Thursday, September 26, 2019

भगतसिंह का अंतिम पत्र अपने साथियों के नाम:


२७ सितंबर: शहीद भगतसिंह का जन्मदिन

“भगत सिंह का जन्म कृषकों के एक सिख परिवार में बंगा (लायलपुर-अब पाकिस्तान) में 27 सितंबर 1907 को हुआ था। आपके परिवार में सभी देशभक्त, सुधारवादी तथा देश की आजादी के दीवाने थे।
“22 मार्च,1931,


“साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूँ, कि मैं क़ैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता। मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊँचा उठा दिया है – इतना ऊँचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊँचा मैं हर्गिज़ नहीं हो सकता। आज मेरी कमज़ोरियाँ जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फाँसी से बच गया तो वो ज़ाहिर हो जाएँगी और क्रांति का प्रतीक-चिन्ह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते-हँसते मेरे फाँसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएँ अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरज़ू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देनेवालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. हाँ, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी, उनका हजारवाँ भाग भी पूरा नहीं कर सका. अगर स्वतंत्र, ज़िंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता. इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फाँसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक सौभाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे ख़ुद पर बहुत गर्व है. अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतज़ार है. कामना है कि यह और नज़दीक हो जाए.
आपका साथी,
भगत सिंह”

मैं समझ नहीं पाता हूं कि वह कौन सी बात थी कि आज से ९०-१०० साल पूर्व कुछ लोग देश, समाज तथा जन्मभूमि के लिए अपने प्राण तक त्यागने को तैयार थे ? वह सब सच था, लेकिन आज के हालात देख विश्वास नहीं होता है कि ऐसे भी लोग कभी इस देश में पैदा हुए थे । आज त्याग की बात तो दूर, देश लूटने से भी कोई बाज नहीं आ रहा है । जिसको जहां मौका मिल रहा है वह केवल अपने स्वार्थों की पूर्ति में लगा है । इतना भी करने को लोग तैयार नहीं कि अपने हिस्से की जिम्मेदारी ही ईमानदारी से निभाएं, जिसके लिए समाज/शासन उन्हें वेतन देता है । अगर थोड़ी-सी निष्ठा होती, देश के हालात कुछ और होते । सरकारी तन्त्र का शिक्षक ईमानदारी से पढ़ाता, चिकित्सक ईमानदारी से मरीजों का इलाज करता, पुलिस वाला ईमानदारी से फ़र्ज निभाता, राजनेता आपराधिक वारदातों में न सरीक होते और न ऐसी वृत्तियों में संलग्न तत्त्वों को संरक्षण देते, न्यायिक व्यवस्था में ईमानदारी होती, तो देश की तस्वीर कुछ और होती । काश ऐसा होता !

आज भगतसिंह का जन्मदिन है । बहुत कम लोगों को मालूम होगा । क्रिकेट या सिनेजगत की के किसी विशिष्ठ व्यक्ति ‘सेलेब्रिटी’ अथवा किसी बड़े राजनेता की बार होती तो पता चलता । पर भगत सिंह का खयाल किसे होगा ? उस शहीद के प्रति मेरी श्रद्धा

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