Friday, August 2, 2019

ब्राह्मण शब्द को लेकर भ्रांतियां एवं उनका निवारण

डॉ विवेक आर्य

ब्राह्मण शब्द को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं। इनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक है।  क्यूंकि हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी जातिवाद है।  ब्राह्मण शब्द को सत्य अर्थ को न समझ पाने के कारण जातिवाद को बढ़ावा मिला है।

शंका 1 ब्राह्मण की परिभाषा बताये?

समाधान-

पढने-पढ़ाने से,चिंतन-मनन करने से, ब्रह्मचर्य, अनुशासन, सत्यभाषण आदि व्रतों का पालन करने से,परोपकार आदि सत्कर्म करने से, वेद,विज्ञान आदि पढने से,कर्तव्य का पालन करने से, दान करने से और आदर्शों के प्रति समर्पित रहने से मनुष्य का यह शरीर ब्राह्मण किया जाता है।-मनुस्मृति 2/28
                                     

शंका 2 ब्राह्मण जाति है अथवा वर्ण है?

समाधान- ब्राह्मण वर्ण है जाति नहीं। वर्ण का अर्थ है चयन या चुनना और सामान्यत: शब्द वरण भी यही अर्थ रखता है। व्यक्ति अपनी रूचि, योग्यता और कर्म के अनुसार इसका स्वयं वरण करता है, इस कारण इसका नाम वर्ण है। वैदिक वर्ण व्यवस्था में चार वर्ण है।  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।

ब्राह्मण का कर्म है विधिवत पढ़ना और पढ़ाना, यज्ञ करना और कराना, दान प्राप्त करना और सुपात्रों को दान देना।

क्षत्रिय का कर्म है विधिवत पढ़ना, यज्ञ करना, प्रजाओं का पालन-पोषण और रक्षा करना, सुपात्रों को दान देना, धन ऐश्वर्य में लिप्त न होकर जितेन्द्रिय रहना।

वैश्य का कर्म है पशुओं का लालन-पोषण, सुपात्रों को दान देना, यज्ञ करना,विधिवत अध्ययन करना, व्यापार करना,धन कमाना,खेती करना।

शुद्र का कर्म है सभी चारों वर्णों के व्यक्तियों के यहाँ पर सेवा या श्रम करना।

शुद्र शब्द को मनु अथवा वेद ने कहीं भी अपमानजनक, नीचा अथवा निकृष्ठ नहीं माना है। मनु के अनुसार चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य एवं शूद्र आर्य है।-   मनु 10/4
                                                                                                          

शंका 3- मनुष्यों में कितनी जातियाँ हैं?                                                        समाधान- मनुष्यों में केवल एक ही जाति है, वह है "मनुष्य " । अन्य की जाति नहीं है ।                             शंका 4 - चार वर्णों का विभाजन का आधार क्यां है?                               समाधान- वर्ण बनाने का मुख्य प्रयोजन कर्म विभाजन है । वर्ण  विभाजन का आधार व्यक्ति की योग्यता है । आज भी शिक्षा प्राप्ति के उपरांत व्यक्ति डाॅक्टर, इंजीनियर, वकील आदि बनता है, जन्म से कोई भी व्यक्ति डाॅक्टर, इंजीनियर, वकील आदि नहीं होता । इसे ही वर्ण व्यवस्था कहते हैं ।                                              शंका 5 - कोई भी ब्राह्मण जन्म से होता है अथवा गुण, कर्म, स्वभाव से होता है?                                         समाधान- व्यक्ति की योग्यता का निर्धारण शिक्षा प्राप्ति के उपरांत ही होता है, जन्म के आधार पर नहीं होता । किसी भी व्यक्ति के गुण, कर्म और स्वभाव के आधार पर उसके वर्ण का चयन होता है । कोई व्यक्ति अनपढ़ हो अपने आप को ब्राह्मण कहे तो वह गलत है ।                                            मनु का उपदेश पढ़िये- जैसे लकड़ी से बना हाथी और चमड़े से बना हिरण सिर्फ नाम के लिए हांथी और हिरण कहे जाते हैं वैसे ही बिना पढ़ा ब्राह्मण मात्र नाम का ही ब्राह्मण होता है । मनुस्मृति- 2/157                                     शंका 6 - क्यां ब्राह्मण पिता की संतान केवल इसलिए ब्राह्मण कहलाती है कि उसके पिता ब्राह्मण हैं?                                           समाधान- यह भ्रांति है कि ब्राह्मण पिता की संतान इसलिए ब्राह्मण कहलायेगी क्योंकि उसका पिता ब्राह्मण हैं । जैसे एक डाक्टर की संतान तभी डाॅक्टर कहलायेगी जब वह MBBS उत्तीर्ण कर लेगी । जैसे एक इंजिनीयर की संतान तभी इंजीनियर कहलायेगी जब वह BTech उत्तीर्ण कर लेगी, बिना पढ़े नहीं कहलायेगी । वैसे ही ब्राह्मण एक अर्जित जाने वाली पुरानी उपाधि है।                               मनु का उपदेश पढ़िये- माता-पिता से उत्पन्न संतति का माता के गर्भ से प्राप्त जन्म साधारण जन्म है । वास्तविक जन्म तो शिक्षा पूर्ण कर लेने के उपरांत ही होता है । मनुस्मृति- 2/147                                                  शंका 7 - प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए क्यां करना पड़ता था?                                                         समाधान- प्राचीन काल में ब्राह्मण बनने के लिए शिक्षित और गुणवान दोनों होना पड़ता था ।                                                     मनु का उपदेश देखें- वेदों में पारंगत आचार्य द्वारा शिष्य को गायत्री मंत्र की दीक्षा देने के उपरांत ही उसका वास्तविक मनुष्य जन्म होता है । मनुस्मृति-2/148                                         ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, ये तीन वर्ण विद्यालय से दुसरा जन्म प्राप्त करते हैं । विद्याध्ययन न कर पाने वाला, शुद्र चौथा वर्ण है । मनुस्मृति-10/4                                   आजकल कुछ लोग केवल इसलिए अपने आप को ब्राह्मण कहकर जाति का अभिमान दिखाते हैं क्यूंकि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे । जो गलत है ! योग्यता अर्जित किये बिना कोई ब्राह्मण नहीं बन सकता । हमारे प्राचीन ब्राह्मण अपने तप से, अपनी विद्या से अपने ज्ञान से सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शन करते थे । इसलिए हमारे आर्यव्रत देश विश्व गुरु था ।                                                    शंका 8 - ब्राह्मण को श्रेष्ठ क्यों माने?                                                       समाधान- ब्राह्मण एक गुणवाचक वर्ण है । समाज का सबसे ज्ञानी, बुद्धिमान, शिक्षित, समाज का मार्गदर्शन करने वाला, त्यागी, तपस्वी व्यक्ति ही ब्राह्मण कहलाने का अधिकारी बनता है । इसलिए ब्राह्मण वर्ण श्रेष्ठ है । वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण को अगर सबसे अधिक सम्मान दिया गया है तो ब्राह्मण को सबसे अधिक गलती करने पर दंड भी दिया गया है ।                                      मनु का उपदेश देखें- एक ही अपराध के लिए शूद्र को सबसे कम दंड, वैश्य को दो गुना, क्षत्रिय को तीन गुना और ब्राह्मण को सोलह या 128 गुना दंड मिलता था । मनु- 8/337 ,8/338                                                   इन श्लोकों के आधार पर कोई भी मनु महाराज को पक्षपाती नहीं कह सकता ।                                   शंका 9 - क्यां शुद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शुद्र बन सकता है?                        समाधान- ब्राह्मण, शूद्र आदि वर्ण क्योंकि गुण, कर्म और स्वभाव के आधार पर विभाजित है । इसलिए इनमें परिवर्तन संभव है । कोई भी व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण नहीं होता। अपितु शिक्षा प्राप्ति के उपरांत उसके वर्ण का निर्धारण होता है ।                                     मनु का उपदेश देखें- ब्राह्मण शुद्र बन सकता है और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है । इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते हैं । मनुस्मृति- 10/64                शरीर और मन से शुद्ध-पवित्र रहने वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला, मधुरभाषी, अहंकार से रहित, अपने से उत्कृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्तम ब्राह्मण जन्म और द्विज वर्ण को प्राप्त कर लेता है । मनुस्मृति-9/335                                जो मनुष्य नित्य प्रातः और सायं ईश्वर अराधना नहीं करता उसको शूद्र समझना चाहिए । मनुस्मृति-2/103                                     जब व्यक्ति वेदों की शिक्षाओं में दीक्षित नहीं होता वह शूद्र के ही समान है । मनुस्मृति-2/172                   ब्राह्मण-वर्णस्थ व्यक्ति श्रेष्ठ-अतिश्रेष्ठ व्यक्तियों का संग करते हुए और नीच-नीचतर व्यक्तियों का संग छोड़कर अधिक श्रेष्ठ बनता जाता है । इसके विपरीत आचरण से पतित होकर वह शूद्र बन जाता है । मनुस्मृति-4/245                                           जो ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य वेदों का अध्ययन या पालन छोड़कर अन्य विषयों में ही परिश्रम करता है, वह शूद्र बन जाता है । मनुस्मृति - 2/168                                  शंका 10- क्यां जो आज अपने आप को ब्राह्मण कहते हैं, वही हमारी प्राचीन विद्या और ज्ञान की रक्षा करने वाले प्रहरी थे?             समाधान- आजकल जो व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर अगर प्राचीन ब्राह्मणों के समान वैदिक धर्म की रक्षा के लिए पुरुषार्थ कर रहा है तब तो वह निश्चित रूप से ब्राह्मण के समान सम्मान का पात्र है । अगर कोई व्यक्ति ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होकर ब्राह्मण धर्म के विपरीत कर्म कर रहा है, तब वह किसी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने के लायक नहीं है । एक उदाहरण लीजिए! एक व्यक्ति यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है, शाकाहारी हैं, और धर्म के लिए पुरुषार्थ करता है । उसका वर्ण ब्राह्मण कहलायेगा चाहे वह शूद्र पिता की संतान हो । उसके विपरीत एक व्यक्ति अनपढ़ है, मांसाहारी हैं, चरित्रहीन है और किसी भी प्रकार से समाज हित का कोई कार्य नहीं करता, चाहे उसके पिता कितने भी प्रतिष्ठित ब्राह्मण हो, किसी भी प्रकार से ब्राह्मण कहलाने के लायक नहीं है । केवल चोटी पहनना, जनेऊ धारण करने भर से कोई ब्राह्मण नहीं बन जाता । इन दोनों वैदिक व्रतों से जुड़े हुए कर्म अर्थात धर्म का पालन करना अनिवार्य है । प्राचीन काल में धर्म रूपी आचरण एवं पुरुषार्थ के कारण ब्राह्मणों का मान था ।                                   इस लेख के माध्यम से वैदिक विचारधारा में ब्राह्मण शब्द को लेकर सभी भ्रांतियों के निराकरण का प्रयास किया है । ब्राह्मण शब्द की वेदों में बहुत महत्ता है । मगर इसकी महत्ता का मुख्य कारण जन्मना ब्राह्मण होना नहीं अपितु कर्मणा ब्राह्मण होना हैं । मध्यकाल में हमारी वैदिक वर्ण व्यवस्था बदलकर जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गयी । विडंबना यह है कि इस बिगाड़ को हम आज भी दोह रहें हैं । जातिवाद से हिन्दू समाज की एकता समाप्त हो गयी, भाई-भाई में द्वेष हो गया । इसी कारण से हम कमजोर हुए तो विदेशी विधर्मियों के गुलाम बने । हिन्दुओं के 1200 वर्षों के दमन का अगर कोई मुख्य कारण है तो वह जातिवाद हैं । वही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है । इस जातिवाद रूपी शत्रु को जड़ से नष्ट करने का संकल्प लें !!!                      😴😴😴😌😌😌🙂🙂🙂

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