*कहानी गुजरात के सौराष्ट्र इलाके के कुख्यात डाकू भूपत सिंह की जिसे पाकिस्तान ने मुस्लिम बनने की शर्त पर अपने यहां शरण दे दिया था*
गुजरात के सौराष्ट्र इलाके के कुख्यात डकैत भूपत सिंह की कहानी बेहद दिलचस्प है।
सन 1939 में बड़ौदा के महाराजा थे प्रताप सिंह राव गायकवाड उन्होंने अपने यहां एक घुड़सवारी की प्रतियोगिता रखी जिसमें एक युवक भूपत सिंह ने इनाम जीता था।
भूपत सिंह अमरेली के एक रियासत के राज दरबार में घोड़ों की देखभाल करने का काम करता था और जब राजा शिकार पर जाते तब भूपत उनके साथ जाता था इसी तरह भूपत ने बचपन से ही बंदूक चलाना सीख लिया था और उसका निशाना अचूक हो गया था।
फिर देश आजाद हो गया और रजवाड़े खत्म हो गए उसी दौरान राजकोट के गोंडल कस्बे में एक अमीर मुस्लिम व्यापारी ने उस जमाने में 9 लाख रुपये खर्च करके अपना घर बनाया था और उस जमाने में इलाके के लोग उसे नौलखा घर करते थे क्योंकि यह नौ लाख में बना था।
और इस घर में डकैती पड़ी और इस डकैती का आरोप भूपत सिंह पर लगा और भूपत सिंह फरार हो गया और अपने कुछ साथियों को मिलाकर अपना एक गैंग बना लिया और फिर उसके बाद उसने कत्ल और डकैती की कई वारदातों को अंजाम दिया।
धीरे-धीरे उसके गैंग में 42 डकैत शामिल हो गए और एक के बाद एक भूपत गैंग ने 90 हत्याएं और उस जमाने में साढे आठ लाख की डकैती की जो उस जमाने में बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी।
अपने इन कारनामों के चलते भूपत राष्ट्रीय अखबारों और विदेशी मीडिया में सुर्खी बन गया था और उस समय सौराष्ट्र के गृह मंत्री पुलिस की नाकामी से बहुत खफा हुए और उन्होंने यह घोषणा कर दिया कि जब तक भूपत सिंह पकड़ा नहीं जाएगा तब तक पुलिस के वेतन में 25% की कटौती कर दी जाएगी।
उस समय गुजरात मुंबई प्रेसीडेंसी राज्य का हिस्सा हुआ करता था फिर सरकार ने पुणे में काम कर रहे 1933 बैच के IPS अफसर विष्णु गोपाल कटिनकर को भूपत गैंग का खात्मा करने के लिए सौराष्ट्र भेजा और काटीनकर को आउट आफ टर्न प्रमोशन देकर राजकोट रेंज का आईजी बनाया गया।
पुलिस अधिकारी का काटिनकर साहब ने नए सिरे से भूपत गैंग को खत्म करने का प्लान रख रचा और पुलिस में कई विश्वसनीय मुखबीर भर्ती किए।
काटीनकर ने बहुत कोशिश किया लेकिन उन्हें भूपत गैंग का कोई सुराग नहीं मिल रहा था।
तभी राजकोट में लूट की एक वारदात हुई और पता चला कि इस लूट को भूपत गैंग ने अंजाम दिया है और डकैतों का यह दल कार से फरार हुआ है।
घटनास्थल पर एक गैराज की पर्ची मिली और इस पर्ची से पता चला कि वारदात में इस्तेमाल की गई कार एक भूतपूर्व राजकुमार की है कटिनकर साहब ने भूतपूर्व राजकुमार पर दबाव डाला और राजकुमार ने बता दिया कि उन्होंने भूपत के साथी डाकू कालू देवायत को पनाह दी है उसके बाद काटीनकर उस राजपरिवार के फार्म हाउस गए फिर गोलीबारी में भूपत के साथी डकैत कालू देवायत को गोली मार दी गई और गैंग के कई डकैत फरार हो गए ।
लेकिन पुलिस ने पीछा करते-करते उन्हें चारों तरफ से घेर लिया और पुलिस ने कई डकैतों को मार दिया हालांकि पुलिस के 2 जवान भी शहीद हुए थे
इस तरह एक के बाद एक भूपत गैंग के कई डकैतों को का खात्मा कर दिया गया।
उसी दरम्यान भूपत सिंह डकैत के सबसे भरोसेमंद साथी राणा किसी काम से बड़ोदरा गया पुलिस को सूचना मिली और 700 जवानों की मदद से राणा की घेराबंदी किया गया और राणा को गोली मार दी गई ।
अपने गैंग के सभी विश्वसनीय साथियों के खात्मे के बाद भूपत एकदम डर गया अब उसे भी एहसास हो गया था कि या तो उसका भी एनकाउंटर कर दिया जाएगा या यदि वह पकड़ा गया तो उसे फांसी होगी।
उसके बाद वह कच्छ की सीमा से पाकिस्तान भाग गया। पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने उसे पकड़ लिया और उसे गैरकानूनी तरीके से सीमा पार करने के जुर्म में 1 साल की कैद और ₹100 का जुर्माना हुआ।
मुकदमे के दौरान भूपत सिंह ने खुद को पाकिस्तान में शरण दिए जाने की अपील की। फिर पाकिस्तानी सरकार ने उसे इस शर्त पर पाकिस्तान में शरण देने की अर्जी स्वीकार की कि भूपत सिंह इस्लाम कुबूल कर लेगा उसके बाद भूपत सिंह ने इस्लाम कुबूल करने का वादा किया और कराची की एक मस्जिद में कलमा पढ़ कर मुसलमान बन गया और अपना नाम युसूफ रख लिया।
उस समय भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे और कुख्यात डकैत भगत सिंह को पाकिस्तान से प्रत्यर्पण की कई कोशिशें हुई।
उस जमाने में पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त रहे डॉक्टर पी सी ए राघवन बताते हैं कि खुद नेहरू भूपत सिंह के प्रत्यर्पण में काफी रूचि लिए लेकिन जब भारत सरकार भूपत डाकू को भारत वापस लाने में विफल रहे तब नेहरू ने भूपत का मुद्दा दूसरे देशों के सामने भी उठाये।
इधर गुजरात में गुजरात के नेताओं के दबाव की वजह से भूपत का मुद्दा लगातार मीडिया में चर्चा में बना हुआ था इतना ही नहीं कई विदेशी मीडिया जैसे न्यूयॉर्क टाइम्स और बीबीसी भी भूपत सिंह के मुद्दे पर खूब लिख रहा था।
उसके बाद जुलाई 1956 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहम्मद अली डोगरा के बीच भूपत के प्रत्यर्पण को लेकर बातचीत हुई, लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने नेहरू को एकदम मना कर दिया कि भूपत को भारत के हवाले नहीं किया जाएगा ।
फिर उसी समय प्रख्यात अखबार ब्लिट्ज ने अप्रैल 1953 के अंक में एक स्टोरी छाप कर भारत को हिला दिया कि डकैत भूपत उर्फ यूसुफ को पाकिस्तानी सेना में भारतीय डाकुओं की भर्ती करने का काम सौंपा गया है और भूपत कई कुख्यात भारतीय डाकुओं के संपर्क में है जिन्हें पाकिस्तानी सेना में भर्ती करके भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया जाएगा।
भूपत की पहली पत्नी गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में रहती थी लेकिन पाकिस्तान जाने के बाद ऊपर इस्लाम कुबूल कर लिया तब पाकिस्तान में उसने दोबारा शादी की और उसके बच्चे भी हुए।
इस कुख्यात डकैत भूपत पर बहुत सी फिल्में बनी है जिसमें सबसे सुपरहिट फिल्म तेलुगू अभिनेता एनटी रामा राव ने बनाई थी जिसमें उन्होंने खुद अभिनय भी किया था। इसके अलावा भूपत पर बहुत सी किताबें लिखी गई है और भूपत गैंग का खात्मा करने वाले पुलिस अधिकारी 1933 बैच के आईपीएस ऑफिसर काटिनकर ने भी मराठी भाषा में एक किताब लिखी है।
भूपत का पाकिस्तान में बाद में बहुत बुरा हाल हो गया पाकिस्तानी फौज और पाकिस्तानी सरकार को जब लगा कि भूपत उसके लिए फायदेमंद नहीं है तब उन्होंने भूपत को उसके हाल पर छोड़ दिया।
बुढ़ापे में भूपत उर्फ यूसुफ दूध बेचकर गुजारा करता था और भारत आने की बहुत कोशिश किया लेकिन तब भारत सरकार ने ही मना कर दिया।
वह दो बार भारत की सीमा में घुसने की कोशिश किया लेकिन पाकिस्तानी रेंजरो ने उसे पकड़कर जेल में बंद कर दिया अंत में 2006 में बुढ़ापे में कई बीमारियों से पीड़ित कुख्यात डकैत भूपत सिंह उर्फ यूसुफ की पाकिस्तान में मौत हो गई और उसे कराची के कब्रिस्तान में दफना दिया गया
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