Saturday, November 30, 2019

डाक्टर प्रियंका रेड्डी

डाक्टर प्रियंका रेड्डी ने कल रात अपने घर फोन करके बताया कि उनकी स्कूटी शमसाबाद, हैदराबाद में पंक्चर हो गई है... यह क्षेत्र अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र है...  वह घबराई हुईं थीं.... उन्होंने अपनी बहन को बताया कि कुछ लोग मदद करने के नाम पर उसकी स्कूटी ले कर.. पंचर ठीक कराने के बहाने उसे कहीं ले जाना चाह रहे हैं... आस पास काफी संदिग्ध लोग इकट्ठे हो रहे हैं... बहन ने डाक्टर प्रियंका से कहा कि वह निकट स्थित टोल बूथ पर जाकर खुद को बचाये... और वह कुछ संबंधियों को लेकर घटना स्थल की ओर दौड़ीं, परंतु....

जब संबंधी उक्त स्थान पर पहुँचे तो वहां से डाक्टर प्रियंका रेड्डी गायब थीं और उनका फोन स्वीच ऑफ आ रहा था ...
            अगले दिन प्रातः उसी क्षेत्र के सुनसान इलाके शादनगर में डाक्टर प्रियंका रेड्डी का जला हुआ शव मिला... पोस्टमार्टम से पता चला कि ज़िंदा जलाकर मारने से पूर्व डाक्टर प्रियंका रेड्डी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था ! सिर्फ बलात्कार ही काफी नहीं... हत्या !... जीवित अवस्था मे पेट्रोल छिड़क कर... ! कितनी दर्दनाक मौत दी गई...डाक्टर प्रियंका को...!!
               शेष कहने और समझने के लिए कुछ नहीं रह जाता है... जैसी की उम्मीद थी... अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है...

मदद करने के बजाये ये स्थिति की गई दिवंगत की 

टारगेट आपकी बहन बेटियां ही  है ।

वह तो चली गई लेकिन आप कब चेतेंगे ?

भारत की मीडिया से वास्तविकता बताने की कोई उम्मीद नही है ....

Wednesday, November 20, 2019

JNU बनेगा सौचालय।

कब तक वतन  के पैसे से  खर्चे चलायेगा,
और उसमें भी हर बात पे नखरे दिखायेगा!

माँ सोचती थी छाले का मरहम  बनेगा तू
क्या जानती थी धुएँ के छल्ले बनायेगा तू!

सैनिक की शहादत पर  मनायेगा जश्न  तू,
वर्ना कभी तू अफ़जल की बरसी मनायेगा!

बचपन गुज़र गया  जवानी  गुज़र गयी,
पढ़ते हुए क्या अपना बुढ़ापा बितायेगा!

हॉस्टल का एक रूम था पढ़ने  के वास्ते, 
हमको खबर थी नहीं तू दुनियां बसायेगा!

अय्याशियों से पैसे बचेंगे तभी  तो वो,
थोड़ी सी बड़ी फीस के पैसे चुकायेगा!

हम चाहते थे देश की आवाज़  बनों  तुम, 
पर तू भी सियासत के ही पाले में जायेगा!

#मयंक शर्मा
🧐🧐🧐😷😷😷😎😎😎😇

Tuesday, November 19, 2019

सनातन धर्म को खत्म करने की कोशिश हमनें खुद की है!


सात लाख रूपये दीजिये तो राधे माँ ( जसबिंदर कौर) आपको गोद में बैठाकर आशीर्वाद देंगी और पन्द्रह लाख रूपये दीजिये तो आप धूर्त ठग राधे माँ को किसी फाइव स्टार होटल में डिनर के साथ आशीर्वाद ले सकते हैं ! 
तब भी वो देवी है मूर्ख हिंदुओं की।

निर्मल बाबा है जो लाल चटनी और हरी चटनी में भगवान की कृपा दे रहा है ! रात दिन पूजा जा रहा है।

रामपाल भक्त हैं जो कबीर को पूर्ण परब्रह्म परमात्मा मानते हैं ! ओर अपने नहाए हुए पानी को अपने भक्तों को पिला कर कृतार्थ करता है।

ब्रह्मकुमारी मत वाले हैं जो दादा लेखराज के वचनों को सच्ची गीता बताते हैं और परमात्मा को बिन्दुरुप बताते हैं ! इन्होंने श्री कृष्ण जी की भगवद गीता भी फेल कर दी।

राधास्वामी वाले अपने गुरु को ही मालिक परमेश्वर भगवान ईश्वर मानते हैं । उनके अनुसार वो साक्षात ईश्वर का अवतार है, और वेद गलत है..???

*ओशो * के भक्तों के लिए समाधी का रास्ता सम्भोग से होकर जाता हैं। उनके लिए सदाचार और व्यभिचार में कोई अंतर नहीं हैं।

*रामरहीम वालों के लिए उनके गुरु भगवान से भी बढ़कर हैं। चाहे वह गुफ़ा में साध्वियों का योन शोषण करे, चाहे साधुओं को हिजड़ा बनाये, चाहे डिस्को गाने गाये, चाहे अजीबोगरीब कपड़े पहन कर फिल्में बनाये। उसे भगवान् ही मानेगे।

बहुतेरे चाँद मियाँ ऊर्फ साई बाबा को भगवान बनाने पर तुले हैं...!!!

बाकि मजार-मरघट-पीर-फकीर मर्दे कलंदर न जाने कहाँ कहाँ धक्के खा रहे हैं।

आसाराम के भक्त तो और भी महान है सब पोल खुल जाने पर भी सड़को पर भक्त बनकर आसाराम को ईश्वर मान रात दिन उसके गुण गाते है।

हिन्दुस्तान में रहने वाले जैन, बौद्ध, कबीरपंथी, अम्बेडकरवादि, मांसाहारी, शाकाहारी, साकारी,निरंकारी सब हिन्दू हैं।

लेकिन हिंदु सच में है कौन

खुद हिन्दुओं को नहीं पता...

हिंदुओं ने स्वयं ही वैदिक सनातन धर्म की सबसे ज्यादा हानि की है।

कोई विदेशी इसका जिम्मेदार नहीं है!                                                      हिन्दुओं को जिसने जैसा बेवकूफ बनाया वैसे बन गए। जिसने अपनी दुकान ज्यादा सजायी वो ही उतना बड़ा भगवान बन गया। सच में हिन्दुत्व का ऐसा विकृत रूप बेहद दुःखदायी है और विचारणीय भी!!!                                                            "सनातन वैदिक धर्म"                                                          पुनः विश्व में "सनातन वैदिक धर्म " का परचम लहरायें भारत को फिर विश्व गुरू बनायें।                                                      जागृति बनें, धार्मिक बनें, तार्किक बनें,                                                                                               ना कि अंधे अंधविश्वासी!!!

Monday, November 18, 2019

भारत मे आज भी है सती प्रथा।(महान भारत)

पतिव्रता पत्नियां पति के देह त्यागते ही स्वयं भी देह त्याग देती है। आजकल कम देखने सुनने को मिलता है पर पृथ्वी अभी सतियों से रिक्त नहीं हुई है। सती का अर्थ जैसा कि हम सोचते और सुनते हैं वैसा नहीं है।(william Bentick और Rammohan rai के संदर्भ से) , सती का अर्थ है जो पति के साथ ही स्वयं देह त्याग दे और देहों का एक साथ दहन हो।
विवाह के समय जो अग्नि साक्षी होती है ,वह अग्नि सदैव घर में निरंतर प्रजवलित रहती है और वही विवाह काल की अग्नि दोनी के देह को ग्रहण कर लेती है। विवाह contract नहीं पवित्र संबंध है जिसमे अग्नि सदैव विद्यमान रहती है इसलिए पत्नी को योषग्नि भी कहते है। आज फिर एक पवित्र उत्सर्ग हुआ , पोरसा,मध्य प्रदेश, के पण्डित जी का निधन कल शाम को हो गया था, आज सुबह जब उनको अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जारहा था तो उनकी धर्म पत्नी ने भी पति बियोग मैं प्राण त्याग दिये।। ऐसी सती सावित्री माता दिव्यात्मा को कोटि कोटि नमन।

Saturday, November 16, 2019

एक और पाठ #शिक्षक

 

"प्रणाम..सर! मुझे.. पहचाना??"

"कौन?" ..भाई, बता दो..शरीर साथ नहीं देता मेरा।

"सर, मैं आपका स्टूडेंट..45 साल पहले का..आपका विद्यार्थी।"

"ओह! अच्छा, आजकल ठीक से दिखता नही बेटा और याददाश्त भी कमज़ोर हो गयी है..इसलिए नही पहचान पाया..खैर..आओ, बैठो..क्या करते हो आजकल?" उन्होंने उसे प्यार से बैठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा..

"सर, मैं भी आपकी ही तरह शिक्षक बन गया हूँ।"

"वाह" यह तो अच्छी बात है लेकिन शिक्षक की पगार तो बहुत कम होती है फिर तुम क्यूं शिक्षक बने...???"

"सर, जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में था तब हमारी कक्षा में एक घटना घटी थी..उसमें से आपने मुझे बचाया था..मैंने तभी शिक्षक बनने का निर्णय ले लिया था..वो घटना मैं आपको याद दिलाता हूँ..आपको मैं भी याद आ जाऊँगा।"

"अच्छा, क्या हुआ था तब?"

"सर, सातवीं में हमारी कक्षा में एक बहुत अमीर लड़का पढ़ता था..जबकि हम बाकी सब बहुत गरीब थे..एक दिन वह बहुत महंगी घड़ी पहनकर आया था और उसकी घड़ी चोरी हो गयी थी..कुछ याद आया सर?"

"सातवीं कक्षा???"

"हाँ सर..उस दिन मेरा मन उस घड़ी पर आ गया था और खेल के पिरेड में जब उसने वह घड़ी अपने पेंसिल बॉक्स में रखी तो मैंने मौका देखकर वह घड़ी चुरा ली थी..उसके बाद आपका पिरेड था..उस लड़के ने आपके पास घड़ी चोरी होने की शिकायत की..आपने कहा कि जिसने भी वह घड़ी चुराई है उसे वापस कर दो..मैं उसे सजा नही दूँगा..लेकिन डर के मारे मेरी हिम्मत ही न हुई घड़ी वापस करने की।"

"फिर आपने कमरे का दरवाजा बंद किया और हम सबको एक लाइन से आँखें बंद कर खड़े होने को कहा, और यह भी कहा कि आप सबकी जेब देखेंगे लेकिन जब तक घड़ी मिल नही जाती तब तक कोई भी अपनी आँखें नही खोलेगा वरना उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा।"

"हम सब आँखें बन्द कर खड़े हो गए..आप एक-एक कर सबकी जेब देख रहे थे..जब आप मेरे पास आये तो मेरी धड़कन तेज होने लगी..मेरी चोरी पकड़ी जानी थी..अब जिंदगी भर के लिए मेरे ऊपर चोर का ठप्पा लगने वाला था..मैं ग्लानि से भर उठा था..उसी समय जान देने का निश्चय कर लिया था लेकिन....लेकिन मेरे जेब में घड़ी मिलने के बाद भी आप लाइन के अंत तक सबकी जेब देखते रहे..और घड़ी उस लड़के को वापस देते हुए कहा, "अब ऐसी घड़ी पहनकर स्कूल नही आना और जिसने भी यह चोरी की थी वह दोबारा ऐसा काम न करे..इतना कहकर आप फिर हमेशा की तरह पढाने लगे थे.."कहते कहते उसकी आँख भर आई।

वह रुंधे गले से बोला, "आपने मुझे सबके सामने शर्मिंदा होने से बचा लिया..आगे भी कभी किसी पर भी आपने मेरा चोर होना जाहिर न होने दिया..आपने कभी मेरे साथ भेदभाव नही किया..उसी दिन मैंने तय कर लिया था कि मैं आपके जैसा शिक्षक ही बनूँगा।"

"हाँ हाँ...मुझे याद आया।" उनकी आँखों मे चमक आ गयी..फिर चकित हो बोले, "लेकिन बेटा... मैं आजतक नही जानता था कि वह चोरी किसने की थी क्योंकि...जब मैं तुम सबकी जेब देख कर रहा था तब मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली थीं।"

"उफ्फ्फ"..आज जिंदगी का एक और पाठ आपसे सीख कर जा रहा हूं ...सर।"

(एक इंग्लिश कहानी का हिंदी रूपांतरण)

Tuesday, November 12, 2019

भारत के ग़द्दारों की लिस्ट

सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरफ़ से पेश 15 इतिहासकारों में से 12 #हिन्दू थे। इनका कहना था कि #अयोध्या में राममंदिर कभी था ही नहीं।
गवाह नं 63 आर एस शर्मा
गवाह नं 64 सूरज भान 
गवाह नं 65 डी एन झा 
गवाह नं 66 रोमिला थापर
गवाह नं 72 बी एन पाण्डेय 
गवाह नं 74 आर एल शुक्ला
गवाह नं 82 सुशील श्रीवास्तव 
गवाह नं 95 के एम श्री माली 
गवाह नं 96 सुधीर जायसवाल 
गवाह नं 99 सतीश चंद्रा 
गवाह नं 101 सुमित सरकार 
गवाह नं 102 ज्ञानेन्द्र पांडेय 
हलांकि #आर्केओलोजिकल_सर्वे_ऑफ़ इंडिया के रिपोर्ट के समय ही झूठ का #पोल खुल गया था और इन्होने इलाहबाद हाईकोर्ट में #स्वीकार किया था कि ये अपने #एसी रूम में बैठकर रामजन्मभूमि का इतिहास अपनी कल्पना से लिखा था न कि तथ्यों पर, फिर भी अब सच पूरी तरह सामने आ चुका है। 
मजेदार बात यह है कि इन्ही सरकारी इतिहासकारों को पढ़कर कर और रटकर मानकर हमारे यहाँ लोग #आईएएस बने। अंदाजा लगाइए #संस्कृति विरोधी इतिहास से प्राप्त ज्ञान से वे समाज को क्या परोसते रहे हैं। मास्टर कक्षा में भारत भविष्य को क्या बात रहे होंगे। भारतीय मूल्य को संकट अपने देश के भारतद्रोही, हिंदूद्रोही गुलाम बौद्धिकों ने पहुंचाई है।


वामपंथी और राक्षस में कोई अंतर नहीं


श्रीराम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ जाने के बावजूद भी इस पूरे विवाद में उन नीच वामपंथी इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों के गलीज, घिनौने, बदबूदार और बेईमानी भरे षड्यंत्रों को मत भूलियेगा जो इन्होंने पिछले तीस सालों से पूरी दुष्टता, कमीनगी और निर्लज्जता के साथ सेकुलर मीडिया की मदद से रचे और अंजाम दिए और जिनका भंडाफोड़ इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायिक सुनवाई में ही हो गया था। पुनः ध्यान दीजिए एक बार -
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इलाहाबाद उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने विवादित स्थल पर मंदिर होने के शोधपूर्ण वैज्ञानिक निष्कर्षों की पुष्टि तो की ही थी, साथ ही साथ मस्जिद-कमिटी की ओर से गवाह के तौर पर वामपंथी इतिहासकार इरफ़ान हबीब की अगुवाई में पेश हुए देश के तमाम वामपंथी इतिहासकारों के फरेब को भी न्यायालय ने उजागर किया था l न्यायालय को ये टिप्पणी करनी पडी थी कि इन इतिहासकारों ने अपने रवैये से उलझाव, विवाद, और सम्प्रदायों में तनाव पैदा करने की कोशिश की और इनका विषय-ज्ञान भी छिछला है l

केस की सुनवाई के दौरान हुए 'क्रॉस एग्जामिनेशन' में पकड़े गए इनके फरेबों के दृष्टांत आपको हैरत में डाल देंगे :- 

(1) वामपंथी इतिहासकार प्रोफ़ेसर मंडल ने ये स्वीकारा कि खुदाई का वर्णन करती उनकी पुस्तक दरअसल उन्होंने बिना अयोध्या गए ही लिख दी थी l 

(2) वामपंथी इतिहासकार सुशील श्रीवास्तव ने ये स्वीकार किया कि प्रमाण के तौर पर पेश की गयी उनकी पुस्तक में संदर्भ के तौर पर दिए पुस्तकों का उल्लेख उन्होंने बिना पढ़े ही कर दिया है l

(3) जेएनयू की इतिहास-प्रोफ़ेसर सुप्रिया वर्मा ने ये स्वीकार किया कि उन्होंने खुदाई से संदर्भित ‘राडार सर्वे’ की रिपोर्ट को पढ़े बगैर ही रिपोर्ट के विरोध में गवाही दे दी थी l 

(4) अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर जया मेनन ने ये स्वीकारा कि वे तो खुदाई स्थल पर गयी ही नहीं थी लेकिन ये  गवाही दे दी थी कि मंदिर के खंभे बाद में वहां रखे गए थे l 

(5) ‘एक्सपर्ट’ के तौर पर उपस्थित वामपंथी सुविरा जायसवाल जब 'क्रोस एग्जामिनेशन' में पकड़ी गयीं तब उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें मुद्दे पर कोई ‘एक्सपर्ट’ ज्ञान नहीं है; जो भी है वो सिर्फ ‘अखबारी खबरों’ के आधार पर ही है l  

(6) पुरात्व्वेत्ता वामपंथी शीरीन रत्नाकर ने सवाल-जवाब में ये स्वीकारा कि दरअसल उन्हें कोई 'फील्ड-नॉलेज' है ही नहीं l   

(7) 'एक्सपर्ट' प्रोफ़ेसर मंडल ने ये भी स्वीकारा था, “मुझे बाबर के विषय में इसके अलावा - कि वो सोलहवीं सदी का एक शासक था - और कुछ ज्ञान नहीं है l न्यायधीश ने ये सुन कर कहा था कि इनके ये बयान विषय सम्बंधित इनके छिछले ज्ञान को प्रदर्शित करते है l 

(8) वामपंथी सूरजभान मध्यकालीन इतिहासकार के तौर पर गवाही दे रहे थे पर 'क्रॉस एग्जामिनेशन' में ये तथ्य सामने आया कि वे तो इतिहासकार थे ही नहीं, मात्र पुरातत्ववेत्ता थे l 

(9) सूरजभान ने ये भी स्वीकारा कि डी एन झा और आर एस शर्मा के साथ लिखी उनकी पुस्तिका “हिस्टोरियंस रिपोर्ट टू द नेशन” दरअसलद खुदाई की रपट पढ़े बगैर ही  दबाव में  केवल छै हफ्ते में ही लिख दी गयी थी l 

(10) वामपंथी शिरीन मौसवी ने क्रॉस एग्जामिनेशन में ये स्वीकार किया कि उनका पहले का ये कहना सही नहीं है कि राम-जन्मस्थली का ज़िक्र मध्यकालीन इतिहास में नहीं है l 

दृष्टान्तों की सूची और लम्बी है l पर विडंबना तो ये है कि लाज हया को ताक पर रख कर वामपंथी इतिहासकार रोमिला थापर ने इन्हीं फरेबी वामपंथी इतिहासकारों व अन्य वामपंथियों का नेतृत्व करते हुए न्यायालय के इसी फैसले के खिलाफ लम्बे लम्बे पर्चे भी लिख डाले थे l पर शर्म इन्हें आती भी है क्या ? 

(सन्दर्भ  : Allahabad High court verdict dated 30 Sep 2010)

#Ayodhya

Monday, November 11, 2019

भक्त और भगवान का संबंध


एक बार की बात है एक संत जग्गनाथ पूरी से मथुरा की ओर आ रहे थे उनके पास बड़े सुंदर ठाकुर जी थे । वे संत उन ठाकुर जी को हमेशा साथ ही लिए रहते थे और बड़े प्रेम से उनकी पूजा अर्चना कर लाड लड़ाया करते थे ।

ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने ठाकुर जी को अपनें बगल की सीट पर रख दिया और अन्य संतो के साथ हरी चर्चा में मग्न हो गए ।

जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे तब वे सत्संग में इतनें मग्न हो चुके थे कि झोला गाङी में ही रह गया उसमें रखे ठाकुर जी भी वहीं गाडी में रह गए । संत सत्संग की मस्ती में भावौं मैं ऐसा बहे कि ठाकुर जी को साथ लेकर आना ही भूल गए ।

बहुत देर बाद जब उस संत के आश्रम पर सब संत पहुंछे और भोजन प्रसाद पाने का समय आया तो उन प्रेमी संत ने अपने ठाकुर जी को खोजा और देखा की हाय हमारे ठाकुर जी तो हैं ही नहीं ।

संत बहुत व्याकुल हो गए , बहुत रोने लगे परंतु ठाकुर जी मिले नहीं । उन्होंने ठाकुर जी के वियोग अन्न जल लेना स्वीकार नहीं किया ।संत बहुत व्याकुल होकर विरह में अपने ठाकुर जी को पुकारकर रोने लगे ।

तब उनके एक पहचान के संत ने कहा - महाराज मै आपको बहुत सुंदर चिन्हों से अंकित नये ठाकुर जी दे देता हूँ परंतु उन संत ने कहा की हमें अपने वही ठाकुर चाहिए जिनको हम अब तक लाड लड़ते आये है ।

तभी एक दूसरे संत ने पूछा - आपने उन्हें कहा रखा था ? मुझे तो लगता है गाडी में ही छुट गए होंगे। 

एक संत बोले - अब कई घंटे बीत गए है । गाडी से किसीने निकाल लिए होंगे और फिर गाडी भी बहुत आगे निकल चुकी होगी ।

इस पर वह संत बोले- मै स्टेशन मास्टर से बात करना चाहता हूँ वहाँ जाकर ।सब संत उन महात्मा को लेकर स्टेशन पहुंचे । स्टेशन मास्टर से मिले और ठाकुर जी के गुम होने की शिकायत करने लगे । उन्होंने पूछा की कौनसी गाडी में आप बैठ कर आये थे ।

संतो ने गाडी का नाम स्टेशन मास्टर को बताया तो वह कहने लगा - महाराज ! कई घंटे हो गए ,यही वाली गाडी ही तो यहां खड़ी हो गई है , और किसी प्रकार भी आगे नहीं बढ़ रही है । न कोई खराबी है न अन्य कोई दिक्कत कई सारे इंजीनियर सब कुछ चेक कर चुके है परंतु कोई खराबी दिखती है नही । महात्मा जी बोले। - अभी आगे बढ़ेगी ,मेरे बिना मेरे प्यारे कही अन्यत्र कैसे चले जायेंगे ?

वे महात्मा अंदर ट्रेन के डिब्बे के अंदर गए और ठाकुर जी वही रखे हुए थे जहां महात्मा ने उन्हें पधराया था । अपने ठाकुर जी को महात्मा ने गले लगाया और जैसे ही महात्मा जी उतरे गाडी आगे बढ़ने लग गयी । ट्रेन का चालाक , स्टेशन मास्टर तथा सभी इंजीनियर सभी आश्चर्य में पड गए और बाद में उन्होंने जब यह पूरी लीला सुनी तो वे गद्गद् हो गए । उसके बाद वे सभी जो वहां उपस्थित उन सभी ने अपना जीवन संत और भगवन्त की सेवा में लगा दिया

भक्तो भगवान जी भी खुद कहते है ना

भक्त जहाँ मम पग धरे,, तहाँ धरूँ में हाथ,
सदा संग लाग्यो फिरूँ,, कबहू न छोडू साथ,

मत तोला कर इबादत को अपने हिसाब से,
ठाकुर जी की रहमतें देखकर अक्सर तराज़ू टूट जाते हैं !!

अगर गुरू तेगबहादुर जी अपना बलिदान नहीं देते तो?


तारीख :- नवंबर 11, 1675.दोपहर ..

स्थान :-दिल्ली का चांदनी चौंक:लाल किले के सामने ..

मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हो चुके थे, लेकिन वो बिल्कुल शांत 
बैठे थे , प्रभु परमात्मा में लीन,लोगो का जमघट, सब की सांसे अटकी हुई, शर्त के
मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुरजी इस्लाम कबूल कर लेते है तो फिर सब हिन्दुओं 
को मुस्लिम बनना होगा बिना किसी जोर जबरदस्ती के...
गुरु जी का होंसला तोड़ने के लिए उन्हें बहुत कष्ट दिए गए। तीन महीने से वो कष्टकारी क़ैद में थे।
उनके सामने ही उनके सेवादारों भाई दयाला जी, भाई मति दास और उनके ही अनुज भाई सती दासको बहुत कष्ट देकर शहीद किया जा चुका था। लेकिन फिर भी गुरु जी इस्लाम अपनाने के लिए नही माने...
औरंगजेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था,
....समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडोल बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था। एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगाथा, हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था।
खुद चलके आया था औरगजेब लालकिले से नि कल कर सुनहरी मस्जिद केकाजी के पास,,,उसी मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देनेका फतवा निकलता था.. वो मस्जिद आज भी है..गुरुद्वारा शीस गंज, चांदनी चौक दिल्ली के पास । आखिरकार जालिम जब उनको झुकाने में कामयाब नही हुए तो जल्लाद की तलवार चल चुकी थी, और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो चुका था। ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था जिसने पुरे हिंदुस्तान का भविष्य बदल के  रख दिय, हर दिल में रोष था, कुछ समय बाद गोबिंद सिंह जी ने जालिम को उसी के  अंदाज़ में जवाब देने के लिए खालसा पंथ का सृजन की। समाज की बुराइओं से लड़ाई, जोकि गुरु नानक देवजी ने शुरू की थी अब गुरु गोबिंद सिंह जी ने उस लड़ाई को आखिरी रूप दे दिया था, दबा कुचला हुआ निर्बल समाज अब मानसिक रूप से तो परिपक्व हो  चूका था लेकिन तलवार उठाना अभी बाकी था।                                                         खालसा की स्थापना तो गुरू नानक देव जी ने पहले चरण के रूप में 15वी शताब्दी में ही कर दी थी लेकिन आखिरी पड़ाव गुरू गोविन्द सिंह जी ने पूरा किया। जब उन्होंने निर्बल लोगों में आत्मविश्वास जगाया, उनको खालसा बनाया और इज्जत से जीना सिखाया। निर्बल और असहाय की मदद् का जो कार्य उन्होंने जो शुरू किया था वो निर्विघ्नं आज भी जारी है। गुरू तेगबहादुर जी जिन्होंने हिन्द की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की, उनका एहसास भारतवर्ष कभी नहीं भूल सकता।  सुधी जन जरा एकांत में बैठकर सोचें अगर गुरू तेगबहादुर जी अपना बलिदान नहीं देते तो......?                                            

Saturday, November 9, 2019

अयोध्या केस जितने पे एक सुंदर प्रसंग।


हुई  प्रतीक्षा  पूर्ण  आज , शबरी माता के बेरों की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, केवट मल्लाह की टेरो की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज , सरयू की पावन लहरों की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, हर ग्राम और हर शहरों की

हुई प्रतीक्षा  पूर्ण  आज  है ,  फटे हुए तिरपाल की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, श्री राम चन्द्र कृपाल की 

हुई प्रतीक्षा  पूर्ण आज ,  शत्रुधन जैसे भाई की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, कैकेयी सुमित्रा माई की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण  आज , सिंहासन रखे खडाऊँ की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज , स्वर्गवासी गिद्ध जटायू की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, ऋषि वशिष्ठ पाराशर की
हुई प्रतीक्षा  पूर्ण  आज  है , विश्वामित्र  गुरुवर  की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, जनकनंदिनी सीता की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, रामचन्द्र परिणीता की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण  आज  है, वीर बली बजरंगी की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, वानर दल साथी संगी की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, सेवक सुमंत्र सारथी की
हुई  प्रतीक्षा  पूर्ण आज , जामवंत महारथी की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज है, सदियों के वनवास की
हुई  प्रतीक्षा पूर्ण आज है, भक्तों के विश्वास की

हुई प्रतीक्षा  पूर्ण  आज  है , रामचरित रामायण की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज , जन मानस धर्म परायण की 

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, लक्ष्मण की वधु उर्मिला की
हुई प्रतीक्षा  पूर्ण  आज , पावन मात अहिल्या की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, भ्राता भरत मिलाप की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, माँ कैकेयी के संताप की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, बेटे लव कुश के बाणों की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, दशरथ के त्यागे प्राणों की

हुई प्रतीक्षा पूर्ण राम, कौशल्या के पयपान की
हुई प्रतीक्षा पूर्ण आज, सारे ही हिन्दुस्तान की

जग जननी जय जय आरती।


      

जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर, पर-शिव सुर-भूपा॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि भर्ता हरि हर संहारकारी॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू विधिवधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
राम, कृष्ण, तू सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वाँछा कल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
दश विद्या, नव दुर्गा, नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू परधाम निवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही शमशान विहारिणि, ताण्डव लासिनि तू॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी धारा॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
मूलाधार निवासिनि, इहपर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वर दे॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले वेदत्रयी॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
हम अति दीन दुखी माँ, विपट जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥
निज स्वभाववश जननी, दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥
जगजननी जय जय माँ, जगजननी जय जय।
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय॥

Friday, November 8, 2019

देव उठानी प्रबोधिनी एकादशी


  
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी और देव उठानी एकादशी के नाम से जाना जाता है। 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देव शयनी के दिन भगवान विष्णु सो जाते हैं। 

इसके बाद देव प्रबोधिनी यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को चार महीने बाद भगवान जगते हैं। 

भगवान के जगने से सृष्टि में तमाम सकारात्मक शक्तियों का संचार होने लगता है।

शास्त्र व पंचांग के अनुसार इस वर्ष 8 नवंबर 2019 दिन शुक्रवार को देव उठनी एकादशी का व्रत रखना तथा तुलसी जी का भगवान शालिग्राम जी के साथ विवाह शास्त्र सम्मत् होगा। 

कारण यह है कि 8 नवंबर को एकादशी तिथि में सूर्योदय होगा और 12 बजकर 55 मिनट तक एकादशी तिथि रहेगी इसके बाद द्वादशी आरंभ हो जाएगी।

इस एकादशी व्रत का पारण शनिवार 9 नवंबर को सूर्योदय के बाद से ही किया जा सकता है। 

द्वादशी तिथि 2 बजकर 40 मिनट तक रहेगी। 

एकादशी व्रत करने वाले को द्वादशी के दिन भी व्रत के कुछ नियमों का पालन करना होता है जिनमें एक नियम यह है व्रती को द्वादशी के रोज दिन में नहीं सोना चाहिए। 

अगर नींद आ ही जाए तो सिरहाने में एक तुलसी का पत्ता जरूर रख लेना चाहिए।

इस वर्ष एकादशी पर बड़ा ही शुभ संयोग बना है। 

एकादशी शुक्रवार के दिन है। 

इस दिन की स्वामिनी विष्णु प्रिया देवी लक्ष्मी हैं। 

इस दिन व्रत करने से एक साथ लक्ष्मी और नारायण के पूजन का फल प्राप्त होगा। 

इस संयोग के साथ देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन यानी 8 नवंबर को जब तक एकादशी तिथि रहेगी तब तक रवि नामक शुभ योग भी उपस्थित होगा। इस शुभ संयोग में कोई भी शुभ काम का आरंभ किया जा सकता है।

💐जय श्री सीताराम💐
💐सत्य सनातन धर्म की जय💐
💐श्रीमन नारायण भगवान की जय💐

Sunday, November 3, 2019

समाज के व्यवस्था को हजारों वर्ष पूर्व वर्ण नियमो से चलाया जाता था।

वर्ण व्यवस्था हजारों वर्ष पूर्व बनाई गई सनातनी समाज की धुरी है, तथा धर्म की रक्षा के लिए सभी वर्णों ने कहा हैं।

लेकिन मुगलों, अंग्रेजों, राजनीतिज्ञों ने वर्णों को जातियों में विभक्त कर लोगों को एक दुसरे से लड़वाने का काम किया जिससे उनको राज करने में सफलता हासिल हो। इसके लिए जनता के उपर वो अत्याचार करते रहें ताकि उनके खिलाफ बगावत का स्वर बुलंद ना हो!

ब्राह्मण ने जिस सनातनी समाज को बचाने के लिए ज्ञान रक्षा का प्रण लिया तथा घर-घर भिक्षा माँगकर भोजन किया हो, कौन जानता है  जब भिक्षा देने वाले ने उसे ठोकर मारकर भगा दिया हो। इससे बढ़कर अपमानजनक क्यां होगा।

क्षत्रियों ने सनातनी राज्य की रक्षा के लिए प्रतिज्ञा की और जीवन भर सीमाओं की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा हो, कौन जानें युद्ध के मैदानों में पड़े हुए उनके शरीरों को चील कौवे नोच नोच कर खाएं हो, इससे बड़ी दुर्गति और क्यां हो सकती है।

जिन वैश्यों ने सनातनी राज्य की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए व्यापार हेतु पूरे विश्व में दर-दर भटका हो, कौन मानेगा कि आततायियों ने उनकी गर्दने काट-काट कर उनसे उनका धन छिन लिया, कौन जानें उनकी नाँव तूफान में फँसकर समुद्र में समाधि ले ली, और उनकी चिता को अग्नि भी नसीब नहीं हुई हो। इससे बड़ा दुःख और क्यां हो सकता है।

पूरे राष्ट्र की उदर पूर्ति के लिए जिसने अपने खून पसीने से धरती माँ को सींचा हो उसे शुद्र कहलाने वाला, कौन जानता है कब उसकी फसल प्रकृति आपदा ने बरबाद कर दिया हो, और उसको दो वक्त की रोटी के लिए घर-घर जाकर काम करना पड़ा हो. इससे बड़ा कष्ट और क्यां होगा।

लेकिन सभी वर्णों ने कई प्रकार की परेशानियों का सामना करते हुए सनातनी समाज की रक्षा की, क्योंकि यही वो समाज था जहाँ घरों में ताले नहीं लगाने पड़ते थे, क्योंकि यही वो समाज था जहाँ महिलाओं के साथ बलात्कार नहीं होते थे, यही वो समाज था जहाँ किसी कि अकाल मृत्यु नहीं होती थी, यही वो समाज था जहाँ वेश्याओं को मनोरंजन के नाम पर कोई नग्न नहीं नचाया जाता था, यही वो समाज था जहाँ ज्ञान के नाम पर कोई मोल नहीं लिया जाता था।                                                     बातें तो बहुत सारी है लेकिन यही समाप्त करते हैं। अब यहाँ छद्म और अल्पबुद्धि वाले सनातनियों को समाज की परिभाषा सिखा रहें हैं; तथा भारत में सनातनी समाज को भेदभाव के लिए दोषी ठहरा रहें हैं।                                                                      जात पात भारत पे एक क्लांख है इसे जड़ से खत्म करना होगा।

रविश कुमार की भक्ति।

सब राजनीति है भाई, जिसमे मीडिया एक विशेष हिस्सा है।
हर इंसान अपने पेट के लिये सब करता है, बाकी शरीर और आत्मा तो भगवान के अधीन ही है।
सब कलयुग है।