11 अगस्त 1908 को " मुज्जफरपुर बम कांड " में " अमर शहीद खुदीराम बोस " को २०वी सदी की पहली फांसी वो भी सबसे कम उम्र के कीर्तिमान के साथ दी गई थी फांसी के वक्त खुदीराम बोस की आयु महज साढ़े सत्तरह वर्ष थी ..घटना के विवरण में विस्तार ...टिप्पड़ियों के माध्यम से होता रहेगा किन्तु मुख्य घटना क्रम पर एक दृष्टी डालते हुए बंग-भंग आन्दोलन और उसके क्रूरतापूर्ण दमन में उल्लखनीय भूमिका निभाने वाला ' कलकत्ता प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट ' " किंग्स्फोर्ड " क्रांतिकारियों की दृष्टी में मुख्य अभियुक्त था ..बंगाल के देसी समाचार पत्रों और विशेषकर ' अरविंदो घोष के वन्देमातरम ' के प्रति वह निहायत बर्बर था ..वन्देमातरम में छपे एक लेख के लिए किंग्स्फोर्ड ने अरविंदो घोष को गिरफ्तार करवा लिया और उस समय के महान राष्ट्रवादी नेता ' विपिन चन्द्र पाल ' को इस मामले में गवाही के लिए मजबूर किया ..पाल के इनकार करने पर उनको छ महीने की सजा सुना दी
..आक्रोशित जनता पर बर्बर लाठी चार्ज भी करवाया ...क्रन्तिकारी चेतना भड़क उठी और उसने किंग्स्फोर्ड को ' सजाये -मौत ' की सजा तय की ..तब तक ..भयभीत किंग्स्फोर्ड को मुज्जफरपुर में तैनात कर दिया गया था क्योंकि पार्सल बम द्वारा उसको मारने की एक कोशिश असफल हो चुकी थी ...इस बार सीधी सजा के तौर पर उसको अंजाम देने का जिम्मा " प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस " को सौंपा गया ..एक्सन कामयाब भी हुवा योरोपियन क्लब से लौटती किंग्स्फोर्ड की ' विक्टोरिया ' के परखच्चे उड़ गए ..किन्तु वह दरिंदा इस लिए बच गया क्यों की वह तब भी क्लब में था और उसकी गाड़ी दो महिलाओं को छोड़ने जा रही थी ..यह 30 अप्रेल 1908 की घटना है ..दोनों साथी अलग -अलग दिशाओं में निकल पड़े पूरी रात 24 मील दौड़ते हुए खुदीराम ' बेनी ' स्टेशन पहुंचे ..तनिक चूक और ब्रिटिश पुलिस के भारतीय कुत्तों 'शिव प्रसाद सिंह और फ़तेह सिंह द्वारापकडे गए ..जबकि ' प्रफुल्ल चाकी ' मोकामा में पोलिस संघर्ष में गिरफ्तार होने के स्थान पर स्वयं को गोली मार ली ..कालांतर " आजद " ने भी यही रास्ता अपनाया.
आज वक्त की पुकार है की हम " अपनी शहादत की विरासत " को याद करें , देशभक्त भारत का निर्माण करें , शहीदों को यही हमसे उम्मीद भी होगी .
सहमत हैं ?
जयहिंद .
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