Thursday, November 16, 2017

कर्म-फल पर भावना और ज्ञान का प्रभाव (पिता-पुत्र संवाद)

ओ३म्

पुत्र― यह बात मेरी समझ में भली प्रकार नहीं आई कि नीयत के साथ-साथ ज्ञान और अज्ञान का भी कर्मफल पर कुछ प्रभाव पड़ता है, कृपया विस्तारपूर्वक बतलाइये?

पिता― देखो! जैसे किसी मनुष्य से कोई पाप हो गया परन्तु उसकी नीयत ठीक थी। नीयत का ठीक होना ही ज्ञान और बे-ठीक अथवा बुरा होना ही अज्ञान है। एक मनुष्य से कोई धर्म-कार्य हो गया, परन्तु उसकी नीयत बुरी थी। वह वास्तव में यह शुभ कार्य करना नहीं चाहता था, अनजाने में ही उससे यह हो गया या यों समझो कि अपनी बदनीयत का तो उसे ज्ञान था वह धर्म कार्य, वह हुआ उसके अज्ञान तथा भूल से। अब उसे फल वैसा ही मिलेगा, जैसा कि उसका ज्ञान था। या यों कह लो, जैसा कि उसकी नीयत थी। इन दोनों वाक्यों में शब्दों का भेद होने पर भी कुछ अन्तर नहीं।

पुत्र― मैं अभी नहीं समझा! कोई दृष्टान्त देकर समझाने की कृपा कीजिए।

पिता― एक वृक्ष के ऊपर सांप चढ़ रहा है। उस की नीयत किसी पक्षी के बच्चे खाने की है, जिसका घोंसला उस वृक्ष पर है। एक मनुष्य यह सब कुछ देख रहा है। उसने बच्चों को बचाने के लिए सांप पर तीर चलाया, परन्तु वह तीर जा लगा पक्षी को, उस मनुष्य की नीयत तो सांप को मारकर बच्चों की रक्षा करने की थी, किन्तु मर गया बीच में आकर पक्षी और उससे अनजाने में वह पाप हो गया। इस पाप का उसे कोई दण्ड नहीं मिलेगा। वरन्, वह पक्षी के बच्चों को बचाने के सम्बन्ध में अपने मानसिक कर्म के पुण्य फल का ही भागी समझा जायेगा।

और लो, एक मनुष्य नदी के किनारे खड़ा हुआ किसी मछवे से मछली मोल ले रहा है। उसकी नीयत यह है कि वह उसे भूनकर खाये। परन्तु भाग्यवश ज्यों ही वह मछली को उस मछवे से लेता है, वह फड़फड़ा कर उसके हाथ से छूट जाती है और तड़पती हुई पानी में गिर पड़ती है। पानी में गिरते ही वह तैर कर अपनी जान बचा लेती है। अब उस मनुष्य की नीयत तो उस मछली के सम्बन्ध में बुरी थी। उसके ज्ञान में उसे भून कर खाने का पाप कर्म था परन्तु हो गया अज्ञान से यह पुण्य कर्म कि मछली उसके हाथ से छूटकर पानी में जा पड़ी। अब उसे मछली के जीवन-दान देने के कर्म-कार्य का पुण्य-फल कदापि नहीं मिल सकता। उसे तो मछली भूनकर खाने के मानसिक पाप-कर्म का ही दण्ड मिलेगा।

[साभार: महात्मा प्रभु आश्रित जी महाराज, "कर्म भोग चक्र" पुस्तक से]

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