Tuesday, July 23, 2019

ईश्वर और अल्लाह एक नहीं हैं

#ईश्वर_और_अल्लाह_एक_नहीं_हैं

१) - ईश्वर सर्वव्यापक (omnipresent) है, जबकि अल्लाह सातवें आसमान पर रहता है।

२) - ईश्वर सर्वशक्तिमान (omnipotent) है, वह कार्य करने में किसी की सहायता नहीं लेता, जबकि अल्लाह को फरिश्तों और जिन्नों की सहायता लेनी पडती है।

३) - ईश्वर न्यायकारी है, वह जीवों के कर्मानुसार नित्य न्याय करता है, जबकि अल्लाह केवल क़यामत के दिन ही न्याय करता है, और वह भी उनका जो की कब्रों में दफनाये गए हैं।

४) - ईश्वर क्षमाशील नहीं, वह दुष्टों को दण्ड अवश्य देता है, जबकि अल्लाह दुष्टों, बलात्कारियों के पाप क्षमा कर देता है। मुसलमान बनने वाले के पाप माफ़ कर देता है।

५) - ईश्वर कहता है, "मनुष्य बनों" मनु॑र्भव ज॒नया॒ दैव्यं॒ जन॑म् - ऋग्वेद 10.53.6,
जबकि अल्लाह कहता है, मुसलमान बनों सूरा-2, अलबकरा पारा-1, आयत-134,135,136

६)- ईश्वर सर्वज्ञ है, जीवों के कर्मों की अपेक्षा से तीनों कालों की बातों को जानता है,जबकि अल्लाह अल्पज्ञ है, उसे पता ही नहीं था की शैतान उसकी आज्ञा पालन नहीं करेगा, अन्यथा शैतान को पैदा क्यों करता.......?

७) - ईश्वर निराकार होने से शरीर-रहित है, जबकि अल्लाह शरीर वाला है,एक आँख से देखता है।

मैंने (ईश्वर) ने इस कल्याणकारी वेदवाणी को सब लोगों के कल्याण केसलिए दिया हैं-
यजुर्वेद 26/

''अल्लाह 'काफिर' लोगों (गैर-मुस्लिमो ) को मार्ग नहीं दिखाता'' (१०.९.३७ पृ. ३७४) (कुरान 9:37)

८) - ईशवर कहता है सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
देवां भागं यथापूर्वे संजानाना उपासते।-(ऋ० १०/१९१/२)

#अर्थ:-हे मनुष्यो ! मिलकर चलो,परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार पूर्व विद्वान,ज्ञानीजन सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं,वैसे ही तुम भी किया करो।
क़ुरान का अल्लाह कहता है  ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) उन 'काफिरों' (गैर-मुस्लिमो) से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।'' जो इंसान मुझपर इमान नहीं लाता। वो काफिर है और उसे जीने का कोई हक नहीं है। (११.९.१२३ पृ. ३९१) (कुरान 9:123) ।

९) - अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।-(ऋग्वेद ५/६०/५)

अर्थ:-ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा।तुम सब भाई-भाई हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।इस धरा पर जितने भी जीव हैं, सबमें मेरा अंश है और सभी जीवों को एक समान जीने का अधिकार है। सबको जीने का हक है

''हे 'ईमान' लाने वालो (केवल एक अल्लाह को मानने वालो ) 'मुश्रिक' (मूर्तिपूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।'' दुनिया में इस्लाम को मानने वाले ही पाक हैं। (१०.९.२८ पृ. ३७१) (कुरान 9:28)

१०) - क़ुरान का अल्लाह अज्ञानी है वे मुसलमानों का इम्तिहान लेता है तभी तो इब्रहीम से पुत्र की क़ुर्बानी माँगीं।

वेद का ईशवर सर्वज्ञ अर्थात मन की बात को भी जानता है उसे इम्तिहान लेने की अवशयकता नही।

११) - अल्ला जीवों के और  काफ़िरों के प्राण लेकर खुश होता है

लेकिन वेद का ईशवर मानव व जीवों पर सेवा भलाई दया करने पर खुश होता है। 

ऐसे तो अनेक प्रमाण हैं, किन्तु इतने से ही बुद्धिमान लोग समझ जायेंगे की ईश्वर और अल्लाह एक नहीं हैं।

मेरे इन उदाहरणों से अब तो आप लोग बखूबी समझ गए होंगे कि ईश्वर और अल्लाह को एक नहीं माना जा सकता।

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