Thursday, October 31, 2019

शराब की घातकता


"एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...
"हिंदू धर्म ग्रंथ नहीँ कहते कि देवी को शराब चढ़ाई जाये.., ग्रंथ नहीँ कहते की शराब पीना ही क्षत्रिय धर्म है..ये सिर्फ़ एक मुग़लों का षड्यंत्र था हिंदुओं को कमजोर करने का !

जानिये एक अनकही ऐतिहासिक घटना..
."एक षड्यंत्र और शराब की घातकता...."कैसे हिंदुओं की सुरक्षा प्राचीर को ध्वस्त किया मुग़लों ने ??

जानिये और फिर सुधार कीजिये !!

मुगल बादशाह का दिल्ली में दरबार लगा था और हिंदुस्तान के दूर दूर के राजा महाराजा दरबार में हाजिर थे । उसी दौरान मुगल बादशाह ने एक दम्भोक्ति की "है कोई हमसे बहादुर इस दुनिया में है ?"

सभा में सन्नाटा सा पसर गया ,एक बार फिर वही दोहराया गया !

तीसरी बार फिर उसने ख़ुशी से चिल्ला कर कहता" कोई है हमसे बहादुर जो हिंदुस्तान पर सल्तनत कायम कर सके ??

सभा की खामोशी तोड़ती एक बुलन्द शेर सी दहाड़ गूंजी तो सबका ध्यान उस शख्स की ओर गया ! वो जोधपुर के महाराजा राव रिड़मल राठौड़ थे ! रिड़मल जी राठौड़ ने कहा, "मुग़लों में बहादुरी नहीँ कुटिलता है..., सबसे बहादुर तो राजपूत है दुनियाँ में ! मुगलो ने राजपूतो को आपस में लड़वा कर हिंदुस्तान पर राज किया! 

कभी सिसोदिया राणा वंश को कछावा जयपुर से तो कभी राठोड़ो को दूसरे राजपूतो से...। बादशाह का मुँह देखने लायक था ,ऐसा लगा जैसे किसी ने चोरी करते रंगे हाथो पकड़ लिया हो।

"बातें मत करो राव...उदाहरण दो वीरता का।
"रिड़मल राठौड़ ने कहा "क्या किसी कौम में देखा है किसी को सिर कटने के बाद भी लड़ते हुए ??"

बादशाह बोला ये तो सुनी हुई बात है देखा तो नही, रिड़मल राठौड़ बोले " इतिहास उठाकर देख लो कितने वीरो की कहानिया है सिर कटने के बाद भी लड़ने की... 

"बादशाह हंसा और दरबार में बैठे कवियों की ओर देखकर बोला "इतिहास लिखने वाले तो मंगते होते है । मैं भी १०० मुगलो के नाम लिखवा दूँ इसमें क्या ? मुझे तो जिन्दा ऐसा राजपूत बताओ जो कहे की मेरा सिर काट दो में फिर भी लड़ूंगा।

"राव रिड़मल राठौड़ निरुत्तर हो गए और गहरे सोच में डूब गए। रात को सोचते सोचते अचानक उनको रोहणी ठिकाने के जागीरदार का ख्याल आया।

रात  रोहणी ठिकाना (जो की जेतारण कस्बे जोधपुर रियासत) में दो घुड़सवार बुजुर्ग जागीरदार के पोल पर पहुंचे और मिलने की इजाजत मांगी। ठाकुर साहब काफी वृद्ध अवस्था में थे फिर भी उठ कर मेहमान की आवभगत के लिए बाहर पोल पर आये ,,

घुड़सवारों ने प्रणाम किया और वृद्ध ठाकुर की आँखों में चमक सी उभरी और मुस्कराते हुए बोले" जोधपुर महाराज... आपको मैंने गोद में खिलाया है और अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दी है.. इस तरह भेष बदलने पर भी में आपको आवाज से पहचान गया हूँ। हुकम आप अंदर पधारो...मैं आपकी रियासत का छोटा सा जागीरदार, आपने मुझे ही बुलवा लिया होता। राव रिड़मल राठौड़ ने उनको झुककर प्रणाम किया और बोले एक समस्या है , और बादशाह के दरबार की पूरी कहानी सुना दी !

अब आप ही बताये की जीवित योद्धा का कैसे पता चले की ये लड़ाई में सिर कटने के बाद भी लड़ेगा ?

रोहणी जागीदार बोले ," बस इतनी सी बात..मेरे दोनों बच्चे सिर कटने के बाद भी लड़ेंगे और आप दोनों को ले जाओ दिल्ली दरबार में ये आपकी और राजपूती की लाज जरूर रखेंगे..

"राव रिड़मल राठौड़ को घोर आश्चर्य हुआ कि एक पिता को कितना विश्वास है अपने बच्चो पर.. , मान गए राजपूती धर्म को। सुबह जल्दी दोनों बच्चे अपने अपने घोड़ो के साथ तैयार थे!

उसी समय ठाकुर साहब ने कहा ," महाराज थोडा रुकिए !!

मैं एक बार इनकी माँ से भी कुछ चर्चा कर लूँ इस बारे में। "राव रिड़मल राठौड़ ने सोचा आखिर पिता का ह्रदय है कैसे मानेगा ! अपने दोनों जवान बच्चो के सिर कटवाने को ,एक बार रिड़मल जी ने सोचा की मुझे दोनों बच्चो को यही छोड़कर चले जाना चाहिए।

ठाकुर साहब ने ठकुरानी जी को कहा" आपके दोनों बच्चो को दिल्ली मुगल बादशाह के दरबार में भेज रहा हूँ सिर कटवाने को ,दोनों में से कौनसा सिर कटने के बाद भी लड़ सकता है ? आप माँ हो आपको ज्यादा पता होगा !

ठकुरानी जी ने कहा"बड़ा लड़का तो क़िले और क़िले के बाहर तक भी लड़ लेगा पर छोटा केवल परकोटे में ही लड़ सकता है क्योंकि पैदा होते ही इसको मेरा दूध नही मिला था। लड़ दोनों ही सकते है, आप निश्चित् होकर भेज दो 

"दिल्ली के दरबार में आज कुछ विशेष भीड़ थी और हजारो लोग इस दृश्य को देखने जमा थे। बड़े लड़के को मैदान में लाया गया औरमुगल बादशाह ने जल्लादो को आदेश दिया की इसकी गर्दन उड़ा दो..तभी बीकानेर महाराजा बोले "ये क्या तमाशा है ?

राजपूती इतनी भी सस्ती नही हुई है , लड़ाई का मौका दो और फिर देखो कौन बहादुर है ? बादशाह ने खुद के सबसे मजबूत और कुशल योद्धा बुलाये और कहा ये जो घुड़सवार मैदान में खड़ा है उसका सिर् काट दो...२० घुड़सवारों को दल रोहणी ठाकुर के बड़े लड़के का सिर उतारने को लपका और देखते ही देखते उन २० घुड़सवारों की लाशें मैदान में बिछ गयी।दूसरा दस्ता आगे बढ़ा और उसका भी वही हाल हुआ ,मुगलो में घबराहट और झुरझरि फेल गयी ,इसी तरह बादशाह के ५०० सबसे ख़ास योद्धाओ की लाशें मैदान में पड़ी थी और उस वीर राजपूत योद्धा के तलवार की खरोंच भी नही आई।ये देख कर मुगल सेनापति ने कहा" ५०० मुगल बीबियाँ विधवा कर दी आपकी इस परीक्षा ने अब और मत कीजिये हजुर , इस काफ़िर को गोली मरवाईए हजुर...तलवार से ये नही मरेगा...कुटिलता और मक्कारी से भरे मुगलो ने उस वीर के सिर में गोलिया मार दी।सिर के परखचे उड़ चुके थे पर धड़ ने तलवार की मजबूती कम नही करीऔर मुगलो का कत्लेआम खतरनाक रूप से चलते रहा। बादशाह ने छोटे भाई को अपने पास निहत्थे बैठा रखा था ये सोच कर की ये बड़ा यदि बहादुर निकला तो इस छोटे को कोई जागीर दे कर अपनी सेना में भर्ती कर लूंगा लेकिन जब छोटे ने ये अंन्याय देखा तो उसने झपटकर बादशाह की तलवार निकाल ली। उसी समय बादशाह के अंगरक्षकों ने उनकी गर्दन काट दी फिर भी धड़ तलवार चलाता गया और अंगरक्षकों समेत मुगलो का काल बन गए।

बादशाह भाग कर कमरे में छुप गया और बाहर मैदान में बड़े भाई और अंदर परकोटे में छोटे भाई का पराक्रम देखते ही बनता था। हजारो की संख्या में मुगल हताहत हो चुके थे और आगे का कुछ पता नही था। बादशाह ने चिल्ला कर कहा अरे कोई रोको इनको..।

राजा के दरबार का एक मौलवी आगे आया और बोला इन पर शराब छिड़क दो। राजपूत का इष्ट कमजोर करना हो तो शराब का उपयोग करो। दोनों भाइयो पर शराब छिड़की गयी ऐसा करते ही दोनों के शरीर ठन्डे पड़ गए ।

मौलवी ने बादशाह को कहा " हजुर ये लड़ने वाला इनका शरीर नही बल्कि इनकी कुल देवी है और ये राजपूत शराब से दूर रहते है और अपने धर्म और इष्ट को मजबूत रखते है। यदि मुगलो को हिन्दुस्तान पर शासन करना है तो इनका इष्ट और धर्म भ्रष्ट करो और इनमे दारु शराब की लत लगाओ। यदि मुगलो में ये कमियां हटा दे तो मुगल भी मजबूत बन जाएंगे। उसके बाद से ही राजपूतो में मुगलो ने शराब का प्रचलन चलाया और धीरे धीरे राजपूत शराब में डूबते गए और अपनी इष्ट देवी को आराधक से खुद को भ्रष्ट करते गए। और मुगलो ने मुसलमानो को कसम खिलवाई की शराब पीने के बाद नमाज नही पढ़ी जा सकती। इसलिए इससे दूर रहिये।

हिन्दू भाइयों ये सच्ची घटना है और हमे हिन्दू समाज को इस कुरीति से दूर करना होगा। तब ही हम पुनः खोया हुआ वैभव पा सकेंगे और हिन्दू धर्म की रक्षा कर सकेंगे।तथ्य एवं श्रुति पर आधारित। नमन ऐसी वीर परंपरा को नमन..
आग्रह शराब से दूर रहे सभी..! 
हुक्म आप सभी से निवेदन है  पोस्ट ज्यादा से ज्यादा शेयर जरूर करें।
    जय श्री राम,🚩
 जय मां भवानी🚩
 जय राजपूताना🚩

Wednesday, October 30, 2019

भारत! मूर्खो का देश।

बुद्धि हिन कहे कि, सीधा! हिंदुस्तान वालो को!, हिन्द के लोगो ने अपने इसी हरकत से 800 साल से जादा की गुलामी सही!
कभी ये शिव और विष्णु के नाम पे लड़ते थे। तो कभी शिव और शक्ति, फिर मूर्ति और निरंकार पे, कभी भाषाओं पे लड़े थे!... जिसका फायदा मुगलों ने और फिर अंग्रेजो ने लिया!
मंद तो है ही हिन्दुस्तानी लोग सत ही सत धन वैभव से संपन है! चलो थोड़ा दिमाग लगते है! मुगलों(भूखे सूखे लोग) ने पहले दुतो को भेज माहौल पढ़ा फिर जाना की इनकी एकता तो अहंकार के कारण बहुत कमजोर है! फिर क्या कमजोरी पे आक्रमण किया अपने भूखे नंघे भीड़(50 से 60 हजार भूखे लोग) जिसका परिणाम वहीं हुआ जो होना था! उनकी भूख भारत के अहंकारी संप्पन लोगो से जीत गई। और फिर क्या वो समझ गए थे भारतीयों का चरित्र! फिर सदा के लिऐ राज करना था तो बस कुछ लालचियों को पकड़ा और गुरुकुल की पड़ाही पे हमला कर दिया! बीज बो दिया नफरत का गरीबों को छोटी जात घोषित कर दिया और अमीरों को बड़ी, फिर क्या होना था अहंकार में बने बड़ी जातियों ने अपने ही भाई बंधुवो को नीचा दिखाना शुरू कर दिया! लालची पंडित केहेलाए और शोषित दलित! यहां तक इन लालचियों ने वेद जैसे पवित्र प्राकृतिक ग्रंथ को भी नहीं छोड़ा, उसमे के समाज वेवस्था वर्ण को जात(cast) बना दिया अंग्रेजो ने इसका बहुत समर्थन किया, वेदों को तोड मड़ोड के पुर्तगाली, फ्रेंच, Dutch,   अंग्रेजी व अन्य यूरोपीय भाषा में प्रकाशित भी किया! वो जानते थे कैसे समाज को तोड़ा जाता है, जिसे हम "Divide and Rule policy" कहेते है।.......और आज भी वो चालू है बस उल्टा हो गया है।
Ha Ha Ha
 पूरी किताब बन रही है "भारत एक बेवकूफ देश" पर इंतेज़ार करों।
समजने वालो के लिऐ इतना article बहुत है, और जो समजना ही नहीं चाहता या तो वो मानसिक रोगी है या तो फिर वो कुछ फायदे में है इस जात पात के topic  से...

बाकी कलयुग की मर्जी जहां नचाए मंदो को!
*मेरी हिन्दी मत देखना बेवकूफों ये भाव रश है! कोई कविता या शायरी नहीं।

"ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी | सकल ताड़ना के अधिकारी ||" अर्थ

"ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी |
  सकल ताड़ना के अधिकारी ||"

मानस की इस चौपाई की सदियों से मीमांसा होती रही है और अद्यतन जारी हैं। तुलसीदास जी स्वयं भी नहीं जानते होंगे कि मेरी लिखी किसी चौपाई पर इतना विवाद एवं समीक्षा होगी।

सारा विवाद "ताड़ना" शब्द का है। जिसका सही अर्थ तो शब्दकोश में उपलब्ध हैं। किन्तु हम इसे समझना ही नहीं चाहते अथवा दुसरे शब्दों में कहें तो "ताड़ना" शब्द को लेकर भारतीय जनमानस में इस प्रकार से दुष्प्रचार कर अंग्रेजों की नीति के तहत विधर्मियों द्वारा फुट डालो और राज करो की रणनीति की तरह इसका भरपूर इस्तेमाल किया गया जो आज भी बदस्तूर जारी है। जो भारतीय समाज एवं जनमानस को विभक्त किये हुए हैं।

मीमांसा के समीक्षकों को चौपाई के शेष शब्दों में कोई रूचि नहीं है, केवल "नारी" शब्द पर ही समस्त बुद्धिजीवियों की ज्ञानाग्नि प्रज्वलित होती है।  

नारी स्वभाव से लज्जावान एवं संकोची स्वभाव की होती है एवं अपनी भावाभिव्यक्ति हेतु शब्दों की अपेक्षा नयनों की भाषा की उपयोग करती है।
नारी के मनोभावों को ज्ञात करने हेतु "ताड़ना" होता है ना कि मारना-पिटना।

चूंकि काव्य में छंद, दोहे, चौपाई में अनुशासित शब्द विन्यास होता है, अतः काव्यमय भावाभिव्यक्ति में बहुअर्थी शब्दों का प्रयोग बाध्यकारी बन जाता है।
यही बात इस चौपाई पर लागू होती है।

जय जय सियाराम                                   🙏🙏🙏

Tuesday, October 29, 2019

#justiceforvijay

#justiceforvijay

आप लोग का ध्यान मुंबई पुलिस की एक बहोत शर्मनाक करतुत की तरफ खीच रहा हूं

दीवाली की रात 27th oct  को रात 11 बजे Vijay Singh ( working as MR in Pharma Company ) जो सायन कोलीवाड़ा का रहने वाला है ,अपने 2 cousins के साथ खाने के बाद टहलने के लिए और अपनी होने वाली बीवी से बात करने के लिए घर से कुछ दूर (वडाला ट्रक टर्मिनल ) आया.
जब उसने अपनी बाइक खड़ी की तो सामने एक couple जो वहा का लोकल था बैठा हुआ था और उनके ऊपर इसकी बाइक की लाइट चली गयी । लाइट चहरे पे जाने के बाद couple में से लड़के ने विजय सिंह को गाली दी और थोड़ी बहस चालू हो गयी । उसने अपने 2 दोस्तों को बुला लिया और बात आगे बढ़ गयी यहाँ तक कि हाथापाई पे आ गयी।

जब वहा पुलिस पहोंची तो लड़की ने बस ये बोल दिया कि ये तीनो लड़के( विजय और उसके cousin ) मुझे छेड़ रहे थे और पुलिस ने बिना किसी डिटेल्ड इन्क्वायरी के विजय ओर उसके दोस्तों को मारा । यहाँ तक कि उस वक्त भी लड़की और उसके साथ के लड़के ने इन तीनो पे हाथ उठाया ।

पुलिस मारते मारते विजय सिंह और उसके साथ वालो को पुलिस चौकी ले गयी और ले जा के तीनों को बिना किसी इन्क्वायरी के अलग अलग लॉकअप में डाल दिया । विजय सिंह को हाथ पैर से सीने पे भी मारा जब कि oppsite वालो को अच्छा खासा VIP treatment दिया गया । उनमे से एक लड़के ने पुलिस चौकी में ये तक कहा कि तुम लोग को इधर ही खत्म कर दूंगा लेकिन इसपे भी पुलिस की कोई प्रतिक्रिया नही दी।

2.30 बजे विजय सिंह ने पुलिस स्टाफ से कहा कि मुजे सीने में दर्द हो रहा है और पानी दे दो पीने के लिए लेकिन स्टाफ ने पानी नही दिया बल्कि जब विजय की माँ ने पानी देने की कोशिस की तो उसे भी डाटा। विजय का एक छोटा cousin (12 age) जब पानी देने गया तो उससे भी बहोत बुरा व्यवहार किया । घरवालो से भी बहोत गाली गलौच की  ।
विजय ने पुलिस स्टाफ से कहा कि अपने बेटे जैसा समझ के पानी पिला दो लेकिन इंसानियत मर चुकी थी इन लोगो में शायद।
विजय ने ये भी कहा कि मुजे घुटन सी हो रही है , पंखा चला सकते है क्या लेकिन फिर वही गली गलौज वाली भाषा 

जब वो बेहोश हो गया तो उसे lockup से बाहर निकाला गया और लिटाया गया ।
जब उसे घरवालो को सौपा गया तो विजय दम तोड़ चुका था

शायद आपको ये जान के और धक्का लगे कांस्टेबल ने ये कहा कि गाड़ी नही है हमारे पास , ola मार के जाओ 
विजय के पापा ने एक ola वाले को रिक्वेस्ट कर के जब गाड़ी रुकवायी तब उस ड्राइवर ने उसकी साँसे चेक कर के कहा कि यर मार चुका है ।आप शायद ही उसके बाप की  हालत समझ पाए

सवाल ये है की क्या सिर्फ उस लड़की का ही बयान मायने रखता है
बिना जुर्म साबित हुए पुलिस ने विजय ओर उसके भाइयो को क्यों मारा
पानी पिलाना जुर्म हो गया है क्या ।
एक बाप को उसके बेटे की लाश दे के ये कहना जरूरी है क्या की ola मार के जाओ ।

लोगो को टैग कर औरइसे share करे
 विजय को इंसाफ दिलाने की कोशिस करे।

इससे पहले भी wadala truck terminal police station का नाम कई कामो में बदनाम हो चुका है

Wednesday, October 23, 2019

जाने धुले सिक्के व नये नोट ही क्यों दान धर्म के कार्य में चड़ाया जाता है।

अक्सर पूजा या धर्म कार्यों में विद्वान पंडित लोग दक्षिण में, धुले सिक्के व नये नोट ही क्यों चड़ावे के लिऐ केहेते है!
जानते है क्यों?🤔

जवाब है!
नोट गिनते समय ज़्यादातर लोग थूक🤤 का इस्तेमाल करते हैं, ये किसे पता कि किन-किन लोगों का *थूक नोटों* पर लगा हुआ है??
नोट *शराब से लेकर माँस की दुकान* 🥵👺 तक से होकर गुज़रते हैं, इसलिए नोटों को किसी भी धार्मिक कार्यक्रम मे, धर्म के पूजास्थल पर न चढ़ाएँ, ना ही किसी भी पंडे पुजारियों को दे, अन्यथा पाप लगेगा। और अगर देना ही है तो!
पूजास्थलों पर सिर्फ धुले सिक्के, अनाज, फल या कुछ ना होने पर सिर्फ इज्जत सम्मान का पुष्प🌺 भी चढ़ा सकते है।
 

       
*मंदिर व धर्मस्थल के सुद्धी के लिऐ कृपया पुराने नोट या सिक्के ना चढ़ाये।*

मंदिर भारत का हृदय है, उसके मान, मर्यादा व सुद्धता का जिम्मा हमें स्वाम लेना चाहिए।  ज्ञान का लाभ उठाइये और पाप कर्म से दूर रहे ||

बाकी सब राम की माया!🙏🏻

Sunday, October 20, 2019

Vinayak Damodar Savarkar's Batch of Andaman Jail

50 वर्षो कैद का जेल बिल्ला और सेलुलर जेल की यातनाएं, इस देश की आज़ादी के लिए जिसने भोगी उसको गुमनामी में धकेल कर कांग्रेस ने अपने लोगो को भारत रत्न बनाया। 
कटु सत्य था, है, और रहेगा।
आजादी का श्रेय लेने वालों में से किसी के पास है ऐसा कोई बैज, बिल्ला या यादगार?

Saturday, October 19, 2019

Money..Honesty.. Happiness



1 Graduate person working for a company with heart & honestly....
with out excepting a huge increment or any extra bonus ....
He become Permanent one day After 6 years working for that same company
his salary increased little bit .. He is Happy with that ...
increment ... increment .... increment 
every year !
Do u believe that ! now his Payment should be what ?....
Just a 10 note of 1000 rs (10,000 rs)
every Mumbaikar(family runner) know that what is a value of 10 thousand rupees now a days ..
"2 cheapest Smart Phone" forget this ..
Insted of this all, He have no complaint for that company in heart , he is working with happyy mood..
But A shoking Day of Life
As regular .. He came to office ..
One call came to him
" Hello, Please don't come to Office you are fired . . ."

Can you Feel that Pain..... 12 years of precious Life times ... just ended by a Phone Call

Wait .... Presently his working Experience is of 12 years in same company

He is not alone in This Situation ... Many More are there
What to do For them? How to help them?
This is my way to Help By Posting Meassage and sharing it...
Please Dont Kill Honesty it is costly Than Money..

Sorry for my Bad English, Just Feel The Pain!!
 
............
After 4 years  I am Writing again with My Poor English.

 That Man is Working There Only... With increment of 2 thousand only He is Still A Happy Guy!

He Was Taken After A Short Tension Period with Involving of Political Party in ( Thanks to MNS ).

भामाशाह


जन्म 29 अप्रैल 1547 या
*28 जून 1547 चित्तौडग़ढ़

मृत्यु 16 जनवरी 1600

भामाशाह के पिता का नाम भारमल था। कावडिय़ा ओसवाल जैन समुदाय से सम्बद्ध थे। माता कर्पूर देवी ने बाल्यकाल से ही भामाशाह का त्याग, तपस्या व बलिदान सांचे में ढालकर राष्ट्रधर्म हेतु समर्पित कर दिया।

बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रतापके मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगाने में आप सदैव अग्रणी रहे। आपको मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था और दानवीरता के लिए आपका नाम इतिहास में अमर है।

जीवनी

दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल 1547 को हुआ। कुछ विद्वानों के हिसाब से भामाशाह का जन्म 28 जून 1547 में मेवाड़ की राजधानी चित्तौडग़ढ़ में हुआ था !

मुगलों के साथ निरन्तर युद्ध करते रहने से महाराणा प्रताप का सारा धन समाप्त हो गया था। सेना छिन्न-भिन्न हो गई थी। महाराणा प्रताप सोच में पड़ गए। सोचने लगे धनाभाव में मेवाड़ की रक्षा कैसे कर सकेंगे ? महाराणा प्रताप के सामने विकट समस्या थी। कठिनाइयों से घिरे महाराणा प्रताप को मन:स्थिति देख भामाशाह के दिल में स्वामिभक्ति का भाव जागा। वे अपना सारा धन छकड़ों में भरकर महाराणा प्रताप के पास पहुंचे।

महाराणा प्रताप नामक पुस्तसक में लेखक लिखते हैं भामाशाह जितना धन दे रहे थे उस धन से बीस हजार सैनिक को 14 वर्ष तक का वेतन दिया जा सकता था।

भामाशाह की त्याग भावना एवं धन को देखकर उपस्थित सामंत दंग रह गए।भामाशाह के त्याग व स्वाभिमान को देखकर महाराणा प्रताप स्तब्ध रह गए।

महाराणा प्रताप ने कहा भामाशाह तुम्हारी देशभक्ति, स्वामिभक्ति और त्याग भावना को देखकर में अभिभूत हूं परन्तु एक शासक होते हुए मेरे द्वारा वेतन के रूप में दिए गए धन को पुन: में कैसे ले सकता हूं ? मेरा स्वाभिमान मुझे स्वीकृति नहीं देता।

भामाशाह ने निवेदन किया स्वामी यह धन मैं आपको नहीं दे रहा हूं। आप पर संकट आया हुआ है। मातृभूमि की रक्षार्थ मेवाड़ की प्रजा को दे रहा हूं। लडऩे वाले सैनिकों को दे रहा हूं। आप पर संकट आया हुआ है मातृभूमि पर संकट आया हुआ है। धन के अभाव में आप जंगलों में इधर-उधर घूम रहे हैं। कष्ट भोग रहे हैं और मैं आराम से घर बैठ कर इस धन का उपयोग करूं, यह कैसे संभव है ? मातृभूमि पराधीन हो जाएगी। मुगलों का शासन हो जाएगा तब यह धन किस काम आएगा ? अत: आपसे आग्रह है कि आप इस धन से अस्त्र-शस्त्रों एवं सेना का गठन कर मुगलों से संघर्ष जारी रखें।

अन्य सामन्तों एवं सहयोगियों ने भामाशाह की बात का समर्थन किया। सभी ने एक मत से आग्रह किया कि संकट के समय प्रजा से धन लेना गलत नहीं है। सामन्तों के आग्रह पर महाराणा प्रताप ने भामाशाह के धन से सैन्य संगठन प्रारम्भ किया। मेवाड़वासियों, वीरों में एक नई चेतना, नई स्फूर्ति जागी। अकबर को चुनौती का सामना करने के लिए मातृभूमि की रक्षार्थ मैदान में उतर आए रण भैरवी बज उठी।शंख ध्वंनि पुन: गूंजने लगी। दिवेर के युद्धमें महाराणा प्रताप ने विजय पाई। अकबर की सेना भाग खड़ी हुई। मालपुरा और कुंभलमेर पर भी महाराणा प्रताप ने अधिकार कर लिया। भामाशाह कर्मवीर योद्धा का 16 जनवरी 1600 को देवलोकगमन हुआ।

भामाशाह की छतरी महासतिया आहाड़ उदयपुर में गंगोदभव कुंड केठीक पूर्व में स्मृतियों के झरोखों के रूप में स्थित हैं।

सर्वस्व दृष्टि से भामाशाह मेवाड़ उद्धारक के रूप में स्मरण योद्धा है।

आपका निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्मायक साबित हुआ। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी। आपने यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। आपने मेवाड़ के अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी ठुकरा दिया।

महाराणा प्रताप को दी गई आपकी हरसम्भव सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी।

भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहां संघर्ष की दिशा दी, वहीं मेवाड़ को भी आत्मसम्मान दिया। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी। तब भामाशाह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे , महाराणा प्रताप के लिए उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे २५००० सैनिकों का बारह वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। प्राप्त सहयोग से महाराणा प्रताप में नया उत्साह उत्पन्न हुआ और उसने पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित कर फिर से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया।

आप बेमिसाल दानवीर एवं त्यागी पुरुष थे। आत्म सम्मान और त्याग की यही भावना आपको स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले देश-भक्त के रुप में शिखर पर स्थापित कर देती है। धन अर्पित करने वाले किसी भी दान दाता को दानवीर भामाशाह कहकर उसका स्मरण-वंदन किया जाता है। आपकी दानशीलता के चर्चे उस दौर में आसपास बड़े उत्साह, प्रेरणा के संग सुने-सुनाए जाते थे। आपके लिए पंक्तियां कही गई है !

वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामा सा लाल पला !

उस दानवीर की यश गाथा को, मेट सका क्या काल भला !!

लोकहित और आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व दान कर देने वाली उदारता के गौरव-पुरुष की इस प्रेरणा को चिरस्थायी रखने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में दानशीलता, सौहार्द्र एवं अनुकरणीय सहायता के क्षेत्र में दानवीर भामाशाह सम्मान स्थापित किया है।

भामाशाह का जीवनकाल ५२ वर्ष रहा

उदयपुर, राजस्थान में राजाओं की समाधि स्थल के मध्य भामाशाह की समाधि बनी है। जैनमहाविभूति भामाशाह के सम्मानमें ३१ दिसम्बर २००० को ३ रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।

शत शत नमन ऐसे महान दानवीर को।

अभियंता दिवस विशेष

#अभियंता_दिवस_विशेष..

ब्रिटेन में एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था।

डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया। तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था। कोई तो इतने गुस्से में था, की ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ? इसे डिब्बे से उतारो।

किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा। वह शांत गम्भीर बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो।

ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था। किन्तु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया "ट्रेन रोको"। कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी। ट्रेन रुक गईं।

अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा। सब उसको गालियां दे रहे थे। गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे। किंतु वह शख्स गम्भीर मुद्रा में शांत खड़ा था। मानो उसपर किसी की बात का कोई असर न पड़ रहा हो। उसकी चुप्पी अंग्रेजों का गुस्सा और बढा रही थी।

ट्रेन का गार्ड दौड़ा-दौड़ा आया। कड़क आवाज में पूछा:- क"किसने ट्रेन रोकी"..
कोई अंग्रेज बोलता उसके पहले ही, वह शख्स बोल उठा:- "मैंने रोकी श्रीमान"..
पागल हो क्या ? पहली बार ट्रेन में बैठे हो ? तुम्हें पता है, बिना कारण ट्रेन रोकना अपराध हैं:- "गार्ड गुस्से में बोला"
हाँ श्रीमान ज्ञात है किंतु मैं ट्रेन न रोकता तो सैकड़ो लोगो की जान चली जाती।

उस शख्स की बात सुनकर सब जोर-जोर से हंसने लगे। किँतु उसने बिना विचलित हुये, पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा:- करीब एक फरलाँग(220 गज)  की दूरी पर पटरी टूटी हुई हैं। आप चाहे तो चलकर देख सकते है।

गार्ड के साथ वह शख्स और कुछ अंग्रेज सवारी भी साथ चल दी। रास्ते भर भी अंग्रेज उस पर फब्तियां कसने मे कोई कोर-कसर नही रख रहे थे।
किँतु सबकी आँखें उस वक्त फ़टी की फटी रह गई जब वाक़ई , बताई गई दूरी के आस-पास पटरी टूटी हुई थी। नट-बोल्ट खुले हुए थे। अब गार्ड सहित वे सभी चेहरे जो उस भारतीय को गंवार, जाहिल, पागल कह रहे थे। वे सभी उसकी और कौतूहलवश देखने लगे। मानो पूछ रहे हो आपको ये सब इतनी दूरी से कैसे पता चला ??..

गार्ड ने पूछा:- तुम्हें कैसे पता चला , पटरी टूटी हुई हैं ??.
उसने कहा:- जब सभी लोग ट्रेन में अपने-अपने कार्यो मे व्यस्त थे। उस वक्त मेरा ध्यान ट्रेन की गति पर केंद्रित था। ट्रेन स्वाभाविक गति से चल रही थी। किन्तु अचानक पटरी की कम्पन से उसकी गति में परिवर्तन महसूस हुआ। ऐसा तब होता हैं, जब कुछ दूरी पर पटरी टूटी हुई हो। अतः मैंने बिना क्षण गंवाए, ट्रेन रोकने हेतु जंजीर खींच दी।

गार्ड औऱ वहाँ खड़े अंग्रेज दंग रह गये। गार्ड ने पूछा, इतना बारीक तकनीकी ज्ञान, आप कोई साधारण व्यक्ति नही लगते। अपना परिचय दीजिये।

शख्स ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया:- मैं इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ...

जी हाँ वह असाधारण शक्श कोई और नही डॉ विश्वेश्वरैया थे। जो देश के "प्रथम इंजीनियर" थे। आज उनका जन्मदिवस हैं। उनके जन्मदिवस को अभियंता दिवस(इंजीनियर डे) के रूप मे मनाया जाता हैं। देशभर के इंजीनियर इसे धूमधाम से मनाते हैं।

अभियंता दिवस की शुभकामनाएं...

Friday, October 18, 2019

आखिर कौन था सेंट फ्रांसिस जेवियर...!?

सम्पूर्ण भारतवर्ष में आपने Saint Xavier के नाम से तमाम यूनिवर्सिटी एवं स्कूल देखें होंगें और कुछ ने तो यँहा से बाकायदा शिक्षा-दीक्षा भी ली होगी।

क्या आप समझते हैं कि क्या वाकई भारतवासियों को अंग्रेजी शिक्षा देने की वजह से ये शैक्षणिक संस्थान खोले गये थे, तो आप सरासर गलत हैं।

16वी शताब्दी से भारत को ईसाइयत का गुलाम बनाने के निहित उद्देश्यों के चलते इन मिशनरी स्कूलों की स्थापना की गई थी।

आइये आज कुछ चर्चा इसी महान पुरुष संत ज़ेवियर के ऊपर करते है।

1542 में पुर्तगाल के राजा और पोप की मदद से फ्रांसिस जेवियर भारत पहुंचा था।

उस समय गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार हो चुका था और मिशन अपने मतान्तरण के कार्य में लगा था।

हिन्दुओं से उसकी घृणा का आलम यह था कि जेवियर कहता है...

“हिन्दू एक अपवित्र जाति है,  
इन काले लोगों के भगवान भी काले हैं इसलिए ये उनकी काली मूर्तियाँ बनाते हैं।  
ये अपनी मूर्तियों पर तेल मलते हैं,  
जिससे दुर्गन्ध आती है और इनकी गंदी मूर्तियाँ बदसूरत और डरावनी होती हैं"

मूर्तियों, कर्मकांडों, और जाति के कारण हिन्दुओं का मतान्तरण कठिन था।

इसलिए जेवियर ने गोवा की पुर्तगाल सरकार के वायसराय अंटोनी के साथ मिलकर हिन्दू मन्दिरों को गिराने का आदेश दे दिया।

तलवार की नोंक पर धर्मांतरण करवाये गये।

मन्दिर गिराने के बावजूद हिन्दू मूर्तियों पर आश्रित थे और घरों में मूर्तिपूजन करते थे।

इससे मूर्तिपूजा पर उसने रोक लगवा दी।  
फ्रांसिस जेविअर की नजर में ब्राह्मण उसके सबसे बड़े शत्रु थे।

क्यूंकि वे धर्मांतरण करने में सबसे बड़ी रुकावट थे।

इसलिए सारस्वत वेदपाठी ब्राह्मणों को उसने जिन्दा जलवाया।

जो विश्वास न लाया उसे बीच में से कटवा दिया।

बप्तिस्मा न पढने वाले की जीभ कटवा दी।

15 वर्ष तक के सभी हिन्दुओं के लिए ईसाई शिक्षा लेना अनिवार्य कर दिया।  
वेदपाठ पर पाबंदी लगा दी।

द्विजों के जनेऊ तोड़ दिए। पुर्तगालियों ने हिन्दू स्त्रियों के बलात्कार किए।  
अरब यूरोप की वासना शांत करने स्त्रियों को जहाजों पर लाद दिया जाता था।

कितनी ही स्त्रियों ने समुद्र के जलचरों का कूदकर वरण किया था।  
हिन्दू विवाह और कर्मकांडों पर रोक लगा दी।

जो सार्वजनिक अनुष्ठान करता पाया जाता उसकी खाल उधेडी जाती।

बार्देज़ के 300 हिन्दू मन्दिर ध्वस्त किये, दो ही दशकों में अस्लोना और कंकोलिम मन्दिर विहीन हो गये।

सारे देवी देवता नष्ट हो गये, केवल श्रीमंगेश और शांता भवानी अपने स्थान पर स्थिर थे।

हिन्दुओं को ईसाई बनाते समय उनके पूजा स्थलों को, उनकी मूर्तियों को तोड़ने में जेवियर को कितनी अत्यंत प्रसन्नता होती थी यह उसके ही कथन से देखिये...

“जब सभी का धर्म-परिवर्तन हो जाता है तब मैं उन्हें यह आदेश देता हूँ कि झूठे भगवान् के मंदिर गिरा दिये जायें और मूर्तियाँ तोड़ दी जायें।

जो कल तक उनकी पूजा करते थे, उन्हीं लोगों द्वारा मंदिर गिराए जाने तथा मूर्तियों को चकनाचूर किये जाने के दृश्य को देखकर मुझे जो प्रसन्नता होती है उसको मैं शब्दों में बयान नही कर सकता"

हजारों हिन्दुओं को डरा धमका कर, मार कर, संपत्ति जब्त कर, राज्य से निष्कासित कर, जेलों में प्रताड़ित कर ईसा मसीह के भेड़ों की संख्या बढ़ाने के बदले फ्रांसिस जेविअर को ईसाई समाज ने संत की उपाधि से नवाजा था।  
उसी जेवियर को चर्च ने चुना ताकि हिन्दूओं को अपमानित कर सकें, नीचा दिखा सकें।

सेंट जेवियर के इतने अत्याचारो के बावजूद वांछित आत्माओं की फसल न काटी जा सकी।

तब मिशनरियों ने रॉबर्ट डी नोविली के नेतृत्व में रणनीति में परिवर्तन किया।  
और नोविली ने स्वयं को ब्राह्मण घोषित कर धोखे से मतान्तरण करने को सोचा।  
इसमें त्वचा का रंग बाधा पहुंचा रहा था।

जिसके लिए लोशन भी तलाशने का प्रयास किया गया ताकि हिंदुस्तानी का वेश धारण कर फ्रॉड करके मतान्तरण किया जा सके।

परंतु इस प्रकार का काला लोशन नहीं मिला तो यह रणनीति बनाई गई कि स्थानीय मिशनरी तैयार किया जाय।

ये वही रॉबर्ट डी नोबिलि था जिसने हिन्दू ब्राम्हण का छदम चोला ओढ़कर एक अन्य पांचवा फ़र्ज़ी वेद "इज़ूर वेदम" की रचना की थी।

जिसे बाकायदा बोडेन पीठ ने 1778 में प्रकाशित भी किया था।

इसने अपने कार्य (ईसाई धर्मांतरण) हेतु हिन्दुओं के महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्रों के पास मिशन कार्यालय खोला। इसमें प्रमुख रूप से श्रीरंगम, तंजौर, मदुरा, कांची, चिदंबरम, पांडिचेरी तथा तिरूपति प्रमुख थे।

Saturday, October 12, 2019

गोपाल पाठा खटीक Gopal Patha

#Unsung_Heroes

ये वो महानायक हैं जिनका नाम इतिहास में लिखा नहीं गया। क्यों?

क्योंकि यह वह व्यक्तित्व हैं जिन्होंने बंगाल के #नोआखाली में हिन्दू मुस्लिम दंगे में मुस्लिमो द्वारा मारे जाने से क्रुद्ध होकर अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर मुस्लिम जेहादियों को इस कदर खत्म किया कि हिन्दुओं के मारने पर चुप बैठे "मादरनीय" गांधी मुस्लिमो के मारे जाने पर इतने दुखी हुए की अनशन पर बैठ गए।

इस वीर पुरुष का नाम है "गोपाल पाठा खटीक" और इनका कार्य मांस बेचना और काटना था।

16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में ‘डायरेक्ट एक्शन ‘ के रूप में जाना जाता है। इस दिन अविभाजित बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी के इशारे पर मुसलमानों ने कोलकाता की गलियों में भयानक नरसंहार आरम्भ कर दिया था। कोलकाता की गलियां शमशान सी दिखने लगी थी। चारों और केवल हिंदुओं लाशें और उन पर मंडराते गिद्ध ही दीखते थे।

जब राज्य का मुख्यमंत्री ही इस दंगें के पीछे हो तो फिर राज्य की पुलिस से सहायता की उम्मीद करना भी बेईमानी थी। यह सब कुछ जिन्ना के ईशारे पर हुआ था। वह गाँधी और नेहरू पर विभाजन का दवाब बनाना चाहता था।

हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को देखकर ‘गोपाल पाठा’ (1913 – 2005) नामक एक बंगाली युवक का खून खोल उठा। उसका परिवार कसाई का काम करता था। उसने अपने साथी एकत्र किये, हथियार और बम इकट्ठे किये और दंगाइयों को सबक सिखाने निकल पड़ा।

वह "शठे शाठयम समाचरेत" अर्थात जैसे को तैसा की नीति के पक्षधर थे। उन्होंने भारतीय जातीय वाहिनी के नाम से संगठन बनाया। गोपाल के कारण मुस्लिम दंगाइयों में दहशत फैल गई और जब हिन्दुओ का पलड़ा भारी होने लगा तो सुहरावर्दी ने सेना बुला ली... तब जाकर दंगे रुके। लेकिन गोपाल ने कोलकाता को बर्बाद होने से बचा लिया।

गोपाल के इस "कारनामे" के बाद गाँधी ने कोलकाता आकर अनशन प्रारम्भ कर दिया (क्योंकि उनके प्यारे मुसलमान ठुकने लगे थे)। उन्होंने खुद गोपाल को दो बार बुलाया, लेकिन गोपाल ने स्पष्ट मना कर दिया । तीसरी बार जब एक कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने गोपाल से प्रार्थना कि "कम से कम खुछ हथियार तो गाँधी जी के सामने डाल दो".......तब गोपल ने कहा कि "जब हिन्दुओं की हत्या हो रही थी, तब तुम्हारे गाँधी जी कहाँ थे ? मैंने इन हथियारों से अपने इलाके के हिन्दू महिलाओं की रक्षा की हैं, मैं हथियार नहीं डालूंगा ।"  मेरे विचार से यदि किसी दिन हमारे देश में हिन्दू रक्षकों का स्मृति मंदिर बनाया जायेगा (जैसे वीर सावरकर ने देश का सबसे पहला पतित पावन मंदिर बनाया था)....     तो इस मंदिर में महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी राजे, सम्भाजी और बंदा बैरागी सरीखों के साथ गोपाल पाठा का चित्र भी उसमें आवश्य लगेगा।                         #साभार- लवी भारद्वाज                             👳👳👳✍✍✍🙇🙇🙇

Friday, October 11, 2019

ऋषि मुनियो का अनुसंधान

विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।
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Tuesday, October 8, 2019

आर्य भट्ट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सर की गणना कैसे की गयी?

आर्य भट्ट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सर की गणना कैसे की गयी?

रावण के दस सिर कैसे हो सकते हैं, जबकि शून्य की खोज आर्यभट्ट ने की?

कुछ लोग हिन्दू धर्म व "रामायण" महाभारत "गीता" को काल्पनिक दिखाने के लिए यह प्रश्न करते है कि जब आर्यभट्ट ने लगभग 6 वी शताब्दी मे (शून्य/जीरो) की खोज की तो आर्यभट्ट की खोज से लगभग 5000 हजार वर्ष पहले रामायण मे रावण के 10 सिर की गिनती कैसे की गई !!!

और महाभारत मे कौरवो की 100 की संख्या की गिनती कैसे की गई !!

जबकि उस समय लोग (जीरो) को जानते ही नही थे !!

तो लोगो ने गिनती को कैसे गिना !!!!

अब मै इस प्रश्न का उत्तर दे रहा हु !!

कृपया इसे पूरा ध्यान से पढे!

आर्यभट्ट से पहले संसार 0 (शुन्य) को नही जानता था !!

आर्यभट्ट ने ही (शुन्य / जीरो) की खोज की, यह एक सत्य है !!

लेकिन आर्यभट्ट ने "0 (जीरो )"" की खोज *अंको मे* की थी, *शब्दों* में खोज नहीं की थी, उससे पहले 0 (अंक को) शब्दो मे शुन्य कहा जाता था !!!

उस समय मे भी हिन्दू धर्म ग्रंथो मे जैसे शिव पुराण, स्कन्द पुराण आदि मे आकाश को *शुन्य* कहा गया है !!

यहाँ पे "शुन्य" का मतलव अनंत से होता है !!

लेकिन *रामायण व महाभारत* काल मे गिनती अंको मे न होकर शब्दो मे होता था, और वह भी *संस्कृत* मे !!

उस समय *1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9,10* अंक के स्थान पे *शब्दो* का प्रयोग होता था वह भी *संस्कृत* के शव्दो का प्रयोग होता था !!!

जैसे !

1 = प्रथम

2 = द्वितीय

3 = तृतीय"

4 = चतुर्थ

5 = पंचम""

6 = षष्टं"

7 = सप्तम""

8 = अष्टम""

9 = नवंम""

10 = दशम !!

*दशम = दस*

यानी" दशम मे *दस* तो आ गया, लेकिन अंक का

0 (जीरो/शुन्य ) नही आया,‍‍ रावण को दशानन कहा जाता है !!

*दशानन मतलव दश+आनन =दश सिर वाला*

*अब देखो*

रावण के दस सिर की गिनती तो हो गई !!

लेकिन अंको का 0 (जीरो) नही आया !!

इसी प्रकार महाभारत काल मे *संस्कृत* शब्द मे *कौरवो* की सौ की संख्या को *शत-शतम* ""बताया गया !!

*शत्* एक संस्कृत का "शब्द" है,

जिसका हिन्दी मे अर्थ सौ (100) होता है !!

सौ (100) "को संस्कृत मे शत् कहते है !!

*शत = सौ*

इस प्रकार महाभारत काल मे कौरवो की संख्या गिनने मे सौ हो गई !!

लेकिन इस गिनती मे भी *अंक का 00 (डबल जीरो)* नही आया, और गिनती भी पूरी हो गई !!!

महाभारत धर्मग्रंथ में कौरव की संख्या शत बताया गया है!

रोमन मे भी

1-2-3-4-5-6-7-8-9-10 की

जगह पे (¡)''(¡¡)"""(¡¡¡)""

पाँच को v कहा जाता है !!

दस को x कहा जाता है !!

रोमन मे x को दस कहा जाता है !!

X= दस

इस रोमन x मे अंक का (जीरो/0) नही आया !!

और हम "दश पढ" भी लिए

और" गिनती पूरी हो गई!!

इस प्रकार रोमन word मे "कही 0 (जीरो) "नही आता है!!

और आप भी "रोमन मे "एक से लेकर "सौ की गिनती" पढ लिख सकते है !!

आप को 0 या 00 लिखने की जरूरत भी नही पड़ती है !!

पहले के जमाने मे गिनती को *शब्दो मे* लिखा जाता था !!

उस समय अंको का ज्ञान नही था !!

जैसे गीता, रामायण मे 1"2"3"4"5"6 या बाकी पाठो (lesson) को इस प्रकार पढा जाता है !!

जैसे

(प्रथम अध्याय, द्वितीय अध्याय, पंचम अध्याय, दशम अध्याय... आदि !!)

इनके "दशम अध्याय'' मतलब
दशवा पाठ (10 lesson) "" होता है !!

दशम अध्याय= दसवा पाठ

इसमे *दश* शब्द तो आ गया !!

लेकिन इस दश मे *अंको का 0* (जीरो)" का प्रयोग नही हुआ !!

बिना 0 आए पाठो (lesson) की गिनती दश हो गई !!

(हिन्दू बिरोधी और नास्तिक लोग सिर्फ अपने गलत कुतर्क द्वारा
‍ हिन्दू धर्म व हिन्दू धर्मग्रंथो को काल्पनिक साबित करना चाहते है !!)

जिससे हिन्दूओ के मन मे हिन्दू धर्म के प्रति नफरत भरकर और हिन्दू धर्म को काल्पनिक साबित करके, हिन्दू समाज को अन्य धर्मों में परिवर्तित किया जाए !!!

लेकिन आज का हिन्दू समाज अपने धार्मिक शिक्षा को ग्रहण ना करने के कारण इन लोगो के झुठ को सही मान बैठता है !!!

यह हमारे धर्म व संस्कृत के लिए हानिकारक है !!

*अपनी सभ्यता पहचाने, गर्व करे की हम भारतीय है*।

Friday, October 4, 2019

परिवार


धरा पे सब से किमती।

जिसे प्रेम, भाव, ज्ञान, मर्यादा व सब से अधिक त्याग की आहुति लगती है।

परिवार की परिभाषा को समझाने हेतु खुद विष्णुजी को अवतार लेना पड़ा था।
प्रभु *श्री रामजी* के रूप में।

जिसने *परिवार* पाया, वह धरा का सब से धनवान मनुष्य होता है।

परिवार! " *त्याग* " के महायज्ञ से चलता है और *उमीद* इसका दुश्मन होता है।
परिवार खुद ब खुद अनमोल फल देता है, जब इंसान को उसकी सब से अधिक जरूरत होती है।

परिवार क्या होता है?
छत, ममता, प्रेम, दुलार, माया, मित्र और उपचार।
किस्से, कहानी, नया और पुराना। खर्च, लगाम, लगन और लगान!
वस्त्र, रुमाल, बैसाकि और भोजन।
इज्जत, इंसाफ, ईमान का मंदिर,
नींद, सुकून, आंसू , दर्द !
भजन, रास, हवन और यौवन !
त्याग, तपस्या, तंत्र मंत्र और धन।
अनंत, सरल, जटिल, समस्या ,
आदि है! अंत जिसका!!
धैर्य, ज्ञान, सलाह उपाय है।।

प्रचंड स्वयमभू दुनिया है! ये माया ही मुक्ति का द्वार है। ये ही राम है। ये ही संसार है।

भागी नर तन जिसके संग परिवार है।

फिर से एक बार बतादे!
त्याग ईंधन है, उमीद दुश्मन।

देखिये ये ही मेरा प्यारा सा संसार है!

*ना में कवि हु ना में विदवान
मेरी भाषा प्रेम है! टूटी हिन्दी की माफी है मेरा सम्मान🙏🏻

*।।राम राम।।*

Thursday, October 3, 2019

सरदार मोहन सिंह

#ये_हैं_सरदार_मोहन_सिंह,
जिन्होने 2nd विश्व युद्ध में जर्मन के लिए लड़ाई लड़ी थी ।
युद्ध जीतने के बाद हिटलर ने उन्हें इनाम देना चाहा तो सरदार जी ने कहा कि हमें अच्छे से अच्छे हथियार दीजिए,
क्योंकि  हमें अपने देश को आजाद करवाना है ।
हिटलर ने फिर उन्हें जो हथियार दिये , वही हथियार आजाद हिन्द फौज ने इस्तेमाल किए और सही मायने मे इस लड़ाई में र॔गून में 50 हजार से ज्यादा अंग्रेजी फौज के मारे जाने क बाद ही अंग्रेजो ने भारत छोड़ने का फैसला लिया था ।
इसमें गाँधी और काँग्रेस का कोई योगदान नहीं था ।
बाद में इन इतिहास लिखने वालों ने आजादी का सारा #credit #चरखे_को_दे_दिया ।
उस समय के नेताओ ने सरदार मोहन सिंह जैसे महान योद्धा का नाम भारत के इतिहास से गायब कर दिया ।
लानत है तुम सब इतिहासकारो पर