Tuesday, August 6, 2019

कलयुगीरस कविता १

घनघोर अंधेरा छाएगा
कुछ नजर ना आएगा
धरा लाल बंजर होगा
छाव सिर्फ संध्या होगा
बिना रूह तन डोलेगा
काली भाषा बोलेगा
महातांडव मुख खोलेगा
कर्म हीन सृस्टि होगा ।।
जीवाणुओ का दृष्टि होगा
अपना अपनो को खायेगा
रक्त कुवें में नहायेगा
संसार भ्रस्ट हो जायेगा
वेद नस्ट हो जायेगा

पाप श्रिष्टि में जितना होगा,
फल उसका विष वो पायेगा,
घनघोर अंधेरा छायेगा
तब कुछ ना रेह जायेगा।।

जय कलयुग
।।214।।

#Surajmisir #kalyug

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