Saturday, June 29, 2019

कविवर बारोट श्री चंद बरदाई

जन्म 30 सितंबर 1149
*ज्येष्ठ वद द्वादशी विक्रम संवत 1205* लाहौर पाकिस्तान

बलिदान 15 मार्च 1206 माघ सुद पंचमी (वसंत पंचमी) विक्रम संवत 1249 गज़नी

हिन्दी साहित्य के वीर गाथा कालीन कवि तथा पृथ्वीराज चौहानके मित्र थे। उन्होंने अपने मित्र का अन्तिम क्षण तक साथ दिया।

जीवनी

चंदबरदाई का जन्म लाहौर में हुआ था, वह जाति से बारोट ( भाट ) थे । बाद में वह अजमेर-दिल्ली के सुविख्यात हिंदू नरेश पृथ्वीराज के सम्माननीय सखा, राजकवि और सहयोगी हो गये थे। इससे उसका अधिकांश जीवन महाराजा पृथ्वीराज चौहानके साथ दिल्ली में बीता था। वह राजधानी और युद्ध क्षेत्र सब जगह पृथ्वीराज के साथ रहे थे। उसकी विद्यमानता का काल 13 वीं शती है। चंदवरदाई का प्रसिद्ध ग्रंथ "पृथ्वीराजरासो" है। इसकी भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है, जो राजस्थानमें ब्रज भाषाका पर्याय है। इसलिए चंदवरदाई को ब्रजभाषा हिन्दीका प्रथम महाकवि माना जाता है।

'रासो' की रचना महाराज पृथ्वीराज के युद्ध-वर्णन के लिए हुई है। इसमें उनके वीरतापूर्ण युद्धों और प्रेम-प्रसंगों का कथन है। अत: इसमें वीर और श्रृंगार दो ही रस है। चंदबरदाई ने इस ग्रंथ की रचना प्रत्यक्षदर्शी की भाँति की है अंत: इसका रचना काल सं. 1220 से 1250 तक होना चाहिए। विद्वान 'रासो' को 16वीं अथवा उसके बाद की किसी शती का अप्रमाणिक ग्रंथ मानते हैं। हिन्दी के पहले कवि चंदबरदाई को हिंदी के पहले कवि और उनकी रचना पृथ्वीराज रासो को हिंदी की पहली रचना होने का सम्मान प्राप्त है।पृथ्वीराज रासो हिंदी का सबसे बड़ा काव्य-ग्रंथ है। इसमें 10,000 से अधिक छंद हैं और तत्कालीन प्रचलित 6 भाषाओं का प्रयोग किया गया है। इस ग्रंथ में उत्तर भारतीय क्षत्रिय समाज व उनकी परंपराओं के विषय में विस्तृत जानकारी मिलती है, इस कारण ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका बहुत महत्व है। वे भारत के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय के मित्र तथा राजकवि थे। पृथ्वीराज ने 1165 से 1192 तक अजमेर व दिल्ली पर राज किया। यही चंदबरदाई का रचनाकाल भी था।

गोरी के वध में सहायता

इनका जीवन पृथ्वीराज के जीवन के साथ ऐसा मिला हुआ था कि अलग नहीं किया जा सकता। युद्धमें, आखेट में, सभा में, यात्रा में, सदा महाराज के साथ रहते थे और जहाँ जो बातें होती थीं, सब में सम्मिलित रहते थे। यहां तक कि मुहम्मद गोरी के द्वारा जब पृथ्वीराज चौहान को परास्त करके एवं उन्हे बंदी बना करके गजनी ले जाया गया तो ये भी स्वयं को वश मे नही कर सके एवं गजनी चले गये। ऐसा माना जाता है कि कैद मे बंद पृथ्वीराज को जब अन्धा कर दिया गया तो उन्हें इस अवस्था में देख कर इनका हृदय द्रवित हो गया एवं इन्होंने गोरी के वध की योजना बनायी। उक्त योजना के अंतर्गत इन्होंने पहले तो गोरी का हृदय जीता एवं फिर गोरी को यह बताया कि पृथ्वीराज शब्द भेदी बाण चला सकता है। इससे प्रभावित होकर मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज की इस कला को देखने की इच्छा प्रकट की। प्रदर्शन के दिन चंद बरदायी गोरी के साथ ही मंच पर बैठे। अंधे पृथ्वीराज को मैदान में लाया गया एवं उनसे अपनी कला का प्रदर्शन करने को कहा गया। पृथ्वीराज के द्वारा जैसे ही एक घण्टे के ऊपर बाण चलाया गया गोरी के मुँह से अकस्मात ही "वाह ! वाह !!" शब्द निकल पड़ा !

बस फिर क्या था चंदबरदायी ने तत्काल एक दोहे में पृथ्वीराज को यह बता दिया कि गोरी कहाँ पर एवं कितनी ऊँचाई पर बैठा हुआ है। वह दोहा इस प्रकार था

चार बाँस चौबीस गज , अंगुल अष्ट प्रमान !

ता ऊपर सुल्तान है , मत चूके चौहान !!

इस प्रकार चंद बरदाई की सहायता से पृथ्वीराज के द्वारा गोरी का वध कर दिया गया। इनके द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो हिंदी भाषा का पहला प्रामाणिक काव्य माना जाता है।

शत शत नमन महान कविवर को.

No comments: