डिस्कवरी चैनल तो आप लोग देखते ही होंगे
मैं भी देखता हूं
उसमें हिरन नीलगाय पूरे दिन घास चरने में ही गुजारते हैं
वो दिन भर वह जंगल में इधर से उधर घूम कर घास चरते रहते हैं ताकि घास को प्रोटीन में बदला जा सके यानी वह मेहनत से पूरे दिन घास को प्रोटीन में बदलने में ही लगे रहते हैं
वहीं दूसरी तरफ मांसाहारी प्राणी आराम से पूरे दिन में सोए रहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हमारे लिए प्रोटीन का इंतजाम करने में हिरण और नीलगाय लगे ही हैं तो हम क्यों मेहनत करें
जब तक हिरन जी रहे हैं वहां तक जंगल के खूंखार जानवर एकदम मस्त मौज में रहते हैं सारे दिन सोते हैं
जब हिरन कम होने लगते हैं फिर वह खूंखार जानवर दूसरे इलाके की यानी दूसरे जंगल की शोध में निकल जाते हैं
ठीक इसी तरह से हिंदू हिरणो ने अविभाजित भारत के पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश में खूब मेहनत किया सारा दिन मेहनत मजदूरी किया सोना चांदी हीरा और ज्ञान इकट्ठा किया बड़ी-बड़ी हवेलियां बनवाएं बड़े-बड़े कॉलेज और यूनिवर्सिटी बनवाए बड़े बड़े मंदिर बनवाए अंततः परिणाम क्या आया ?
एक घटना ने हमारा सब कुछ साफ कर गया अफगानिस्तान ले लिया ईरान ले लिया पाकिस्तान ले लिया बांग्लादेश ले लिया कश्मीर ले लिया केरल बंगाल और आसाम लेने के मूड में हैं
दरअसल इस नस्ल में सिर्फ शिकारी का ही गुण विकसित किया
इसने अपनी उर्जा मेहनत मजदूरी करने में नहीं लगाई क्योंकि इसे पता है कि हिंदू तो हमारे लिए मेहनत मजदूरी कर रहा है हम हिंदुओं से सब कुछ छीन लेंगे
हिंदू तो हिरण की तरह सारा दिन हमारे लिए प्रोटीन इकट्ठा करने में मेहनत कर ही रहा है
क्योंकि अब पाकिस्तान बांग्लादेश में भूखमरी की स्थिति आ गई है क्योंकि वहां पर हिंदू पंजाबी हिंदू सिख हिंदू सिंधी और उनके खुद के अहमदिया जैसे हिरण खत्म हो चुके हैं क्योंकि इन्हीं की वजह से उन सभी इलाकों की इकोनामी चल रही थी
यानी धीरे-धीरे पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिरण खत्म हो गए और सिर्फ खूंखार नरभक्षी जानवर बढ़ते गए अब उन जानवरों की नजर एक नए इलाके एक नए जंगल पर है और वह इलाका है भारत
क्योंकि वह लोग अक्सर गजवा ए हिंद कहते हैं वह कहते हैं हमारी किताबों में बरसों पहले इसका उल्लेख हो चुका है दरअसल यह युद्ध कोई सेना नहीं कर सकती है यह युद्ध अंदर ही अंदर शुरू होगा फिर बाद में बाहर से शुरू होगा हम और आप इस युद्ध में है लेकिन हमें पता ही नहीं है
अगर आपको विश्वास ना हो तो कश्मीर आसाम केरल यानी ऐसे इलाके जहां यह खूंखार लोग बहुमत में है उस इलाके का चक्कर लगा कर देखिए फिर आपको पता चलेगा क्यों इन इलाकों से तमाम हिन्दू हिरणों ने अपना घर और संपत्ति बेचकर दूसरी जगह बसावट कर लिया है
आपको ज्यादा दूर भी जाने की जरूरत नहीं है सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कैराना घूम कर चले आइए
थोड़ा सा खून देखकर उल्टी कर देने वाली कौम
खून की धार देख कर बेहोश हो जाने वाली कौम है कितने तो यह भी कहते हैं हम लहसुन नहीं खाते हम प्याज नहीं खाते अब यह कौम क्या किसी हिंसक भेड़िया के सामने कितनी देर तक टिक सकती है ?
हमारे बीच में से कितने लोग धर्म के मठाधीश बन गए हैं आप इनसे मिलिए और पूछिए कि देश पर हम हिंदूओ पर सबसे बड़ा खतरा क्या है उनके पास भी इसका जवाब नहीं होगा क्योंकि वह खुद अली मौला करने में बिजी है वह खुद हिंदुओं को कायर बनाने में लगे हुए हैं क्योंकि वह खुद उनके दलाल बन चुके हैं
दरअसल हमारे धर्म गुरु अपने आश्रमों की भव्यता अपने शिष्यों की भीड़ दिखाने में व्यस्त हैं यह प्रेम और विरह का प्रवचन करेंगे लेकिन यह कभी हिंदुओं पर मंडरा रहे खतरे के बारे में कोई बात नहीं करेंगे यह सभी हमें अहिंसक बनने का ज्ञान देंगे
दरअसल आने वाला वक्त हम हिंदुओं के लिए बेहद चिंताजनक होने वाला है या तो हिंदू अपनी परिस्थिति को स्वीकार करके चुपचाप अपनी अस्मिता भूलकर जिंदगी जिएगा या फिर यहूदियों की तरह ठोकरें खाने के बाद जागेगा अब दोनों में से क्या होगा यह आने वाला वक्त बताएगा
लेकिन इतना जरूर है आने वाले वक्त में भागो या भाग लो यानी रन अवे और पार्टिसिपेट इन इट दोनों में से कोई एक चुनना पड़ेगा
दूसरा आपके पास कोई विकल्प नहीं है
और जो लोग मध्य भारत में अभी तक safe बैठे हुए मेरी पोस्ट का मज़ाक उड़ा रहे हैं, उनको कभी बंगाल के interior एरिया का एक चक्कर लगा कर आना चाहिए
एक ज़माने में हिन्दुओं के बाहुल्य वाले क्षेत्रों की पूरी सरंचना (demography) बदल गई है
अब तो आपको वंहा जय श्री राम का नारा लगाने पर भी ममता खातून चप्पलों से पीटने को आ जाती है
वो वंहा हो गया है तो हमारे यहां क्यों नहीं हो सकता है
बीजेपी कॉंग्रेस जाए भाड़ में
अपनी संस्कृति बचा ले, इतना ही बस है
और हाँ जीडीपी अब माइनस से प्लस में आ गई है, लेकिन आपकी प्लस जीडीपी को आप कितने दिनों तक सुरक्षित रख पाएंगे
कभी मूड हो तो सोचना
वर्ना जैसे चल रहा है, वैसे चलने दीजिए
अखिर कुछ तो क्वालिटी हम लोगों में है, जिसके कारण हम सैंकड़ों साल तक गुलाम रहे
बाहरी आक्रांता अपने साथ बहुत सारे सैनिकों को ले कर नहीं आए थे
उन्होंने हमारे लोगों को ही हमारे लोगों से लडवाया
और अभी भी वो यही कर रहे हैं
Jisne bhi likha hai saty likha hai
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