यह मंंदीर मुम्बई से काफी करीब है। मुम्बई आ कर भी इनके दर्शन नही किये हो तो अब कर लेेना।
Thursday, December 26, 2019
Ambernath Temple (अम्बरनाथ मंदिर)
यह मंंदीर मुम्बई से काफी करीब है। मुम्बई आ कर भी इनके दर्शन नही किये हो तो अब कर लेेना।
Wednesday, December 25, 2019
खंडग्रास (कंकण आकृति) सूर्यग्रहण 26 दिसंबर 2019
Monday, December 16, 2019
Thursday, December 12, 2019
पूरी दुनिया को मुसलमान बनाने के लिए कितने संगठन कार्य कर रहे हैं ! आओ जाने!
Saturday, November 30, 2019
डाक्टर प्रियंका रेड्डी
Thursday, November 28, 2019
Wednesday, November 20, 2019
JNU बनेगा सौचालय।
Tuesday, November 19, 2019
सनातन धर्म को खत्म करने की कोशिश हमनें खुद की है!
Monday, November 18, 2019
भारत मे आज भी है सती प्रथा।(महान भारत)
Saturday, November 16, 2019
एक और पाठ #शिक्षक
Tuesday, November 12, 2019
भारत के ग़द्दारों की लिस्ट
वामपंथी और राक्षस में कोई अंतर नहीं
Monday, November 11, 2019
भक्त और भगवान का संबंध
अगर गुरू तेगबहादुर जी अपना बलिदान नहीं देते तो?
Saturday, November 9, 2019
अयोध्या केस जितने पे एक सुंदर प्रसंग।
जग जननी जय जय आरती।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
कर्ता विधि भर्ता हरि हर संहारकारी॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू वाँछा कल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू ही शमशान विहारिणि, ताण्डव लासिनि तू॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी धारा॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
कालातीता काली, कमला तू वर दे॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले वेदत्रयी॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
Friday, November 8, 2019
देव उठानी प्रबोधिनी एकादशी
Sunday, November 3, 2019
समाज के व्यवस्था को हजारों वर्ष पूर्व वर्ण नियमो से चलाया जाता था।
रविश कुमार की भक्ति।
Thursday, October 31, 2019
शराब की घातकता
Wednesday, October 30, 2019
भारत! मूर्खो का देश।
"ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी | सकल ताड़ना के अधिकारी ||" अर्थ
Tuesday, October 29, 2019
#justiceforvijay
Wednesday, October 23, 2019
जाने धुले सिक्के व नये नोट ही क्यों दान धर्म के कार्य में चड़ाया जाता है।
जानते है क्यों?🤔
जवाब है!
नोट गिनते समय ज़्यादातर लोग थूक🤤 का इस्तेमाल करते हैं, ये किसे पता कि किन-किन लोगों का *थूक नोटों* पर लगा हुआ है??
नोट *शराब से लेकर माँस की दुकान* 🥵👺 तक से होकर गुज़रते हैं, इसलिए नोटों को किसी भी धार्मिक कार्यक्रम मे, धर्म के पूजास्थल पर न चढ़ाएँ, ना ही किसी भी पंडे पुजारियों को दे, अन्यथा पाप लगेगा। और अगर देना ही है तो!
पूजास्थलों पर सिर्फ धुले सिक्के, अनाज, फल या कुछ ना होने पर सिर्फ इज्जत सम्मान का पुष्प🌺 भी चढ़ा सकते है।
*मंदिर व धर्मस्थल के सुद्धी के लिऐ कृपया पुराने नोट या सिक्के ना चढ़ाये।*
मंदिर भारत का हृदय है, उसके मान, मर्यादा व सुद्धता का जिम्मा हमें स्वाम लेना चाहिए। ज्ञान का लाभ उठाइये और पाप कर्म से दूर रहे ||
बाकी सब राम की माया!🙏🏻
Sunday, October 20, 2019
Vinayak Damodar Savarkar's Batch of Andaman Jail
Saturday, October 19, 2019
Money..Honesty.. Happiness
1 Graduate person working for a company with heart & honestly....
with out excepting a huge increment or any extra bonus ....
He become Permanent one day After 6 years working for that same company
his salary increased little bit .. He is Happy with that ...
increment ... increment .... increment
every year !
Do u believe that ! now his Payment should be what ?....
Just a 10 note of 1000 rs (10,000 rs)
every Mumbaikar(family runner) know that what is a value of 10 thousand rupees now a days ..
"2 cheapest Smart Phone" forget this ..
Insted of this all, He have no complaint for that company in heart , he is working with happyy mood..
But A shoking Day of Life
As regular .. He came to office ..
One call came to him
" Hello, Please don't come to Office you are fired . . ."
Can you Feel that Pain..... 12 years of precious Life times ... just ended by a Phone Call
Wait .... Presently his working Experience is of 12 years in same company
He is not alone in This Situation ... Many More are there
What to do For them? How to help them?
This is my way to Help By Posting Meassage and sharing it...
Please Dont Kill Honesty it is costly Than Money..
............
भामाशाह
जन्म 29 अप्रैल 1547 या
*28 जून 1547 चित्तौडग़ढ़
मृत्यु 16 जनवरी 1600
भामाशाह के पिता का नाम भारमल था। कावडिय़ा ओसवाल जैन समुदाय से सम्बद्ध थे। माता कर्पूर देवी ने बाल्यकाल से ही भामाशाह का त्याग, तपस्या व बलिदान सांचे में ढालकर राष्ट्रधर्म हेतु समर्पित कर दिया।
बाल्यकाल से मेवाड़ के राजा महाराणा प्रतापके मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगाने में आप सदैव अग्रणी रहे। आपको मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था और दानवीरता के लिए आपका नाम इतिहास में अमर है।
जीवनी
दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल 1547 को हुआ। कुछ विद्वानों के हिसाब से भामाशाह का जन्म 28 जून 1547 में मेवाड़ की राजधानी चित्तौडग़ढ़ में हुआ था !
मुगलों के साथ निरन्तर युद्ध करते रहने से महाराणा प्रताप का सारा धन समाप्त हो गया था। सेना छिन्न-भिन्न हो गई थी। महाराणा प्रताप सोच में पड़ गए। सोचने लगे धनाभाव में मेवाड़ की रक्षा कैसे कर सकेंगे ? महाराणा प्रताप के सामने विकट समस्या थी। कठिनाइयों से घिरे महाराणा प्रताप को मन:स्थिति देख भामाशाह के दिल में स्वामिभक्ति का भाव जागा। वे अपना सारा धन छकड़ों में भरकर महाराणा प्रताप के पास पहुंचे।
महाराणा प्रताप नामक पुस्तसक में लेखक लिखते हैं भामाशाह जितना धन दे रहे थे उस धन से बीस हजार सैनिक को 14 वर्ष तक का वेतन दिया जा सकता था।
भामाशाह की त्याग भावना एवं धन को देखकर उपस्थित सामंत दंग रह गए।भामाशाह के त्याग व स्वाभिमान को देखकर महाराणा प्रताप स्तब्ध रह गए।
महाराणा प्रताप ने कहा भामाशाह तुम्हारी देशभक्ति, स्वामिभक्ति और त्याग भावना को देखकर में अभिभूत हूं परन्तु एक शासक होते हुए मेरे द्वारा वेतन के रूप में दिए गए धन को पुन: में कैसे ले सकता हूं ? मेरा स्वाभिमान मुझे स्वीकृति नहीं देता।
भामाशाह ने निवेदन किया स्वामी यह धन मैं आपको नहीं दे रहा हूं। आप पर संकट आया हुआ है। मातृभूमि की रक्षार्थ मेवाड़ की प्रजा को दे रहा हूं। लडऩे वाले सैनिकों को दे रहा हूं। आप पर संकट आया हुआ है मातृभूमि पर संकट आया हुआ है। धन के अभाव में आप जंगलों में इधर-उधर घूम रहे हैं। कष्ट भोग रहे हैं और मैं आराम से घर बैठ कर इस धन का उपयोग करूं, यह कैसे संभव है ? मातृभूमि पराधीन हो जाएगी। मुगलों का शासन हो जाएगा तब यह धन किस काम आएगा ? अत: आपसे आग्रह है कि आप इस धन से अस्त्र-शस्त्रों एवं सेना का गठन कर मुगलों से संघर्ष जारी रखें।
अन्य सामन्तों एवं सहयोगियों ने भामाशाह की बात का समर्थन किया। सभी ने एक मत से आग्रह किया कि संकट के समय प्रजा से धन लेना गलत नहीं है। सामन्तों के आग्रह पर महाराणा प्रताप ने भामाशाह के धन से सैन्य संगठन प्रारम्भ किया। मेवाड़वासियों, वीरों में एक नई चेतना, नई स्फूर्ति जागी। अकबर को चुनौती का सामना करने के लिए मातृभूमि की रक्षार्थ मैदान में उतर आए रण भैरवी बज उठी।शंख ध्वंनि पुन: गूंजने लगी। दिवेर के युद्धमें महाराणा प्रताप ने विजय पाई। अकबर की सेना भाग खड़ी हुई। मालपुरा और कुंभलमेर पर भी महाराणा प्रताप ने अधिकार कर लिया। भामाशाह कर्मवीर योद्धा का 16 जनवरी 1600 को देवलोकगमन हुआ।
भामाशाह की छतरी महासतिया आहाड़ उदयपुर में गंगोदभव कुंड केठीक पूर्व में स्मृतियों के झरोखों के रूप में स्थित हैं।
सर्वस्व दृष्टि से भामाशाह मेवाड़ उद्धारक के रूप में स्मरण योद्धा है।
आपका निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्वपूर्ण और निर्मायक साबित हुआ। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप का सर्वस्व होम हो जाने के बाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा अर्पित कर दी। आपने यह सहयोग तब दिया जब महाराणा प्रताप अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास में निराश होकर परिवार सहित पहाड़ियों में छिपते भटक रहे थे। आपने मेवाड़ के अस्मिता की रक्षा के लिए दिल्ली गद्दी का प्रलोभन भी ठुकरा दिया।
महाराणा प्रताप को दी गई आपकी हरसम्भव सहायता ने मेवाड़ के आत्म सम्मान एवं संघर्ष को नई दिशा दी।
भामाशाह अपनी दानवीरता के कारण इतिहास में अमर हो गए। भामाशाह के सहयोग ने ही महाराणा प्रताप को जहां संघर्ष की दिशा दी, वहीं मेवाड़ को भी आत्मसम्मान दिया। कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप अपने परिवार के साथ जंगलों में भटक रहे थे, तब भामाशाह ने अपनी सारी जमा पूंजी महाराणा को समर्पित कर दी। तब भामाशाह की दानशीलता के प्रसंग आसपास के इलाकों में बड़े उत्साह के साथ सुने और सुनाए जाते थे , महाराणा प्रताप के लिए उन्होंने अपनी निजी सम्पत्ति में इतना धन दान दिया था कि जिससे २५००० सैनिकों का बारह वर्ष तक निर्वाह हो सकता था। प्राप्त सहयोग से महाराणा प्रताप में नया उत्साह उत्पन्न हुआ और उसने पुन: सैन्य शक्ति संगठित कर मुगल शासकों को पराजित कर फिर से मेवाड़ का राज्य प्राप्त किया।
आप बेमिसाल दानवीर एवं त्यागी पुरुष थे। आत्म सम्मान और त्याग की यही भावना आपको स्वदेश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने वाले देश-भक्त के रुप में शिखर पर स्थापित कर देती है। धन अर्पित करने वाले किसी भी दान दाता को दानवीर भामाशाह कहकर उसका स्मरण-वंदन किया जाता है। आपकी दानशीलता के चर्चे उस दौर में आसपास बड़े उत्साह, प्रेरणा के संग सुने-सुनाए जाते थे। आपके लिए पंक्तियां कही गई है !
वह धन्य देश की माटी है, जिसमें भामा सा लाल पला !
उस दानवीर की यश गाथा को, मेट सका क्या काल भला !!
लोकहित और आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व दान कर देने वाली उदारता के गौरव-पुरुष की इस प्रेरणा को चिरस्थायी रखने के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में दानशीलता, सौहार्द्र एवं अनुकरणीय सहायता के क्षेत्र में दानवीर भामाशाह सम्मान स्थापित किया है।
भामाशाह का जीवनकाल ५२ वर्ष रहा
उदयपुर, राजस्थान में राजाओं की समाधि स्थल के मध्य भामाशाह की समाधि बनी है। जैनमहाविभूति भामाशाह के सम्मानमें ३१ दिसम्बर २००० को ३ रुपये का डाक टिकट जारी किया गया।
शत शत नमन ऐसे महान दानवीर को।
अभियंता दिवस विशेष
#अभियंता_दिवस_विशेष..
ब्रिटेन में एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था।
डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया। तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था। कोई तो इतने गुस्से में था, की ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ? इसे डिब्बे से उतारो।
किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा। वह शांत गम्भीर बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो।
ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था। किन्तु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया "ट्रेन रोको"। कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी। ट्रेन रुक गईं।
अब तो जैसे अंग्रेजों का गुस्सा फूट पड़ा। सब उसको गालियां दे रहे थे। गंवार, जाहिल जितने भी शब्द शब्दकोश मे थे, बौछार कर रहे थे। किंतु वह शख्स गम्भीर मुद्रा में शांत खड़ा था। मानो उसपर किसी की बात का कोई असर न पड़ रहा हो। उसकी चुप्पी अंग्रेजों का गुस्सा और बढा रही थी।
ट्रेन का गार्ड दौड़ा-दौड़ा आया। कड़क आवाज में पूछा:- क"किसने ट्रेन रोकी"..
कोई अंग्रेज बोलता उसके पहले ही, वह शख्स बोल उठा:- "मैंने रोकी श्रीमान"..
पागल हो क्या ? पहली बार ट्रेन में बैठे हो ? तुम्हें पता है, बिना कारण ट्रेन रोकना अपराध हैं:- "गार्ड गुस्से में बोला"
हाँ श्रीमान ज्ञात है किंतु मैं ट्रेन न रोकता तो सैकड़ो लोगो की जान चली जाती।
उस शख्स की बात सुनकर सब जोर-जोर से हंसने लगे। किँतु उसने बिना विचलित हुये, पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा:- करीब एक फरलाँग(220 गज) की दूरी पर पटरी टूटी हुई हैं। आप चाहे तो चलकर देख सकते है।
गार्ड के साथ वह शख्स और कुछ अंग्रेज सवारी भी साथ चल दी। रास्ते भर भी अंग्रेज उस पर फब्तियां कसने मे कोई कोर-कसर नही रख रहे थे।
किँतु सबकी आँखें उस वक्त फ़टी की फटी रह गई जब वाक़ई , बताई गई दूरी के आस-पास पटरी टूटी हुई थी। नट-बोल्ट खुले हुए थे। अब गार्ड सहित वे सभी चेहरे जो उस भारतीय को गंवार, जाहिल, पागल कह रहे थे। वे सभी उसकी और कौतूहलवश देखने लगे। मानो पूछ रहे हो आपको ये सब इतनी दूरी से कैसे पता चला ??..
गार्ड ने पूछा:- तुम्हें कैसे पता चला , पटरी टूटी हुई हैं ??.
उसने कहा:- जब सभी लोग ट्रेन में अपने-अपने कार्यो मे व्यस्त थे। उस वक्त मेरा ध्यान ट्रेन की गति पर केंद्रित था। ट्रेन स्वाभाविक गति से चल रही थी। किन्तु अचानक पटरी की कम्पन से उसकी गति में परिवर्तन महसूस हुआ। ऐसा तब होता हैं, जब कुछ दूरी पर पटरी टूटी हुई हो। अतः मैंने बिना क्षण गंवाए, ट्रेन रोकने हेतु जंजीर खींच दी।
गार्ड औऱ वहाँ खड़े अंग्रेज दंग रह गये। गार्ड ने पूछा, इतना बारीक तकनीकी ज्ञान, आप कोई साधारण व्यक्ति नही लगते। अपना परिचय दीजिये।
शख्स ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया:- मैं इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ...
जी हाँ वह असाधारण शक्श कोई और नही डॉ विश्वेश्वरैया थे। जो देश के "प्रथम इंजीनियर" थे। आज उनका जन्मदिवस हैं। उनके जन्मदिवस को अभियंता दिवस(इंजीनियर डे) के रूप मे मनाया जाता हैं। देशभर के इंजीनियर इसे धूमधाम से मनाते हैं।
अभियंता दिवस की शुभकामनाएं...
Friday, October 18, 2019
आखिर कौन था सेंट फ्रांसिस जेवियर...!?
Saturday, October 12, 2019
गोपाल पाठा खटीक Gopal Patha
#Unsung_Heroes
ये वो महानायक हैं जिनका नाम इतिहास में लिखा नहीं गया। क्यों?
क्योंकि यह वह व्यक्तित्व हैं जिन्होंने बंगाल के #नोआखाली में हिन्दू मुस्लिम दंगे में मुस्लिमो द्वारा मारे जाने से क्रुद्ध होकर अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर मुस्लिम जेहादियों को इस कदर खत्म किया कि हिन्दुओं के मारने पर चुप बैठे "मादरनीय" गांधी मुस्लिमो के मारे जाने पर इतने दुखी हुए की अनशन पर बैठ गए।
इस वीर पुरुष का नाम है "गोपाल पाठा खटीक" और इनका कार्य मांस बेचना और काटना था।
16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में ‘डायरेक्ट एक्शन ‘ के रूप में जाना जाता है। इस दिन अविभाजित बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी के इशारे पर मुसलमानों ने कोलकाता की गलियों में भयानक नरसंहार आरम्भ कर दिया था। कोलकाता की गलियां शमशान सी दिखने लगी थी। चारों और केवल हिंदुओं लाशें और उन पर मंडराते गिद्ध ही दीखते थे।
जब राज्य का मुख्यमंत्री ही इस दंगें के पीछे हो तो फिर राज्य की पुलिस से सहायता की उम्मीद करना भी बेईमानी थी। यह सब कुछ जिन्ना के ईशारे पर हुआ था। वह गाँधी और नेहरू पर विभाजन का दवाब बनाना चाहता था।
हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार को देखकर ‘गोपाल पाठा’ (1913 – 2005) नामक एक बंगाली युवक का खून खोल उठा। उसका परिवार कसाई का काम करता था। उसने अपने साथी एकत्र किये, हथियार और बम इकट्ठे किये और दंगाइयों को सबक सिखाने निकल पड़ा।
वह "शठे शाठयम समाचरेत" अर्थात जैसे को तैसा की नीति के पक्षधर थे। उन्होंने भारतीय जातीय वाहिनी के नाम से संगठन बनाया। गोपाल के कारण मुस्लिम दंगाइयों में दहशत फैल गई और जब हिन्दुओ का पलड़ा भारी होने लगा तो सुहरावर्दी ने सेना बुला ली... तब जाकर दंगे रुके। लेकिन गोपाल ने कोलकाता को बर्बाद होने से बचा लिया।
गोपाल के इस "कारनामे" के बाद गाँधी ने कोलकाता आकर अनशन प्रारम्भ कर दिया (क्योंकि उनके प्यारे मुसलमान ठुकने लगे थे)। उन्होंने खुद गोपाल को दो बार बुलाया, लेकिन गोपाल ने स्पष्ट मना कर दिया । तीसरी बार जब एक कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने गोपाल से प्रार्थना कि "कम से कम खुछ हथियार तो गाँधी जी के सामने डाल दो".......तब गोपल ने कहा कि "जब हिन्दुओं की हत्या हो रही थी, तब तुम्हारे गाँधी जी कहाँ थे ? मैंने इन हथियारों से अपने इलाके के हिन्दू महिलाओं की रक्षा की हैं, मैं हथियार नहीं डालूंगा ।" मेरे विचार से यदि किसी दिन हमारे देश में हिन्दू रक्षकों का स्मृति मंदिर बनाया जायेगा (जैसे वीर सावरकर ने देश का सबसे पहला पतित पावन मंदिर बनाया था).... तो इस मंदिर में महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी राजे, सम्भाजी और बंदा बैरागी सरीखों के साथ गोपाल पाठा का चित्र भी उसमें आवश्य लगेगा। #साभार- लवी भारद्वाज 👳👳👳✍✍✍🙇🙇🙇
Friday, October 11, 2019
ऋषि मुनियो का अनुसंधान
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )
■ क्रति = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।
चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।
पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।
छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।
सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।
आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।
नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।
दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।
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