Saturday, September 28, 2019

कलश स्थापना की सबसे सही और सरल विधि.

*नवरात्रि के कलश स्थापना की सबसे सही, सरल और प्रामाणिक विधि..*

*कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री :-*

जौ बोने के लिए मिटटी का पात्र
साफ़ मिट्टी
मिटटी का एक छोटा घड़ा
कलश को ढकने के लिए मिट्टी का एक ढक्कन
गंगा जल
सुपारी
1 या 2 रुपए का सिक्का
आम की पत्तियां
अक्षत / कच्चे चावल
मोली / कलावा / रक्षा सूत्र
जौ (जवारे)
इत्र (वैकल्पिक)
फुल और फुल माला
नारियल
लाल कपडा / लाल चुन्नी
दूर्वा घास

*कलश स्थापना विधि :-*

नवरात्रि में कलश स्थापना देव-देवताओं के आह्वान से पूर्व की जाती है। कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश को तैयार करना होगा जिसकी सम्पूर्ण विधि इस प्रकार है...

सबसे पहले मिट्टी के बड़े पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें। और उसमे जवारे (जौ) के बीज डाल दें।

अब इस पात्र में दोबारा थोड़ी मिटटी और डालें। और फिर बीज डालें। उसके बाद सारी मिट्टी पात्र में डाल दें और फिर बीज डालकर थोड़ा  सा जल डालें।

(ध्यान रहे इन बीजों को पात्र में इस तरह से लगाएं कि उगने पर यह ऊपर की तरफ उगें। यानी बीजों को खड़ी अवस्था में लगाएं और ऊपर वाली लेयर में बीज अवश्य डालें।)

अब कलश की दीवाल पर ॐ या स्वास्तिक बनाकर उस पात्र की गर्दन पर मौली (कलावा) बांध दें। साथ ही तिलक भी लगाएं।

इसके बाद कलश में गंगा जल भर दें।

इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का भी दाल दें।

अब इस कलश के अंदर के किनारों पर चारो तरफ 5 अशोक या आम के पत्ते रखें और कलश को ढक्कन से ढक दें। कलश के ढक्कन में साफ चावल भर दें।

अब एक कच्चा नारियल लें और उसे लाल कपड़े या लाल चुन्नी में लपेट लें। चुन्नी के साथ इसमें कुछ पैसे भी रखें।

इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र (कलावा) से बांध दें।

तीनों चीजों को तैयार करने के बाद सबसे पहले जमीन को अच्छे से साफ़ करके उसपर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें। उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें।

आपकी कलश स्थापना संपूर्ण हो चुकी है।
इसके बाद सभी देवी देवताओं का आह्वान दोनों हाथों को जोड़कर अपनी भाषा में भावना करें कि..

*” हे सम्पूर्ण ब्रह्मांड के समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया मेरे घर मे मेरे इस कलश में विराजमान हों “*

हाथ जोड़कर कलश में वरुण देवता का आह्वान करें :-

*ॐ तत्वा यामि ब्रह्मणा वंदमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः।*
*अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश गुं समा न आयुः प्र मोषीः॥*

अब हाथ जोड़कर कलश में आवाहित देवी-देवताओं को प्रणाम करें।

कलश के जल में सम्पूर्ण देवी-देवताओं के आह्वान के लिए हाथ जोड़े हुये निम्नलिखित मंत्र का भी उच्चारण करें :-

*ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः कंठे रुद्रः समाश्रितः ।*
*मूले त्वस्य स्थतो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥*

*कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुंधराः ।*
*अर्जुनी गोमती चैव चंद्रभागा सरस्वती ॥*

*कावेरी कृष्णवेणी च गंगा चैव महानदी ।*
*ताप्ती गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥*

*नदाश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथापराः ।*
*पृथिव्यां यान तीर्थानि कलशस्तानि तानि वैः ॥*

*ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥*
*अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः ।*

*अत्र गायत्री सावित्री शांति पुष्टिकरी तथा ॥*
*आयान्तु देवपूजार्थं दुरित क्षयकारकाः ।*

*गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ॥*
*नर्मदे सिंधु कावेरी जलेऽस्मिन्‌ सन्निधिं कुरु ।*

*नमो नमस्ते स्फटिक प्रभाय सुश्वेतहाराय सुमंगलाय ।*
*सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधनाथाय नमो नमस्ते ॥*

इस प्रकार देव आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान हो गए हैं।
अब कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें, इस तरह विधिवत नवरात्रि में कलश पूजन करें।

इस कलश को आपको नौ दिनों तक मंदिर में ही रखे देने होगा। बस ध्यान रखें सुबह-शाम आवश्यकतानुसार पानी डालते रहें।
कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। कलश के मुख में भगवान विष्णु , गले में रूद्र , मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है।

नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट (कलश) में आह्वान करके उसे स्थापित किया जाता है।
इससे घर की सभी विपदा दायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।

*देवी माँ की चौकी की स्थापना और पूजा विधि..*

लकड़ी की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें।
साफ कपड़े से पोंछ कर उस पर लाल कपड़ा बिछा दें।
इसे कलश के दायी तरफ रखें।
चौकी पर माँ दुर्गा की मूर्ति अथवा फ्रेम युक्त फोटो रखें।
माँ को चुनरी ओढ़ाएँ।
धूप , दीपक आदि जलाएँ।

नौ दिन तक जलने वाली माता की अखंड ज्योत जलाएँ।
देवी मां को तिलक लगाए ।
माँ दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हलदी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध आदि अर्पित करें ।
काजल लगाएँ ।
मंगलसूत्र, हरी चूडियां , फूल माला , इत्र , फल , मिठाई आदि अर्पित करें।
श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ , देवी माँ  के स्रोत , सहस्रनाम भजन कीर्तन आदि का पाठ करें।
देवी माँ की आरती करें।
पूजन के उपरांत वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें।

रोजाना देवी माँ का पूजन करें तथा जौ वाले पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें। जल बहुत अधिक या कम ना छिड़के । जल इतना हो कि जौ अंकुरित हो सके। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते है। । यदि इनमे से  किसी अंकुर का रंग सफ़ेद हो तो उसे बहुत अच्छा माना जाता है। यह दुर्लभ होता है।

*नवरात्री में कन्या पूजन –*

महाअष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। कुछ लोग अष्टमी के दिन और कुछ नवमी के दिन कन्या पूजन करते है। परिवार की रीति के अनुसार किसी भी दिन कन्या पूजन किया जा सकता है।

दो साल से दस साल तक आयु की कन्याओं को तथा साथ ही बटुक या लांगुरिया (छोटा लड़का) को खीर , पूरी , हलवा , चने की सब्जी आदि खिलाये जाते है।

नवरात्री के नौ दिन माँ दुर्गा के आशीष प्राप्ति के लिए जप , ध्यान , भक्ति आदि के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन माने जाते हैं।
यदि नवरात्री में माँ दुर्गा का पूजन , हवन , ध्यान , जप आदि विधिवत ना कर पायें तो कन्या पूजन करके माँ का आशीष प्राप्त किया जाता है।
इसकी विधि सरल है और इसमें किसी विशेष मन्त्र या अनुष्ठान की जरुरत नहीं होती।

छोटी लड़कियों को आदर पूर्वक बुलवाकर पूजन , भोजन आदि की व्यवस्था करके आशीर्वाद लेने से परिवार में सुख समृद्धि बढ़ती है , दुःख दरिद्रता दूर होते हैं , रोगों से मुक्ति मिलती है , शत्रु कमजोर होता है , अटका हुआ काम हो जाता है  तथा मनोकामना पूर्ण होती है।

*महानवमी , विसर्जन और जवारे..*

महानवमी के दिन माँ का विशेष पूजन करके पुन: पधारने का आवाहन कर, स्व स्थान विदा होने के लिए प्रार्थना की जाती है। कलश के जल का छिड़काव परिवार के सदस्यों पर और पूरे घर में किया जाता है ताकि घर का प्रत्येक स्थान पवित्र हो जाये।

अनाज के कुछ जवारे माँ के पूजन के समय चढ़ाये जाते है। कुछ जवारे दैनिक पूजा स्थल पर रखे जाते है , शेष अंकुरों को बहते पानी में प्रवाहित कर दिया  जाता है।
कुछ लोग इन जवारों को शमीपूजन के समय शमी वृक्ष को अर्पित करते हैं और लौटते समय इनमें से कुछ जवारे केश में धारण करते हैं ।

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