पूरे भारत में अपनी नीतियों के कारण मशहूर सम्राट अकबर की मौत के बाद ऐसा होगा, यह उस वक्त किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। बताते हैं कि औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति से गुस्साए जाट राजा ने अकबर के मकबरे ‘सिकंदरा’ पर हमला कर दिया था। राजाराम ने कब्र खुदवा कर अकबर की हडि्डयां निकाल ली थी। चिता बनाकर इन हडि्डयों को हिन्दू रीति से जला दिया गया था।
उस वक्त औरंगजेब दक्षिण भारत में कई युद्धों में फंसा हुआ था। जाट राजा के इस आक्रमण से मकबरे से दस किलोमीटर दूर आगरा किला में मौजूद सेना डर से यहां नहीं पहुंची थी। बाद में राजाराम के भाई ने मकबरे में आग लगा दी थी।
इस बांके वीर द्वारा औरंगजेब की धर्म विरोधी नीतियों के खिलाफ विद्रोह के बारे में ठाकुर सुरजनसिंह शेखावत अपनी पुस्तक ‘गिरधर वंश प्रकाश’ जो राजस्थान के तत्कालीन खंडेला ठिकाने का वृहद् इतिहास है में लिखते है : –
मेवात प्रान्त के बृजमंडल-क्षेत्र के निवासी जाट,यद्धपि खेतिहर किसान थे, किन्तु वे जन्म-जात लड़ाकू वीर योद्धा भी थे | अन्याय और अत्याचार के प्रतिकार हेतु शक्तिशाली सत्ता-बल से टकराने के लिए भी वे सदैव कटिबद्ध रहते थे | बादशाह औरंगजेब की हिन्दू धर्म विरोधी नीति व मथुरा व वृन्दावन के देवमन्दिरों को ध्वस्त करने के चलते उत्तेजित जाटों ने गोकुला के नेतृत्व में संगठित होकर स्थानीय मुग़ल सेनाधिकारियों से डटकर मुकाबला किया था | उनसे लड़ते हुए अनेक मुग़ल मनसबदार मारे गए | जाटों ने गांवों का लगान देना बंद कर दिया | मुग़ल सेना से लड़ते हुए गोकुला के मारे जाने पर सिनसिनी गांव के चौधरी भज्जाराम के पुत्र राजाराम जो अप्रतिम वीर एवं योद्धा था ने उस विद्रोह का नेतृत्व संभाला |
राजाराम ने बादशाह के खालसा गांव में जमकर लूटपाट की एवं दिल्ली आगरा के बीच आवागमन के प्रमुख मार्गों को असुरक्षित बना दिया | जो भी मुग़ल सेनापति उसे दबाने व दण्डित करने के लिए भेजे गए वे सब पराजित होकर भाग छूटे |
राजाराम ने आगरा के समीप निर्मित सम्राट अकबर के भव्य एवं विशाल मकबरे को तोड़फोड़ कर वहां पर सुसज्जित बहुमूल्य साजसामान लुट लिया व कब्रों को खोदकर सम्राट अकबर व जहाँगीर के अवशेषों (अस्ति-पंजरों) को निकालकर अग्नि को समर्पित कर दिया | केसरीसिंह समर के वर्णानुसार :–
ढाही मसती बसती करी, खोद कबर करि खड्ड |
अकबर अरु जहाँगीर के , गाडे कढि हड्ड ||
केसरीसिंह समर का उक्त वर्णन अतिश्योक्ति न होकर एक प्रमाण-पुष्ट तथ्य है, जिसकी पुष्टि तत्कालीन फ्रेंच यात्री निकोलो-मनूची के यात्रा विवरण के निम्नांकित उल्लेख से भी होती है | उसने लिखा है –
‘The Sikandara was looted by jats in march 1688 A.D. Even the skelaton of Akbar the great,was taken out and the bones were consumed to flames ‘ (Storia-Mogor by Manucci)
प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहास लेखक विन्सेंट स्मिथ ने भी अपनी पुस्तक “अकबर दी ग्रेट मुग़ल” में निकोलो-मनूची के उल्लेख की पुष्टि करते लिखा है: –
बादशाह औरंगजेब जब दक्षिण में मराठा युद्ध में सलंग्न था -मथुरा क्षेत्र के उपद्रवी जाटों ने सम्राट अकबर का मकबरा तोड़ डाला | उसकी कब्र खोदकर उसके अवशेष अग्नि में जला डाले | इस प्रकार अकबर की अंतिम आंतरिक -इच्छा की पूर्ति हुई |'(Akbar the great mugal-P328, vincent smith)
आगरा सूबा में नियुक्त मुग़ल सेनाधिकारियों से राजाराम का दमन नहीं किया जा सका, तो बादशाह ने आम्बेर के राजा बिशनसिंह को, जिसका पिता राजा रामसिंह उन्ही दिनों में मृत्यु को प्राप्त हुए थे - मथुरा का फौजदार बनाकर जाटों के विरुद्ध भेजा | राजा बिशनसिंह उस समय नाबालिग था सो लाम्बा का ठाकुर हरिसिंह उसका अभिभावक होने के नाते सभी कार्य संचालित करता था | ठाकुर हरीसिंह ने ही खंडेला के राजा केसरी सिंह जो खुद भी बाद में औरंगजेब का विद्रोही बना और शाही सेना से युद्ध करता हुआ वीर गति को प्राप्त हुआ था को समझाकर साथ ले आया था | हालांकि खंडेला का राजा केसरीसिंह उस वक्त शाही सेवा में नहीं था |
केसरीसिंह समर के अनुसार- ‘राजाराम को दण्डित करने हेतु राजा केसरीसिंह को भी शाही फरमान भेज कर आमंत्रित किया गया था | अपने भाई बांधवों के साथ केसरीसिंह ने युद्धार्थ प्रयाण किया | रेवाड़ी परगने के खोहरी नामक कस्बे के पास अपनी सैनिक चौकी स्थापित करके केसरीसिंह ने राजाराम के ठिकानों पर आक्रमण किए | राजाराम भी मुकाबले के लिए अपने साथियों के आया और दोनों दलों के बीच जमकर घोर युद्ध हुआ | जाटों की सेना पराजित होकर समर-भूमि से पलायन कर गई | “जाटों के नवीन इतिहास” के अनुसार -राजाराम युद्ध में घायल होकर बंदी बना लिया गया था | सेना के मुग़ल सैनिकों ने उसका मस्तक काटकर बादशाह के पास भेज दिया | इस प्रकार इस जाट वीर ने धर्म विरोधी शाही नीति के खिलाफ विद्रोह में वीर-गति प्राप्त की |
असल में अकबर की कब्र पर बहुत ही भव्य मकबरा बनवाया गया था।
लेकिन राजाराम जाट ने वहां युद्ध करके हिन्दू विरोधी अकबर और जहांगीर की कब्र उखाड़कर उनकी अस्थियां बाहर निकाल कर हिन्दू रीती के अनुसार जलवा दिया था। अकबर ने जीते जी अपना मकबरा बनवा लिया था पर उसने सपने में भी नही सोचा होगा कि उसका मरने के बाद भी उसके साथ ये हाल होगा।
आज अगर उनकी कब्र होती तो सेक्युलर हिन्दू वहां माथा टेकते मिलते।हमे गर्व है इस वीर पर जो आज उनके लिए उन अत्याचारियों की निशानी तक नही छोड़ी।
ढाही मसती बसती करी, खोद कबर करि खड्ड |
अकबर अरु जहाँगीर के , गाडे कढि हड्ड ||
बादशाह अकबर के अंतिम विश्राम कक्ष को छोड़ सारे मक़बरे में सोने, चांदी और रत्नों के साथ मीनाकारी की गई थी, जो कि समय-समय पर लूट की बलि चढ़ते गए। मुगल साम्राज्य के अन्त के बाद ....एक जाट राजा
राम जाट मुगलों के प्रति अपना भयंकर गुस्सा को इस मक़बरे पर निकाला।उसने मक़बरे के भीतर भूसा भर कर उसे आग लगा दी.... और दीवारों और छतों पर लगा सोना-चांदी पिघला कर इकटठा किया। खजाने के लालच में अकबर की कब्र को भी तोड़ा और आग लगाई, इससे मक़बरे में भारी क्षति हु फिर बाद में अंग्रेजी हुकूमत के लार्ड करज़न ने इस मकब़रे की मुरम्मत करवाई, शायद यही बजह हैं कि भीतरी कक्ष इतना सादा है।
बादशाह अकबर की दोनों पुत्रियाँ... सकरुल निशा बेगम और अराम बानो की कब्र | अकबर की कब्र यह सिर्फ मूर्ख बनाने के लिए हे इनमे कुछ नहीं एक खोल हे बस |
भारत में औरंगज़ेब का शासन चल रहा था और हिन्दुओं का जीना मुश्किल हो गया था। औरंगज़ेब, जिसने अपने पिता को ही कैद कर लिया था, जिसने तख्त के लिए अपने भाइयॊं को ही मार दिया था वह भारत के हिन्दुओं को कैसे शांती से जीने दे सकता था? हिन्दुओं पर औरंगज़ेब के अत्याचार दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे थे। औरंगज़ेब से लोहा लेने एक वीर बहादुर जाट तय्यार हो गया जिसका नाम था राजाराम। राजाराम जाट, भज्जासिंह का पुत्र था और सिनसिनवार जाटों का सरदार था। वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी था, वह एक साहसी सैनिक और विलक्षण राजनीतिज्ञ था। उसने बड़ी चतुराई से जाटों के दो प्रमुख क़बीलों-सिनसिनवारों और सोघरियों (सोघरवालों) को आपस में मिलाया। सोघर गाँव सिनसिनी के दक्षिण-पश्चिम में था। रामचहर सोघरिया क़बीले का मुखिया था। राजाराम और रामचहर सोघरिया शीघ्र ही मुघलों के अत्याचारों का विरॊध करने लगे।
सिनसिनी से उत्तर की ओर, आऊ नामक एक समृद्ध गाँव था। यहाँ मुघलों का सैन्य दल नियुक्त था। लगभग 2,00,000 रुपये सालाना मालगुज़ारी वाले इस क्षेत्र में व्यवस्था बनाने के लिए एक चौकी बनाई गयी थी। इस चौकी अधिकारी का नाम था लालबेग, जो एक नीच पशु प्रव्रुत्ती का व्यक्ति था। एक दिन एक अहीर अपनी पत्नी के साथ गाँव के कुएँ पर विश्राम के लिए रुका। लालबेग का एक कर्मचारी उधर से गुज़र रहा था, वह अहीर युवती की अतुलनीय सुन्दरता को देखता है और तुरन्त लालबेग को ख़बर देता है। लालबेग अपने सिपाही भेजकर अहीर पती और पत्नी को जबरन अपने चौकी पर लाने को कहता है। उसके सिपाही पती को तो छोड़ देतें हैं लेकिन पत्नी को लालबेग के निवास में भेज देते हैं।
यह खबर आग की तरह फैल जाती है और राजाराम के कानों में पड़ती है। राजाराम ठान लेता है की वह मुघलों को सबक सिखा के ही रहेगा। उसने अपने सैन्य को युद्ध के लिए तय्यार किया और लालबेग को मारने की यॊजना बनाई। यॊजना के अंतर्गत वह अपने सिपाहियों के साथ गोवर्धन में वार्षिक मेले में जानेवाली घास की बैल गाड़ियों में छुप जाता है। लालबेग को अंदाज़ा भी नहीं था की राजाराम और उसके सिपाही घास के अंदर छुपे हुए हैं और वह गाड़ियों को अंदर जाने की अनुमति देता है। चौकी को पार करते ही राजारम और सिपाहियों ने गाड़ियों में आग लगा दिया। उसके बाद भयंकर युद्ध हुआ और उसमें लालबेग मारा गया।
इस युद्ध के बाद राजाराम ने अपने क़बीले को सुव्यवस्थित सेना बनाना प्रारम्भ कर दिया। अस्त्र-शस्त्रों से युक्त उसकी सेना अपने नायकों की आज्ञा मानने को हमेशा तय्यार रहती थी। राजाराम ने जाट-प्रदेश के सुरक्षित जंगलों में छोटी-छोटी क़िले नुमा गढ़ियाँ बनवादी। इन पर गारे की (मिट्टी की) परतें चढ़ाकर मज़बूत बनाया गया जिन पर तोप-गोलों का असर भी ना के बराबर था। राजाराम की चर्चे चारों दिशा में होने लगी। उसने मुघल शासन से विद्रोह कर उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उसने धौलपुर से आगरा तक की यात्रा के लिए प्रति व्यक्ति से 200 रुपये लेना शुरू किया। इस एकत्रित धन को राजाराम अपने सैन्य को प्रशिक्षित करने में लगाता, जो मुघलों को ढूंढ़-ढूंढ़ कर मारती थी। जिस प्रकार मुघलों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा था उसी प्रकार राजाराम उनके मकबरों और महलों को तोड़ते थे। राजाराम के भय से मुघलों ने बाहर निकलना बन्द कर दिया था।
राजाराम की वीरता की बात औरंगज़ेब के कानों तक भी पहुंची। उसने तुरन्त कार्रवाई की और जाट- विद्रोह से निपटने के लिए अपने चाचा, ज़फ़रजंग को भेजा। राजाराम ने उसको भी धूल चटाई। उसके बाद औरंगजेब ने युद्ध के लिए अपने बेटे शाहज़ादा आज़म को भेजा। लेकिन उसे वापस बुलाया और आज़म के पुत्र बीदरबख़्त को भेजा। बीदरबख़्त बालक था इसलिए ज़फ़रजंग को प्रधान सलाहकार बनाया। बार-बार के बदलावों से शाही फ़ौज में षड्यन्त्र होने लगे। राजाराम ने मौके का फ़ायदा उठाया, बीदरबख़्त के आगरा आने से पहले ही राजाराम ने मुग़लों पर हमला कर दिया।
सन् 1688, मार्च में राजाराम ने सिकंदरा में मुगलो पर आक्रमण किया और 400 मुगल सैनिकों को काट दिया। कहते हैं की राजाराम ने अकबर और जहांगीर के कब्र को तोड़ कर उनकी अस्थियों को बाहर निकाला और जला कर राख कर दिया।
मनूची का कथन है कि जाटों ने काँसे के उन विशाल फाटकों को तोड़ा। उन्होंने बहुमूल्य रत्नों और सोने-चाँदी के पत्थरों को उखाड़ लिया और जो कुछ वे ले जा नहीं सकते थे, उसे उन्होंने नष्ट कर दिया था। राजाराम के साहस की चर्चा होती थी और मुगल शासक उनसे डरते थे। जिस युद्ध के बीज औरंगज़ेब के अत्याचारों ने बोए थे उसे राजाराम ने नष्ट कर दिया। औरंगज़ेब के अत्याचार, हिन्दू मन्दिरों के विनाश और मन्दिरों की जगह पर मस्जिदों का निर्माण करने से जनता के मन में बदले की भावना पनप चुकी थी। इसी कारण से लोग मुघल शासन के विरुद्द विद्रोह करने लगे थे।
राजाराम एक शूर वीर नायक की तरह उभर आया और मुगलो को उसने धूल चटाई। 4 जुलाई 1688 को मुघलों से युद्ध करते समय धोखे से उन पर मुघल सैनिक ने पीछे से वार किया और वो शहीद हो गए। राजाराम का सिर काटकर औरंगज़ेब के दरबार मे पेश किया गया और रामचहर सोघरिया को जिंदा पकड़कर आगरा ले जाया गया जहां उनका भी सिर कलम कर दिया गया। हमारी किताबें हमें इन शूर-वीर नायकों के बारे में नहीं बताती और ना ही कोई इन पर सिनेमा बनाता है। ऐसा करने से भारत की सेक्यूलरिस्म खतरे में आ जाती है। हिन्दु राजाओं को दहशतगर्द बताकर मुघल मतांदों को महानायक बताना सेक्युलरिस्म है। भारत के सच्चे इतिहास को छुपाकर झूठ फैलाकर वर्षों से लोगों को मूर्ख बनाया गया है। सत्य को चाहे लाख छुपाए लेकिन सत्य नहीं छुपता और एक न एक दिन उजागर हॊता ही है।
जय हिन्दू वीर राजाराम जाट। जय हिन्दुत्व।
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