"पिताजी ! पंचायत इकठ्ठी हो गई, अब बँटवारा कर दो।" अमरचंद जी के बड़े लड़के ने रूखे लहजे में कहा।
"हाँ पिताजी ! कर दो बाँटवारा अब इकठ्ठे नहीं रहा जाता" छोटे लड़के भंवर लाल ने भी उसी लहजे में कहा।
"जब साथ में निबाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है, अब यह बताओ तुम किस बेटे के साथ रहोगे ?" सरपंच ने अमरचंद जी के कन्धे पर हाथ रख कर के पूछा।
"अरे इसमें क्या पूछना, छ: महीने पिताजी मेरे साथ रहेंगे और छ: महीने छोटे भंवर लाल के पास रहेंगे।"
" चलो तुम्हारा तो फैसला हो गया, अब करें जायदाद का बँटवारा !" सरपंच बोला।
अमरचंद जी जो काफी देर से सिर झुकाये बैठा था, एकदम उठ के खड़ा हो गया और चिल्ला के बोला,
" कैसा फैसला हो गया, अब मैं करूंगा फैसला, इन दोनों लड़कों को घर से बाहर निकाल कर !,"
"छः महीने बारी बारी से आकर मेरे पास रहें, और छः महीने कहीं और इंतजाम करें अपना...."
"जायदाद का मालिक मैं हूँ यह नहीं।"
दोनों लड़कों और पंचायत का मुँह खुला का खुला रह गया, जैसे कोई नई बात हो गई हो.....
*इसे कहते हैं फैसला।*
*फैसला औलाद नहीं करती फैसला मां-बाप करते हैं ।*
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