Saturday, September 28, 2019

कैलाश पर्वत चाइना में क्यों हैं?

कई लोग यह सवाल पूछते हैं। जब शिव की पूजा करने वाले भारत में हैं तो उन्होंने चीन में रहना क्यों पसंद किया? वो भी ऐसा देश जो हमारा दुश्मन है। कैलाश यात्रा के दौरान यह सवाल मेरे भी दिमाग में था।

यह तस्वीर तीन दिन की पैदल कैलाश परिक्रमा के बाद उस जगह की है जहां से आगे का रास्ता बस से पूरा करते हैं। भोर के अंधेरे में करीब दो-ढाई घंटे चलने के बाद जब यहां पहुंचते हैं तो उस समय सूर्योदय हो रहा होता है। पीछे सूरज की रोशनी में चमकता हुआ जो पहाड़ दिख रहा है वो भारत में है। गाइड ने बताया कि ये आदि कैलाश है। दरअसल धरती पर कुल पांच कैलाश हैं, जिन्हें 'पंच कैलाश' कहा जाता है। कैलाश मानसरोवर मुख्य है, बाकी चारों वो हैं जहां के बारे में मान्यता है कि वहां कभी शिव प्रकट हुए थे। कैलाश और आदि कैलाश की हवा में दूरी  मुश्किल से 100 किलोमीटर है। तिब्बत के स्थानीय लोग आदि कैलाश की यहीं से खड़े होकर पूजा करते हैं।

हमारी किताबों में लिखा गया है कि कैलाश मानसरोवर कभी भी भारतीय भूभाग का हिस्सा नहीं रहा। इसलिए 1947 में जब देश आजाद हुआ तो इस हिस्से को भारत की सीमा में नहीं लाया गया। यह बात भी हमारी इतिहास की किताबों में लिखे गए ढेरों झूठों में से एक है। कश्मीर के राजा गुलाब सिंह के सेनापति जनरल जोरावर सिंह ने इस पूरे इलाके को जम्मू कश्मीर स्टेट का हिस्सा बनाया था। बंटवारे के समय भी तकनीकी रूप से यह जगह जम्मू कश्मीर का हिस्सा थी। चूंकि अंग्रेजों को इस इलाके में कोई दिलचस्पी नहीं थी उन्होंने अपने नक्शे में इसे जगह नहीं दी थी।

बंटवारे के बाद भी कैलाश को भारतीय सीमा में मिलाना बहुत मुश्किल नहीं था। क्योंकि तब यह No man's land था। चीन भी यहां नहीं था। जवाहरलाल नेहरू अगर हिंदू होते तो उन्हें इस जगह का महत्व पता होता। लेकिन जिस तरह से ननकाना साहिब, करतारपुर साहिब और शारदा पीठ जैसे पवित्र स्थान जमीन पर बहुत पास होकर भी दूर कर दिये गये उसी तरह कैलाश-मानसरोवर भी हमसे दूर चला गया । जनरल जोरावर सिंह की समाधि कैलाश मानसरोवर क्षेत्र  में ही हैं । तिब्बत के लोग उनकी पूजा करते हैं । उन्हें भारत का नेपोलियन कहा जाता है। लेकिन उनकी कहानी इतिहास की किताबों से गायब चर दिया गया, ताकि नेहरू जी की महानता पर कोई सवाल न उठे। पहले कैलाश जाने वाले यात्रियों को जोरावर सिंह की समाधि पर ले जाया जाता था, लेकिन इस साल से चीन सरकार ने इसे बंद कर दिया है।                                        जैसा कि सैम पित्रोदा ने कहा हैं कि "हुआ तो हुआ" इसलिए अब इस पर अफसोस कर के कोई फायदा नहीं। चीन हमारे कैलाश मानसरोवर का अच्छे से ध्यान रख रहा है । उसने यहाँ आसपास निर्माण पर रोक लगा रखा है। कैलाश भारत में होता तो हम उसे कचरे का ढेर बना चुके होते । मानसरोवर के किनारे सैकडों घाट बना चुके होते और इसकी तलहटी में हमारा मलमूत्र जमा होता रहता । कैलाश शिव जी का घर है, लेकिन सर्दियों में वो काशी आ जाते है । देखते ही होंगे कि वहा पर क्या हाल कर रखा है । जब हम एक समाज के तौर पर इस योग्य नहीं होंगे कि हम शिव जी के पवित्र स्थान को संभेल सके तो मुझे पूरा भरोसा है कि सीमायें टूटते समय नहीं लगेगा । भगवान शिव जी भी उस दिन का जरूर इंतजार कर रहे होंगे ।               🙏🙏🙏👏👏👏

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