जैसे शिवलिङ्ग निराकार-निर्गुण शिव का प्रतीक है , उसी प्रकार शालिग्राम भी निराकार विष्णु का प्रतीक है ।
जैसे शिवलिङ्ग के दर्शन-नमस्कार आदि से समस्त देवी-देवताओं के पूजन-प्रणाम-दर्शन आदि का फल प्राप्त होता है , वैसा ही फल शालिग्राम के भी दर्शन से प्राप्त होता है ।
जैसे शंकर जी की सावयव मूर्ति की पूजा करने से केवल शिव पूजन का फल मिलता है , किन्तु लिङ्ग रूप में पूजन से सभी पूजन का फल मिलता है , वैसे ही विष्णु के चतुर्भुजी मूर्ति के पूजन से केवल विष्णु पूजन का ही फल मिलता है , किन्तु शालिग्राम के पूजन से सबके पूजन का फल मिलता है ।
जैसे नर्मदा नदी में सभी कंकड़ शंकर हैं , उसी प्रकार गण्डकी नदी में भी सभी कंकड़ शालिग्राम हैं ।
भविष्योत्तर पुराण में कथा आती है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा कि--- "शालिग्राम कितने प्रकार के होते हैं ?"
तब भगवान् ने कहा ---
"हे धर्मपुत्र ! हिमालय के दक्षिण में तथा गण्डकी के उत्तर में दश योजन विस्तृत क्षेत्र है , वहां पर शालिग्राम पाये जाते हैं ।
जहां शालिग्राम तथा द्वारिका शिला का संगम है , वहां निश्चित ही मुक्ति है ।
जो जन्म भर के पापों से मुक्त होना चाहता है , वह शालिग्राम का चरणोदक ----
"अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।
इस मंत्र से ग्रहण करता है तो सभी रोगों से मुक्त हो जाता है ।
चरणोदक पीकर बचे हुए जल को सिर पर धारण करे , इनके पूजन में शंख से जल को विष्णु भगवान् पर घुमाकर भक्तों पर डालने से ब्रह्म हत्यादि पाप छूट जाते हैं ।
हजारों अग्निहोत्र आदि यज्ञ करने से , सैंकडों वाजपेय यज्ञों से जो फल प्राप्त होता है , वह भगवान् शालिग्राम के नैवेद्य भक्षण से प्राप्त होता है ।
फिर नैवेद्य सहित तुलसी मिश्रित भगवान् का पादोदक पीने पर तो कहना ही क्या !
शालिग्राम की खण्डित तथा अग्निदग्ध शिला भी कल्याणकारिणी है । इनके पूजन में मन्त्र, आवाहन, तीर्थ की भावना से स्तुति आवश्यक नहीं है ।
यदि कोई मन्त्रादि जानता हो तो भी ठीक है , यदि नहीं जानता तो भी कोई हानि नहीं है ।
पद्मपुराण में पतालखण्ड के रामाश्वमेधीय खण्ड के बीसवें अध्याय में भगवान् राम के प्रति गुरु वशिष्ठ जी अश्वमेध यज्ञ की सामग्री का वर्णन करते हुए कहते हैं कि शालिग्राम का पूजन कैसे तथा किसे करना चाहिए ।
स्त्रियों तथा शूद्रों को शालिग्राम का स्पर्श भी वर्जित है ----
न जातु चित् स्त्रिया कार्यम् शालग्रामस्य पूजनम् ।
भतृहीनाथ सुभगा स्वर्गलोक हितैषिणी ।
मोहात्स्पृष्ट्वापि महिला जन्म शील गुणान्विता ।
हित्वापुण्यसमूहं सा सत्वरनरकं व्रजेत् ।।
स्त्रीपाणि मुक्त पुष्पाणि शालाग्राम शिलोपरि ।
पवेरधिक पातानि वदन्ति ब्राह्मणोत्तमा: ।।
चन्दनं विष संकाशं कुसुमं वज्रसन्निभम् ।
नैवेद्यं कालकूटाभं भवेत् भगवत: कृतम् ।।
तस्मात् सर्वात्मनात्याज्य: स्त्रिय: स्पर्श: शिलोपरि ।
कुर्वती याति नरक यावदिन्द्राश्चतुर्दश ।।
अपिपाप समाचारो ब्रह्महत्यायुतोऽयित्वा ।
शालिग्राम शिलातोयं पीत्वा याति परां गतिम् ।।
अर्थात् --- विधवा हो या सधवा ; स्वर्गलोक प्राप्त करने की इच्छा हो तो किसी भी स्त्री को शालिग्राम का पूजन कदापि नहीं करना चाहिए ।
अच्छे गुण, जन्म तथा स्वभाव वाली नारी यदि अज्ञान से भी स्पर्श कर लेती है तो अपने किये हुए पुण्यों का नाश करके नरक जाती है ।
उत्तम ब्राह्मण कहते हैं कि शालिग्राम शिला पर स्त्री के हाथ से छोड़े हुए पुष्प वज्र से भी अधिक चोट करते हैं , चन्दन विष के समान तथा नैवेद्य चढ़ाना कालकूट विष के समान है , इसीलिए स्त्रियों का शालिग्राम का स्पर्श सर्वथा त्याज्य है ।
यदि हठवश करती हैं तो चौदह मन्वन्तरों तक नरक भोगती है , किन्तु भगवान् का प्रसाद तथा चरणोदक सभी ले सकते हैं ।
अति पापी तथा ब्रह्महत्यारा भी शालिग्राम का जल पीकर परम् गति को प्राप्त करता है ।"
भगवान् का सात प्रकार का पादोदक जिसमें तुलसी-चन्दन-शंख-घण्टा-चक्र-शिला-ताम्रपत्र में रखा हुआ जल नौ प्रकार के पापों को नष्ट करता है !
जय श्रीमन्नारायण
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