Thursday, April 25, 2013

Babu Veer Kunwar Singh 26 अप्रैल शहादत दिवस

Babu Veer Kunwar Singh


हुकूमत की बुनियाद ढहाऐ चला जा ,
जवानो को बागी बनाए चला जा 
बरस आग बन कर ' फिरंगी ' के सर पे 
तकब्बुर की दुनिया को ढहाए चला जा ...80 वर्ष का " युवा सिंह " इसी लय और जज्बे से भरपूर अंग्रेज हुकूमत को तहस -नहस करते हुए एक ऐसी महागाथा छोड़ गए ..जिससे कितने लोग परिचित हैं ..??? ..बात हो रही कुंवर सिंह की ....1857 का महान योद्धा " जगदीशपुर के कुंवर सिंह "
...आगामी 26 अप्रैल जिनका ' शहादत दिवस ' दिवस है ..कुंवर सिंह की जीवनगाथा की महाकाव्य के ' महानायक जैसी है ..1857 का ..सर्वाधिक योग्य सेनानायक , युद्धकला का महान प्रणेता , दुर्दम्य साहसी ..1857 के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार स्थित 'दानापुर छावनी ' के सिपाहियों को अपने नेता के रूप में जिस नायक की प्राप्ति हुई ..उसी का नाम कुंवर सिंह है ...
एक संक्षेप में कुंवर सिंह की महान उपलब्धियों को भी जानते चले ..29 जुलाई जब आरा पर ' स्वतंत्रता का ध्वज लहराने लगा तो पहला प्रतिरोध एक बड़ी सेना के साथ ' मेजर डनवार ' ने किया किन्तु कुंवर सिंह के हाथो पराजित हुवा और मारा गया ..किन्तु 14 अगस्त को जनरल आयर ने जगदीशपुर के राजमहल पर कब्ज़ा कर लिया ..अब यह 80 वर्षीय वृद्ध ' युवा ' ने घोड़े की पीठ को ही अपनी राजधानी और सिंहासन बना कर ..अपनी अबूझ छापामार युद्धकौशल से अंग्रजी सेना का कई बार मान - मर्दन किया ..' पूर्व अवध ' को अपना कार्य क्षेत्र बना और पश्चमी बिहार को अपना आधार बना कर ..' कुंवर सिंह ने निरंतर हमलों की झड़ी लगा दी ...बेबस और खिसियाई अंग्रेज सेना के नामचीन जनरल एक के बाद एक पिटे मोहरे साबित हुए ..जनरल लीग्रांड , डगलस , ल्युगार्ड , लार्ड मारकेर , कर्नल मिल्सन आदि वो पिटे मोहरे थे जिनमे लार्ड मारकेर तो क्रीमिया के युद्ध में अंतराष्टीय ख्याति प्राप्त थे ..सात माह लम्बे युद्ध जो मूलतः पूर्व अवध के आजमगढ़ , गाजीपुर .निकटवर्ती बिहार तक फैला था ..फैसलाकुन जंग में विजयी ' कुंवर सिंह ' ने फिर से शाहाबाद और अपनी राजधानी जगदीशपुर पर अपना ' झंडा ' फहरा दिया ..यह ऐतिहासिक दिन था 22 अप्रैल ..गंगा के इस पर पिटा ' डगलस ' था ..कुंवर सिंह अपनी सेना को गंगा के उस पार सुरक्षित निकाल चुके थे ..
..अब इतिहास का अनूठा पल ' साक्षी ' बनाने को तैयार था ..दुश्मन की एक गोली कुंवर सिंह के बांह में लगी ..मध्य गंगा में ही थे वे ..आश्चर्य ..पट्टी और रक्त रोकने का तो प्रश्न ही नहीं था ..दुश्मन की गोली से अपवित्र कोहनी से नीचे का हाँथ कुंवर सिंह ने स्वयं तलवार के झटके से काट कर माँ गंगा को अर्पित कर दिया ...कुंवर सिंह ..पुनः स्वतंत्र थे ..अपने राजमहल और अपने सिंहासन पर..
... " आजाद ".कुंवर सिंह अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित राजमहल में स्वतंत्रता के झंडे के नीचे ' प्राणोत्सर्ग को तत्पर थे ...घायल हाँथ ..और सम्पूर्ण उद्देश्य की प्राप्ति ..उन्हें ' महानिद्रा ' के लिए आमंत्रित कर रहे थे ...शहादत की अमर गाथा ..हम सभी से अपील सी कर रही है ..की अपने वतन के लिए ' मर -मिटने वाले आदर्शों को हम जगाये रखें ...आज ये पहले भी अधिक जरूरी हो गएँ हैं ..
....सहमत हैं .??? ...आगे आयें .....जय शहादत.!!! .... जयहिंद 
                                                                                                                              
                                                                                                                          Special Tnx to Rajit Jaya

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