Tuesday, December 26, 2017

सूरजमल से नजीबुद्दौला युद्ध में हार कर संधी कर धोखे से कैसे हूई हत्या ? *

"दिल्ली के बादशाह नवाब नजीबुद्दौला के दरबार में एक सुखपाल नाम का ब्राह्मण काम करता था । एक दिन उसकी लड़की अपने पिता को खाना देने महल में चली गयी , मुग़ल बादशाह उसके रूप पर मोहित हो गया । और ब्राह्मण से अपनी लड़की कि शादी उससे करने को कहा और बदले में उसको जागीरदार बनाने का लालच दिया ।  ब्राह्मण मान गया और अपनी बेटी की शादी मुग़ल बादशाह से करने को तैयार हो गया । जब लड़की ने यह बात सुनी तो उसने शादी से इंकार कर दिया इससे क्रोधित होकर बादशाह ने लड़की को जिन्दा जलाने का आदेश दिया । मौलवियो ने बादशाह से कहा ऐसा तो यह मर जायेगी । आप इस को जेल में डालकर कष्ट दो और इस पर हरम में आने का दबाव डालो । बादशाह बात  मान गया और लड़की को जेल में डाल दिया ।
लड़की ने जेल कि जमादारनी से कहा कि  क्या इस देश में कोई ऐसा राजा नहीं है जो हिन्दू लड़की कि लाज बचा सके । जमादारनी ने कहा ऐसा वीर तो सिर्फ  एक ही है लोहागढ़ नरेश महाराजा सूरजमल जाट । बेटी तू एक पत्र लिख वो पत्र मैं तेरी माँ को दे दूंगी । लड़की के दुखो को देख वहाँ काम करने वाली जमादारनी ने लड़की कि मदद कि और लड़की ने  महाराजा सूरजमल के नाम एक पत्र लिखा और उसकी माँ वो पत्र लेकर महाराजा सूरजमल से पास गयी ।
उसकी कहानी सुन सूरजमल ने ब्रहामण की लड़की छुड़ाने के लिए अपने दूत वीरपाल गुर्जर को दिल्ली भेजा । वहाँ दिल्ली दरबार में जब गूर्जर ने महाराजा सूरजमल जाट का पक्ष रखते हुए लड़की को छोड़ने की बात कही तो बादशाह ने कहा कि "सूरजमल जाट हमसे क्या ब्रहामणी छुडवाएगा , सूरजमल जाट को जाकर कहना कि अपनी जाटनी महारानी को भी हमारे पास लेकर आए ।"

अपनी जाटनी महारानी के अपमान में यह शब्द सूनकर गुर्जर मुसलमानों के भरे दरबार में क्रोध से टूट पड़ा । तब बादशाह ने  गुर्जर कि हत्या का दी और मरते मरते गूर्जर दूत ने कहा कि "वो पूत जाटनी का है , तेरी नानी याद दिला देगा"

अपने दूत गूर्जर की हत्या की सूचना और महारानी के अपमान की बात जब भरतपुर में महाराजा सूरजमल ने सुनी तो गुर्रा के खेड़े हुए और बोले :- *"चालो र जाट - हिला दो दिल्ली के पाट"*

और दिल्ली पर जाटों ने चढाई कर दी ।
*गोर गोर जाट चले*
*अपनी लाड़ली सुसराल चले*
*हाथो में तलवार लेकर*
*मुगलो के बनने जमाई*

सूरजमल जाट अपने साथ अपनी जाट नी महारानी को भी युद्ध में ले गये । जाटों ने दिल्ली घेर ली और बादशाह के पास संदेश भिजवाया कि मैं अपनी जाटनी महारनी को साथ लेकर आया हूँ और अब देखता हूँ कि तू मुझ से जाटनी लेकर जाता है या नाक रगड़कर ब्रहामण की हिन्दू कन्या सम्मान सहित लौटाकर जाता है ।

*25 दिसंबर 1763 को दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ और महाराजा सूरजमल युद्ध जीत गए । बादशाह नजीबुद्दौला ने महाराजा सूरजमल के पैर पकड़ लिये और बोला मैं तो आप कि गाय हूँ मुझे छोड़ दो महाराजा । बादशाह ने सम्मान सहित ब्रहामण की लड़की को सूरजमल को लौटा दिया । बादशाह ने पैरों में पड़कर महाराजा सूरजमल से संधि की भीख मांगी और उन्हें उनके साथ दिल्ली चलने का न्योता दिया । युद्ध जीतकर महाराजा सूरजमल ने अपनी सेना को लौटा दिया और खुद जीत की खुशी मे मगन होकर मुस्लिम बादशाह पर ताबेदारी दिखाने के लिए कुछ सैनिकों को लेकर उनके साथ चल दिए । रास्ते में हिडन नदी के तट पर उन्हें धोखा देकर उनकी हत्या कर दी ।*

यह हिन्दू धर्म की जातिय एकता का अनुठा उदाहरण है कि एक पंडित की बेटी की लाज बचाने के लिए पंडिताईन जाटों से गुहार लगाती है । जाट अपने विश्वासपात्र गूर्जर को भेजते है । जाटनी के अपमान में गूर्जर वीरगति को प्राप्त होता है । गूर्जर की मौत से जाट दिल्ली पर चढ़ाई कर देते हैं ।

ऐसे  वीर सूरजमल को शत शत नमन ।
#जय सूरजमल !

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