Sunday, January 28, 2018

क्यों भड़की कासगंज में हिंसा ?

#कासगंजदंगा
#kasganjRiots #ABPnews

विशाल ठाकुर कई दिनों से इस तिरंगा यात्रा की तैयारी कर रहा था।300 बाइक्स इसका टारगेट था साथ ही वो इन बाइक्स के साथ पूरा शहर कवर करना चाहता था,ये उसकी राजनीतिक इच्छा हो सकती है।उसने कासगंज के बड्डू नगर जो कि मुस्लिम और क्रिमिनल जोन है उसमें भी अपनी यात्रा ले जाना प्लान कर रखा था।ये खबर पूरे शहर में थी।
बड्डू नगर का पढ़ा लिखा शातिर वकील मुनाजिर रफ़ी जो मुस्लिम लड़को में खासा चर्चित है,उसने इनको रोकने के लिए प्लान बनाया था।एक छोटा सा गणतंत्र दिवस का आयोजन अपनी गली में रख लिया साथ ही बड़ी संख्या में आ रहे लड़कों से मुकाबले के लिए मुस्लिम लड़को को तैयार भी कर लिया।
जब 26 जनवरी के दिन तिरंगा यात्रा मुनाजिर के इलाके में पहुँची तो वंहा बस 3 लड़को में जिनमे से एक मुनाजिर भी था 300 बाइक्स का रास्ता रोक लिया और उनको वापस जाने को कहने लगा।
वापस भेजने के लिए बस एक तर्क था कि आगे हमारा प्रोग्राम होना है तो तुम यंहा से नही जा सकते हो ।18 फ़ीट की गली से सभी का पीछे जाना भी संभव नही था और नई उम्र के लड़के इसके लिए तैयार भी नही थे।तकरीबन 12 मिनट की गहमा-गहमी के बाद अचानक सब्र जैसे ही टूटा, इन 3 लड़को को छतों से कवर कर रहे लड़कों ने ई ट, पत्थर,तेज़ाब की बोतल फैकने शुरू कर दिए।भगदड़ सी मच गई तभी कुछ फ़ायर हुए एक चंदन को और दूसरा राहुल  को लगा।उस छोटी से गली में 300 बाइक्स वाले तकरीबन 500 लड़के अपने को असुरक्षित महसूस करते हुए अपनी बाइक्स छोड़ कर भाग खड़े हुए।बड़ी मुश्किल से कुछ लड़के घायलों को विलराम गेट तक लाए।घटना के कुछ देर बाद जैसे ही शहर में ये खबर फैली तभी फोर्स और काफी हिन्दू घटना स्थल की तरफ भागे लेकिन अब गली में सन्नता फैला हुआ था।सड़क बाइक्स और ईट, पत्थर और टूटे शीशों से पटी पड़ी थी।
तिरंगा यात्रा लेकर चल रहे लड़के किसी धार्मिक जुलूस का हिस्सा नही थे जो उनको किसी गली मोहल्ले में जाने से पहले किसी की अनुमति की आवश्यकता हो ।
तिरंगा यात्रा में शामिल हुए लड़को के पास झंडा और उसमें लगा दंडा के अलावा कुछ भी न था और हमारे देश प्रेमी भाइयों के पास चंद मिनटों में ईंट,पत्थर, तेज़ाब की बोतलें और देसी कट्टे सब निकल आए।

सवाल-1-झंडा जब 8 बजे फहरा दिया जाता है तो इन मुस्लिम लड़कों ने किसके इंतज़ार में 10 बजे के बाद तक कार्यक्रम रोक कर रखा हुआ था।
2-रास्ता रोकने वाले 3 लड़को के एक इशारे पर 500 की भीड़ तितर-वितर कैसे कर दी गयी अगर पहले से कोई तैयारी नही थी ?
3-एबीपी चैनल ख़बर दिखा रहा है कि ये विवाद वंदेमातरम कहने के वजह से हुआ है तो भारत का कौन सा कानून मुस्लिमों को विरोध के लिए हिंसा की इजाज़त देता है ?
4-तिरंगा यात्रा में भगवा झंडा फहराना किसी को कैसे उत्तेजित कर सकता है ?
5-एक जिम्मेदार चैनल अपने मुस्लिम पत्रकार जो गलत सूचना दे रहा है कि "हॉट टॉक के बाद बाइक्स को वंहा से जाने दिया गया और उसके बाद सबको पता है कि कासगंज में क्या हुआ "......घटना के बाद का वीडियो जिसमे मुस्लिम युवक,पुलिस और हिन्दू सभी है ,साथ ही घटना स्थल पर 50 से ज्यादा बाइक्स गिरी पड़ी है।कैसे कह सकते है कि वंहा से बाइक्स को जाने दिया गया ।
में 2 वीडियो भी अटैच कर रहा हू, एक घटना से कुछ sec पहले का है जिसमे गले के मफलर ,आखों पर चश्मा लगाए मुनाजिर रफ़ी नाम का वकील दिख रहा है जो तिरंगा यात्रा का रास्ता रोक रहा है और जिसके एक इशारे पर पूरा बवाल हुआ।
दूसरे वीडियो घटना के बाद का है ।

कुछ घण्टे पहले की पोस्ट में एक एबीपी पर चली न्यूज़ का वीडियो है जिसमे पूरी खबर एक गैर जिम्मेदार पत्रकार जावेद मसूरी ने दी है।जावेद ने दंगे के आरोपियों की जुबानी पूरी खबर बुन दी ।उस खबर  को गलत कहने के सभी आधार मैन लिखे है अगर आप सहमत हो तो इस दिल्ली से आये इस पत्रकार को कासगंज में रिपोर्टिंग न करने दो,प्रशासन से शिकायत करो।

मैं एक पत्रकार होने के नाते, कासगंज से दिली जुड़ाव होने में नाते ,साथ ही गर्व से वंदेमातरम कहने के नाते एबीपी की खबर की निंदा करता हूं साथ ही इसकी शिकायत NBA से भी कर रहा हू ।

Friday, January 26, 2018

chandragrahan 2018


खग्रास चन्द्रग्रहण – 31 जनवरी 2018

(भूभाग में ग्रहण समय – शाम 5.17 से रात्रि 8.42 तक) (पूरे भारत में दिखेगा, नियम पालनीय ।)

चन्द्रग्रहण बेध (सूतक) का समय
सुबह 8.17 तक भोजन कर लें । बूढ़े, बच्चे, रोगी और गर्भवती महिला आवश्यकतानुसार दोपहर 11.30 बजे तक भोजन कर सकते हैं । रात्रि 8.42 पर ग्रहण समाप्त होने के बाद पहने हुए वस्त्रोंसहित स्नान और चन्द्रदर्शन करके भोजन आदि कर सकते हैं ।
ग्रहण पुण्यकाल
जिन शहरों में शाम 5.17 के बाद चन्द्रोदय है वहाँ चन्द्रोदय से ग्रहण समाप्ति (रात्रि 8.42) तक पुण्यकाल है । जैसे अमदावाद का चन्द्रोदय शाम 6.21 से ग्रहण समाप्त रात्रि 8.42 तक पुण्यकाल है ।
शहरों का स्थान और चन्द्रोदय
नीचे कुछ मुख्य शहरों का चन्द्रोदय दिया जा रहा है उसके अनुसार अपने-अपने शहरों का ग्रहण के पुण्यकाल का जानकर अवश्य लाभ लें ।
इलाहाबाद (शाम 5.40), अमृतसर (शाम 5.58), बैंगलुरू (शाम 6.16), भोपाल (शाम 6.02), चंडीगढ़ (शाम 5.52), चेन्नई (शाम 6.04), कटक (शाम 5.32), देहरादून (शाम 5.47), दिल्ली (शाम 5.54), गया (शाम 5.27), हरिद्वार (शाम 5.48), जालंधर (शाम 5.56), कोलकत्ता (शाम 5.17), लखनऊ (शाम 5.41), मुजफ्फरपुर (शाम 5.23), नागपुर (शाम 5.58), नासिक (शाम 6.22), पटना (शाम 5.26), पुणे (शाम 6.23), राँची (शाम 5.28), उदयपुर (शाम 6.15), उज्जैन (शाम 6.09), वड़ोदरा (शाम 6.21), कानपुर (शाम 5.44)
(इन दिये गये स्थानों के अतिरिक्तवाले अधिकांश स्थानों में पुण्यकाल का समय लगभग शाम 5.17 से रात्रि 8.42 के बीच समझें ।)

ग्रहण के समय पालनीय
(1) ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते । जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए ।
(2) सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना । यदि गंगा-जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना फलदायी होता है ।
(3) ग्रहण-काल जप, दीक्षा, मंत्र-साधना (विभिन्न देवों के निमित्त) के लिए उत्तम काल है ।
(4) ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है ।
(संत श्री आशारामजी बापू आश्रम पुस्तक ‘क्या करें क्या न करें ?’ 
एवं ‘ऋषि प्रसाद’ )

chandragrahan 2018


खग्रास चन्द्रग्रहण – 31 जनवरी 2018

(भूभाग में ग्रहण समय – शाम 5.17 से रात्रि 8.42 तक) (पूरे भारत में दिखेगा, नियम पालनीय ।)

चन्द्रग्रहण बेध (सूतक) का समय
सुबह 8.17 तक भोजन कर लें । बूढ़े, बच्चे, रोगी और गर्भवती महिला आवश्यकतानुसार दोपहर 11.30 बजे तक भोजन कर सकते हैं । रात्रि 8.42 पर ग्रहण समाप्त होने के बाद पहने हुए वस्त्रोंसहित स्नान और चन्द्रदर्शन करके भोजन आदि कर सकते हैं ।
ग्रहण पुण्यकाल
जिन शहरों में शाम 5.17 के बाद चन्द्रोदय है वहाँ चन्द्रोदय से ग्रहण समाप्ति (रात्रि 8.42) तक पुण्यकाल है । जैसे अमदावाद का चन्द्रोदय शाम 6.21 से ग्रहण समाप्त रात्रि 8.42 तक पुण्यकाल है ।
शहरों का स्थान और चन्द्रोदय
नीचे कुछ मुख्य शहरों का चन्द्रोदय दिया जा रहा है उसके अनुसार अपने-अपने शहरों का ग्रहण के पुण्यकाल का जानकर अवश्य लाभ लें ।
इलाहाबाद (शाम 5.40), अमृतसर (शाम 5.58), बैंगलुरू (शाम 6.16), भोपाल (शाम 6.02), चंडीगढ़ (शाम 5.52), चेन्नई (शाम 6.04), कटक (शाम 5.32), देहरादून (शाम 5.47), दिल्ली (शाम 5.54), गया (शाम 5.27), हरिद्वार (शाम 5.48), जालंधर (शाम 5.56), कोलकत्ता (शाम 5.17), लखनऊ (शाम 5.41), मुजफ्फरपुर (शाम 5.23), नागपुर (शाम 5.58), नासिक (शाम 6.22), पटना (शाम 5.26), पुणे (शाम 6.23), राँची (शाम 5.28), उदयपुर (शाम 6.15), उज्जैन (शाम 6.09), वड़ोदरा (शाम 6.21), कानपुर (शाम 5.44)
(इन दिये गये स्थानों के अतिरिक्तवाले अधिकांश स्थानों में पुण्यकाल का समय लगभग शाम 5.17 से रात्रि 8.42 के बीच समझें ।)

ग्रहण के समय पालनीय
(1) ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते । जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए ।
(2) सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना । यदि गंगा-जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना फलदायी होता है ।
(3) ग्रहण-काल जप, दीक्षा, मंत्र-साधना (विभिन्न देवों के निमित्त) के लिए उत्तम काल है ।
(4) ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है ।
(संत श्री आशारामजी बापू आश्रम पुस्तक ‘क्या करें क्या न करें ?’ 
एवं ‘ऋषि प्रसाद’ )

Thursday, January 25, 2018

The Interpretation of Ramayana


As a Philosophy of Life.

Ra’ means light, ‘ Ma ’ means within me, in my heart.
So,
Rama means the Light Within Me..

Rama was born to Dasharath & Kousalya.

Dasharath means ‘ Ten Chariots ’..
The ten chariots symbolize the *five sense organs*( Gnanendriya ) & *five organs of action*( Karmendriya ) ..

Kousalya means ‘ Skill ’..

The skillful rider of the ten chariots can give birth to Ram...

When the ten chariots are used skillfully,
Radiance is born within..

Rama was born in Ayodhya.
Ayodhya means ‘ a place where no war can happen ’..

When There Is No Conflict In Our Mind, Then The Radiance Can Dawn..

The Ramayana is not just a story which happened long ago..
It has a philosophical, spiritual significance and a deep truth in it..

It is said that the Ramayana is happening in our Own Body.

Our Soul is Rama,
Our Mind is *Sita,
Our Breath or Life-Force ( Prana ) is Hanuman,
Our Awareness is Laxmana and
Our Ego is Ravana..

When the Mind (Sita),is stolen by the Ego (Ravana), then the Soul (Rama) gets Restless..

Now the SOUL (Rama) cannot reach the Mind (Sita) on its own..
It has to take the help of the Breath – the Prana (Hanuman) by Being In Awareness (Laxmana)

With the help of the Prana (Hanuman), & Awareness (Laxmana),
The Mind (Sita) got reunited with The Soul (Rama) and The Ego (Ravana) *died/ vanished...

In reality Ramayana is an eternal phenomenon happening all the time..

Wednesday, January 24, 2018

दो सुन्दर प्रसंग एक श्रीकृष्ण की और एक श्री रामजी की

माखन चोरी का.... 

माखन चोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।

उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी, कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगायेगा, घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी।

बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे।

श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया।

बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा:-

"देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना"

घंटी बोली "जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी"

बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया अपने सखाओं को खिलाया - घंटी नहीं बजी।

ख़ूब बंदरों को खिलाया - घंटी नहीं बजी।

अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया , त्यों ही घंटी बज उठी।

घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई।
ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई।
सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ाई में आ गये।

बाल कृष्ण बोले - "तनिक ठहर गोपी , तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो , पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ...क्यों री घंटी...तू बजी क्यो...मैंने मना किया था न...?"

घंटी क्षमा माँगती हुई बोली - "प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया , मैं नहीं बजी...आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया , मैं नहीं बजी , किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था...मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु...मंदिर में जब पुजारी  भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं...इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी और बजी..."

श्री गिरिराज धरण की जय...
श्री बाल कृष्ण की जय
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


उस समय का प्रसंग है जब
केवट भगवान के चरण धो रहा है.
बड़ा प्यारा दृश्य है, भगवान का एक पैर धोता  उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देता है,
और जब दूसरा धोने लगता है तो
पहला वाला पैर गीला होने से
जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है,
🍃केवट दूसरा पैर बाहर रखता है फिर पहले वाले को धोता है,
एक-एक पैर को सात-सात बार धोता है.
कहता है प्रभु एक पैर कठौती मे रखिये दूसरा मेरे हाथ पर रखिये, ताकि मैला ना हो.
जब भगवान ऐसा करते है
तो जरा सोचिये क्या स्थिति होगी , यदि एक पैर कठौती में है दूसरा केवट के हाथो में, भगवान दोनों पैरों से खड़े नहीं हो पाते बोले - केवट मै गिर जाऊँगा ?
🍃केवट बोला - चिंता क्यों करते हो सरकार !
दोनों हाथो को मेरे सिर पर रखकर खड़े हो जाईये, फिर नहीं गिरेगे ,
जैसे कोई छोटा बच्चा है जब उसकी माँ उसे स्नान कराती है तो बच्चा माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है,भगवान भी आज वैसे ही खड़े है.
🍃भगवान केवट से बोले - भईया केवट !
मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया.
केवट बोला - प्रभु ! क्या कह रहे है ?
🍃भगवान बोले - सच कह रहा हूँ केवट,
अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, कि
मै भक्तो को गिरने से बचाता हूँ पर
🍃आज पता चला कि,
भक्त भी भगवान को गिरने से बचाता है.

।।। जय राम जी की ।।।

Friday, January 19, 2018

प्री वेडींग समाज मे एक नया दूषण

(अवश्य पढे-अन्यथा आप भी तैय्यार रहे)
फिर पछतावत होत क्या जब चिड़ियां चुग जाये खेत-
प्री वेडिंग-यानी भारतीय संस्कृति के संपन्न घरेलु परिवारो में पश्चिमी संस्कृति का आगमन-
सम्माननीय बंधुवर
पिछले  1-2 वर्षो से देश में भारतीय संस्कृति से होने वाले विवाह समारोह में एक नया प्रचलन सामने आया है।जिसको वर्तमान में ऐसे परिवारो द्वारा आयोजित किया जा रहा है।जो समाज की रीढ़ कहे जाते है,जिनकी समाज में तूती बोलती है या जो समाज के संचालक होते है-उसका नाम है-प्री वेडिंग-
इसके तहत होने वाले दूल्हा- दुल्हन अपने परिवारजनो की सहमति से शादी से पुर्व फ़ोटो ग्राफर के एक समूह के साथ देश के अलग-अलग सैर सपाटो की जगह,बड़ी होटलो,हेरिटेज बिल्डिंगों,समुन्द्री बीच व अन्य ऐसी जगहों पर जहाँ सामान्यतः पति पत्नी शादी के बाद हनीमून मनाने जाते है। जाकर अलग- अलग और कम से कम परिधानों में एक दूसरे की बाहो में समाते हुए  वीडियो शूट करवाते है।और फिर ऐसी वीडियो फ़ोटो ग्राफी को शादी के दिन एक बड़ी सी स्क्रीन लगाकर।जहाँ लड़की और लड़के के परिवार से जुड़े तमाम रिश्तेदार मौजूद होंते है की उपस्थिति में सार्वजनिक रूप से उस कपल को वो सब करते हुए दिखाया जाता है जिनकी अभी शादी भी नहीं हुई है।और जिनको जीवन साथी बनने के साक्षी बनाने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिये ही सगे संबंधियो और सामाजिक लोगो को वहा बुलाया जाता है।लेकिन यह क्या गेट के अंदर घुसते ही जो देखने को मिलता है वह शर्मसार करने वाला होता है।जिस भावी कपल को हम वहा आशीर्वाद देने पहुँचते है।वो वहा पहले से ही एक दूसरे की बाहो में झूल रहे होंते है।और सबसे बड़ी बात यह है की यह सब दोनों परिवारो की सहमति से होता है।
और लड़का- लड़की कई दिन तक बाहर रहकर साथ में कई राते बिता चुके होंते है। यह सब देखकर एक विचार मन में आता है।जब सब कुछ हो चुका है तो आखिर हमें यहाँ क्यों बुलाया गया है।यह शुरुआत अभी उन घरानो से हो रही है।जो समाज के नेतृत्वकर्ता और समाज को राह दिखाने वाले बड़े बड़े समाजसेवी पैसे वाले है जो समाज सुधार की दिशा में कार्यक्रम करते रहते है। ऐसे बड़े परिवार  ऐसी शादियों को जो अपने पैसो के बल पर इस प्रकार की गलत प्रवर्तियो को बढ़ावा देकर समाज के छोटे तबके के परिवारो को संकट में डाल रहे है।मेरा समाज के उन सभी सभ्रांतजनो से अनुरोध है- अपने- अपने समाज में ऐसी पश्चिमी संस्कृति को बढ़ावा देने वाले परिवारो से ऐसी प्रवृत्ति को बंद करने का अनुरोध करे।अन्यथा ऐसी शादियों का सामाजिक बहिष्कार करे।तब ही ऐसी प्रवर्तियो पर रोक लगना संभव हो सकेगा।अन्यथा ऐसी संस्कृति से आगे चलकर समाज का इतना बड़ा नुकसान होंगा जिसकी भरपाई कई पीढ़ियों तक करना संभव नहीं हो सकेंगा और कुछ परिवारो की वजह से शादी जैसे पवित्र बंधन पर शादी से पूर्व ही एक बदनुमा दाग लगेगा।जिसका खामियाजा समाज के छोटे तबके को भुगतना पड़ेंगा।जिसकी परिणीति में शादी से पूर्व सम्बन्ध टूटना या शादी के बाद तलाक की संख्या में वृद्धि के रूप में होंगी।
    *जरूर सोचे एवं विचार करे की हम क्या कर रहे है।*
कोरियोग्राफर  के साथ भागी मुम्बई की अच्छे घरानो की तीन शादी - शुदा 👩🏻औरते*।

*बहुत से गांवों में बन्द हुए महिला संगीत , नाच - गाने*

*महिने दौ महिने तक बन्द कमरे में एक्शन सिखाने के बहाने कमर में हाथ डालकर नचाते हैं आपकी बहू - बेटीयों को... आखिर क्या हांसिल होता हे... शादी ब्याह में स्टेज पर कुछ ठुमके लगाने से... क्या वे नृत्य की राष्ट्रीय ऊचाइयों के आसपास भी होती है... फिर क्यों परिवार के लोग नृत्य के नाम पर कोरियोग्राफर की मदद लेकर अपने घर की इज्ज़त दांव पर लगाने में फक्र अनुभव करते है... वैसे शालीनता पूर्ण पारंपरिक नृत्य भी परफोर्मिंग होता तो भी सुन्दर होता है... ये अपना नाम बदल कर आने वाले कोरियोग्राफर , और उसके दोस्त*

🤔 क्या उचित है ये नाच - गाने और कोरियोग्राफर रखना , क्या पैसा इसीलिए कमाया था.. कौन और कितने समय याद रखता हे कोई इन.. लटके झटकों को.. ?

   सोचो , समझो और साजिश से बचो....

🙏🏼 *अपने घरों की इज्जत बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा फोरवड करें*
घनश्याम रामचंदानी नागपुर

Tuesday, January 16, 2018

मोहियाल पंजाबी ब्राह्मण : एक खतरनाक कौम


- भारत में ब्राह्मणों के कई लड़ाकू गोत्र हुए हैं। इनमें से प्रमुख भूमिहार (पूर्वांचल के लड़ाकू ब्राह्मण) और  पेशवा (मराठवाड़ा के देष्ठ और कोंकण ब्राह्मण) हैं जिनमें बाजीराव पेशवा, नानासाहेब पेशवा जैसे कई मशहूर नाम है। ऐसा ही एक लड़ाकू गोत्र ब्राह्मणों का है पंजाब के मोहयाल बामन।  इन मोहयाल पंजाबी ब्राह्मणों को ब्रिटिश और सिख इतिहासकारों ने भारत की सबसे निर्भीक, शेरदिल, लड़ाकू जाति बताया है।

पंजाब में एक कहावत है की अगर आपको गाँव में किसी मोहयाल के घर का पता लगाना हो तो आप देखिये की किस छत पर सबसे ज्यादा कौए बैठे हैं। या देखिये की कहाँ शस्त्र चलाने की प्रैक्टिस हो रही है। ज्यादा कौए का मतलब है की वहां आज मॉस बना है। यह ही मोहयाल का घर है। मोहयाल बामन एक मॉस खाने वाले बामन या लड़ाकू बामन माने गए हैं। इन बामनो की बहुत ही महान विरासत है। यह पंजाब के सरंक्षक माने गए हैं । कुछ इतिहासकारों का यह भी दावा है की विश्व विजेता सिकन्दर महान को हराने वाला राजा पोरस एक मोहयाल था। हालांकि कुछ इतिहासकार उन्हें सारस्वत वंश का ब्राह्मण बताते हैं। मोहयाल ब्राह्मण जरूर हैं और कट्टर हिन्दू रहे हैं इतिहासिक तौर पर इन्होंने कभी भी पाठ पूजा वाला काम नही किया। इनका मुख्य पेशा खेती और सेना में सेवा ही रही है। कुछ मोहयाल पशु पालन का व्यवसाय भी करते रहे हैं।

मोहियाल - संक्षेप इतिहास :

मोहयाल बामनो का इतिहास भारत में तैनात रहे ब्रिटिश अफसर P.T. Russel Stracey की किताब “The History of the Mohiyals, the martial Race of India” में मिलता है जो उन्होंने अपने लाहौर प्रवास के दौरान लिखी थी। मोहयाल या मुझाल पंजाबी बामन पंजाब का ऐसा सम्प्रदाय है जिसपर पूरा पंजाबी समाज गर्व ले सकता है। इन बामनो का काम कभी पूजा पाठ करना नही रहा। इतिहासिक रूप से यह पंजाब और अफ़ग़ानिस्तान के हुकुमरान रहे हैं जिनकी रियासत अरब और पर्शिया तक रही। गोरा रंग, ताकतवर शरीर, लम्बा कद इन ब्राह्मणों की पहचान है। आज यह बड़े सरकारी ओहदों और बिज़नस पोस्ट्स पर काबिज हैं।

मोहयाल ब्राह्मण सिर्फ हिन्दू ही नही बल्कि मुसबित के समय अपने योगदान और बलिदान के लिए मुस्लिम और सिख समाज में भी सम्मानित रहे हैं। हम सबने करबला के उस युद्ध के बारे में पढ़ा होगा जिसमे हज़रत मुहम्मद साहब की बेटी फातिमा के बेटे हुसैन को शहीद कर दिया गया था अक्टूबर 18, 680 AD में यजीदी सेना द्वारा। इसी युद्ध में एक मोहयाल बादशाह रहीब हुसैन और हसन साहब की तरफ से लड़े , वे आज भी वही रहते है

युद्ध, साम्राज्य और कुर्बानी की मिसालें :
जब नवम्बर 1675 में सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर को औरंगज़ेब ने दिल्ली में शहीद किया तो उनके साथ शहीदी लेने वाले भाई सती दास, भाई मति दास और भाई दयाल दास तीनों ही मोहयाल बामन थे जो मुगल सेना से युद्ध में सेना का नेतृत्व करते थे।मशहूर इतिहासकार डॉ हरी राम गुप्ता के अनुसार पंजाब कीशाही ब्राह्मण वंशवली जिसने पंजाब, सिंध और अफ़ग़ानिस्तान पर 500 वर्ष तक राज किया वो सभी मोहयाल ब्राह्मण थे।  इन शाही ब्राह्मणों की राजधानी नन्दना ( आज का सियालकोट जो पाकिस्तान में है) थी। मुहम्मद ग़ज़नवी जिसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया वो इन बामनो से अक्सर मार खा कर वापिस जाता रहा। 10वीं शताब्दी में इन ब्राह्मणों का साम्राज्य वजीरिस्तान से सरहिंद और कश्मीर से मुल्तान तक था। इसके अलावा शाहपुर की रियासत के इलाके भी इनके कब्जे में थे।⁠⁠⁠⁠

एक अन्य वंश के मोहयाल ब्राह्मण राजा हुए राजा दाहर शाह। इन्होंने बहलोल लोधी के समय में उसके एक सुलतान को हराया। इनके पिता ने पंजाब और सिंध में अपना साम्राज्य स्थापित किया और राजा दाहर ने इसे यमुना के किनारों से लेकर जम्मू तक फैला लिया और पुरे सिंध को भी अपने कब्जे में ले लिया। जब दाहर शाह राजा बने तब पंजाब और सिंध का यह इलाका बौद्ध था। उन्होंने घोषणा की जो हिन्दू होगा केवल वही जीवित रहेगा। उन्होंने पुरे साम्राज्य को हिन्दू साम्राज्य घोषित कर दिया। इस वंश के वंशजों ने 200 साल से अधिक समय तक राज्य किया।

राजा दाहर शाह

कुछ ऐसे ही मशहूर मोहयाल लड़ाकू हुए जैसे भाई परागा ( जो चमकौर के युद्ध में लड़े) , मोहन दास, भाई सती दास, भाई मति दास, पंडित कृपा दत्त ( गुरु गोबिंद को शस्त्र विद्या सिखाने वाले), भाई दयाल दास आदि।

सिख इतिहासकार प्रोफेसर मोहन सिंह दावा करते हैं गुरु गोबिंद के बाद सिख सेनाओं का नेतृत्व करने वाले बन्दा बहादुर उर्फ़ लक्ष्मण दास भी एक मोहयाल ब्राह्मण थे। हालाँकि बहुत से इतिहासकार उन्हें सारस्वत पंजाबी ब्राह्मण भी बताते हैं। भाई परागा ने छठे सिख गुरु हरगोबिन्द के समय मुगलों से युद्ध में सेना का नेतृत्व किया। खालसा पन्थ की स्थापना में सबसे आगे यह मोहयाल ब्राह्मण ही थे। उससे पहले भी इन्ही ब्राह्मणों ने अपने कुल से एक बेटा देने की प्रथा शुरू की थी गुरु की सेना में ताकि धर्म युद्ध को ज़िंदा रखा जा सके। यह लोग बहादुर थे और फ़ौज में लड़ना इनका प्रमुख पेशा था। 17वीं शताब्दी की शुरुआत तक मोहयाल ही प्रमुख खालसा लड़ाके रहे और सेनाओं का नेतृत्व भी इनके हाथ में ही रहा। पेशवा ब्राह्मणों की तरह युद्ध करने की जरूरत के कारण यह ब्राह्मण भी मासाहारी थे।

ब्राह्मण भाई परागा

सिख इतिहास का बारीकी से विश्लेषण बताता है की मोहयाल सिर्फ गुरु की तरफ से लड़ने वाके ब्राह्मण नही थे बल्कि इन्होंने सिख धर्म का नेतृत्व भी किया गुरुयों के बाद। 18वीं सदी तक सिखों के बहुत से आंदोलनों का नेतृत्व मोहयाल ही करते रहे। महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बहुत से मोहयाल बामन सेना में प्रमुख के तौर पर तैनात रहे। खालसा पन्थ की स्थापना में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा और यह सिख धर्म की रक्षा के लिए भी लड़े और बहुत से बलिदान दिए हालाँकि यह हमेशा कट्टर हिन्दू के तौर पर ही जाने गए।

ब्राह्मण बन्दा बहादुर

ब्रिटिश इंडिया के समय और आज़ाद भारत में मोहयाल बामनो का फ़ौज में बहुत बड़ा योगदान रहा है। अंग्रेजों के समय में भारत की आर्मी में ब्राह्मणों की 2 regiments थीं। एक थी “Ist Brahmins Regiment” और दूसरी Bengal Regiment ( जो नाम की ही बंगाल रेजिमेंट थी, यह पूर्वांचल के भूमिहार ब्राह्मण जो आज भी अपनी बहादुरी के कारण अपने नाम के साथ सिंह लिखते हैं, उनके लिए थी और उनकी संख्या इसमें 90% तक थी) ।

ब्राह्मण रेजिमेंटें और मोहियाल : 

ब्रिटिश इंडिया के समय और आज़ाद भारत में मोहयाल बामनो का फ़ौज में बहुत बड़ा योगदान रहा है। अंग्रेजों के समय में भारत की आर्मी में ब्राह्मणों की 2 regiments थीं। एक थी “Ist Brahmins Regiment” और दूसरी Bengal Regiment ( जो नाम की ही बंगाल रेजिमेंट थी, यह पूर्वांचल के भूमिहार ब्राह्मण जो आज भी अपनी बहादुरी के कारण अपने नाम के साथ सिंह लिखते हैं, उनके लिए थी और उनकी संख्या इसमें 90% तक थी) ।

Ist Brahmins Regiment का बैच

Ist Brahmins Regiment में ज्यादातर सैनिक मोहयाल बामन या सारस्वत पंजाबी बामन ही थे। इस रेजीमेंट को 1942 में बन्द कर दिया गया। ऐसे ही बंगाल रेजिमेंट में भूमिहारों की भरती पर रोक लगा दी गयी । इसका कारण था की 1857 के विद्रोह में इन रेजिमेंटों ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियारबन्द विद्रोह किया। फिर 1942 में इन्होंने आज़ादी मांगते हुए द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेज़ो की तरफ से लड़ने को मना कर दिया। ब्रिटिश यह बात समझ चूके थे की आज़ादी के लड़ाई में बलिदान देने और इसका नेतृत्व करने में ब्राह्मण ही सबसे आगे हैं। 1857 में मंगल पाण्डे का विद्रोह, फिर नाना साहेब ब्राह्मण की सेना का लखनऊ और कानपूर की रियासत पर कब्जा , रानी लक्ष्मी बाई , तांत्या टोपे जैसे ब्राह्मण राजाओं का विद्रोह जो अंग्रेजों पर बहुत भारी पड़ा।  इसके अलावा भारत रिपब्लिकन आर्मी के प्रमुख पंडित आज़ाद, उनके सहयोगी बिस्मिल , राजगुरु ,BK दत्त आदि, महानतम राष्ट्रवादी क्रन्तिकारी सावरकर और ऐसे ही कई अन्य आदि सभी ब्राह्मण थे और इन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य को बहुत नुकसान पहुंचाया। इसलिए बामन समाज में अंग्रेओं का विश्वास बिलकुल नही रहा। इसलिए अंग्रेज़ो को लगा की यह बामन अगर सेना में रहे तो बार बार विद्रोह करेंगे, इसलिए Ist Brahmins Regiment को बन्द कर दिया गया और बंगाल रेजिमेंट में सिर्फ मुसलमानों और यादवों की भर्ती रखी गयी।  ब्रिटिश लोगों ने सेना में सिर्फ अपनी वफादार रेजिमेंटों को रखा और दुर्भाग्य से आज़ादी के बाद भारत गणराज्य ने प्रशासन ना चला पाने की अपनी कम समझ की वजह से सेना के ठीक उसी प्रारूप को चालू रखा बिना किसी छेड़ छाड़ के और बामनों को उनकी पहचान यानि उनकी रेजिमेंटों से दूर कर दिया गया।

बंगाल रेजिमेंट के भूमिहार ब्राह्मण सैनिक

मोहयालों का सिख धर्म से दूर होना :

यह जानना काफी रोचक है की मोहयाल सिख धर्म से दूर कैसे हुए। इसका एक कारण था की पंजाब में मोहयाल और सिख समाज ने अंग्रेजों को पुरे भारत के मुकाबले सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई थी। इसलिए अंग्रेजों ने इनमे फुट डाली। इसके अलावा स्वामी दयानंद ने जब आर्य समाज का प्रचार शुरू किया । तब उन्होंने पाया की सिख धर्म वैदिक सनातन धर्म के विपरीत जा चुका था। इसलिए उन्होंने वैदिक मान्यताओं को दुबारा लोगों को बताया। आर्य समाज को पंजाब के लाहोर , रावलपिंडी आदि में बड़ा समर्थन मिला।इसके अलावा 20वीं शताब्दी की शुरुआत में अकाली लहर और सिंह सभा का प्रभाव चला। इसके प्रभाव से कई गुरुद्वारों से ब्राह्मणों को बाहर निकाल दिया गया। यहाँ तक हरिमंदिर साहिब से मूर्तियां निकाल कर बाहर कर दी गयीं। इसका सीधा प्रभाव मोहयालों पर पड़ा। वो सिखों से अलग हो गए। जट्ट सिख सिख धर्म के सर्वेसर्वा हो गए और मोहयाल और सिखों के सम्बंधों में दुरी आ गयी|

Noted Mohyal Brahmins of current era :

Former Army General Arun Vaidya ( who lead operation Bluestar, martyred later in a terrorist attack)
Former Army Major G.D. Bakshi
Most awareded soldier of Indian army Lt. General Zorawar Bakshi Former Army General Yogi Sharma Captain Puneet Dutt (martyred in Jammu) Lt. Saurabh Kalia (martyred in Kargil war) Major Somnath Sharma (Martyred in Kahmir Battle, awarded Paramveer Chakra) Film actor Sanjay Dutt, Ajay Devgan  Crickter Madan Lal and Chetan Sharma (Ist Indian to take a Hattrick) Olympic medalist wrestler Yogeshwar Dutt (bronze medal) Olympic medalist shooter Vijay Kumar (silver medal) Rakesh Sharma (First Indian into Space) Citibank CEO Vikram Pandit, Rahul Sharma (CEO Micromax), Shikha Sharma (M.D. Axis Bank), Vijay Shekhar Sharma (founder Paytm), Rakesh Sharma (MD and CEO, Canara Bank), Captain Anup (CEO Essar Group) and many more

Army Chief General Arun Vaidya

Lt. General Zorawar Bakshi, Most Awarded Soldier of India, PVSM,MVC,VrC,VSM

Army Chief General VN Sharma

General GD Bakshi

Lt_Gen_Praveen_Bakshi

Major General AN Sharma

Lt. Puneet Dutt

Captain Saurabh Kalia

Martyr Mohan Sharma

Sitara-E-Hind titled wrestler Biddo Brahmin

Yogeshwar Dutt

Bollywood Actors of Mohiyal Brahmin Community