Saturday, August 14, 2021

शांति और अहिंसा


*शांति और अहिंसा के सबसे बड़े नाम गौतम बुद्ध* ...और उनकी मूर्ति के पास हथियार सहित बैठा कोई तालिबानी .!!

*यही सत्य है, अहिंसा का उपदेश केवल सभ्य समाज के लिये है, कट्टरपंथी सोच की किसी भी समाज को शांति व अहिंसा का उपदेश देने की कोशिश करेंगे तो आपके बच्चों को इसका हिसाब अपने कटे सिरों से गिरते खून से, और आपकी बेटियों को भेडियों द्वारा अपने शरीर को नोंचे जाने से देना पड़ेगा .!!*

*अपने बच्चों को गौतम बुद्ध की तरह शांति व अहिंसा का उपदेश मत दीजिये, गांधी बाबा की तरह एक थप्पड़ मारे जाने पर दूसरा गाल आगे करने को मत कहिए .....*
*प्रभु श्रीराम की तरह धनुष बाण उठाने, श्रीकृष्ण की तरह परम संहारक चक्र उठाने, देवों के देव महादेव शिव जी की तरह अपनी तीसरी आंख खोलने की शिक्षा दीजिए .!!*
*उसके साथ ही यह अवश्य बताइए कि शेर भी अकेला हो तो उसे जंगली कुत्ते घेरकर मार डालते हैं, इसलिये सभी हिन्दुओं को आपस में संगठित अवश्य होना होगा .!!*

*पिछले 650-700 वर्ष का इतिहास हमें यही बताता है कि हमारे अनेकों वीर हिन्दू राजाओं ने लाखों करोड़ों वीर सैनिकों के साथ अपने-अपने राज्य की रक्षा के लिये अपने जीवन का बलिदान किया......*
*लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा लगभग न के बराबर हुआ कि सभी राजा एक साथ मिलकर अरब से आये खूंखार लुटेरों से लड़ते. इसी कारण एक लम्बे समय तक विदेशी आक्रांता हमारे देश पर राज करते रहे, हमें लूटते रहे .!!*

*हिन्दू हो, तो आपस में मिल जुलकर रहिए और अपने हिन्दू भाइयों की छोटी मोटी गलतियों को नजरअंदाज करना सीखिए ......*
*और राजनैतिक रूप से संगठित होने के लिये भाजपा के बड़े नेताओं पर विश्वास कीजिए, अगले यूपी चुनाव में भाजपा को वोट दीजिए .!!*

  *जय हिंद*
*वन्दे मातरम्*

🙏🙏🙏🌹🌹🌹🙏🙏🙏

Friday, August 13, 2021

ग्राम बघेड़ी जंघई प्रयागराज।



जय  हो माई
*बारिश के कारन काम धीमा चल रहा है!

*।।जय चउरा माता।।🚩*
*【दूसरा दौर मई 2021】*
(बघेड़ी) update: 06 September 2021 

श्री धीरज मिश्र   >> *1100₹ +1100₹= 2200*
श्री शरदा प्रसाद मिश्र >> *500₹*
श्री माता प्रसाद मिश्र >> *500₹*
श्री राम प्रसाद मिश्र >> *100₹*
श्री संजय मिश्र >>  *600₹*
श्री लोलारखनाथ यादव >> *501₹*
श्री सुभम सिंह >> *500₹*
राजकुमार यादव >> *21₹*
श्री संतोष कुमार मिश्र >> *501₹*
श्री सर्वेश मिश्र >> *501₹*
श्री शैलेश मिश्र >> *501₹*
श्री पवन कुमार मिश्र >> *501₹ + 501₹ =1002₹*
श्री काशीनाथ यादव >> *501₹*
श्री कमलेश मिश्र >> *551₹*
श्री बाल जी मिश्र >> *501₹*
श्री लोकमनी सिंह >> *511₹*
श्री रमेश सिंह >> *501₹*
श्री गंगा प्रसाद मिश्र >> *500₹*
श्री धनराज यादव >> *1001₹*
श्री शेर बहादुर सिंह >> *101₹*
श्री सुजीत मोरया (मड़वा) >> *50₹*
श्री हरिकेश मिश्र >> *511₹*
श्री महेंद्र प्रताप सिंह >> *501₹*
श्री दिनेश मिश्र (मास्टर) >> *2100₹*
श्री अभयराज यादव >> *300₹*
श्री गोपाल मिश्र >> *200₹*
श्री राज बाहदुर यादव >> *2151₹*
श्री राममोहन मिश्र >> *2111₹*
श्री प्रिंस मिश्र >> *501₹*
श्री दिनेश मिश्र >> *1100₹*

जन्मास्टमी का चंदा +950₹

अभी तक की जमा राशी = 22069₹


अभी तक की खर्च राशी = 16567₹

_____________________

6 Sept 2021

# 6 इंच का पाइप 24फुट = 2350₹ + 50₹ रिक्शा चार्ज= 2400₹
# आधी टाली मीडियम बालू = 1750₹
# अल्ट्राटेक सीमेंट (३ बोरी) =1095₹ 
# 6 पीस सरिया 44kg = 2332₹
# लेबर 100₹ टेम्पो 250₹ =350₹
# आधी टाली मोटी बालू = 3400₹ (मोरया मड़वा)
# मजदूरों का खर्च अभी तक (1150₹)
*25 तरीक से काम सुरु*
# 3 बोरी सीमेंट 980₹
# 2 दीन की मजदूरी 1800₹
# 4 फिट पाइप ४" और L पाइप ४" 270₹
# 3 टाली मिट्टी @180₹ × 3 = 540₹
# पेंट + w सीमेंट 150₹, plastic त्रिपाल 150₹ आदि.. = लगभग 500₹

Total = 16567₹
कुल समान व मजदूर की लागत!

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3 अप्रैल 2022

✅150₹ 12 hook
✅1500₹ दिनु और मज़दूर 2 दिन का
✅7050₹  तार, 50kg sariya, 10 बोरी cement।
✅600₹ लाइटिंग पाइप एंड other
✅1400₹ लिंटर के दिन का खर्च 
✅ 5780₹ 14kg सरिया और बालू
✅300 स्टील तार , 2 कन्नी , मटकी आदि
✅ 700₹ खर्चा मजदूरी(500 नान्हू)
✅ 2300₹ (24 feb से 14 मार्च तक 40 balli और 350 पट्टी)
✅*11000₹ (मार्बल@36₹ ग्रेनाइट@125₹ 10750 + Addtional charge)
✅*200 (बसूली और टाइल्स कटर)
✅मार्बल फ्रॉम बदशपुर to बहेड़ी (800₹)
✅1550₹ 4 bori cement
✅**** एक्स्ट्रा खर्च
✅ *1500₹ मज़दूरी
✅ 1530₹ 300 ईंट
@*टोटल:* *लगभग 36380₹ (36500₹)20 मार्च तक

470₹ 15kg white cement (पोताई व टाइल्स के लिए)
365₹ ```180 gram``` Aerolite
14500₹ रेलिंग (भाड़ा आदि)
6000₹ टाइल्स ( भाड़ा व टूल सहित )
600₹ मजदूरी (2 दिन छोटे)
*1400₹ (4 टाइल्स rubbing व 3 cutting किट)
1500₹ (4 बोरी सीमेंट *370₹)
1500₹ (पेंट व stikers व ब्रश)
*1400₹ (700 मुकोठा व 700 घंटी व चैन)
2551₹ (500 इट)
@30286₹

16567+36380+30286
=83353₹




Friday, July 30, 2021

दलितों तो पूरे विस्व में है! पर भारत के दलित सब से सूखी है?

अंबेडकर को लेकर बहुत से मिथक हैं जिन्हें सच माना जाता है। कल एंड टीवी पर शुरू होने वाले अंबेडकर पर आधारित शो का टीज़र मित्र ने भेजा।  कल उस मित्र से इस संदर्भ में बात हो रही थी तो सोचा क्यों न उन मिथकों और उनकी सच्चाई पर एक सार्वजनिक पोस्ट की जाए। आइए जानते हैं क्या हैं वो मिथक और क्या है सच्चाई-

●मिथक- अंबेडकर बहुत मेधावी थे।

सच्चाई- अंबेडकर ने अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रियाँ तीसरी श्रेणी में पास की।

●मिथक- अंबेडकर बहुत गरीब थे।

सच्चाई- जिस ज़माने में लोग फोटो तक नहीं खींचा पाते थे उस ज़माने में अंबेडकर की बचपन की बहुत सी फोटो हैं वह भी कोट पैंट में!

●मिथक- अंबेडकर ने शूद्रों को पढ़ने का अधिकार दिया।

सच्चाई- अंबेडकर के पिता जी ख़ुद उस ज़माने में आर्मी में सूबेदार मेजर थे जो यह बताता है कि उस समय पढ़ने का अधिकार शूद्रों के पास था।

●मिथक- अंबेडकर को पढ़ने नहीं दिया गया।

सच्चाई- उस ज़माने में अंबेडकर को गुजरात वडोदरा के क्षत्रिय राजा सीयाजी गायकवाड़ ने स्कॉलरशिप दी और विदेश पढ़ने तक भेजा और ब्राह्मण गुरु जी ने अपना नाम अंबेडकर भी दिया।

●मिथक- अंबेडकर ने नारियों को पढ़ने का अधिकार दिया।

सच्चाई- अंबेडकर के समय ही 20 पढ़ी लिखी औरतों ने संविधान लिखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया!

●मिथक- अंबेडकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।

सच्चाई- अंबेडकर ने सदैव अंग्रेजों का साथ दिया।भारत छोड़ो आंदोलन की जम कर खिलाफत की। अंग्रेजों को पत्र लिखकर बोला कि आप और दिन तक देश में राज करिए। उन्होंने जीवन भर हर जगह आजादी की लड़ाई का विरोध किया।

●मिथक- अम्बेडकर बड़े शक्तिशाली थे।

सच्चाई- 1946 के चुनाव में पूरे भारत भर में अंबेडकर की पार्टी की जमानत जप्त हुई थी।

●मिथक- अंबेडकर ने अकेले आरक्षण दिया।

सच्चाई- आरक्षण संविधान सभा ने दिया जिसमें कुल 389 लोग थे।अंबेडकर का उसमें सिर्फ एक वोट था। आरक्षण सब के वोट से दिया गया था।

●मिथक- अंबेडकर राष्ट्रवादी थे।

सच्चाई- 1931 में गोलमेज सम्मेलन में गाँधी जी के भारत के टुकड़े करने की बात कर दलितों के लिए अलग दलितस्तान की माँग अंबेडकर ने की थी।

●मिथक- अंबेडकर ने भारत का संविधान लिखा।

सच्चाई- जो संविधान अंग्रेजों के 1935 के मैग्नाकार्टा से लिया गया हो और विश्व के 12 देशों से चुराया गया है। उसे आप मौलिक संविधान कैसे कह सकते हैं? अभी भी सोसायटी एक्ट में 1860 लिखा जाता है।

●मिथक- आरक्षण को लेकर संविधान सभा के सभी सदस्य सहमत थे।

सच्चाई- इसी आरक्षण को लेकर सरदार पटेल से अंबेडकर की कहा सुनी हो गई थी। पटेल संविधान सभा की मीटिंग छोड़कर बाहर चले गये थे, बाद में नेहरू के कहने पर पटेल वापस आये थे।

सरदार पटेल ने कहा कि जिस भारत को अखण्ड भारत बनाने के लिए भारतीय देशी राजाओं, महराजाओं, रियासतदारों, तालुकेदारों ने अपनी 546 रियासतों को भारत में विलय कर दिया जिसमें 513 रियासतें क्षत्रिय राजाओं की थी। इस आरक्षण के विष से भारत भविष्य में खण्डित होने के कगार पर पहुँच जाएगा और आज हम वैसा होते देख भी रहे हैं।

●मिथक- अंबेडकर स्वेदशी विचारधारा के थे।

सच्चाई- देश के सभी नेताओं का तत्कालीन पहनावा भारतीय पोशाक धोती -कुर्ता, पैजामा-कुर्ता, सदरी व टोपी,पगड़ी, साफा, आदि हुआ करता था। गाँधी जी ने विदेशी पहनावा व वस्तुओं की होली जलवाई थी। यद्यपि नेहरू, गाँधी व अन्य नेता विदेशी विश्वविद्यालय व विदेशों में रहे भी थे फिर भी स्वदेशी आंदोलन से जुड़े रहे। वहीं अंबेडकर की कोई भी तस्वीर भारतीय पहनावे में देखने को नहीं मिलती है। अंबेडकर अंग्रेजियत के हिमायती थे।

नोट- मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाना नहीं है बल्कि सच्चाई बयां करने की कोशिश करना है।तथ्यों की जानकारी आप स्वयं भी प्राप्त कर सकते हैं।

Saturday, July 24, 2021

"देविका रोटवान" भारत की एक शेरनी

आईये आज और ऐक "छिपे हुये हिरो" कि दास्तान से अवगत कराता हूँ , 
और एक सडी हुई व्यवस्था, मरी हुई कौम, गलीच, स्वार्थी और भ्रष्टाचारी लोगों की वजह से एक जिंदगी कैसे बर्बाद हो रही है। दास्ताँ पढिए..

जबसे मैंने मुंबई की "देविका रोटवान" के बारे में पढ़ा है .....तबसे सिस्टम और उसके हरामी नौकरशाही से नफरत दस गुना बढ़ गयी है .......

देविका रोटवांन वही लड़की है जिसकी गवाही पे कसाब को फांसी हुई थी .....
आपको बता दें की देविका मुंबई हमलों के दौरान महज 9 साल की थी ..उसने अपनी आँखों से कसाब को गोली चलाते देखा था ..

लेकिन जब उसे सरकारी गवाह बनाया गया तो उसे पाकिस्तान से धमकी भरे फोन कॉल आने लगे .....देविका की जगह अगर कोई और होता तो वो गवाही नहीं देता ..लेकिन इस बहादुर लड़की ने ना सिर्फ कसाब के खिलाफ गवाही दी बल्कि सीना तान के बिना किसी सुरक्षा के मुंबई हमले के बाद भी 5 साल तक अपनी  उसी झुग्गी झोपडी में रही ...

लेकिन इस देश भक्ति के बदले उसे क्या मिला ??....लोगों ने साथ तक नही दिया

आपको बता दें की देविका रोटवान जब सरकारी गवाह बनने को राजी हो गयी तो उसके बाद उसे उसके स्कुल से निकाल दिया गया ..क्यों की स्कूल प्रशासन का कहना था की आपकी लड़की को आतंकियों से धमकी मिलती है ..जिससे हमारे दुसरे स्टूडेंट्स को भी जान का खतरा पैदा हो सकता है ....

देविका के रिश्तेदारों ने उससे दूरी बना ली ..क्यों की उन्हें पाकिस्तानी आतंकियों से डर लगता था जो लगातर देविका को धमकी देते थे ....देविका को सरकारी सम्मान जरुर मिला ..
उसे हर उस समारोह में बुलाया जाता था जहाँ मुंबई हमले के वीरों और शहीदों को सम्मानित किया जाता था ..लेकिन देविका बताती है की सम्मान से पेट नहीं भरता ...
मकान मालिक उन्हें तंग करता है उसे लगता है की सरकार ने देविका के परिवार को सम्मान के तौर पे करोडो रूपये दिए हैं ..
जबकि असलियत ये हैं की देविका को अपनी देशभक्ति की बहुत भरी कीमत चुकानी पड़ी है ...

देविका का परिवार देविका का नाम अपने घर में होने वाली किसी शादी के कार्ड पे नहीं लिखवाता ..क्यों की उन्हें डर है की इससे वर पक्ष शादी उनके घर में नहीं करेगा ..क्यों की देविका आतंकियों के निशाने पे है ......

देविका के परिवार ने अपनी आर्थिक तंगी की बात कई बार राज्य सरकार और पीएमओ तक भी पहुचाई लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात निकला ...
देविका की माँ 2006 में ही गुजर गयी है ...

देविका के घर में आप जायेंगे तो उसके साथ कई नेताओं ने फोटो खिचवाई है ..कई मैडल रखे हैं ..लेकिन इन सब से पेट नहीं चलता ...देविका बताती है की उसके रिश्तेदारों को लगता है की हमें सरकार से करोडो रूपये इनाम मिले है ..लेकिन असल स्थिति ये हैं की दो रोटी के लिए भी उनका परिवार महंगा है .....
आतंकियों से दुश्मनी के नाम पर देविका के परिवार से उसके आस पास के लोग और उसकी कई दोस्तों ने उससे दूरी बना ली ..की कहीं आतंकी देविका के साथ साथ उन्हें भी ना मार डाले ........

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और डीएम ऑफिस के कई चक्कर लगाने के बाद उधर से जवाब मिला की हमारे जिम्मे एक ही काम नहीं है .......

देविका के पिता बताते हैं की उन्होंने अधिकारीयों से कहा की cm साहब ने मदद करने की बात कही थी .....सरकारी बाबू का कहना है की रिटन में लिखवा के लाइए ........
तब आगे कार्यवाही के लिए भेजा जाएगा ..........

अब आप बताइये की क्या ऐसे देश ..ऐसे समाज ..और ऐसी ही भ्रष्ट सरकारी मशीनरी के लिए देविका ने पैर में गोली खायी थी ...??
उसे क्या जरूरत थी सरकारी गवाह बनने की ??
उसे स्कुल से निकाल दिया गया ??
क्यों की उसने एक आतंकी के खिलाफ गवाही दी थी .....

 .....ऐसे खुद गरज समाज ..सरकार ....और नेताओं के लिए अपनी जान दाव पे लगाने की कोई जरूरत नहीं है ...

देविका तुमने बिना मतलब ही अपनी जिन्दगी नरक बना ली ......
सलमान खान एक देशद्रोही संजय दत्त ..और अब एक वैश्या सन्नी लियोन के ऊपर बायोपिक बनाने वाला बॉलीवुड तो देविका के मामले में महा मा**चो निकला ...

आपको बता दें की देविका का interview लेने के लिए  बॉलीवुड निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने देविका को अपने घर बुलाया लेकिन उसे आर्थिक मदद देना तो दूर उसे ऑटो के किराए के पैसे तक नहीं दिए ....ऐसा संवेदन हीन है अपना समाज ...थूकता हूँ मै ऐसे समाज पे ....

शायद कितनो को तो देविका के बारे पता भी नहीं होगा की देविका  रोटवान कौन है ........

थू है ऐसी व्यवस्था पे ..
ज्यादा से ज्यादा "शेयर" किजीये hकि इस शेर दिल बच्ची को इस समाज मे इज्जत के साथ इसे उचित सम्मान मिले...
🙏🏻🙏🏻🙏

Friday, June 25, 2021

कैलाश पर्वत क्षेत्र पर रुके एक माह तो 2 वर्ष 6 माह की जिंदगी गुजर जाती है।


 कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि इस पर्वत पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान हैं। जो भी इस पर्वत पर आकर उनके दर्शन कर लेता है उसका जीवन पूरी तरह से सफल हो जाता है। इस पावन स्थल पर हर साल लाखों श्रद्धालु मन में सिर्फ ये आस लिए आते हैं कि शिव के साक्षात दर्शन मात्र से उनके सारे कष्ट मिट जाएंगे। कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र कहा जाता है, जहां धरती और आकाश एक साथ आ मिलते हैं।

 कहते हैं कि कैलाश पर्वत के ठीक ऊपर स्वर्ग और ठीक नीचे धरती (मृत्युलोक) हैं।

 'परम रम्य गिरवरू कैलासू, सदा जहां शिव उमा निवासू।’

 पौराणिक और प्रसिद्ध  कथाओं के अनुसार मानसरोवर के पास स्थित कैलाश पर्वत भगवान शिव का धाम है। आप ये तो जानते होंगे की कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं पर ये नहीं जानते होंगे की वह इस दुनिया का सबसे बड़ा रहस्यमयी पर्वत हैं । कहा जाता है कि अप्राकृतिक शक्तियों का भण्डार है।

 कैलाश पर्वत भारत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षस ताल झील है। इस पवित्र पर्वत की ऊंचाई 6714 मीटर है । ऊंचाई के मामले में कैलाश पर्वत, विश्व विख्यात माउंट एवरेस्ट से ज्यादा विशाल तो नहीं है, लेकिन कैलाश की भव्यता उसके आकार में है। ध्यान से देखने पर यह पर्वत शिवलिंग के आकार का लगता है, जो पूरे साल बर्फ की चादर ओढ़े रहता है। कैलाश पर्वत अमरनाथ यात्रा पर जाते समय रास्ते में आता हैं। तिब्बत की हिमालय रेंज में स्थित हैं।

 कैलाश पर्वत चार महान नदियों के स्त्रोतों से घिरा है सिंध, ब्रह्मपुत्र, सतलज और कर्णाली या घाघरा तथा दो सरोवर इसके आधार हैं पहला मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकर सूर्य के सामान है तथा राक्षस झील जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के सामान है कैलाश-मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग हैं किंतु उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थान से अस्ककोट, खेल, गर्विअंग, लिपूलेह, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम है।

 इसके एक ओर उत्तरी, तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव है। यहां एक ऐसा केंद्र भी है जिसे एक्सिस मुंडी कहा जाता है। एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां दसों दिशाएं मिल जाती हैं। रशिया के वैज्ञानिकों के अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं।

 यह पर्वत पिरामिडनुमा है। इसके शिखर पर कोई नहीं चढ़ सकता है। यहां 2 रहस्यमयी सरोवर हैं- मानसरोवर और राक्षस ताल। यहीं से भारत और चीन की बड़ी नदियों का उद्गम होता है। यहां निरंतर 'डमरू' या 'ॐ' की आवाज सुनाई देती है लेकिन यह आवाज कहां से आती है? यह कोई नहीं जानता। दावा किया जाता है कि कई बार कैलाश पर्वत पर 7 तरह की लाइटें आसमान में चमकती हुई देखी गई हैं। जब सूर्य की पहली किरण इस पर्वत पर पड़ती है, तो यह स्वर्ण-सा चमकने लगता है।

 कैलाश पर्वत की तलहटी में 1 दिन होता है 1 माह के बराबर ! इसका मतलब यह है कि 1 माह ढाई साल का होगा। दरअसल, वहां दिन और रात तो सामान्य तरीके से ही व्यतीत होते हैं लेकिन वहां कुछ इस तरह की तरंगें हैं कि यदि व्यक्ति वहां 1 दिन रहे तो उसके शरीर का तेजी से क्षरण होता है अर्थात 1 माह में जितना क्षरण होगा, उतना 1 ही दिन में हो जाएगा।

 इसे इस तरह समझें कि यदि सामान्य दिनों की तरह हमारे नाखूनों को हम 1 माह में 4 बार काटते हैं तो हमें वहां 1 दिन में 4 बार काटने होंगे।

 हाथ-पैर के नाखून और बाल अत्यधिक तेजी से बढ़ जाते हैं। सुबह क्लीन शेव रहे व्यक्ति की रात तक अच्छी-खासी दाढ़ी निकल आती है।

 कैलाश पर्वत पर कंपास काम नहीं करता यहाँ आने पर दिशा भ्रम होने लगता है. यह जगह बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव है। लेकिन ये जगह बेहद पावन, शांत और शक्ति देने वाली है!

 कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ सका सिर्फ एक बौध लामा को छोड़ कर ... ऐसा भी अनुभव होता है कि कैलाश की परिक्रमा मार्ग पर एक ऐसा खास पॉइंट आता है, जहां पर आध्यात्मिक शक्तियां आगे बढ़ने के विरुद्ध चेतावनी देती हैं। वहां तलहटी में तेजी से मौसम बदलता है। ठंड अत्यधिक बढ़ जाती है। व्यक्ति को बेचैनी होने लगती है। अंदर से कोई कहता है, 'यहां से चले जाओ।' जिन लोगों ने चेतावनी को अनसुना किया, उनके साथ बुरे अनुभव हुए। कुछ लोग रास्ता भटककर जान गंवा बैठे। कहते हैं कि सन् 1928 में एक बौद्ध भिक्षु मिलारेपा ही कैलाश पर्वत की तलहटी में जाने और उस पर चढ़ने में सफल रहे थे। मिलारेपा ही मानव इतिहास के एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें कि वहां जाने की आज्ञा मिली थी।

 मानस और सरोवर का संगम है कैलाश पर्वत
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 भगवान शिव का निवास स्थल ये कैलाश पर्वत खुद की तलहटी में कई रहस्य छुपाये है। कैलाश पर्वत से जुड़े कई ऐसे विचित्र रहस्य हैं जिसे आज तक दुनिया का कोई भी इंसान पता नहीं लगा पाया है। कैलाश मानसरोवर का नाम संस्कृत भाषा के दो शब्दों, मानस और सरोवर के संगम से मिलकर बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- मन का सरोवर. कैलाश पर्वत को पृथ्वी का केंद्र स्थल भी माना जाता है। चूँकि ये पर्वत मानसरोवर झील के नजदीक स्थित है इसलिए इसका नाम कैलाश मानसरोवर पड़ा है।

 शिव से मिलने के लिए लांघनी पड़ती है चीन की दीवार
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 समुद्र तट से लगभग 22068 फुट की ऊंचाई में बना कैलाश पर्वत हिमालय के उत्तरी दिशा में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन की सीमा के अंतर्गत आता है अतः ये भी कहा जा सकता है कि भारत की आस्था का प्रतीक कैलाश मानसरोवर को पाने के लिए चीन की दीवार भी लांघना पड़ता है।

 कैलाश पर साक्षात विराजते हैं शिव
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 कैलाश मानसरोवर का एक और तिलिस्मी रहस्य भी है जिसके बारे में आज तक आप अनजान होंगे। क्या आपको पता है कि शिव के समीप ले जाने वाला ये पर्वत आज तक शिव की सच्चे भक्त की तलाश में है। जी हाँ आपने बिलकुल सही पढ़ा कैलाश मानसरोवर इतिहास रहा है कि कोई भी इंसान आज तक इस पर्वत की चोटी पर नहीं पहुंच पाया है। धार्मिक गुरु ये तक बताते हैं कि जो भी शिव के उस निवास स्थल तक पहुँच जाएगा उसे साक्षात शिव के दर्शन होंगे और वो शिव का सच्चा भक्त कहलायेगा।

 शिव के चरणों तक भी कोई नहीं पहुंचा आज तक

 आज तक कोई भी इंसान कैलाश पर्वत की चोटी पर कभी नहीं पहुंचा। जो भी गया है या तो उसने अपनी ज़िन्दगी को खत्म कर लिया या फिर हार मन कर वापस लौट आया। शिव के निवास स्थल से पहले भी काफी खतरनाक और ऊँची-ऊँची चोटियां पड़ती हैं जहां तक कुछ लोग पहुँचने में सफल भी हुए मगर आज तक शिव के चरणों तक कोई नहीं पहुँच पाया है।

 ।। ॐ नमः शिवाय ।।
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Tuesday, June 22, 2021

भारत के योगी

नेहरू 

अम्बेडकर

Monday, June 21, 2021

Painting of Sushruta school of ancient India (6th century BC)


This is the only surviving premodern painting which is depicting the students of the Sushruta school of ancient India (6th century BC).These students were trained in Vedas at the age of 8, then they were trained as surgeons for 6 yrs and taught the principles of Sushruta Samhita. They are shown performing mock surgery on water melons and cucumbers. As such, they are earliest recorded surgeons of World. This was found in an old manuscript of Sushruta Samhita which dates back to 600 years.

This illustration is from Odisha Museum.

This master literature remained preserved for many centuries exclusively in the Sanskrit language which prevented the dissemination. of the knowledge to the west and other parts of the world. Later the original text was lost and the present extant one is believed to be a revision by the Buddhist scholar Vasubandhu (circa AD 360-350). In the eighth century A.D., ‘Sushruta Samhita' was translated into Arabic as Kitab-Shaw Shoon-a-Hindi and Kitab-i-Susrud. The translation of ‘Sushruta Samhita' was ordered by the Caliph Mansur (A.D.753 -774).11 One of the most important documents in connection with ancient Indian medicine is the Bower Manuscript, a birch-bark medical treatise discovered in Kuchar (in Eastern Turkistan), dated around AD 450 and is housed in the Oxford University library.12 The first European translation of ‘Sushruta Samhita' was published by Hessler in Latin and into German by Muller in the early 19th century. The first complete English translation was done by Kaviraj Kunja Lal Bhishagratna in three volumes in 1907 at Calcutta.1

The treatise's insight, accuracy and detail of the surgical descriptions are most impressive. In the book's 184 chapters, 1,120 conditions are listed, including injuries and illnesses relating to ageing and mental illness. The compendium of Sushruta includes many chapters on the training and practice of surgeons. The Sushruta Samhita describes over 120 surgical instruments.5,13 300 surgical procedures and classifies human surgery in 8 categories.

Friday, June 18, 2021

कितनी सच्चाई है इस कहानी में "महारानी का बेटा"

झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है. रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ?
वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था जिसने उसी गुलाम भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी.

अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी. ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली.

1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा.

महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया. उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं हिंदुस्तान के लोग भी बराबरी से थे.

आइये, दामोदर की कहानी दामोदर की जुबानी सुनते हैं –

15 नवंबर 1849 को नेवलकर राजपरिवार की एक शाखा में मैं पैदा हुआ. ज्योतिषी ने बताया कि मेरी कुंडली में राज योग है और मैं राजा बनूंगा. ये बात मेरी जिंदगी में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से सच हुई. तीन साल की उम्र में महाराज ने मुझे गोद ले लिया. गोद लेने की औपचारिक स्वीकृति आने से पहले ही पिताजी नहीं रहे.

मां साहेब (महारानी लक्ष्मीबाई) ने कलकत्ता में लॉर्ड डलहॉजी को संदेश भेजा कि मुझे वारिस मान लिया जाए. मगर ऐसा नहीं हुआ.

डलहॉजी ने आदेश दिया कि झांसी को ब्रिटिश राज में मिला लिया जाएगा. मां साहेब को 5,000 सालाना पेंशन दी जाएगी. इसके साथ ही महाराज की सारी सम्पत्ति भी मां साहेब के पास रहेगी. मां साहेब के बाद मेरा पूरा हक उनके खजाने पर होगा मगर मुझे झांसी का राज नहीं मिलेगा.

इसके अलावा अंग्रेजों के खजाने में पिताजी के सात लाख रुपए भी जमा थे. फिरंगियों ने कहा कि मेरे बालिग होने पर वो पैसा मुझे दे दिया जाएगा.

मां साहेब को ग्वालियर की लड़ाई में शहादत मिली. मेरे सेवकों (रामचंद्र राव देशमुख और काशी बाई) और बाकी लोगों ने बाद में मुझे बताया कि मां ने मुझे पूरी लड़ाई में अपनी पीठ पर बैठा रखा था. मुझे खुद ये ठीक से याद नहीं. इस लड़ाई के बाद हमारे कुल 60 विश्वासपात्र ही जिंदा बच पाए थे.

नन्हें खान रिसालेदार, गनपत राव, रघुनाथ सिंह और रामचंद्र राव देशमुख ने मेरी जिम्मेदारी उठाई. 22 घोड़े और 60 ऊंटों के साथ बुंदेलखंड के चंदेरी की तरफ चल पड़े. हमारे पास खाने, पकाने और रहने के लिए कुछ नहीं था. किसी भी गांव में हमें शरण नहीं मिली. मई-जून की गर्मी में हम पेड़ों तले खुले आसमान के नीचे रात बिताते रहे. शुक्र था कि जंगल के फलों के चलते कभी भूखे सोने की नौबत नहीं आई.

असल दिक्कत बारिश शुरू होने के साथ शुरू हुई. घने जंगल में तेज मानसून में रहना असंभव हो गया. किसी तरह एक गांव के मुखिया ने हमें खाना देने की बात मान ली. रघुनाथ राव की सलाह पर हम 10-10 की टुकड़ियों में बंटकर रहने लगे.

मुखिया ने एक महीने के राशन और ब्रिटिश सेना को खबर न करने की कीमत 500 रुपए, 9 घोड़े और चार ऊंट तय की. हम जिस जगह पर रहे वो किसी झरने के पास थी और खूबसूरत थी.

देखते-देखते दो साल निकल गए. ग्वालियर छोड़ते समय हमारे पास 60,000 रुपए थे, जो अब पूरी तरह खत्म हो गए थे. मेरी तबियत इतनी खराब हो गई कि सबको लगा कि मैं नहीं बचूंगा. मेरे लोग मुखिया से गिड़गिड़ाए कि वो किसी वैद्य का इंतजाम करें.

मेरा इलाज तो हो गया मगर हमें बिना पैसे के वहां रहने नहीं दिया गया. मेरे लोगों ने मुखिया को 200 रुपए दिए और जानवर वापस मांगे. उसने हमें सिर्फ 3 घोड़े वापस दिए. वहां से चलने के बाद हम 24 लोग साथ हो गए.

ग्वालियर के शिप्री में गांव वालों ने हमें बागी के तौर पर पहचान लिया. वहां तीन दिन उन्होंने हमें बंद रखा, फिर सिपाहियों के साथ झालरपाटन के पॉलिटिकल एजेंट के पास भेज दिया. मेरे लोगों ने मुझे पैदल नहीं चलने दिया. वो एक-एक कर मुझे अपनी पीठ पर बैठाते रहे.

हमारे ज्यादातर लोगों को पागलखाने में डाल दिया गया. मां साहेब के रिसालेदार नन्हें खान ने पॉलिटिकल एजेंट से बात की.

उन्होंने मिस्टर फ्लिंक से कहा कि झांसी रानी साहिबा का बच्चा अभी 9-10 साल का है. रानी साहिबा के बाद उसे जंगलों में जानवरों जैसी जिंदगी काटनी पड़ रही है. बच्चे से तो सरकार को कोई नुक्सान नहीं. इसे छोड़ दीजिए पूरा मुल्क आपको दुआएं देगा.

फ्लिंक एक दयालु आदमी थे, उन्होंने सरकार से हमारी पैरवी की. वहां से हम अपने विश्वस्तों के साथ इंदौर के कर्नल सर रिचर्ड शेक्सपियर से मिलने निकल गए. हमारे पास अब कोई पैसा बाकी नहीं था.

सफर का खर्च और खाने के जुगाड़ के लिए मां साहेब के 32 तोले के दो तोड़े हमें देने पड़े. मां साहेब से जुड़ी वही एक आखिरी चीज हमारे पास थी.

इसके बाद 5 मई 1860 को दामोदर राव को इंदौर में 10,000 सालाना की पेंशन अंग्रेजों ने बांध दी. उन्हें सिर्फ सात लोगों को अपने साथ रखने की इजाजत मिली. ब्रिटिश सरकार ने सात लाख रुपए लौटाने से भी इंकार कर दिया.

दामोदर राव के असली पिता की दूसरी पत्नी ने उनको बड़ा किया. 1879 में उनके एक लड़का लक्ष्मण राव हुआ.दामोदर राव के दिन बहुत गरीबी और गुमनामी में बीते। इसके बाद भी अंग्रेज उन पर कड़ी निगरानी रखते थे। दामोदर राव के साथ उनके बेटे लक्ष्मणराव को भी इंदौर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी।
इनके परिवार वाले आज भी इंदौर में ‘झांसीवाले’ सरनेम के साथ रहते हैं. रानी के एक सौतेला भाई चिंतामनराव तांबे भी था. तांबे परिवार इस समय पूना में रहता है. झाँसी के रानी के वंशज इंदौर के अलावा देश के कुछ अन्य भागों में रहते हैं। वे अपने नाम के साथ झाँसीवाले लिखा करते हैं। जब दामोदर राव नेवालकर 5 मई 1860 को इंदौर पहुँचे थे तब इंदौर में रहते हुए उनकी चाची जो दामोदर राव की असली माँ थी। बड़े होने पर दामोदर राव का विवाह करवा देती है लेकिन कुछ ही समय बाद दामोदर राव की पहली पत्नी का देहांत हो जाता है। दामोदर राव की दूसरी शादी से लक्ष्मण राव का जन्म हुआ। दामोदर राव का उदासीन तथा कठिनाई भरा जीवन 28 मई 1906 को इंदौर में समाप्त हो गया। अगली पीढ़ी में लक्ष्मण राव के बेटे कृष्ण राव और चंद्रकांत राव हुए। कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव, अरूण राव तथा चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव हुए।

दामोदर राव चित्रकार थे उन्होंने अपनी माँ के याद में उनके कई चित्र बनाये हैं जो झाँसी परिवार की अमूल्य धरोहर हैं। 

उनके वंशज श्री लक्ष्मण राव तथा कृष्ण राव इंदौर न्यायालय में टाईपिस्ट का कार्य करते थे ! अरूण राव मध्यप्रदेश विद्युत मंडल से बतौर जूनियर इंजीनियर 2002 में सेवानिवृत्त हुए हैं। उनका बेटा योगेश राव सॅाफ्टवेयर इंजीनियर है। वंशजों में प्रपौत्र अरुणराव झाँसीवाला, उनकी धर्मपत्नी वैशाली, बेटे योगेश व बहू प्रीति का धन्वंतरिनगर इंदौर में सामान्य नागरिक की तरह माध्यम वर्ग परिवार हैं। 

Friday, May 28, 2021

श्री गंगू मेहतर बाल्मीकि

ये हैं श्री गंगू मेहतर बाल्मीकि, जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ी और 200 के लगभग अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था तथा उन्हें 18- 9 -1857 को कानपुर में चौराहे पर फाँसी दी गई थी इन वीर क्रांतिकारी योद्धा को शत शत नमन । बताते हैं इनका नाम इतिहास में गुमनाम है और नाही कोई ऊनकी याद मे प्रतिमा। क्युकि आजादी तो चरखे से आई है और महान तो अकबर है। आइए इन महान राष्ट्रभक्त के नाम पर "भारत माता की जय" बोलते हैं।

Saturday, May 22, 2021

भारत का पहला कंप्यूटर Bharat first computer

भारत का पहला कंप्यूटर, टाटा इंस्टीट्यूट द्वारा 1951 में निर्मित किया गया था और उसे अंतरिक्ष अनुसंधान विभाग को सौंप दिया गया। 

Sunday, May 16, 2021

द्वारका भारती एक मोची कम साहित्यकार।

12 वीं पास ये सज्जन करते हैं मोची का काम, देते हैं यूनिवर्सिटियों में लैक्चर और इनके साहित्य पर हो रही है रिसर्च
    टांडा रोड के साथ लगते मुहल्ला सुभाष नगर के द्वारका भारती (75) 12 वें पास हैं। घर चलाने के लिए मोची का काम करते हैं। सुकून के लिए साहित्य रचते हैं। भले ही वे 12 वीं पास हैं, पर साहित्य की समझ के कारण उन्हें वर्दीवालों को लेक्चर देने में बुलाया जाता है। कई भाषाओं में साहित्यकार इनकी पुस्तकों का अनुवाद कर चुके हैं। इनकी स्वयं की लिखी कविता एकलव्य इग्नू में एमए के बच्चे पढ़ते हैं, वहीं पंजाब विश्वविद्यालय में 2 होस्टल इन उपन्यास मोची पर रिसर्च कर रहे हैं। वे कहते हैं कि जो व्यवसाय आपका भरण पोषण करे, वह इतना अधम हो ही नहीं सकता, जिसे करने में आपको शर्मिंदगी महसूस होगी।

द्वारका बोले- घर चलाने को गांठता हूँ जूते, सुकून के लिए रचता हूँ साहित्य
सुभाष नगर में प्रवेश करते ही अपनी किराए की छोटी सी दुकान पर आज भी द्वारका भारती हाथों से नए नए जूते तैयार करते हैं। अक्सर उनकी दुकान के बाहर बड़े गाड़ियों में सवार साहित्य प्रेमी अधिकारियों और साहित्यकारों की पहुंचना और साहित्य पर चर्चा करना दिन का हिस्सा हैं। चर्चा के दौरान भी वह अपने काम से जी नहीं चुराते और पूरे मनोयोग से जूते गांठते रहते हैं। फुरसत के पलों में भारती दर्शन और कार्ल मार्क्स के अलावा पश्चिमी व लैटिन अमेरिकी साहित्य का अध्ययन करते हैं।

 
डॉ.सुरेन्द्र की लेखनी से साहित्य की प्रेरणा मिली

   द्वारका भारती ने बताया कि 12 वीं तक पढ़ाई करने के बाद 1983 में होशियारपुर लौटे, तो वह अपने पुश्तैनी पेशे जूते गांठने में जुट गए। साहित्य से लगाव बचपन से था। डॉ.सुरेन्द्र अज्ञात की क्रांतिकारी लेखनी से प्रभावित हो उपन्यास जूठन का पंजाबी भाषा में किया गया। उपन्यास को पहले ही साल बेस्ट सेलर उपन्यास का खिताब मिला। इसके बाद पंजाबी उपन्यास मशालची का अनुवाद किया गया। इस दौरान दलित दर्शन, हिंदुत्व के दुर्ग पुस्तक लेखन के साथ ही हंस, दिनमान, वागर्थ, शब्द के अलावा कविता, कहानी व निबंध भी लिखे।

    द्वारका भारती ने बताया कि आज भी समाज में बर्तन धोने और जूते तैयार करने वाले मोची के काम को लोग हीनता की दृष्टि से देखते हैं, जो नकारात्मक सोच को दर्शाता है। आदमी को उसकी पेशा नहीं बल्कि उसका कर्म महान बनाता है। वह घर चलाने के लिए जूते तैयार करते हैं, वहीं मानसिक खुराक व सुकून के लिए साहित्य की रचना करते हैं। जूते गांठना हमारा पेशा है। इसी से मेरा घर व मेरा परिवार का भरण पोषण होता है।
  ऐसे कर्मयोगी को हमारा नमन है।

Tuesday, April 20, 2021

ऐमप्लीफाईड ग्लोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन


दुनिया की बड़ी खबर, 
इटली ने किया मृत कोरोना मरीज का पोस्टमार्टम,
हुआ बड़ा खुलासा
इटली विश्व का पहला देश बन गया है जिसनें एक कोविड-19 से मृत शरीर पर अटोप्सी  (पोस्टमार्टम) किया और एक व्यापक जाँच करने के बाद पता लगाया है कि वायरस के रूप में कोविड-19 मौजूद नहीं है, बल्कि यह सब एक बहुत बड़ा ग्लोबल घोटाला है। लोग असल में “ऐमप्लीफाईड ग्लोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन (ज़हर)” के कारण मर रहे हैं।

इटली के डॉक्टरों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कानून का उल्लंघन किया है, जो कि करोना वायरस से मरने वाले लोगों के मृत शरीर पर आटोप्सी (पोस्टमार्टम) करने की आज्ञा नहीं देता ताकि किसी तरह की वैज्ञानिक खोज व पड़ताल के बाद ये पता ना लगाया जा सके कि यह एक वायरस नहीं है, बल्कि एक बैक्टीरिया है जो मौत का कारण बनता है, जिस की वजह से नसों में ख़ून की गाँठें बन जाती हैं यानि इस बैक्टीरिया के कारण ख़ून नसों व नाड़ियों में जम जाता है और यही मरीज़ की मौत का कारण बन जाता है।
इटली ने इस वायरस को हराया है, ओर कहा है कि “फैलीआ- इंट्रावासकूलर कोगूलेशन (थ्रोम्बोसिस) के इलावा और कुछ नहीं है और इस का मुक़ाबला करने का तरीका आर्थात इलाज़ यह बताया है……..
ऐंटीबायोटिकस (Antibiotics tablets}
ऐंटी-इंनफ्लेमटरी ( Anti-inflamentry) और
ऐंटीकोआगूलैटस ( Aspirin) को लेने से यह ठीक हो जाता है।
ओर यह संकेत करते हुए कि इस बीमारी का इलाज़ सम्भव है, विश्व के लिए यह संनसनीख़ेज़  ख़बर इटालियन डाक्टरों द्वारा कोविड-19 वायरस से मृत लाशों की आटोप्सीज़ (पोस्टमार्टम) कर तैयार की गई है। कुछ और इतालवी वैज्ञानिकों के अनुसार वेन्टीलेटर्स और इंसैसिव केयर यूनिट (ICU) की कभी ज़रूरत ही नहीं थी। इस के लिए इटली में अब नए शीरे से प्रोटोकॉल जारी किए गए है ।
CHINA इसके बारे में पहले से ही जानता था मगर इसकी रिपोर्ट कभी किसी के सामने उसने सार्वजनिक नहीं की ।
कृपया इस जानकारी को अपने सारे परिवार, पड़ोसियों, जानकारों, मित्रों, सहकर्मीओं को साझा करें ताकि वो कोविड-19 के डर से बाहर निकल सकें ओर उनकी यह समझ मे आये कि यह वायरस बिल्कुल नहीं है बल्कि एक बैक्टीरिया मात्र है जो 5G रेडियेशन के कारण उन लोगो को नुकसान पहुँचा रहा है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम है। यह रेडियेशन इंफलामेशन और हाईपौकसीया भी पैदा करता है। जो लोग भी इस की जद में आ जायें उन्हें Asprin-100mg और ऐप्रोनिकस या पैरासिटामोल 650mg लेनी चाहिए । क्यों…??? ….क्योंकि यह सामने आया है कि कोविड-19 ख़ून को जमा देता है जिससे व्यक्ति को थ्रोमोबसिस पैदा होता है और जिसके कारण ख़ून नसों में जम जाता है और इस कारण दिमाग, दिल व फेफड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती जिसके कारण से व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और सांस ना आने के कारण व्यक्ति की तेज़ी से मौत हो जाती है।
इटली के डॉक्टर्स ने WHO के प्रोटोकॉल को नहीं माना और उन लाशों पर आटोप्सीज़ किया जिनकी मौत कोविड-19 की वजह से हुई थी। डॉक्टरों ने उन लाशो की भुजाओं, टांगों ओर शरीर के दूसरे हिस्सों को खोल कर सही से देखने व परखने के बाद महसूस किया कि ख़ून की नस-नाड़ियां फैली हुई हैं और नसें थ्रोम्बी से भरी हुई थी, जो ख़ून को आमतौर पर बहने से रोकती है और आकसीजन के शरीर में प्रवाह को भी कम करती है जिस कारण रोगी की मौत हो जाती है। इस रिसर्च को जान लेने के बाद इटली के स्वास्थ्य-मंत्रालय ने तुरंत कोविड-19 के इलाज़ प्रोटोकॉल को बदल दिया और अपने पोज़िटिव मरीज़ो को एस्पिरिन 100mg और एंप्रोमैकस देना शुरू कर दिया। जिससे मरीज़ ठीक होने लगे और उनकी सेहत में सुधार नज़र आने लगा। इटली स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक ही दिन में 14000 से भी ज्यादा मरीज़ों की छुट्टी कर दी और उन्हें अपने अपने घरों को भेज दिया।
स्रोत: *इटली स्वास्थ्य मंत्रालय*

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Tuesday, April 6, 2021

राजपूत और मांसाहार


राजपूतों ने जब से मांसाहार और शराब को अपनाया तभी से मुगल से पराजित होना शुरू हुआ…
राजपूतों का सिर धड से अलग होने के बाद कुल देवी युद्ध लडा करती थी…
“एक षड्यंत्र और माँस और शराब की घातकता….”
हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये..,
ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है.........
ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !
जानिये एक सच्ची ऐतिहासिक घटना…
“एक षड्यंत्र और शराब की घातकता….”
कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??
जानिये और फिर सुधार कीजिये !!
             मुगल का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे ।
            उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की “है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में ?”
              सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !
               तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहा “है कोई हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??
                 सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की और गया !
वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल थे !
रिड़मल जी ने कहा, “मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है…, सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में !
                 मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया !
कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से
तो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से…।
बादशाह का मुँह देखने लायक था ,
ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।
“बाते मत करो राव…उदाहरण दो वीरता का।”
रिड़मल ने कहा “क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??”
बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही ,
रिड़मल बोले ” इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की ….......!! ”
बादशाह हंसा और दरबार में बेठे कवियों की और देखकर बोला
“इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है । मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ?
               मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।”
राव रिड़मल निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए।
              रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।
              रात को ११ बजे रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी।
              ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,
             घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले
              ” जोधपुर महाराज… आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ।
              हुकम आप अंदर पधारो…मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता।
              राव रिड़मल ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी
              अब आप ही बताये कि जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?
         रोहणी जागीदार बोले ,” बस इतनी सी बात..
             मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे ”
                राव रिड़मल को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को।
              सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!
               उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ,” महाराज थोडा रुकिए !!
मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में।”
              राव रिड़मल ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है कैसे मानेगा ! अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,
              एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।
               ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा........
” आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को........ ,
दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है........ ?
आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा....... !
ठकुरानी जी ने कहा.......
“बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर
छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो”
            दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे।
             बड़े लड़के को मैदान में लाया गया और मुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..
            तभी बीकानेर महाराजा बोले “ये क्या तमाशा है ?
              राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ?
               बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो…
               २० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।
           दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,
            मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,
             इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।
           ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा.......” ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर…तलवार से ये नही मरेगा…
            कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।
               सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करी और मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा।
              बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा था
               ये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा
              लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली।
               उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।
               बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था।
            हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था।
             बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।
            एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो।
            राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो।
             दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए।
              मौलवी ने बादशाह को कहा ” हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है।
              यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ।
             यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे।
                उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट करते गए।
           और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूर रहिये।
            माँसाहार जैसी राक्षसी प्रवृत्ति पर गर्व करने वाले राजपूतों को यदि ज्ञात हो तो बताएं और आत्म मंथन करें कि महाराणा प्रताप की बेटी की मृत्यु जंगल में भूख से हुई थी क्यों …?
            यदि वो मांसाहारी होते तो जंगल में उन्हें जानवरों की कमी थी क्या मार खाने के लिए…?
             इसका तात्पर्य यह है कि राजपूत हमेशा शाकाहारी थे केवल कुछ स्वार्थी राजपूतों ने जिन्होंने मुगलों की आधिनता स्वीकार कर ली थी वे मुगलों को खुश करने के लिए उनके साथ मांसाहार करने लगे और अपने आप को मुगलों का विश्वासपात्र साबित करने की होड़ में गिरते चले गये राजपूत भाइयो ये सच्ची घटना है और हमे राजपूत समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा।
          तब ही हम पुनः खोया वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।
🙏🏻नमन ऐसी वीर परंपरा को ।🙏🏻 
🙏🏻एक क्षत्रिय की कलम से...🙏🏻
🙏🏻जय श्री राम🙏🏻
🙏🏻जय माँ भवानी🙏🏻

सभी से निवेदन है कि वे अपने सभी परिचितों को,  चाहे उनके पास Whatsapp ना हो, उन्हे मौखिक रूप से  इस शर्मनाक घटना की सच्चाई से अवगत करावैं 

🙏🏻भारत माता की जय🙏🏻

*🙏🏻भँवर हैमेन्द्र प्रताप सिंह परमार🙏🏻*
*🙏🏻विधानसभा संयोजक आईटी🙏🏻*
*🚩भारतीय जनता पार्टी, विधानसभा बसेड़ी,जिला धौलपुर (राज)🚩*
*🚩जिला प्रभारी धौलपुर:- टीम मोदी सपोर्टर,जिला धौलपुर(राज)🚩*

दुर्लभ मनुष्य जीवन

रेलवे स्टेशन के बाहर सड़क के किनारे कटोरा लिए एक भिखारी लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने कटोरे में पड़े सिक्कों को हिलाता रहता और साथ-साथ यह गाना भी गाता जाता*
*गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा -२ तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा गरीबों की सुनो..."*

*कटोरे से पैदा हुई ध्वनि व उसके गीत को सुन आते-जाते मुसाफ़िर उसके कटोरे में सिक्के डाल देते।*

*सुना था, इस भिखारी के पुरखे शहर के नामचीन लोग थे! इसकी ऐसी हालत कैसे हुई यह अपने आप में शायद एक अलग कहानी हो!*

*आज भी हमेशा की तरह वह अपने कटोरे में पड़ी चिल्हर को हिलाते हुए, 'ग़रीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा....' वाला गीत गा रहा था।*

*तभी एक व्यक्ति भिखारी के पास आकर एक पल के लिए ठिठकर रुक गया। उसकी नजर भिखारी के कटोरे पर थी फिर उसने अपनी जेब में हाथ डाल कुछ सौ-सौ के नोट गिने। भिखारी उस व्यक्ति को इतने सारे नोट गिनता देख उसकी तरफ टकटकी बाँधे देख रहा था कि शायद कोई एक छोटा नोट उसे भी मिल जाए।*

*तभी उस व्यक्ति ने भिखारी को संबोधित करते हुए कहा, "अगर मैं तुम्हें हजार रुपये दूं तो क्या तुम अपना कटोरा मुझे दे सकते हो?"*

*भिखारी अभी सोच ही रहा था कि वह व्यक्ति बोला, "अच्छा चलो मैं तुम्हें दो हजार देता हूँ!"*

*भिखारी ने अचंभित होते हुए अपना कटोरा उस व्यक्ति की ओर बढ़ा दिया और वह व्यक्ति कुछ सौ-सौ के नोट उस भिखारी को थमा उससे कटोरा ले अपने बैग में डाल तेज कदमों से स्टेशन की ओर बढ़ गया।*

*इधर भिखारी भी अपना गीत बंद कर वहां से ये सोच कर अपने रास्ते हो लिया कि कहीं वह व्यक्ति अपना मन न बदल ले और हाथ आया इतना पैसा हाथ से निकल जाए और भिखारी ने इसी डर से फैसला लिया अब वह इस स्टेशन पर कभी नहीं आएगा - कहीं और जाएगा!*

*रास्ते भर भिखारी खुश होकर  यही सोच रहा था कि 'लोग हर रोज आकर सिक्के डालते थे, पर आज दो हजार में कटोरा! वह कटोरे का क्या करेगा?' भिखारी सोच रहा था?*

*उधर दो हजार में कटोरा खरीदने वाला व्यक्ति अब रेलगाड़ी में सवार हो चुका था। उसने धीरे से बैग की ज़िप्प खोल कर कटोरा टटोला - सब सुरक्षित था। वह पीछे छुटते नगर और स्टेशन को देख रहा था। उसने एक बार फिर बैग में हाथ डाल कटोरे का वजन भांपने की कोशिश की। कम से कम आधा किलो का तो होगा!*

*उसने जीवन भर धातुओं का काम किया था। भिखारी के हाथ में वह कटोरा देख वह हैरान हो गया था। सोने का कटोरा! .....और लोग डाल रहे थे उसमें एक-दो के सिक्के!*

*उसकी सुनार वाली आँख ने धूल में सने उस कटोरे को पहचान लिया था। ना भिखारी को उसकी कीमत पता थी और न सिक्का डालने वालों को पर वह तो जौहरी था, सुनार था।*

*भिखारी दो हजार में खुश था और जौहरी कटोरा पाकर! उसने लाखों की कीमत का कटोरा दो हजार में जो खरीद लिया था।*

*इसी तरह हम भी अपने अनमोल काया की उपयोगिता को भूले बैठे है और उसे एक सामान्य कटोरे की भाँति समझ कर कौड़ियां इक्कट्ठे करने में लगे हुए हैं।*

*ये इंसानी जन्म 84 लाख योनियों के बाद मिला है। इसे ऐसे ही ना गवाएं। भगवान की भक्ति कर के अपना जीवन सफल बनायें!*

*यह मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है, दुर्लभ होने के साथ-साथ क्षणभंगुर भी है। इसीलिए हमेँ यह अवसर बहुत जन्मों के बाद प्राप्त हुआ है और इस मनुष्य योनि के अवसर को हम चूक न जाए, हमेँ ऐसी सतर्कता रखनी चाहिए।*

*संत और महात्मा लोग यह कहते हैं कि येन केन प्रकारेण मन: कृष्णे निवेशयेत्। हम हमेशा प्रयत्न करें कि किसी न किसी प्रकार से हमारा मन उस प्रभु से जुड़ जायें। यह सुअवसर इस मनुष्य योनि मेँ ही प्राप्त होता है कि किसी न किसी प्रकार परम पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण की हम भक्ति करें। यह भगवदभक्ति हमेँ तभी प्राप्त हो सकती है जब हम भक्तों की सगंति करें और शास्त्रों का पठन पाठन करें। हरिनाम संकीर्तन एवं गीता-भागवत आदि शास्त्रों का अध्ययन ही हमेँ इस भवसागर से पार कर सकता है।*

*मंगलमय प्रभात*
    *स्नेह वंदन*
       *प्रणाम*

Friday, April 2, 2021

Comparison between Shankaracharya and quantum physics



*Adi Shankaracharya*
This world is  (maya) an illusion.
*Quantum Physics*
The world we see and perceive are not real, they are just 3D projections of mind.

*Adi Shankaracharya*
Brahma sathya jagan mithya --Only the Brahman is the absulote reality
*Quantum Physics*
Only that conciousness is reality

*Adi Shankaracharya*
The Brahanda is created and dissolved again in to the para -brahman.
*Quantum Physics*
The atoms bind together to make planets, stars ,comets and at some time later they dis-integrate and merge with conciousness.

*Adi Shankaracharya*
Jivatma is nothing but a seperated soul from Brahman. and has to strive to merge with Brahman called moksha
*Quantum Physics*
Everyone was once part of one conciousness  later seperated. And has to merge back to that consciousness.

*Adi Shankaracharya*
when the Jiva becomes realised then it is the state of nirvana, the jiva beyond - time , space and mind.
*Quantum Physics*
when someone deeply understands that consciousness then there is no time, no space and no mind.

*Adi Shankaracharya*
Jiva feels he is real because of the presence of mind.
*Quantum Physics*
Individuality is an illusion that is caused by mind.

*Adi Shankaracharya*
Brahman cannot be realised through senses,because they are limited.
*Quantum Physics*
Infinity cannot be understood with finite mediums.

*Adi Shankaracharya and Quantum Physics* ---
We are all one consciousness experiencing differently subjectively (because of different karma). There is no such thing as death, life is just a dream. we are eternal beings. The reality as you know does not exist.

What the entire Quantum physicists have understood is just a part of Advaita Philosophy of Adi Shankaracharya which is purely derieved from the Vedas. There exists none greater a scientist than Adi Shankaracharya .

The  unchanging reality is called God by common people, called consciousness by scientists, called energy by believers.

we are all the same consciousness but appear differently because of our own actions. With a single line stated by Shankara "ब्रह्मा सत्य जगन मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव न अपरह Brahman is the only reality , the living entity is not different from Brahman" that has revealed the inner most knowledge.

 *Nothing can match Adi  Shankara' s selfless service in the field of science and contributions to the world*

Wednesday, March 31, 2021

राष्ट्र की प्रथम महिला चिकित्सक

 #आनंदीबाई_जोशी जी की #१५६वीं_जन्मजयंती पर सादर नमन व भावभीनी श्रद्धांजलि।*
🙏💐💐💐
आनंदीबाई जोशी का जन्म १८६५ में पुणे महाराष्ट्र में हुआ। मात्र ९ वर्ष की अवस्था में २० साल बड़े विधुर से विवाह हुआ। मात्र १४ वर्ष में बेटे को जन्म दिया लेकिन इलाज के अभाव में बेटे की मौत हो गई। तभी डाक्टर बनने का संकल्प लिया। अनेकानेक अड़चनों व रूकावटों को पार कर १८८६ अमेरिका में डाक्टर की डिग्री ली और कोल्हापुर के अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल में डाक्टर बनी।

आनंदीबाई को डाक्टर बनाने में उनके पति का बहुत बड़ा हाथ था। आनंदीबाई जोशी जी अमेरिका जाने वाली प्रथम हिंदू महिला थी। कादम्बिनी गांगुली को भी प्रथम महिला चिकित्सक माना जाता हैं क्योंकि ये कादम्बिनी जी के साथ डिग्री हासिल करने के बाद २७ फरवरी १८८७ में स्वर्गवासी हो गई।

*शुक्र ग्रह के जोशी क्रेटर को इन्हीं का नाम दिया गया है।*

*✍#प्रेमघन......🙏💖*

*✍प्रेमघन......💖*

अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने की सच्चाई क्या है?

हजारों साल से शूद्र दलित मंदिरों मे पूजा करते आ रहे थे पर अचानक 19वीं शताब्दी मे ऐसा क्या हुआ कि दलितों को 5 साल मंदिरों मे प्रवेश नकार दिया गया?

क्या आप सबको इसका सही कारण मालूम है?

या सिर्फ़ ब्राह्मणों को गाली देकर मन को झूठी तसल्ली दे देते हो?

पढ़िये, सुबूत के साथ क्या हुआ था उस समय!

अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने की सच्चाई क्या है?

यह काम पुजारी करते थे कि मक्कार अंग्रेज़ों के लूटपाट का षड्यंत्र था?

1932 में लोथियन कॅमेटी की रिपोर्ट सौंपते समय डॉ० अंबेडकर ने अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने का जो उद्धरण पेश किया है, वह वही लिस्ट है जो अंग्रेज़ों ने कंगाल यानि ग़रीब लोगों की लिस्ट बनाई थी; जो मन्दिर में घुसने देने के लिए अंग्रेज़ों द्वारा लगाये गए टैक्स को देने में असमर्थ थे!

#षड्यंत्र...

1808 ई० में ईस्ट इंडिया कंपनी पुरी के जगन्नाथ मंदिर को अपने क़ब्ज़े में लेती है और फिर लोगों से कर वसूला जाता है, तीर्थ यात्रा के नाम पर!

चार ग्रुप बनाए जाते हैं!
और चौथा ग्रुप जो कंगाल हैं, उनकी एक लिस्ट जारी की जाती है!

1932 ई० में जब डॉ० अंबेडकर अछूतों के बारे में लिखते हैं, तो वे ईस्ट इंडिया के जगन्नाथ पुरी मंदिर के दस्तावेज़ों की लिस्ट को अछूत बनाकर लिखते हैं!

भगवान जगन्नाथ के मंदिर की यात्रा को यात्रा-कर में बदलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफ़ा हुआ और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला!

जिससे अरबों रुपये सीधे अंग्रेज़ों के ख़ज़ाने में बने और इंग्लैंड पहुंचे!

श्रृद्धालु यात्रियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता था!

प्रथम श्रेणी = लाल जतरी (उत्तर के धनी यात्री)

द्वितीय श्रेणी = निम्न लाल (दक्षिण के धनी यात्री)

तृतीय श्रेणी = भुरंग (यात्री जो दो पैसा  दे सके)

चतुर्थ श्रेणी = पुंज तीर्थ (कंगाल की श्रेणी जिनके पास दो पैसा  भी नहीं, तलाशी लेने के बाद)

चतुर्थ श्रेणी के नाम इस प्रकार हैं!

1. लोली या कुस्बी!
2. कुलाल या सोनारी!
3.मछुवा!
4.नामसुंदर या चंडाल
5.घोस्की
6.गजुर
7.बागड़ी
8.जोगी
9.कहार
10.राजबंशी
11.पीरैली
12.चमार
13.डोम
14.पौन
15.टोर
16.बनमाली
17.हड्डी

प्रथम श्रेणी से 10 पैसा !
द्वितीय श्रेणी से 5 पैसा !
तृतीय श्रेणी से 2 पैसा 
           और 
चतुर्थ श्रेणी से कुछ नहीं!

अब जो कंगाल की लिस्ट है, जिन्हें हर जगह रोका जाता था और मंदिर में नहीं घुसने दिया जाता था!

आप यदि उस समय 10 पैसा खर्च कर सकते है, तो आप सबसे अच्छे से ट्रीट किये जाओगे!

डॉ० अंबेडकर ने अपनी Lothian Commtee Report में इसी लिस्ट का ज़िक्र किया है और कहा कि कंगाल पिछले 100 साल में कंगाल ही रहे...l

बाद में वही कंगाल षडयंत्र के तहत अछूत बनाये गए!

हिन्दुओं के सनातन धर्म में छुआछुत बैसिक रूप से कभी था ही नहीं!

यदि ऐसा होता तो सभी हिन्दुओं के श्मशान घाट और पिंडदान के घाट अलग अलग होते!

और मंदिर भी जातियों के हिसाब से ही बने होते और हरिद्वार में अस्थि विसर्जन भी जातियों के हिसाब से ही होता!

ये जातिवाद ईसाई और मुसलमानों में है इन में जातियों और फ़िरक़ों के हिसाब से अलग-अलग चर्च और अलग-अलग मस्जिदें और अलग-अलग क़ब्रिस्तान।

हिन्दुओं में जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, धर्मनिपेक्षवाद, जडवाद, कुतरकवाद, गुरुवाद, राजनीतिक पार्टीवाद पिछले 1000 वर्षों से मुस्लिम और अंग्रेज़ी व कॉन्ग्रेसी शासकों ने षडयंत्र से डाला है!

#षडयंत्रों_को_समझो_हिन्दुओं...

Forwarded as received
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

Monday, March 15, 2021

विष्णुगुप्त विश्वविद्यापीठा

ही छायाचित्रे #कर्नाटकातील #गोकर्ण 
(महाबळेश्वर) येथे उभारलेल्या "विष्णुगुप्त विश्वविद्यापीठा"चे आहे. या विद्यापीठातील 'गुरुकुल संकुल' उंचीवरून असे दिसते.
नामशेष झालेल्या प्राचीन 'तक्षशिला' विद्यापीठाचे हे जणू पुनर्निर्माण आहे, असं त्याचे प्रवर्तक प.पू. आचार्य राघवेश्वर भारती म्हणतात.
आपल्या गुरुकुल पद्धतीने, पारंपारिक भारतीय विद्या आणि कला (सुद्धा) इथे शिकवल्या जाणार आहेत. गुरुकुलाच्या आकारावरून त्याचा 'स्वभाव' उघड होतोच आहे. इथे भारतीय गोष्टींची (इंग्रजीतून) टिंगल करण्याची सोय नाही.  इथे भारतीय गोष्टी नुसत्या 'चालतील' असे नाही; तर अभिमानाने मिरवल्या जातील.
नुकतेच, गेल्या वर्षी सुरु झालेले हे विद्यापीठ आता कोरोना संकट ओसरल्यावर किती गती घेते, बघूया.
An initiative of Sri RamachandrapuraMatha, established at Ashoke in Gokarna to preserve, promote & propagate the whole gamut of Ancient Bharatiya systems of knowledge & arts. The students here not only become scholars in Dharma, Shastra and ancient Bharatiya knowledge&art forms, but also become patriots and soldiers of Dharma. Knowledge& skills required in the contemporary world are also provided. Vishnugupta VishwaVidyapeetham shall be the only one of its kind where all the Bharatiya Vidyas are studied under a single roof. People irrespective of their age, caste, gender can study here

Monday, March 8, 2021

एक साधारण परिवार की 3 बहुएं, जिनके नामों की कभी चर्चा नही की जाती।

वे हैं-
 01 - सौ. यशोदा गणेश सावरकर जी, 
02 - सौ. यमुना विनायक सावरकर जी एवं 
03 - सौ. शांता नारायण सावरकर जी।
        इन साधारण प्रतीत होने वाली असाधारण नारियों ने प्रचंड विस्फोटक क्षमता युक्त बम अपने पेट से बांधकर स्वयं को गर्भवती होने का नाटक किया।
यह इतनी बडी जोखिम उठाकर उसी अवस्था में कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) जाकर क्रांतिकारियों को सफलता पूर्वक वह बम पहुंचा दिया।
स्वातंत्र्यवीर श्री. विनायक दामोदर सावरकर जी को निरंतर दो बार आजन्म सश्रम (पचास वर्षीय) कारावास (काले पानी की) शिक्षा सुनाई जाने के बाद उनके परिवार की तीन महान देशभक्त क्रांतिकारी नारियों को क्रूर अंग्रेज अधिकारियों ने उनके अपने ही घर से निकाल दिया।
इन महान अद्वितीय क्रांतिकारी शूरवीर माताओं को मेरा सादर प्रणाम।
आज महिला दिन निमित्य उन्हें अभिवादन करना हम जैसे प्रत्येक भारतीय नागरिक का परम कर्तव्य है।
विनम्र अभिवादन।
सादर प्रणाम।
 वंदे मातरम्।🚩

Wednesday, March 3, 2021

आवश्यक है अल्पसंख्यक को परिभाषित करना!



*[इस समय देश में चर्चा छिड़ी हुई है कि क्या अनेक राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक क्यों न सिद्ध किया जाये। कश्मीर, पंजाब, उत्तर पूर्वी राज्यों में हिन्दुओं की संख्या कम हैं। फिर भी उसे अल्पसंख्यक के नाम पर मिलने वाले किसी भी सुविधा से वंचित रखा जाता हैं। इस समस्या पर प्रसिद्द लेखक शंकर शरण जी का लेख पढ़ने योग्य हैं।* ]

(शंकर शरण- साभार दैनिक जागरण )
अल्पसंख्यक मुद्दे पर वही हुआ जो दशकों से होता आया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में अल्पसंख्यक अवधारणा को स्पष्ट करने की गुहार लगाई गई थी ताकि सरकारी कामकाज में विभिन्न स्तरों पर इसकी आड़ में हो रही मनमानी और अन्याय पर विराम लगाया जा सके। परंतु जैसा अब तक का अनुभव है कि यहां एक खास मतवाद या समुदाय से संबंधित कोई उचित काम करने में भी तंत्र के सभी अंग हीलाहवाली ही करते हैं। 
इसमें भी वही हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने इसे परिभाषित करने का काम अल्पसंख्यक आयोग को सौंप दिया मानो वही संविधान का व्याख्याता हो! जबकि संविधान में मौजूद ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को केवल संसद या सुप्रीम कोर्ट ही परिभाषित कर सकते हैं। यह भी कितनी दु:खद स्थिति है कि जो कोर्ट मामूली से मामूली मुद्दे पर भी खुद निर्णय करता है, वह एक संवैधानिक उपबंध से जुड़ी और दशकों से चली आ रही गड़बड़ी पर फैसला सुनाने से कन्नी काटता है। 

वस्तुत: यह भी इस समस्या की गंभीरता का ही संकेत है। भारत में यह ऐसी समस्या है जिससे तमाम अन्य समस्याएं जुड़ी हैं। उपनिषद की भाषा में कहें तो इसके समाधान में हमारी कई जटिल समस्याओं के समाधान की कुंजी है। पर सत्ता के सभी अंग इस पर खुलकर सोचने से बचते हैं जबकि देश का जनमत चाहता है कि ‘अल्पसंख्यक’ और ‘बहुसंख्यक’ की परिभाषा तथा विकृति से जुड़ी कानूनी विषमता दूर होनी चाहिए, क्योंकि इसी अस्पष्टता की आड़ में यहां विभिन्न दल, देसी-विदेशी संगठन और एक्टिविस्ट भारी गड़बड़ करते रहे हैं। 
ऐसा न तो दुनिया में अन्य किसी देश में है, न ही यह हमारे मूल संविधान में था।

समकालीन विमर्श में अल्पसंख्यक शब्द का आशय संकीर्ण हो चला है। जस्टिस राजेंद्र सच्चर की अध्यक्षता वाली समिति ने सरकारी दस्तावेज में ‘अल्पसंख्यक’ और ‘मुसलमान’ शब्दों को एक दूसरे के पर्याय के रूप में इस्तेमाल किया था। ऐसी समझ मूल संविधान की नहीं थी। फिर भी पिछली संप्रग सरकार ने इसकी अनदेखी कर सच्चर समिति की अनुशंसाएं लागू करने का फैसला किया। ऐसे नजरिये ने देश में दो प्रकार के नागरिक बना दिए हैं जिससे ‘कानून के समक्ष समानता’ का संवैधानिक पहलू गौण हो गया है। 
कुछ वर्ष पहले पश्चिम बंगाल के शीर्ष पुलिस अधिकारी ने बेधड़क कहा था कि वह समुदाय को देखकर ही ¨हसा संबंधी घटनाओं पर कार्रवाई करते या नहीं करते हैं। राजनीतिक बिरादरी की भी यही स्थिति है। इससे नागरिक समानता का मखौल उड़ता है। यह सब ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को कानूनी तौर पर अस्पष्ट छोड़ देने से ही हुआ। यह भी अभूतपूर्व स्थिति है कि किसी देश में अल्पसंख्यक को वह अधिकार मिलें जो बहुसंख्यक को नहीं हैं। 

पश्चिमी लोकतंत्रों में ‘माइनॉरिटी प्रोटेक्शन’ का लक्ष्य होता है कि किसी के अल्पसंख्यक होने के कारण उसे किसी अधिकार से वंचित न रहना पड़े जो दूसरों को सहज प्राप्त है। भारत में इस अवधारणा को ही उलट दिया गया है जहां अल्पसंख्यकों के लिए विशेषाधिकारों की बात होती है। यह विकृति भारत में नागरिकों को दो किस्मों में बांट देती है। 
एक वे जिसके पास दोहरे अधिकार हैं और दूसरे वे जिन्हें एक ही तरह के अधिकार हैं जो पहले के पास भी हैं। यह हमारे देश और समाज के लिए घातक साबित हुआ है जो समाज के कई वर्गो में जहर घोल रहा है।

सच तो यह है कि भारत में इस अवधारणा की जरूरत ही नहीं थी जो यूरोपीय समाजों में नस्लवादी या सामुदायिक उत्पीड़न के इतिहास से पैदा हुई है। जबकि भारत में अंग्रेजी राज के दौरान भी ऐसा नहीं था। यहां तो गोरे अंग्रेजों, यानी अल्पसंख्यकों को ही अति-विशिष्ट अधिकार हासिल थे! उससे पहले, मुगल शासन में भी अगर कोई वंचित समुदाय था तो वह बहुसंख्यक हिन्दू ही थे जिन्हें जजिया जैसा धार्मिक कर देना पड़ता था। ऐसे में अव्वल तो ‘अल्पसंख्यक संरक्षण’ की अवधारणा ही भारत में मतिहीन होकर अपना ली गई, जिसका कोई संदर्भ यहां नहीं था। फिर भी, जब इसे पश्चिम से ले ही लिया गया तो वहां भी इसका यह अर्थ कतई नहीं कि अल्पसंख्यकों को ऐसे विशेषाधिकार दे दिए जाएं तो कथित बहुसंख्यक के पास न हों। 
इससे जुड़ी तीसरी गड़बड़ी यह है कि संविधान या कानून में ‘बहुसंख्यक’ का कहीं उल्लेख नहीं है। इस कारण उसका कानूनी तौर पर अस्तित्व ही नहीं है! यह विचित्र विडंबना है, क्योंकि कानून में कोई चीज स्वत: स्पष्ट नहीं होती। जब लिखित धाराओं के अर्थ पर ही भारी मतभेद होते हैं तब जो अलिखित है उस मोर्चे पर दुर्गति का अनुमान ही लगाया जा सकता है। इसीलिए ‘बहुसंख्यक’ के रूप में कोई कुछ भी समङो, वह हमारे संविधान में कहीं नहीं है। यहां अनेक राजनीतिक, कानूनी गड़बड़ियां इसी कारण पनप रही हैं।

यहां कोई मुस्लिम या ईसाई व्यक्ति भारतीय नागरिक और अल्पसंख्यक, दोनों रूपों में अधिकार रखता है, किंतु एक हिन्दू केवल नागरिक के रूप में। बतौर हिन्दू वह अदालत से कुछ नहीं मांग सकता, क्योंकि संविधान में हिन्दू या बहुसंख्यक जैसी कोई मान्यता ही नहीं है। नि:संदेह, हमारे संविधान निर्माताओं का यह आशय नहीं था, किंतु कुछ बिंदुओं पर ऐसी रिक्तता और अंतर्विरोध के कारण आज यह दुष्परिणाम देखना पड़ रहा है। 
जैसे- संविधान की धारा 29 अल्पसंख्यक के संदर्भ में धर्म, नस्ल, जाति और भाषा, यह चार आधार देती है। जबकि धारा 30 में केवल धर्म और भाषा का उल्लेख है। तब अल्पसंख्यक की पहचान किन आधारों पर हो ? 
यह अनुत्तरित है। अत: जब तक इसे स्पष्ट न किया जाए, तब तक ‘अल्पसंख्यक’ नाम पर होने वाले सारे कृत्य अनुचित हैं। यह न केवल सामान्य बुद्धि, विवेक एवं न्यायिक दृष्टिकोण, बल्कि संवैधानिक भावना से भी अनुचित हैं।

आज अल्पसंख्यकों के नाम पर जारी मनमानियां संविधान निर्माताओं के लिए अकल्पनीय थीं। वे सभी के लिए समान अधिकारों के हिमायती थे। चूंकि संविधान में अल्पसंख्यकों की परिभाषा अधूरी रह गई जिसका दुरुपयोग कर नेताओं ने अपने हित साधने शुरू कर दिए। यह अन्याय मूलत: सत्ता की ताकत और लोगों की अज्ञानता के कारण होता रहा। ऐसा इसलिए भी हुआ, क्योंकि एक मूल प्रश्न पूरी तरह और आरंभ से ही उपेक्षित है कि बहुसंख्यक कौन है ?

ऐसे में अल्पसंख्यक की धारणा ही असंभव हो जाती है, क्योंकि ‘अल्प’ और ‘बहु’ तुलनात्मक अवधारणाएं हैं, एक के बिना दूसरा नहीं हो सकता।
इसका सबसे सरल और निर्विवाद समाधान यह है कि संसद में एक विधेयक पारित कर वैधानिक अस्पष्टता दूर कर दी जाए। यह घोषित किया जाए कि संविधान की धारा 25 से 30 में वर्णित अधिकार सभी समुदायों के लिए समान रूप से सुनिश्चित करने के लिए दिए गए थे, यही उनका आशय है। ऐसी कानूनी व्यवस्था से किसी अल्पसंख्यक का कुछ नहीं छिनेगा, बल्कि दूसरों को उनका वह हक मिल जाएगा जो उनसे सियासी छल करके छीन लिया गया। 

यदि हमारी संसद, सुप्रीम कोर्ट या केंद्रीय मंत्रिपरिषद इसे समाप्त कर दें तो तमाम सामुदायिक भेद-भाव, सांप्रदायिकता और देशघाती, वोट-बैंक राजनीति के खत्म होने का मार्ग खुल जाएगा .!!
*(लेखक राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक एवं स्तंभकार हैं)*


🙊🙊🙊 🙈🙈🙈 🙉🙉🙉🤗

Thursday, February 11, 2021

लखनऊ-पंचायत चुनाव आरक्षण अधिसूचना जारी।

UP पंचायत चुनाव आरक्षण अधिसूचना जारी।

मनोज सिंह ने बताया कि जिला पंचायत अध्यक्ष एवं वार्ड मेंबर, क्षेत्र पंचायत के सदस्य, ग्राम प्रधान एवं उनके सदस्य सभी के सीटों का निर्धारण किया जा चुका है। पंचायत चुनाव में 2015 में जो आरक्षण की स्थिति थी, वह इस चुनाव में नहीं होगी। जो पद शेड्यूल कास्ट या फिर शेड्यूल कास्ट महिला के लिए हैं, वे इस बार अनारक्षित व ओबीसी के हो सकते हैं।  कोई भी ऐसा पद जो आज तक शेड्यूल कास्ट के लिए आरक्षित नहीं हुआ, वह शेड्यूल कास्ट के लिए आरक्षित हो सकता है। ऐसे ही जिला पंचायत का कोई अध्यक्ष पद नहीं आरक्षित रहा है, तो वह आरक्षित हो सकता है। कोई ऐसा पद जो ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं हुआ है वह ओबीसी के लिए आरक्षित होगा, इसी तरह कोई पद महिलाओं के लिए आरक्षित नहीं हुआ तो इस बार हो सकता है।

Saturday, January 30, 2021

भारत के माहौल का पोस्ट मार्टम

 
डिस्कवरी चैनल तो आप लोग देखते ही होंगे
मैं भी देखता हूं

 उसमें हिरन नीलगाय पूरे दिन घास चरने में ही गुजारते हैं
वो दिन भर वह जंगल में इधर से उधर घूम कर घास चरते रहते हैं ताकि घास को प्रोटीन में बदला जा सके यानी वह मेहनत से पूरे दिन घास को प्रोटीन में बदलने में ही लगे रहते हैं 

वहीं दूसरी तरफ मांसाहारी प्राणी आराम से पूरे दिन में सोए रहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हमारे लिए प्रोटीन का इंतजाम करने में हिरण और नीलगाय लगे ही हैं तो हम क्यों मेहनत करें 

जब तक हिरन जी रहे हैं वहां तक जंगल के खूंखार जानवर एकदम मस्त मौज में रहते हैं सारे दिन सोते हैं 

जब हिरन कम होने लगते हैं फिर वह खूंखार जानवर दूसरे इलाके की यानी दूसरे जंगल की शोध में निकल जाते हैं 

ठीक इसी तरह से हिंदू हिरणो ने अविभाजित भारत के पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश में खूब मेहनत किया सारा दिन मेहनत मजदूरी किया सोना चांदी हीरा और ज्ञान इकट्ठा किया बड़ी-बड़ी हवेलियां बनवाएं बड़े-बड़े कॉलेज और यूनिवर्सिटी बनवाए बड़े बड़े मंदिर बनवाए अंततः परिणाम क्या आया ?
 एक घटना ने हमारा सब कुछ साफ कर गया अफगानिस्तान ले लिया ईरान ले लिया पाकिस्तान ले लिया बांग्लादेश ले लिया कश्मीर ले लिया केरल बंगाल और आसाम लेने के मूड में हैं

 दरअसल इस नस्ल में सिर्फ शिकारी का ही गुण विकसित किया
इसने अपनी उर्जा मेहनत मजदूरी करने में नहीं लगाई क्योंकि इसे पता है कि हिंदू  तो हमारे लिए मेहनत मजदूरी कर रहा है हम हिंदुओं से सब कुछ छीन लेंगे
 हिंदू तो हिरण की तरह सारा दिन हमारे लिए प्रोटीन इकट्ठा करने में मेहनत कर ही रहा है

क्योंकि अब पाकिस्तान बांग्लादेश में भूखमरी की स्थिति आ गई है क्योंकि वहां पर हिंदू पंजाबी हिंदू सिख हिंदू सिंधी और उनके खुद के अहमदिया जैसे हिरण खत्म हो चुके हैं क्योंकि इन्हीं की वजह से उन सभी इलाकों की इकोनामी चल रही थी
यानी धीरे-धीरे पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिरण खत्म हो गए और सिर्फ खूंखार नरभक्षी जानवर बढ़ते गए अब उन जानवरों की नजर एक नए इलाके एक नए जंगल पर है और वह इलाका है भारत

 क्योंकि वह लोग अक्सर गजवा ए हिंद कहते हैं वह कहते हैं हमारी किताबों में बरसों पहले इसका उल्लेख हो चुका है दरअसल यह  युद्ध कोई सेना नहीं कर सकती है यह युद्ध अंदर ही अंदर शुरू होगा फिर बाद में बाहर से शुरू होगा हम और आप इस युद्ध में है लेकिन हमें पता ही नहीं है 

अगर आपको विश्वास ना हो तो कश्मीर आसाम केरल यानी ऐसे इलाके जहां यह खूंखार लोग बहुमत में है उस इलाके का चक्कर लगा कर देखिए फिर आपको पता चलेगा क्यों इन इलाकों से तमाम हिन्दू  हिरणों ने अपना घर और संपत्ति बेचकर दूसरी जगह बसावट कर लिया है 
आपको ज्यादा दूर भी जाने की जरूरत नहीं है सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कैराना घूम कर चले आइए 

थोड़ा सा खून देखकर उल्टी कर देने वाली कौम
 खून की धार देख कर बेहोश हो जाने वाली कौम है कितने तो यह भी कहते हैं हम लहसुन नहीं खाते हम प्याज नहीं खाते अब यह कौम क्या किसी हिंसक भेड़िया के सामने कितनी देर तक टिक सकती है ?

 हमारे बीच में से कितने लोग धर्म के मठाधीश बन गए हैं आप इनसे मिलिए और पूछिए कि देश पर हम हिंदूओ  पर सबसे बड़ा खतरा क्या है उनके पास भी इसका जवाब नहीं होगा क्योंकि वह खुद अली मौला करने में बिजी है वह खुद हिंदुओं को कायर  बनाने में लगे हुए हैं क्योंकि वह खुद उनके दलाल बन चुके हैं

 दरअसल हमारे धर्म गुरु अपने आश्रमों की भव्यता अपने शिष्यों की भीड़ दिखाने में व्यस्त हैं यह प्रेम और विरह का प्रवचन करेंगे लेकिन यह कभी हिंदुओं पर मंडरा रहे खतरे के बारे में कोई बात नहीं करेंगे यह सभी हमें अहिंसक बनने का ज्ञान देंगे 

दरअसल आने वाला वक्त हम हिंदुओं के लिए बेहद चिंताजनक होने वाला है या तो हिंदू अपनी परिस्थिति को स्वीकार करके चुपचाप अपनी अस्मिता भूलकर जिंदगी जिएगा या फिर यहूदियों की तरह ठोकरें खाने के बाद जागेगा अब दोनों में से क्या होगा यह आने वाला वक्त बताएगा 

लेकिन इतना जरूर है आने वाले वक्त में भागो या भाग लो यानी रन अवे और पार्टिसिपेट इन इट दोनों में से कोई एक चुनना पड़ेगा
दूसरा आपके पास कोई विकल्प नहीं है
और जो लोग मध्य भारत में अभी तक safe बैठे हुए मेरी पोस्ट का मज़ाक उड़ा रहे हैं, उनको कभी बंगाल के interior एरिया का एक चक्कर लगा कर आना चाहिए
एक ज़माने में हिन्दुओं के बाहुल्य वाले क्षेत्रों की पूरी सरंचना (demography) बदल गई है
अब तो आपको वंहा जय श्री राम का नारा लगाने पर भी ममता खातून चप्पलों से पीटने को आ जाती है
वो वंहा हो गया है तो हमारे यहां क्यों नहीं हो सकता है
बीजेपी कॉंग्रेस जाए भाड़ में
अपनी संस्कृति बचा ले, इतना ही बस है
और हाँ जीडीपी अब माइनस से प्लस में आ गई है, लेकिन आपकी प्लस जीडीपी को आप कितने दिनों तक सुरक्षित रख पाएंगे
कभी मूड हो तो सोचना
वर्ना जैसे चल रहा है, वैसे चलने दीजिए
अखिर कुछ तो क्वालिटी हम लोगों में है, जिसके कारण हम सैंकड़ों साल तक गुलाम रहे
बाहरी आक्रांता अपने साथ बहुत सारे सैनिकों को ले कर नहीं आए थे
उन्होंने हमारे लोगों को ही हमारे लोगों से लडवाया
और अभी भी वो यही कर रहे हैं

Jisne bhi likha hai saty likha hai

Friday, January 29, 2021

भारत के मलिच्छ!

26 January 2021 की!
पगड़ी के आड़ में दंगाई कर रहे थे! दंगा! सबूत
इस फोटो में आप जालीदार टोपी देख सकते है!

इनकी सजा सिर्फ मौत होनी चाहिये!

Monday, January 4, 2021

‘Urban Naxals’ Dangerous Than 'Terrorist'

by Vicky Nanjappa

[An old article still worth reading]
On 28 August, in furtherance of the probe into the Bhima Koregaon violence, the Pune police conducted nation-wide raids and arrested five people who are alleged sympathisers of naxalites. On expected lines, there was a hue and cry by a large section of people, who termed these arrests as a blot on democracy.

The fact of the matter is that some of these persons – Varavara Rao, Sudha Bharadwaj, Vernon Gonsalves, Arun Ferreira and Gautham Navlakha – have always been on the radar and have had their brush with the law in 2007 as well. The Pune police report to the Union Home Ministry says that they had been providing logistic and financial support to the naxalites and were making attempts to forge alliances with terror groups.

In December 2012, when the Congress-led United Progressive Alliance (UPA) was in office, it had prepared a list of 128 organisations linked to naxalites and written to all states asking them to take action.

While the police say that they would make out a strong case in court, there have been debates questioning the very concept of ‘Urban Naxals’. Some have gone on to ask if this concept is fact or fiction.

The concept of urban naxalism or the urban forum as the naxalites themselves call it had been in the making for several years now. A top naxal sympathiser, Govindan Kutty, had prepared a 53-page confidential document (in possession of Swarajya) in which he sets the ground on how and why they need to have urban forums.

This is an extensive document, which is considered as ‘The Document’ by the naxals and it details the modus operandi to be followed. Armed struggles in the urban areas, infiltration into white-collared organisations, infiltrating the army and other services are some of the aspects that this document goes on to mention.

The White-collared Infiltration

While making submissions before a Pune court, the prosecution said that letters had cropped up where it was mentioned that attempts should be made to recruit from reputed institutions such as the Tata Institute of Social Sciences (TISS).

The prosecution said that the letters spoke about recruiting young working professionals for naxal activities and they were targeting professionals from institutes such as the TISS.

This is an interesting submission by the prosecution and in this context, one must quote from the document titled CPI (Maoist)-Urban Perspective. Under the title ‘White Collar Employees’, there is a clear mention of how the urban forces must infiltrate into this segment.

It states, “the rapid spread of computerisation and automation in modern industry and increasing share of the services sector in the economy has resulted in a significant increase in the number and proportion of white-collar employees. A large number of them are in the public sector and they are mostly unionised.”

Examples are the unions of banks, insurance companies, teachers, government employees, among others. There has also been a more recent growth of unions and associations of higher- level professionals such as electricity, telecommunications and other department engineers, resident doctors and pilots among others. Many of the above unions are powerful and have shown their ability to hit and paralyse the economy.

The report further states, “while all the white-collar employees are reliable allies of the working class and the revolution, certain sections sometimes tail the bourgeoisie and become victims of reactionary propaganda. It is, therefore, necessary for the industrial proletariat to always maintain close links with the employees' section and lead it away from vacillations in the class struggle.”

It says, “in all industries and enterprises, we should, therefore, always struggle for unity of both white-collar and blue-collar sections into one union. We should generally oppose the backward practice of having separate workers’ and 'employees’ unions. Where separate unions exist however, we should, where possible, allocate forces for fractional work within them.”

Another excerpt says, “in the globalisation period, the ruling classes have launched a concentrated propaganda attack against this section as an overpaid, under-worked section whose salaries and numbers should be reduced. Thus, some sections are being forced to agree to very meager rises in salary and cuts in earlier allowances. They have also been the target of various privatisation and voluntary retirement schemes. Though they have been struggling continuously, they often do not receive the sympathy and support of other sections. Our workers’ unions, legal democratic and secret workers organisations, and sometimes even the party should make it a point to express solidarity in various ways with the struggles of the bank employees, teachers, journalists, etc.”

“When joint trade union bodies are formed at the town/city level, we should try to draw in all the local branches of the employees unions. This can help in organising joint programmes and mutual solidarity during times of repression and struggle,” it says.

Building An Urban Force

Security and Intelligence Bureau officials that Swarajya spoke with say that this has been a pattern for long. Their primary intention was to propagate and ensure that democracy is in danger, irrespective of which government is in office.

The naxalites realise that the rural struggle could be strengthened only in the presence of a strong urban force. The naxal document states that during its ninth congress held in the late 1990s, there was a call to build a broad urban force. This force would comprise the so-called secular forces and ‘persecuted’ religious minorities. The idea was to build a strong group as the Hindu fascist forces, the document states.

“This task has appeared in our documents now from many years, but very little has as yet been done. One of the explanations for this failure is the weakness of our urban organisations, but the other more important reason is our neglect of work among the minorities," the document further reads.

United ‘Seculars’ Through A Political Programme

The naxals felt that a urban force could not be built merely by uniting secular individuals through a political programme. To be effective among the masses, particularly those from the minority had to be involved and hence substantial grassroot work among the minorities, the Muslims in particular, had to be done.

“However, due to extreme ghettoisation in almost all Indian cities, this is only possible if we take a conscious decision to shift out at least some forces from Hindu-dominated areas and base them in the slums and localities inhabited by the Muslim poor. This would be the first step to building any united front,” Govindan Kutty had suggested.

An Issue-based Front Against Hindus

One of the key issues that the rise of urban naxalism shows is that there was a strong anti-Hindu front that was being built. The naxalites felt that issue-based organisations could be built to oppose Hindus and fight the “saffronisation of education”.

They also felt that the Hindus were trying to push their agenda and hence the task of building this urban front became even more important. All urban organisations should plan concretely to bring this into practice, the naxalites said.

Infiltrating the Indian Army

Following the ninth congress, it was felt that the rural armed struggle must be aided from the urban areas. Kutty suggested that the rural struggle could be assisted by the urban movement. Some involve direct and immediate help in terms of materials and personnel; others involve the long-term preparation for the decisive battles in the later stages of the peoples’ war, the document reads.

Further Kutty goes on to state, “it is very important to penetrate into the military, paramilitary forces, police, and higher levels of the administrative machinery of the state. It is necessary to obtain information regarding the enemy, to build support for the revolution within these organs, and even to incite revolt when the time is ripe. Other types of technical help are also possible.”

“The cities are the strongholds of the enemy and have a large concentration of enemy forces. It is, therefore, from the cities that attention must be given to this task. Such work can be done by following up contacts obtained from the civilian sphere, or by directly allocating comrades to penetrate the enemy ranks,” he said.

"Whatever be the method, the work is of a very special type, which requires a high degree of political reliability, skill and patience. Such work should be without the knowledge of the lower-level committees and the details of the work should only remain with the comrades directly responsible.”

"Associated with this task is the need for a plan to work in the cantonment towns spread out throughout the country. Such work even among the civilian population of these towns can give us valuable information and openings for penetration in the enemy ranks."

“We should make use of opportunities for entry into the police, paramilitary and military forces. We should very secretly follow up contacts of those already within these forces. Where possible, we should enter into them from outside. Such work should be guided directly by the higher committees without informing the local bodies."

"We should regularly conduct propaganda regarding the problems of the ordinary constables and soldiers. We should pick up the burning issues concerning them and arouse them to agitation."

"We should also make a study of cantonment towns, ordnance factory areas, etc. with the purpose of formulating a plan for work in such zones. We should also try to collect and generate the type of forces who would be able to do such sort of work."

Setting Up Urban Military Operations

Although the entire urban naxal philosophy has been around propaganda and instigating violence, there was also a concrete plan to set up urban military operations. They say that the countryside is the main area of operation of the people’s army. However, there are certain military objectives that have to be performed through operations in the urban areas. This would also require the setting up of permanent structures of the Peoples’ Guerilla Army/Peoples’ Liberation Army in the cities and documents, the naxalites had also planned.

Elaborating further on this, the document also states that these city teams would have the role of hitting targets such as structures of military importance, annihilation of individuals, sabotage actions like blowing up ammunition depots and also destroying communication operations and damaging oil installations.

The Expert View

Former special secretary with the Research and Analysis Wing (RAW), Amar Bhushan, tells Swarajya, that this view that urban naxalism is a myth is all rubbish. There is no ideology left anymore in the movement. It has in fact become a good business. The movement is under the control of local dons and external elements, he said.

Bhushan points towards a very important aspect relating to urban naxalism and says that they are the primary movers of arms and funds. Contrary to what is said, there is a proper channel for the arms to come in from abroad. The urban naxals are the ones who form the pipeline so that both arms and funds reach the jungles, he said.

Although the issue is dying in the rural areas, these people in the urban areas keep the idea alive. They have a single-point agenda and that is destabilising India and furthering their own interests and businesses. There are so-called intellectuals, journalists and several others who are part of this very dangerous movement. They either work in non-governmental organisations or universities and keep the idea alive. Contrary to all the chest beating about human rights that these people do, the fact is that they are promoting a political culture in India that is violent and this, in my opinion, is their sinister plan, the former RAW officer added.

Source Swaragyamag.com