Tuesday, May 17, 2011
Wednesday, May 11, 2011
One Should know .... Every Bhartiya (भारत )
''अपनी भारत की संस्कृति को पहचाने "
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दो पक्ष --------------------- कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष !
तीन ऋण --------- देव ऋण, पित्र ऋण एवं ऋषित्रण !
चार युग - सतयुग ,त्रेता युग , द्वापरयुगएवं कलयुग !
चार धाम - द्वारिका , बद्रीनाथ, जगन्नाथ पूरी एवं रामेश्वरम धाम !
चारपीठ - शारदा पीठ ( द्वारिका ), ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम),
गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) एवं श्रन्गेरिपीठ !
चर वेद------------- ऋग्वेद , अथर्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद !
चार आश्रम ---------ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , बानप्रस्थ एवं संन्यास !
चार अंतःकरण ---- मन , बुद्धि , चित्त, एवं अहंकार !
पञ्च गव्य -- -------गाय का घी , दूध , दही , गोमूत्र एवं गोबर , !
पञ्च देव ----------- गणेश , विष्णु , शिव , देवी और सूर्य !
पंच तत्त्व ---------- प्रथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवं आकाश !
छह दर्शन ---------- वैशेषिक , न्याय , सांख्य, योग , पूर्व मिसांसा एवं दक्षिण मिसांसा !
सप्त ऋषि - विश्वामित्र , जमदाग्नि , भरद्वाज , गौतम , अत्री , वशिष्ठ और कश्यप!
सप्त पूरी -----------अयोध्या पूरी , मथुरा पूरी , माया पूरी ( हरिद्वार ) , कशी , कांची
( शिन कांची - विष्णु कांची ) , अवंतिका और द्वारिका पूरी !
आठ योग ----------यम , नियम, आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान एवं समाधी !
आठ लक्ष्मी ------- आग्घ ,विद्या , सौभाग्य , अमृत , काम , सत्य , भोग ,एवं योग लक्ष्मी !
नव दुर्गा ----------- शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि,
महागौरी एवं सिद्धिदात्री !
दस दिशाएं -------- पूर्व , पश्चिम , उत्तर , दक्षिण , इशान , नेत्रत्य , वायव्य आग्नेय ,
आकाश एवं पाताल !
मुख्या ग्यारह अवतार - मत्स्य , कच्छप , बराह , नरसिंह , बामन , परशुराम ,
श्री राम , कृष्ण , बलराम , बुद्ध , एवं कल्कि !
बारह मास ----------चेत्र , वैशाख , ज्येष्ठ ,अषाड़ , श्रावन , भाद्रपद , अश्विन , कार्तिक ,
मार्गशीर्ष . पौष , माघ , फागुन !
बारह राशी ---------- मेष ,ब्रषभ ,मिथुन , कर्क , सिंह ,कन्या, ,तुला , ब्रश्चिक ,धनु , मकर ,
कुम्भ ,एवं कन्या !
बारह ज्योतिर्लिंग - सोमनाथ , मल्लिकर्जुना , महाकाल , ओमकालेश्वर , बैजनाथ , रामेश्वरम , विश्वनाथ , त्रियम्वाकेश्वर, केदारनाथ , घुष्नेश्वर , भीमाशंकर एवं नागेश्वर !
पंद्रह तिथियाँ ------ प्रतिपदा , द्वतीय , तृतीय , चतुर्थी , पंचमी , षष्ठी , सप्तमी , अष्टमी , नवमी , दशमी , एकादशी , द्वादशी, त्रयोदशी , चतुर्दशी , पूर्णिमा , अमावश्या !
स्म्रतियां ----------- मनु , विष्णु, अत्री , हारीत , याज्ञवल्क्य , उशना , अंगीरा , यम , आपस्तम्ब , सर्वत , कात्यायन , ब्रहस्पति , पराशर , व्यास , शांख्य , लिखित , दक्ष , शातातप , वशिष्ठ
Friday, May 6, 2011
Tuesday, May 3, 2011
गम दिल के ....
एक था माली | उसने अपना तन, मन, धन लगाकर कई दिनों तक परिश्रम करके
एक सुन्दर बगीचा तैयार किया | उस बगीचे में भाँति-भाँति के मधुर सुगंध युक्त
पुष्प खिले | उन पुष्पों को चुनकर उसने इकठ्ठा किया और उनका बढ़िया इत्र तैयार
किया | फिर उसने क्या किया समझे आप …?
उस इत्र को एक गंदी नाली में बहा दिया |
अरे ! इतने दिनों के परिश्रम से तैयार किये गये इत्र को, जिसकी सुगन्ध से सारा
घर महकने वाला था, उसे नाली में बहा दिया ! आप कहेंगे
कि ‘वह माली बड़ा मूर्ख था, पागल था …’
मगर अपने आपमें ही झाँककर देखें |
वह माली कहीं और ढूँढ़ने की जरूरत नहीं है |
हममें से कई लोग ऐसे ही माली हैं |
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दिलके गम, हम कहना सके किसीसे ,
हम करते थे प्यार सभीसे पर, ले ना सके किसीसे ,
दर्द-ऐ-दिल का बयान आखों से हम छिपाये कु किसीसे.
पत्थर बन कर भी ना आया काम किसीके ,
लोहा बनके ना तलवार बन सके किसीके ,
ख्वाब बहुत था मुजसे सबको ,पुरे हो ना सके किसीके.
दिल के गम रहगये दिल में कहेना सके किसीसे ,
कविता तो बन रही थी ठीक-ठाक,रायमिंग जुड़ना सके किसीके।
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Hum Shai Hai Ya Galat,
Samaj Nahi Paa rahehai,
Dil ke mere gehere Jhakma,
Bhar nahi Paa rahe Hai,
Muskilo se ladne ki himmat naa rahi,
kabhi khabi to zhoot bhi laga sahi,
na pass se na door se jaa rahi,
Taqualif bahut horaha hai Wo hai aarahi....?
Maut Ya Khushi
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कुछ दिल कहेता है ...
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ख़ामोशी से उदासी धिक् जाती है
जोश में बदमाशी हो जाती है
बचती है वोही प्रजाति
जिस्मे मर्दानगी रेह जाती है।
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दिल की धडकनों ने आवाज लगाई है ....
अज अंग्रेजो से ना मुगलों से ,
आज अपनों से लडाई हे।
सहेंगे हम आखिर तक ,
लडेंगे हम आखिर तक ,
हम्मे गर्वे है हम हिन्दू है,
क्युकि हमे माँ ने एक बात सिखाई हे ,
कि , ज़ख्म से बड़ा दवाई हे।
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हर वक़्त तंहाई है ,
तो गम ना करो ,
हो कमजोर लाख्होसे ,
तो सर्म न करो,
है मुट्ठी बंद आज तो क्या ,
मुस्कुराना बंद ना करो,
हर दिन अलग होता है सबका,
अपनी ईछा को कम न करो,
जलन १
जल जल के जल रहा हु ,
ज्वाला उब्बल रहा हु ,
नफरत इस जिंदगी से है ,
इस दुनिया से केहे रहा हु ,
आसमा तक उंचा क़ु है पर्वत ,
इतना गहेरा क़ु है सागर ,
येही सवाल खुदा से पूछ रहा हु अब्ब तक ,
ऐसे ही जलन रही मुज्मे तो में जीओँगा कब तक ?
ज्वाला उब्बल रहा हु ,
नफरत इस जिंदगी से है ,
इस दुनिया से केहे रहा हु ,
आसमा तक उंचा क़ु है पर्वत ,
इतना गहेरा क़ु है सागर ,
येही सवाल खुदा से पूछ रहा हु अब्ब तक ,
ऐसे ही जलन रही मुज्मे तो में जीओँगा कब तक ?
Thursday, April 28, 2011
एक इन्स्तंत कविता
जीवन से जादा प्यारी , मोत है मुझे ,
में डरा नहीं गम से, वो थो शौक है मुझे ,
धरती से प्यार बहुत करता हु, ये रोग है मुझे ,
खड़ा हु तान के सीना देखलो पूरा होश है मुझे ,
में डरा नहीं गम से, वो थो शौक है मुझे ,
धरती से प्यार बहुत करता हु, ये रोग है मुझे ,
खड़ा हु तान के सीना देखलो पूरा होश है मुझे ,
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