वेद : सृष्टि के आदिकाल से है । इन्हें किसी ने लिखा नहीं है । ये स्वयं भगवान ब्रह्मा के मुख से प्रगट हुए हैं । आज जितना भी विज्ञान है वह सब हमारे वेदों में पहले से ही निहित है । जैसे नवग्रह विज्ञान ने अब जाकर खोजे लेकिन वह तो वेदों ने हजारों सालों पहले ही बता दिया, रामायण में भी प्रमाण मिलता है । और अब हम इसका अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि यह मानव निर्मित बुद्धि से परे है । वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ है । वेद प्राचीन भारत के सबसे पवित्रतम ग्रंथ है , जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ है । भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रंथ है, जो ईश्वर का ज्ञान है । ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रन्थों में है जिनके पवित्र मंत्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं ।
'वेद ' शब्द संस्कृत भाषा के विद् ज्ञाने धातु से बना है । इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान ' है । इसी धातु से 'विदित ' (जाना हुआ), 'विद्या ' (ज्ञान) ,'विद्वान ' (ज्ञानी) जैसे शब्द आये हैं ।
आज 'चतुर्वेद ' के रूप में ज्ञात इन ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है-
ॠग्वेद- सबसे प्राचीन तथा प्रथम वेद जिसमें मंत्रों की संख्या 10589 है, इसका मूल विषय ज्ञान है । विभिन्न देवताओं का वर्णन है, तथा ईश्वर की स्तुति आदि ।
सामवेद- इस वेद का प्रमुख विषय उपासना है । संगीत में गाने के लिए 1875 संगीतमय मंत्र है ।
यजुर्वेद- इसमें कार्य (क्रिया) व यज्ञ (समर्पण ) की प्रक्रिया के लिए 1975 गद्यात्मक मंत्र है ।
अथर्ववेद- इसमें गुण, धर्म, आरोग्य एवं यज्ञ के लिए 5977 कवितामयी मंत्र है ।
वेदों को अपौरुषेय (जिसे कोई व्यक्ति न कर सका हो, यानि ईश्वर कृत) माना गया है । यह ज्ञान विराट पुरूष से वा कारणब्रह्मा से श्रुति परंपरा के माध्यम से सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने प्राप्त किया माना गया है । इन्हें श्रुति भी कहते है जिसका अर्थ है 'सुना हुआ ज्ञान ' । अन्य आर्य ग्रंथों को स्मृति कहते हैं, यानि वेदज्ञ मनुष्यों की वेदानुगत बुद्धि या स्मृति पर आधारित ग्रंथ । वेद के समग्र भाग को मंत्र संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद के रूप में जाना जाता है । इसमें प्रयुक्त भाषा वैदिक संस्कृति कहलाती है, जो अलौकिक संस्कृति से कुछ अलग है । जो ऐतिहासिक रूप से प्राचीन भारत और हिन्द-आर्य जाति के बारे में वेदों को एक अच्छा संदर्भ श्रोत माना गया है । संस्कृति भाषा को प्राचीन रूप को लेकर भी इनका साहित्यिक महत्व है । वेदों को समझना प्राचीनकाल में भारतीय और बाद में विश्व भर में वार्ता का विषय बना रहा । इसको पढ़ने के लिए छः उपांगो की व्यवस्था है । शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द और ज्योतिष के अध्ययन के बाद ही प्राचीनकाल में वेदाध्ययन पूर्ण माना जाता था । प्राचीनकाल में ब्रह्मा, वशिष्ठ, शक्ति, पराशर, वेदव्यास, जैमिनी, याज्ञवल्क्य, कात्यायन इत्यादि ॠषियों को वेदों के अच्छा ज्ञाता माना जाता है । मध्यकाल में रचित व्याख्याओं में सायण का चतुवेदभाष्य 'माधवीय वेदार्थदीपिका ' बहुत मान्य है । 🙏🙏🙏👏👏👏
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