आखिर ऐसा क्या है जो मानव और पशु में अंतर है जिस अंतर के लिए मानव को श्रेष्ठ कहा गया है। हम सब कहते भी है--- बड़े भाग मानुष तन पावा। लेकिन क्यों??
1 घर अगर मानव बनाता है तो पशु भी बनाते है।
2 बच्चे अगर मानव पैदा करते है तो पशु भी करते है।
3 जितना बुद्धि मानव के पास है उससे श्रेष्ठ बुद्धि पशु के पास है क्योंकि पशु अपने स्वार्थ के लिए किसी का नुकशान नही करते है जबकि मानव केवल अपने स्वार्थ के लिए केवल पशु ही नही अपने परिवार को भी नुकशान कर देते है।
ओर भी कई कारण है जो पशु करते है वो मानव भी करते है। लेकिन एक कारण जो पशु नही केवल मानव कर सकते है और वो है आत्मा को चौरसी से मुक्त करना।
लेकिन मुक्त हो तो कैसे??
मुक्त होंगे जब पुर्नसद्गुरु के शरण में जाएंगे। क्योंकि पुर्नसद्गुरु वो दिव्य ज्ञान देंगे जिससे मानव के भीतर मानवता प्रकट हो जाए तभी तो कहा--- ज्ञानहीन पशु सामना जब तक वो ज्ञान नही मिलेगा तब तक मानव तन पाकर भी पशु के समान ही रहेंगे। मानव जन्म मिल गया इसका ये अर्थ नही की मानवता के गुण भी प्रकट हो गए। अगर मानवता के गुण प्रकट हो गए होते तो इतना अधर्म, पाखंड, कुविचार, दुष्कर्म होता ही नही।
हमारे वेदों में कहा गया-- *मनुर्भव मनुर्भव अर्थात् मनुष्य बनो ! मनुष्य बनो।* जब तक पुर्नसद्गुरु के शरण में जाकर वो दिव्यज्ञान नही लिए तब तक मनुष्य बने नही है।
*कोई चोर अगर पुलिश का कपड़ा पहन लें तो वो पुलिश नही हो जाएगा यहिं हाल हम सबका है मानव जन्म प्रभु ने दिया है तो मानव नही कह लाएंगे जब तक दिव्यज्ञान नही ले लेते।*
ओर ध्यान से क्योंकि जिस तरह मानव जन्म लेकर मानव के गुण प्रकट नही हुए उसी तरह सन्त का चोला पहन लेने से कोई सन्त नही हो जाता है इसलिए जब भी पुर्नसद्गुरु धारण करें तो धार्मिक-ग्रन्थों के आधार पर करें। हमारे धार्मिक-ग्रन्थों में स्प्ष्ट दिया हुआ है *जो हमारे भीतर परमात्मा का साक्षत्कार करा दे तत्क्षण उनके चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम
*अब निर्णय आपको लेना है दिव्यज्ञान लेकर मानव तन के द्वारा आत्मा का कल्याण करना है या पशुओं की तरह बिना लक्ष्य जाने चले जाना है।🙏
ॐ श्री आशुतोषाय नमः
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