Wednesday, August 28, 2019

फिरोजशाह कोटला का सच

डॉ विवेक आर्य

दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला मैदान का नाम स्वर्गीय अरुण जेटली के नाम पर किया जा रहा है। कुछ लोगों के पेट में इस कदम से दर्द हो रहा हैं हालाँकि बहुत कम लोगों को यह मालूम है कि फ़िरोज़शाह कौन था? फिरोजशाह तुगलक खानदान से था जिसने दिल्ली पर राज किया था। तुग़लको का राज ऐसा था कि आज भी तुग़लक़ शब्द अकर्मयता और नीतिगत अदूरदृष्टि का प्राय: समझा जाता हैं। इस खानदान के कुछ कारनामों से मैं पाठकों का परिचय करवाना चाहता हूँ।

खिलजी वंश के पतन के पश्चात्‌ तुगलकों ग्यासुद्‌दीन तुगलक (१३२०-२५) मौहम्मद बिन तुगलक (१३२५-१३५१ ई.) एवं फ़िरोज शाह तुगलक(१३५१-१३८८) का राज्य आया। तीनों एक से बढ़कर एक अत्याचारी थे। इस लेख में फिरोजशाह के कारनामों पर प्रकाश डालेंगे। उसकी माँ- बीबी जैजैला (भड़ी) राजपूत सरदार रजामल की पुत्री थी। फिरोजशाह, मुहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई एवं सिपहसलार ‘रजब’ का पुत्र था। मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद ही फिरोज शाह का राज्याभिषेक दिल्ली में अगस्त, 1351 में हुआ था।

इतिहासकारों के अनुसार, फिरोजशाह द्वारा हिन्दुओं पर जुर्म और बर्बरता करने का एक यह भी कारण था कि उसे एक राजपूत माँ से पैदा होने के कारण अपने समय के उलेमाओं के सामने अपनी कट्टर मुस्लिम छवि को बनाए रखना था। यही वजह है कि इतिहास में उसे एक धर्मांध शासक के रूप में जाना गया। उसने अपनी हूकूमत के दौरान कई हिन्दूओं को इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया।

फिरोज तुगलक ने उलेमाओं का सहयोग पाने के लिए कट्टर धार्मिक नीति अपनाई, उलेमाओं को विशेषाधिकार पुनः प्राप्त किए तथा शरीयत को न केवल प्रशासन का आधार घोषित किया बल्कि व्यवहार में भी उसे लागू किया। ऐसा करने वाला वह सल्तनत का पहला शासक था।

इसी फिरोजशाह तुगलक ने शरीयत के अनुसार जनता से 4 तरह के कर वसूले थे- जकात, सिंचाई कर (यह अपवाद था, क्योंकि यह शरीयत में नहीं है), खम्स (युद्ध से प्राप्त लूट तथा भूमि में दबा खजाना तथा खानों से प्राप्त आय का बँटवारा) जिसके अनुपात को शरीयत के आधार पर वसूला ।                                    फिरोजशाह तुगलक ने जब जाजनगर (उड़ीसा) पर हमला किया तो वह राज शेखर के पुत्र को पकड़ने में सफल हो गया । उसने उसको मुसलमान बनाकर उसका नाम शकर रखा ।                     सुल्तान फिरोज तुगलक अपनी जीवनी 'फतुहाल-ए-फिरोजशाह' में लिखता है कि- 'मैं प्रजा को इस्लाम स्वीकार करने के लिए उत्साहित करता था । मैने घोषणा कर दी थी कि इस्लाम स्वीकार करने वाले पर लगा जिजिया माफ कर दिया जायेगा ।                    यह सूचना जब लोगों तक पहुंची तो लोग बड़ी संख्या में मुसलमान बनने लगे । इस प्रकार आज के दिन तक वह चहुँ ओर से चले आ रहे हैं । इस्लाम ग्रहण करने पर उनका जिजिया माफ कर दिया जाता है और उन्हें खिलअत तथा दुसरी वस्तुएं भेट दी जाती है । [धर्मांतरण का मुख्य कारण प्राणरक्षा था- लेखक]                                १३६० ईस्वी में फिरोजशाह तुगलक ने जगन्नाथ पुरी के मंदिर को ध्वस्त कर दिया । अपनी आत्मकथा में यह सुल्तान हिन्दू प्रजा के विरुद्ध अपने अत्याचारों का वर्णन करते हुए लिखता है- "जगन्नाथ की मूर्ति तोड़ दी गई और पृथ्वी पर फेंक कर अपमानित किया गया । दुसरी मूर्ति खोद डाली गई और जगन्नाथ की मूर्ति के साथ मस्जिदों के सामने सुन्नीयों के रास्ते में डाल दी गई जिससे वह मुस्लिमों के जूतों के नीचे रगड़ी जाती रहें ।                                             इस सुल्तान के आदेश थे कि जिस स्थान को विजय किया जाएं, वहां जो भी कैदी पकड़े जाएं ; उनमें से छाटकर सर्वोत्तम सुल्तान की सेवा के लिए भेज दिया जाए । शीघ्र ही उनके पास १८०००० (एक लाख अस्सी हजार) गुलाम हो गये ।                                'उड़ीसा के मंदिरों को तोड़कर फिरोजशाह ने समुद्र में एक टापू पर आक्रमण किया, वहां जाजनगर से भागकर एक लाँख शरणार्थी स्त्री  बच्चे इकठ्ठे हो गये थे । इस्लाम के तलवारबाजों ने टापू को काफिरों के रक्त  का  प्याला बना दिया । गर्भवती स्त्रियों, बच्चों को पकड़-पकड़ कर सिपाहियों का गुलाम बना दिया गया ।                                                 नगर कोट कांगड़ा में ज्वालामुखी मंदिर का भी यही हाल हुआ । फरिश्ता के अनुसार मूर्ति के टुकड़ों को गाय के गोश्त तोबड़ो में भरकर ब्राह्मणों की गर्दनों में लटका दिया गया । मुख्य मूर्ति बतौर विजय चिन्ह के मदीना भेज दिया गया ।                                 यह फिरोजशाह के अत्याचारों की छोटी सी सूची है । वास्तविक रूप से वह क्रूर, अत्याचारी, मजहबी संकीर्णता से ग्रस्त शासक था । विडंबना यह है कि ऐसे शासक के नाम पर दिल्ली में एक मैदान का होना क्यां दर्शाता है? क्या देश के पूर्व कर्णधारों को ऐसे ही अत्याचारी ही नामकरण के लिए मिलते है? अथवा यह जानबूझकर की गई बदमाशी हैं । ताकि हिन्दू समाज सदा पराजय बोध से पीड़ित रहें अथवा इन क्रूर अत्याचारियों की काल्पनिक सेकुलर छवि निर्मित की जाएं । दिल्ली की सड़को का नाम अत्याचारी औरंगजेब, अकबर के नाम पर, कोलकाता की सड़को का नाम 1947 में कोलकाता में भीष्म दंगों में हिन्दुओं का अहित करने वाले सुहरावर्दी के नाम पर, नालंदा के रेल्वे स्टेशन का नाम नालंदा का विध्वंस करने वाले खिलजी के नाम पर होना यहीं दर्शाता है कि यह एक भयानक  षड्यंत्र है । पूर्व में आये इस विकार को दूर करना अत्यंत आवश्यक है ।                                        🙏🙏🙏🌹👏👏👏👏

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