आश्चर्य हुआ होगा आपको कि मैं माता कैकई की जय क्युँ बोल रहा हूँ ? जबकि उनके कारण श्री राम को वनवाश हुआ. आइये कारण*
बोलिये माता कैकई की जय !!!
आश्चर्य हुआ होगा आपको कि मैं माता कैकई की जय क्युँ लिख रहा हूँ ? जबकि उनके कारण श्री राम को वनवाश हुआ. आइये कारण जानिये !!
भगवान श्री राम वनवाश से अयोध्या लौटे तीनों माताएं प्रतीक्षा में खडी थी और श्री राम ने सबसे पहले माता कैकई के चरण स्पर्श किये और माँ कैकई ने उन्हें अपने सीने से लगाया और चौदह वर्ष के बाद उनको देखा था. श्री राम स्वयँ नारायण थे जब उन्होंने माता कैकई को पहले प्रणाम किया तो मुझे भी लगा कि मुझे भी माता कैकई की जय लिखना चाहिये !!
अपनी माता तो अपनी प्रथम गुरु है फिर श्री राम ने अपनी माता कौशल्या के चरण पहले स्पर्श नहीं किये क्युँ ?????
आइये आपको बतलाने कि एक छोटी सी कोशिस करता हूँ .
मेरी आज की ही पहली पोस्ट से आगे का क्रम है. जैसा मैंने पहले बतलाया कि अयोध्या, जनकपुर, कैकय, कोशल, किष्किंधा जैसे शक्तिशाली राज्य के होते हुये भी सम्पूर्ण पृथ्वी पर राक्ससों का आतंक छाया थ. परन्तु इन राज्यों के राजा धर्मात्मा होते हुये भी यह सोच कर कि हमारे राज्य सुरक्षित हैं हमें क्या ? इस सोच से अपने अपने सुख में अपाने बल मे मस्त थे. हमें क्या फरक पडता है वाली निती पर थे. राक्षस अपनी सीमा बढाये जा रहे थे . पहले वो विनयपूर्वक आये फिर उन्होने सीमा पर अपने अड्डे बनाये पहले और चोरी छुप के आतंक बढाने लगे. जो अयोध्या की सीमा मे थे वो दुसरे राज्यों में वो कभी जनकपुरी तो कभी किसी और राजा की सीमा में घुसते और संतों, गायों की हत्या करते थे. और ये लोग चुपचाप सीमा पार सीमा पार कि बात जैसे आज होती है वैसे ही हो हल्ला करके चुप हो जाते. राक्षसों ने रावण के संरक्षण में अपनी शक्ति बहुत बढा ली थी और बाद में अयोध्या, जनकपुरी जैसे शक्तिशाली राज्यों की कभी हिम्मत तक नही पडी कि एक जूट होके इन आतंकियों का मुकाबला कर लें. अत्याचार और अधर्म अपने पीक पर चला गया. देवताओं और पृथ्वी के करुन क्रंदन पर प्रभु दशरथ जी के यहां अवतरित हुए मानव रुप में इसलिये मर्यादा मे रहना आवश्यक था. माता कौशल्या ने भी कहा कि प्रभु मुझे तो आपका साधारण मानव रुप देखना है और प्रभु ने वही किया और वो साधारण हो गये. फिर क्या था राक्ससों का जोर चल रहा था जगह जगह पर. तब अवतार का क्या फायदा ?? दशरथ जी मस्त है बुढापे में बालकों को पाके ! उन्हें भी पता नही कि मेरे घर कौन है.
एक बार 360 के आस पास अन्य राजा अयोध्या आये, महाराजा दशरथ से विनती की और कहा महराज आप शक्तिशाली है आपने युद्ध मे देवराजइंद्र तक की सहायता की है. आज दुष्ट आतंकियों ने परेशान किया है आप हमारी सहायता किजिए. इस मीटींग में महारानी कैकई भी थी जो महराज की सचिव भी हुआ करती थी. दशरथ जी ने कहा “देखिये आप लोग धैर्य रखिये हम जरुर सोचेंगे कि आप की क्या सहायता कर सकते हैं” कोरा आश्वासन दे ले लौटा दिया. क्युंकि हिम्मत उनकी भी नही पढ रही थी और अपना स्वाभिमान भी होता है कि क्युंभलामें अन्य राजओ को कहूँ और बोलू कि एक होके राक्ससों का सफाया करते हैं. महारानी कैकई को समझ आ रहा था और दशरथ जी के ढुलमुल रवैये से संतुष्ट नही थी अत: महारानी ने गुप्त सपथ ली कि वो अवश्य कुछ करेगी.
संत विश्वामित्र को राष्ट्र कि चिंता होती है आचार्य वशिष्ठ से पुरानी शत्रुता है कभी इसलिये वो अयोध्या नहीं गये थे. परन्तु वो संत थे उन्हे पता था राम कौन है इनके माता पिता तो ध्यान नही दे रहे इसलिये दुष्टों का संहार करने के लिये मुझे अयोध्या जाना होगा. और वो वाशिष्ठ जी का वैर भूलाकर अयोध्या चले गये. राजमहल में आश्चर्य हो गया कि मुनि विस्वामित्र पधारे है जो जिंदगी मे कभी नही आये वो आज कैसे ? दशरथ जी से मिले कहा राम को मुझे दे दो कुछ समय के लिये लेकिन दशरथ जी ने मना कर दिया कहा, मेरी पुरी सेना आप ले जाइये परंतु राम को नही दे सकता .पुत्र मोह हो गया था लेकिन आचार्य वशिष्ठ जान गये, कि विश्वामित्र का उद्देश्य पवित्र है इसलिये उन्होने बीच मे ही राजा को आदेश दे दिया कि राजन मुनि विश्वामित्र आपकी सेना से कई गुना शक्तिशाली स्वयँ है इसलिये आप राम और लक्ष्मण दोनों को उनके साथ भेजिये. गुरु आदेश का पालन किया मरे मन से दशरथ जी. विश्वामित्र ने श्रीराम को कई आयुध दिये कहा श्रीराम राक्षसों का विनाश किजिए. श्रीराम ने ताडका, सुबाहू आदि को मारा. समाचार फैला अयोध्या तक पहुंचा. इसके बाद अहिल्या का उद्धार किया, धनुष तोडा देवि सीता जी से विवाह हुआ. उनका यश और किर्ती फैल गई परंतु स्वयँ उनके पिता दशरथ, ससुर जनक और अन्य राजाओं ने कोई संज्ञान नहीं लिया. इसके बाद रामराज्य कैसे स्थापित होगा कोइ नहीं सोचा ?
लेकिन महारानी कैकई ने गुप्त सपथ ली थी और उन्होंने अपना दिमाग लगाया कि राम ने इतने प्राक्रमी कार्य इस छोटी सी आयु में किया है इसका अर्थ अवश्य ही वो असाधारण है और अगर राम राज्य स्थापित करना है तो इसके लिये राम को तो वन जाना ही होगा अर्थात पहले दुश्टों और आतंकियों का सफाया करना ही होगा. और इसी कडी मे आगे सयोंग बनता है और श्री राम के वन गमन का कारण कैकई बनती है.
राम इस बात को जान गये कि जो कर्तव्य सौतेली माता कैकई ने राष्ट्र हित में उठाया है वो अमूल्य है और वो करत्व्य तो अपनी माँ कौशल्या और पिता तक नहीं निभा पाये. माता कैकई के कारण ही वो सभी दुश्टों का सफाया कर सके ! वर्ना पिता की तरह वो भी अयोध्या मे ही बैठ के हाथ पे हाथ रखकर जीवन व्यतीत कर रहे होते. अवतार लिया उसका कारण था परंतु आगे का कर्म करने के लीये भी कारण होना चाहिये, इसके लिये माता कैकई के ऋणी हो गये.
यही कारण था, श्री राम ने माता कैकई के चरण सर्वप्रथम स्पर्श किये ! यहाँ तक कि रावण विजय के बाद दशरथ पितर वेश मे आये और श्री राम को वर मांगने को कहा तब उन्होने कहा कि माता कैकई को अपने श्राप से मुक्तकर दिजिये. परम्ब्रह्म ने श्री राम रुप मे दशरथ जी के यहाँ अवतार लिया परंतु पूर्ण रुप से कर्तव्य पालन न कर सकने के कारण अपनी ही पिता दशरथ जी को मोक्ष नहीं दिया.
इसलिये माता कैकई की जय
!!! जय श्री राम !!!
प्रस्तुति सजंय गुप्ता
।।जय जय श्री राधे।।
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