बग में आम गिरे थे बहुत सारे,
मेने एक भी पत्थर नहीं मारे,
अंधी तूफ़ां का ये चपेट था,
प्रकृति माँ का दिया भेंट था,
बीन बीनकर, में थक सा गया था!
आम गिरेथे काफी वहा पर!! कोई ना था!
याद आ गई दो दिन पेहेले की बात
यू ही तूफा गर्जी थी! दीन की ये बात,
जमा थे काफि लोग पेड़ के नीचे,
में रह गया था सब से पीछे!
सब भर भर ले गये आम से थैली,
उदास रह गया था में! खाली झोली,
दिल ने बस कहीं इतनिसि बात! प्रकृति माँ से!
"मन मुझे भी था एक आम खाने का यहाँ से"
प्रकृति माँ ने सुन ली मेरी छोटी फरियाद!
पेहली वाली पंक्ति है, किस्सा! दो दीन बाद!!
||राम राम||
जय माँ प्रकृति
जय कलयुग
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