को कैसे चिन्हित करेंगे, तो पैर का अंगूठा उस मासूम भक्त ने शिवलिंग पर रखा, इस काम के लिए था। लेकिन जितने भी लोग शेयर करे रहे हैं, चाहे वो देवदत्त पटनायक ही क्यों ना हो, किसी को ये नहीं बता रहे कि शिव भगवान ने उनकी भक्ति की परीक्षा ली थी और ये बस एक पल का वाकया था, ना कि रोज कनप्पा ऐसा किया करते थे. लेकिन इससे सच्चाई बाहर आ जाती और उनमें से बहुत से लोग ये चाहते भी नहीं।
- विष्णु शर्मा