एक महान स्वतंत्रता सेनानी को उसके जन्मदिन पर स्रधांजलि........
अशफ़ाक उल्ला खां एक निडर और प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे और उर्दू भाषा के एक बेहतरीन कवि भी थे, अशफ़ाक उल्ला खां का जन्म आज ही के दिन 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहांपुर उप्र में हुआ था, चार भाइयों में अशफ़ाक सबसे छोटे थे. इनके बड़े भाई रियायत उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल के सहपाठी थे आगे चलकर दोनों के बीच दोस्ती का गहरा संबंध विकसित हुआ आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे. वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए. धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई. फिर हुआ काकोरी कांड,,,, 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा राम प्रसाद बिस्मिल अपने साथियों के साथ पकड़े गए लेकिन अशफ़ाक उल्ला खां उनकी पकड़ में नहीं आए कुछ दिनों के बाद में अशफ़ाक को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और 19 दिसंबर, 1927 को एक ही दिन एक ही समय लेकिन अलग-अलग जेलों (फैजाबाद और गोरखपुर) में दो दोस्तों, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खां, को फांसी दे दी गई.उनकी आखरी दिनों की लिखी एक कविता ......
अशफ़ाक उल्ला खां एक निडर और प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे और उर्दू भाषा के एक बेहतरीन कवि भी थे, अशफ़ाक उल्ला खां का जन्म आज ही के दिन 22 अक्टूबर, 1900 को शाहजहांपुर उप्र में हुआ था, चार भाइयों में अशफ़ाक सबसे छोटे थे. इनके बड़े भाई रियायत उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल के सहपाठी थे आगे चलकर दोनों के बीच दोस्ती का गहरा संबंध विकसित हुआ आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे. वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खां भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे जल्द ही अशफ़ाक, राम प्रसाद बिस्मिल के विश्वासपात्र बन गए. धीरे-धीरे इनकी दोस्ती भी गहरी होती गई. फिर हुआ काकोरी कांड,,,, 9 अगस्त, 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक उल्ला खां समेत आठ अन्य क्रांतिकारियों ने इस ट्रेन को लूटा राम प्रसाद बिस्मिल अपने साथियों के साथ पकड़े गए लेकिन अशफ़ाक उल्ला खां उनकी पकड़ में नहीं आए कुछ दिनों के बाद में अशफ़ाक को भी गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और 19 दिसंबर, 1927 को एक ही दिन एक ही समय लेकिन अलग-अलग जेलों (फैजाबाद और गोरखपुर) में दो दोस्तों, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक उल्ला खां, को फांसी दे दी गई.उनकी आखरी दिनों की लिखी एक कविता ......
जाउगा खाली हाथ मगर ये दर्द साथ मे जायेगा ।
जाने किस दिन ये देश मेरा आजाद वतन कहलायेगा ॥
बिस्मिल हिन्दू है कहते है फिर आउगा फिर आउगा ।
फिर आकर ये भारत माँ तुझको आजाद कराउगा ॥
जी करता है मै भी कह दूँ पर मजहब से बंध जाता हूँ ।
मै मुसलमान हूँ पुनर्जन्म की बात नही कर पाता हूँ ॥
हाँ अगर मिल गया खुदा कही तो झोली फैला दूगा ।
मै जन्नत के बदले उससे फिर पुनर्जन्म ही मागूगा ॥
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