Friday, August 30, 2019

आचार्य उदयवीर व डाॅ0 फतहसिंह और मोहन जोदड़ो की खुदाई

लेखक: राजेशार्य आट्टा

वैदिक विद्वानों- आचार्य उदयवीर व डाॅ0 फतहसिंह ने मोहन जोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सील (मुद्रा) पर अंकित एक चित्र को ऋग्वेद के मंत्र (1/164/20) की व्याख्या बताया है, जिसमें प्रकृति रूपी वृक्ष पर आत्मा और परमात्मा नाम के दो पक्षी बैठे हैं। इनमें से एक (आत्मा) वृक्ष के फल खा रहा है, जबकि दूसरा (परमात्मा) केवल देख रहा है। इससे इन्होंने सिंधु सभ्यता को वैदिक सभ्यता सिद्ध कर दिया पर नेहरूजी की सरकार ने इन्हें हतोत्साहित कर दिया। डाॅ0 फतहसिंह ने सिंधु लिपि के 45 अक्षरों की खोज करके 1965 ई0 तक 1500 सिंधु मुद्राओं को पढ़ा और निष्कर्ष प्रस्तुत किया कि सिंधु मुद्राओं की लिपि पूर्व ब्राह्मी है और भाषा वैदिक संस्कृत। वे सिंधु लिपि के ओम्, उमा, इंद्र, अग्नि, मित्र, वरुण आदि वैदिक शब्दों को पढ़ सके। उनका यह भी कहना था कि उपनिषदों के अनेक विचारों को सिंधु मुद्राओं में चित्रित किया गया है। सन 1967 ई0 में उन्हें महाविद्यालय से स्थानांतरित कर राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान का 75 वर्ष की अवस्था तक के लिए निदेशक बनाया गया था। जब उन्होंने सिंधु सभ्यता को वैदिक सभ्यता सिद्ध किया तो उन पर दबाव डाला गया कि वे इसे फादर हेरास आदि विदेशी विद्वानों के अनुरूप द्रविड़ सभ्यता ही सिद्ध करें। उनके मना करने पर जनवरी 1970 ई0 (57 वर्ष) में ही उन्हें हटा दिया गया। जब ये अपने गांव जिला पीलीभीत में थे तो खनौत नदी से चांदी के सिक्कों से भरा ताम्रपात्र चरवाहों को मिला था, जिसमें से 20 सिक्के किसी इतिहासप्रेमी अधिकारी ने साफ करवा कर इनके पास भेज दिये। उन्होंने उन पर राम, सीता, लक्ष्मण आदि के नाम व चित्र देखकर उन्हें सिंधु घाटी वाली लिपि में वैदिक सभ्यता सिद्ध करते हुए उत्तर प्रदेश की सरकारी पत्रिका ‘त्रिपथगा’ में लेख भेजें । लखनऊ के सरकारी संग्रहालय में रखे सिक्कों को भी पढ़ने के लिए उनके फोटो मांगे तो इन्हें मना कर दिया गया और त्रिपथगा में इनके लेख छापने बंद कर दिया गया । इसके डाॅ फतेहसिंह ने महाविद्यालयों में व्याख्यान दिये, लेकिन लकीर के फकीर प्रोफेसर इन्हें कोई महत्व नहीं देते थे । उनके लिए विदेशी विद्वान ही सर्वज्ञ थे ।                                                    डॉ फतेहसिंह ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी ) से सिंधु सभ्यता के वैदिक आधार पर शोध करने के लिए आर्थिक सहायता मांगी तो इन्हें उत्तर मिला कि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि के चिन्हों को वैदिक की बजाय द्रविड़ घोषित करो और यह सिद्ध करो कि ऋग्वेद में अशुद्धियां है, इसका पुनर्लेखन होना चाहिए । डाॅ साहब ने लिखा कि "मैं ऋग्वेद के पुनर्गठन पर तो काम नहीं करूंगा, क्योंकि इस पर तो फादर एस्टलर कर रहे हैं, पर मैं ऋग्वैदिक विचारधारा के पुनर्गठन पर काम कर सकता हूँ ।" इस पर उन्हें अनुदान देने से मना करते हुए उत्तर मिला- 'खेद है कि आयोग आपकी योजना को स्वीकार नहीं कर सकता ।' क्योंकि सरकार को चाटुकार चाहिए थे, सच्चे इतिहासकार नहीं ।     
                                                  शांतिधर्मी मासिक पत्रिका, जींद, हरियाणा प्रकाशित से साभार                 🙏🙏🙏😷😷😷🧐🧐🧐😨😨😨

Maharani Karnavati

मुगलकालीन इतिहास से वामपंथी धूर्त इतिहासकारों  ने हर उस घटना को उड़ा दिया है , जिसमें मुगल सुल्तान ,सेनापति या सिपहसालारों नें मुंह की खाई,मात हुई या बदनामी।

एक पढ़िये कथा पढ़िये इतिहास के भूले बिसरे पन्नो से

गढ़वाल की बहादुर महारानी कर्णावती "नाक काटी रानी"
यह मेरे लिए भी नया था

गढ़वाल राज्य को मुगलों द्वारा कभी भी जीता
नहीं जा सका...
यहाँ एक रानी हुआ करती थी, जिसका नाम
“नाक काटी रानी” पड़ गया था, क्योंकि उसने
अपने राज्य पर हमला करने वाले कई मुगलों
की नाक काट दी थी.
जी हाँ!!! शब्दशः नाक बाकायदा काटी थी.

इस बात की जानकारी कम ही लोगों को है
कि गढ़वाल क्षेत्र में भी एक “श्रीनगर” है,

यहाँ के महाराजा थे महिपाल सिंह, और
इनकी महारानी का नाम था कर्णावती
(Maharani Karnavati).

महाराजा अपने राज्य की राजधानी
सन 1622 में देवालगढ़ से श्रीनगर ले गए.

महाराजा महिपाल सिंह एक कठोर, स्वाभिमानी
और बहादुर शासक के रूप में प्रसिद्ध थे.

उनकी महारानी कर्णावती भी ठीक वैसी ही थीं.

इन्होंने किसी भी बाहरी आक्रांता को अपने राज्य में घुसने नहीं दिया. जब 14 फरवरी 1628 को आगरा में शाहजहाँ ने राजपाट संभाला, तो उत्तर भारत के दूसरे कई छोटे-मोटे राज्यों के राजा शाहजहाँ से सौजन्य भेंट करने पहुँचे थे.

लेकिन गढ़वाल के राजा ने शाहजहाँ की इस
ताजपोशी समारोह का बहिष्कार कर दिया था.

ज़ाहिर है कि शाहजहाँ बहुत नाराज हुआ.

फिर किसी ने शाहजहाँ को बता दिया कि गढ़वाल
के इलाके में सोने की बहुत खदानें हैं और
महिपाल सिंह के पास बहुत धन-संपत्ति है...

बस फिर क्या था, शाहजहाँ ने “लूट परंपरा” का
पालन करते हुए तत्काल गढ़वाल पर हमले की
योजना बना ली.

शाहजहाँ ने गढ़वाल पर कई हमले किए, लेकिन सफल नहीं हो सका. इस बीच कुमाऊँ के एक युद्ध में गंभीर रूप से घायल होने के कारण 1631 में महिपाल सिंह की मृत्यु हो गई. उनके सात वर्षीय पुत्र पृथ्वीपति शाह को राजा के रूप में नियुक्त किया गया, स्वाभाविक
है कि राज्य के समस्त कार्यभार की जिम्मेदारी
महारानी कर्णावती पर आ गई.

लेकिन महारानी का साथ देने के लिए उनके
विश्वस्त गढ़वाली सेनापति लोदी रिखोला,
माधोसिंह, बनवारी दास तंवर और दोस्त
बेग मौजूद थे.

जब शाहजहां को महिपाल सिंह की मृत्यु की
सूचना मिली तो उसने एक बार फिर 1640 में
श्रीनगर पर हमले की योजना बनाई.

शाहजहां का सेनापति नज़ाबत खान,
तीस हजार सैनिक लेकर कुमाऊँ गढवाल रौंदने
के लिए चला.

महारानी कर्णावती ने चाल चलते हुए उन्हें राज्य
के काफी अंदर तक आने दिया और वर्तमान में
जिस स्थान पर लक्ष्मण झूला स्थित है, उस जगह
पर शाहजहां की सेना को महारानी ने दोनों तरफ
से घेर लिया.

पहाड़ी क्षेत्र से अनजान होने और
बुरी तरह घिर जाने के कारण नज़ाबत खान
की सेना भूख से मरने लगी, तब उसने महारानी कर्णावती के सामने शान्ति और समझौते का सन्देश भेजा, जिसे महारानी ने तत्काल ठुकरा दिया.

महारानी ने एक अजीबोगरीब शर्त रख दी कि
शाहजहाँ की सेना से जिसे भी जीवित वापस आगरा जाना है वह अपनी नाक कटवा कर ही जा सकेगा,
मंजूर हो तो बोलो.

महारानी ने आगरा भी यह सन्देश भिजवाया
कि वह चाहें तो सभी के गले भी काट सकती हैं,

लेकिन फिलहाल दरियादिली दिखाते हुए
वे केवल नाक काटना चाहती हैं.

सुलतान बहुत शर्मिंदा हुआ,

अपमानित और क्रोधित भी हुआ,

लेकिन मरता क्या न करता...

चारों तरफ से घिरे होने और भूख की वजह
से सेना में भी विद्रोह होने लगा था ।

तब महारानी ने सबसे पहले नज़ाबत खान की
नाक खुद अपनी तलवार से काटी और उसके
बाद अपमानित करते हुए सैकड़ों सैनिकों की
नाक काटकर वापस आगरा भेजा,
तभी से उनका नाम “नाक काटी रानी” पड़ गया था.

नाक काटने का यही कारनामा उन्होंने दोबारा
एक अन्य मुग़ल आक्रांता अरीज़ खान और
उसकी सेना के साथ भी किया...

उसके बाद मुगलों की हिम्मत नहीं हुई कि
वे कुमाऊँ-गढ़वाल की तरफ आँख उठाकर देखते.

महारानी को कुशल प्रशासिका भी माना जाता था.

देहरादून में महारानी कर्णावती की बहादुरी के किस्से आम हैं (लेकिन पाठ्यक्रमों से गायब हैं).

दून क्षेत्र की नहरों के निर्माण का श्रेय भी
कर्णावती को ही दिया जा सकता है.

उन्होंने ही राजपुर नहर का निर्माण करवाया था जो रिपसना नदी से शुरू होती है और देहरादून शहर तक पानी पहुँचाती है. हालाँकि अब इसमें कई बदलाव और विकास कार्य हो चुके हैं, लेकिन दून घाटी तथा कुमाऊँ-गढ़वाल के इलाके में “नाक काटी रानी” अर्थात महारानी कर्णावती का योगदान अमिट है.

“मेरे मामले में अपनी नाक मत घुसेड़ो, वर्ना कट जाएगी”, वाली कहावत को उन्होंने अक्षरशः पालन करके दिखाया और इस समूचे पहाड़ी इलाके को मुस्लिम आक्रान्ताओं से बचाकर रखा.

उम्मीद है कि आप यह तथ्य और लोगों तक
पहुँचाएंगे...

ताकि लोगों को हिन्दू रानियों की वीरता
के बारे में सही जानकारी मिल सके.
विवेक आर्य की पोस्ट..

Wednesday, August 28, 2019

फिरोजशाह कोटला का सच

डॉ विवेक आर्य

दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला मैदान का नाम स्वर्गीय अरुण जेटली के नाम पर किया जा रहा है। कुछ लोगों के पेट में इस कदम से दर्द हो रहा हैं हालाँकि बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि फ़िरोज़शाह कौन था? फिरोजशाह तुगलक खानदान से था जिसने दिल्ली पर राज किया था। तुग़लको का राज ऐसा था कि आज भी तुग़लक़ शब्द अकर्मयता और नीतिगत अदूरदृष्टि का प्राय: समझा जाता हैं। इस खानदान के कुछ कारनामों से मैं पाठकों का परिचय करवाना चाहता हूँ।

खिलजी वंश के पतन के पश्चात्‌ तुगलकों ग्यासुद्‌दीन तुगलक (१३२०-२५) मौहम्मद बिन तुगलक (१३२५-१३५१ ई.) एवं फ़िरोज शाह तुगलक(१३५१-१३८८) का राज्य आया। तीनों एक से बढ़कर एक अत्याचारी थे। इस लेख में फिरोजशाह के कारनामों पर प्रकाश डालेंगे। उसकी माँ- बीबी जैजैला (भड़ी) राजपूत सरदार रजामल की पुत्री थी। फिरोजशाह, मुहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई एवं सिपहसलार ‘रजब’ का पुत्र था। मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद ही फिरोज शाह का राज्याभिषेक दिल्ली में अगस्त, 1351 में हुआ था।

इतिहासकारों के अनुसार, फिरोजशाह द्वारा हिन्दुओं पर जुर्म और बर्बरता करने का एक यह भी कारण था कि उसे एक राजपूत माँ से पैदा होने के कारण अपने समय के उलेमाओं के सामने अपनी कट्टर मुस्लिम छवि को बनाए रखना था। यही वजह है कि इतिहास में उसे एक धर्मांध शासक के रूप में जाना गया। उसने अपनी हूकूमत के दौरान कई हिन्दूओं को इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया।

फिरोज तुगलक ने उलेमाओं का सहयोग पाने के लिए कट्टर धार्मिक नीति अपनाई, उलेमाओं को विशेषाधिकार पुनः प्राप्त किए तथा शरीयत को न केवल प्रशासन का आधार घोषित किया बल्कि व्यवहार में भी उसे लागू किया। ऐसा करने वाला वह सल्तनत का पहला शासक था।

इसी फिरोजशाह तुगलक ने शरीयत के अनुसार जनता से 4 तरह के कर वसूले थे- जकात, सिंचाई कर (यह अपवाद था, क्योंकि यह शरीयत में नहीं है), खम्स (युद्ध से प्राप्त लूट तथा भूमि में दबा खजाना तथा खानों से प्राप्त आय का बँटवारा) जिसके अनुपात को शरीयत के आधार पर वसूला ।                                    फिरोजशाह तुगलक ने जब जाजनगर (उड़ीसा) पर हमला किया तो वह राज शेखर के पुत्र को पकड़ने में सफल हो गया । उसने उसको मुसलमान बनाकर उसका नाम शकर रखा ।                     सुल्तान फिरोज तुगलक अपनी जीवनी 'फतुहाल-ए-फिरोजशाह' में लिखता है कि- 'मैं प्रजा को इस्लाम स्वीकार करने के लिए उत्साहित करता था । मैने घोषणा कर दी थी कि इस्लाम स्वीकार करने वाले पर लगा जिजिया माफ कर दिया जायेगा ।                    यह सूचना जब लोगों तक पहुंची तो लोग बड़ी संख्या में मुसलमान बनने लगे । इस प्रकार आज के दिन तक वह चहुँ ओर से चले आ रहे हैं । इस्लाम ग्रहण करने पर उनका जिजिया माफ कर दिया जाता है और उन्हें खिलअत तथा दुसरी वस्तुएं भेट दी जाती है । [धर्मांतरण का मुख्य कारण प्राणरक्षा था- लेखक]                                १३६० ईस्वी में फिरोजशाह तुगलक ने जगन्नाथ पुरी के मंदिर को ध्वस्त कर दिया । अपनी आत्मकथा में यह सुल्तान हिन्दू प्रजा के विरुद्ध अपने अत्याचारों का वर्णन करते हुए लिखता है- "जगन्नाथ की मूर्ति तोड़ दी गई और पृथ्वी पर फेंक कर अपमानित किया गया । दुसरी मूर्ति खोद डाली गई और जगन्नाथ की मूर्ति के साथ मस्जिदों के सामने सुन्नीयों के रास्ते में डाल दी गई जिससे वह मुस्लिमों के जूतों के नीचे रगड़ी जाती रहें ।                                             इस सुल्तान के आदेश थे कि जिस स्थान को विजय किया जाएं, वहां जो भी कैदी पकड़े जाएं ; उनमें से छाटकर सर्वोत्तम सुल्तान की सेवा के लिए भेज दिया जाए । शीघ्र ही उनके पास १८०००० (एक लाख अस्सी हजार) गुलाम हो गये ।                                'उड़ीसा के मंदिरों को तोड़कर फिरोजशाह ने समुद्र में एक टापू पर आक्रमण किया, वहां जाजनगर से भागकर एक लाँख शरणार्थी स्त्री  बच्चे इकठ्ठे हो गये थे । इस्लाम के तलवारबाजों ने टापू को काफिरों के रक्त  का  प्याला बना दिया । गर्भवती स्त्रियों, बच्चों को पकड़-पकड़ कर सिपाहियों का गुलाम बना दिया गया ।                                                 नगर कोट कांगड़ा में ज्वालामुखी मंदिर का भी यही हाल हुआ । फरिश्ता के अनुसार मूर्ति के टुकड़ों को गाय के गोश्त तोबड़ो में भरकर ब्राह्मणों की गर्दनों में लटका दिया गया । मुख्य मूर्ति बतौर विजय चिन्ह के मदीना भेज दिया गया ।                                 यह फिरोजशाह के अत्याचारों की छोटी सी सूची है । वास्तविक रूप से वह क्रूर, अत्याचारी, मजहबी संकीर्णता से ग्रस्त शासक था । विडंबना यह है कि ऐसे शासक के नाम पर दिल्ली में एक मैदान का होना क्यां दर्शाता है? क्या देश के पूर्व कर्णधारों को ऐसे ही अत्याचारी ही नामकरण के लिए मिलते है? अथवा यह जानबूझकर की गई बदमाशी हैं । ताकि हिन्दू समाज सदा पराजय बोध से पीड़ित रहें अथवा इन क्रूर अत्याचारियों की काल्पनिक सेकुलर छवि निर्मित की जाएं । दिल्ली की सड़को का नाम अत्याचारी औरंगजेब, अकबर के नाम पर, कोलकाता की सड़को का नाम 1947 में कोलकाता में भीष्म दंगों में हिन्दुओं का अहित करने वाले सुहरावर्दी के नाम पर, नालंदा के रेल्वे स्टेशन का नाम नालंदा का विध्वंस करने वाले खिलजी के नाम पर होना यहीं दर्शाता है कि यह एक भयानक  षड्यंत्र है । पूर्व में आये इस विकार को दूर करना अत्यंत आवश्यक है ।                                        🙏🙏🙏🌹👏👏👏👏

Sunday, August 18, 2019

Bhikari

इमरान खान, Imran khan (Pakistan PM)

I don't have That Poor Photo.

Tuesday, August 13, 2019

राजमाता अहल्याबाई होल्कर || Rajmata Ahilyabai Holker


जन्म 31 मई 1725 ग्राम छौंदी (अहमदनगर महाराष्ट्र)

*मृत्यु 13 अगस्त 1795 सावन वद चतुर्दशी*

भारत में जिन महिलाओं का जीवन आदर्श, वीरता, त्याग तथा देशभक्ति के लिए सदा याद किया जाता है, उनमें रानी अहल्याबाई होल्कर का नाम प्रमुख है। उनका जन्म 31 मई 1725 को ग्राम छौंदी (अहमदनगर, महाराष्ट्र) में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री मनकोजी राव शिन्दे परम शिवभक्त थे। अतः यही संस्कार बालिका अहल्या पर भी पड़े।

एक बार इन्दौर के राजा मल्हारराव होल्कर ने वहां से जाते हुए मन्दिर में हो रही आरती का मधुर स्वर सुना। वहां पुजारी के साथ एक बालिका भी पूर्ण मनोयोग से आरती कर रही थी। उन्होंने उसके पिता को बुलवाकर उस बालिका को अपनी पुत्रवधू बनाने का प्रस्ताव रखा। मनकोजी राव भला क्या कहते; उन्होंने सिर झुका दिया। इस प्रकार वह आठ वर्षीय बालिका इन्दौर के राजकुंवर खांडेराव की पत्नी बनकर राजमहलों में आ गयी।

इन्दौर में आकर भी अहल्या पूजा एवं आराधना में रत रहती। कालान्तर में उन्हें दो पुत्री तथा एक पुत्र की प्राप्ति हुई। 1754 में उनके पति खांडेराव एक युद्ध में मारे गये। 1766 में उनके ससुर मल्हार राव का भी देहांत हो गया। इस संकटकाल में रानी ने तपस्वी की भांति श्वेत वस्त्र धारण कर राजकाज चलाया; पर कुछ समय बाद उनके पुत्र, पुत्री तथा पुत्रवधू भी चल बसे। इस वज्राघात के बाद भी रानी अविचलित रहते हुए अपने कर्तव्यमार्ग पर डटी रहीं।

ऐसे में पड़ोसी राजा पेशवा राघोबा ने इन्दौर के दीवान गंगाधर यशवन्त चन्द्रचूड़ से मिलकर अचानक हमला बोल दिया। रानी ने धैर्य न खोते हुए पेशवा को एक मार्मिक पत्र लिखा। रानी ने लिखा कि यदि युद्ध में आप जीतते हैं, तो एक विधवा को जीतकर आपकी कीर्ति नहीं बढ़ेगी। और यदि हार गये, तो आपके मुख पर सदा को कालिख पुत जाएगी। मैं मृत्यु या युद्ध से नहीं डरती। मुझे राज्य का लोभ नहीं है, फिर भी मैं अन्तिम क्षण तक युद्ध करूंगी।

इस पत्र को पाकर पेशवा राघोबा चकित रह गया। इसमें जहां एक ओर रानी अहल्याबाई ने उस पर कूटनीतिक चोट की थी, वहीं दूसरी ओर अपनी कठोर संकल्पशक्ति का परिचय भी दिया था। रानी ने देशभक्ति का परिचय देते हुए उन्हें अंगे्रजों के षड्यन्त्र से भी सावधान किया था। अतः उसका मस्तक रानी के प्रति श्रद्धा से झुक गया और वह बिना युद्ध किये ही पीछे हट गया।

रानी के जीवन का लक्ष्य राज्यभोग नहीं था। वे प्रजा को अपनी सन्तान समझती थीं। वे घोड़े पर सवार होकर स्वयं जनता से मिलती थीं। उन्होंने जीवन का प्रत्येक क्षण राज्य और धर्म के उत्थान में लगाया। एक बार गलती करने पर उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को भी हाथी के पैरों से कुचलने का आदेश दे दिया था; पर फिर जनता के अनुरोध पर उसे कोड़े मार कर ही छोड़ दिया।

धर्मप्रेमी होने के कारण रानी ने अपने राज्य के साथ-साथ देश के अन्य तीर्थों में भी मंदिर, कुएं, बावड़ी, धर्मशालाएं आदि बनवाईं। काशी का वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर 1780 में उन्होंने ही बनवाया था। उनके राज्य में कला, संस्कृति, शिक्षा, व्यापार, कृषि आदि सभी क्षेत्रों का विकास हुआ।

13 अगस्त 1795 को 70 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ। उनका जीवन धैर्य, साहस, सेवा, त्याग और कर्तव्यपालन का पे्ररक उदाहरण है। इसीलिए एकात्मता स्तोत्र के 11वें श्लोक में उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, चन्नम्मा, रुद्रमाम्बा जैसी वीर नारियों के साथ याद किया जाता है !

शत शत नमन।

Tuesday, August 6, 2019

कलयुगीरस कविता १

घनघोर अंधेरा छाएगा
कुछ नजर ना आएगा
धरा लाल बंजर होगा
छाव सिर्फ संध्या होगा
बिना रूह तन डोलेगा
काली भाषा बोलेगा
महातांडव मुख खोलेगा
कर्म हीन सृस्टि होगा ।।
जीवाणुओ का दृष्टि होगा
अपना अपनो को खायेगा
रक्त कुवें में नहायेगा
संसार भ्रस्ट हो जायेगा
वेद नस्ट हो जायेगा

पाप श्रिष्टि में जितना होगा,
फल उसका विष वो पायेगा,
घनघोर अंधेरा छायेगा
तब कुछ ना रेह जायेगा।।

जय कलयुग
।।214।।

#Surajmisir #kalyug

मुस्लिमों की जातियाँ कितनी होती हैं आज देख लो


इस्लाम में कितनी जातिया

अक्सर हिन्दुओ में ढेर सारी जातियों का आरोप लगाते है मुसलमान । पर हमने जब स्वाध्याय किया तो इस रेगिस्तानी धर्म में इस्लामी जातियों की लंबी फेहरिस्त (सूची) निकली।`

आइये एक नज़र डालें...

1-महकमिय्या 2-अजराकिया 3- आयुजि 4-नजरात 5-असफरिया 6-अबाजिया 7-अहसाम्य्या 8-बहशिस्यह 9-नागलियाह 10-अजजदह 11-अख्वास्या 12-शैबानीयह्ह् 13-मकराम्या 14-वासलिय्या 15- हज़ेलिया 16-नजामिया 17-अस्वारिया 18-अस्काफिया 19-मज्वारिया 20-बशरिया 21-अस्मरिया 22-हसामिया 23-साल्जियह 24 हाबतिया 25-मुकमरिया 26-समामिया 27-जाख्तिया 28-हरीबा 29-जाफरिया 30-बहशमिया 31-जबानिया 32-कबेया 33-ख्यातेया 34-गरसानिया 35-सोबानिया 36-सोबेया 37-अहदया 38-बर्गोसिया 39-नाफेरानिया 40-ब्यानिया 41-मुगिरिया 42-कामलिया 43-मंसूरिया 44-खताबिया 45-अजआबिया 46-जमिया 47-मुस्तदरिकिया48-मुजसामिया 49-करामिया 50-जाहिमिया 51-हनफिया 52-मालकिय्या 53-शाफ्या 54-हम्बिलिया 55-सूफिया 56-दावड़िया 57-सबाइया 58-मफज़जलिया 59-जारिया 60-इशहकिया 61-शेतानिया 62-मफुजिया 63-कसानिया 64-रजानिया 65-इस्माइल्लिया66-नासिरिया 67-जैदिया 68-नारुसिया 69-अहफटया 70-वाकफीफीया 71-गलात 72-हशविया 73-उल्वेया 74-अबड़िया 75-शमसिया 76-अब्बासिया 77-इमामिया 78-नावस्या 79-तनासुख्या 80-मूर्तजिया 81-राजइय्या 82-खलिफिया 83-कंजिया 84-हज़तरिया 85-मोतजलिया 86-मैमुनिया 87-अफालिया 88-माबिया 89-तारक्या 90-नजमैमुनिया 91-हज़तिया 92-कंदरिया 93-अहरिया 94-वहमिय्या 95-मोटलिया 96-मुतरआ बसिया 97-मुतरफिया 98-मखलुखिया 99-मुतराफिया 100-वबरिया101-मजिया 102-शाबाइया 103-अमालिया 104-मुस्तसिया105-मुशबह्य्या 106-सालमिया 107-कास्मिया 108-कनामिया 109-खारिजया 110-तर्किया 111-हज़ीमिया112-दहरिया 113-साआल्बिया 114-वहाबिया 115-नसारिया 116-मझुलिया 117-सलया 118-अख़बसया 119-बहसिया 120-समराख्या 121-अतबिया 122-गालिया 123-कतएया 124-कुर्बिया 125-मुहमदीया 126-हसनिया 127-क़राबतइया 128-मुबारिकिया 129-श्मतिया 130-अमारिया 131-मख्तुरिया 132-मोसुमिया 133-नानेया 134-तयारिया 135-यतरायह 136-सैरफिया 137-सरीइयह 138-जारुदिया 139-सुलेमनिया 140-तबारिया 141-नइमया 142-याक़ूबिया 143-शमरिया 144-युनानिया 145-बखारिया 146-गेलिन्या 147-शाएबिया 148-समहाज़िया 149-मरसिया 150-हासमिया151-खरारिया 152-क्लाबिया 153-हालिया 154-बाटनिया155-अबाजिया 156-ब्राह्मिया 157-अशअरिया 158-सोफ्सतैया 159-फिलसफिया 160-समिनिया 161-मशाईन 162-अश्राकिन 163-अजुसियह 164-उम्बिया 165-वजीदीया 166-अलीळालाहिया167-सादकिया 168-फुरकानिया 169-फरुकिया 170-शेखिय्या 171-शम्ससया 172-सम्मिस्या 173-फरकिया 174-नक़्शबंदिया 175-कादरिया 176-नेचीरिया 177-मिजाइय्या 178-आगखानिया 179-शहर बदीया 180-चिश्तिया 181-क्रानिया 182-नजदीया 183-बाबिया184-मवाहदीया वहाबी 185-राफजिया 186-नजिया 187-जस्तीया 188-इबारिया 189-जबरिया 190-टबरिया 191-सल्फिया 192-अकलिया 193-सफत्या 194-तकलिया 195-मुट्सफिया 196-हमाओसत 197-शमाफिया 198-हफ्तइमामिया199-हश्तइमामिया200-अशन अशारिया21-अखबारिय्यिन 202-मुतकल्लमिन 203-मुत्सररइन 204-रोशनियां 205-कोकबिया 206-तबकुमिया 207-अर्शेआसेयानी 208-तातिलिया 209 अन्सारिया 210-रखबिया 211-रहमानिया 212-रुहानिया 213-अन्नजिया 214-हबिबिया 215-अजिया 216-हबिरिया 217-सक्तिया 218-जनिदिया 219-जबिया 220-आरहिमिया 221-क्लद्रिया 222-फिरडोमिया 223-मदारिया 224-रजजिया 225-सफाइय्या 226-खाकिया 227-वादिया 228-तशनिया 229-आविया 230-तैकुरिया 231-दवाया 232-शैतारिया 233-तबकानिया 234-सय्यद जमालुद्दीन 235-मतबरिया 236-आर्गुनिया 237-आल्याया 238-गजिरुनिया 239-जाहडिया 240-तोबिया 241-कजिया 242-तशिरिया 243-हलालिया 244-नूरिया 245-एदुसिया 246-यस्विया 247-रफइय्या 248-मोइन्या 249-शकरगजिया 250-महबुने इलहिया 251-महमुदिया 252-फखरुदिनिया 253-नुरे मुहामादिया 254-वुनसुया 255-अल्लाहबक्षिया 256-हाफजिया 257-खिजरुया 258-कर्मनिया 259-करिमियऑ 260-जलिलिया 261-जमालिया 262-कुडिसिया 263-साबरिया 264-मखदुमिया 265-हज़रूमिया 266-निजामिया 267-अबूलअलैया 268-हसमिया चितस्या 269-निजमहिरिया270-बखारिया 271-हमजआशाही 272-फखरिया 273-नायजिया274-जायइया 275-फक्रिया फरीदइया 276-शमशिया सुलमानिया 277-फखरिया सुलमानिया 278-सुदुशाही 279-रजाकिया 280-वहाविया 281-नोशाही 282-शय्येदशाही 283-हुस्सैनशाही284-कबिसिया 285-मुहम्मदशाही286-बहलोलशाही 287-हासशाही 288-सुदुशाही 289-मुकियशाही 290-महुवदशाही 291-कासिमशाही 292-नंतुल्लाहशाही 293-मिरशाही 294-सुफियाहमीडिया 295-कंमसिय्या 296-दोलशाही 297-रसुलशाही 298-सुहागशाही 299-सफबीय्या 300-लालशाही 301-बाजिया 302-बुखारिया 303-कर्मजहलि 304-हबिबशाही 305-मूर्तज़शाही 306-अब्दुलकरिमि307-इस्मैलशाही 308-हलिमशाही 309-रुजाकशाही 310-मिजाकशाही 311-संगरिया 312-अय्याजिया 313-नासिरियापंडित
सत्यदेव काशी की पुस्तक इस्लाम के 313 फिरके पृष्ट 8 से 10 से साभार उद्घृत।

एक मौलाना से बातचीत
मौलाना साहब जन्नत में कौन जायेंगे?
मौलाना- मुसलमान

जी कौन मुसलमान? शिया या सुन्नी?
मौलाना- बेशक सुन्नी जनाब .

जी सुन्नी में कौन? मुकल्लिद या गैर-मुकल्लिद?
मौलाना- मुकल्लिद और कौन.

जी मुकल्लिद में तो चार हैं उनमें से ?
मौलाना- हनफी और कौन ?

जी, पर हनफी में तो देबबंदी और बरेलवी दोनों हैं फिर उनमें..
मौलाना- देबबंदी

बहुत शुक्रिया, पर देबबंदी में भी तो हयाती और ममाती दोनों हैं, उनमें से कौन??

इसके बाद मौलाना गायब हो गए वो दोबारा दिखे ही नहीं।

दोस्तो निवेदन है आपसे इस पोस्ट को शेयर करो, ताकि हमारे यहाँ के तथाकथित जातिवाद का मजाक उडाने बालो को करारा जबाब मिले।।```_
वासुदेव आचार्य गुरू जी🙏