एक था माली | उसने अपना तन, मन, धन लगाकर कई दिनों तक परिश्रम करके
एक सुन्दर बगीचा तैयार किया | उस बगीचे में भाँति-भाँति के मधुर सुगंध युक्त
पुष्प खिले | उन पुष्पों को चुनकर उसने इकठ्ठा किया और उनका बढ़िया इत्र तैयार
किया | फिर उसने क्या किया समझे आप …?
उस इत्र को एक गंदी नाली में बहा दिया |
अरे ! इतने दिनों के परिश्रम से तैयार किये गये इत्र को, जिसकी सुगन्ध से सारा
घर महकने वाला था, उसे नाली में बहा दिया ! आप कहेंगे
कि ‘वह माली बड़ा मूर्ख था, पागल था …’
मगर अपने आपमें ही झाँककर देखें |
वह माली कहीं और ढूँढ़ने की जरूरत नहीं है |
हममें से कई लोग ऐसे ही माली हैं |
----------------------------------------------------------------------------
दिलके गम, हम कहना सके किसीसे ,
हम करते थे प्यार सभीसे पर, ले ना सके किसीसे ,
दर्द-ऐ-दिल का बयान आखों से हम छिपाये कु किसीसे.
पत्थर बन कर भी ना आया काम किसीके ,
लोहा बनके ना तलवार बन सके किसीके ,
ख्वाब बहुत था मुजसे सबको ,पुरे हो ना सके किसीके.
दिल के गम रहगये दिल में कहेना सके किसीसे ,
कविता तो बन रही थी ठीक-ठाक,रायमिंग जुड़ना सके किसीके।
----------------------------------------------------------------------------
Hum Shai Hai Ya Galat,
Samaj Nahi Paa rahehai,
Dil ke mere gehere Jhakma,
Bhar nahi Paa rahe Hai,
Muskilo se ladne ki himmat naa rahi,
kabhi khabi to zhoot bhi laga sahi,
na pass se na door se jaa rahi,
Taqualif bahut horaha hai Wo hai aarahi....?
Maut Ya Khushi
----------------------------------------------------------------------------
No comments:
Post a Comment